तृप्त – ऋचा उपाध्याय : Moral Stories in Hindi

कहीं दूर ‘पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा’ गीत बज रहा था। अचानक ही मयंक को पापा की याद आ गई कितने दिन हो गए पापा से बात किए। जब से माँ हम सब को छोड़कर गई हैं घर आना-जाना भी कम हो गया है और पापा से ज्यादा बात भी नहीं होती। शायद सब ठीक ही कहते हैं कि ‘माँ से ही घर होता है।’

वैसे भी छोटे भाई रवि और उसका परिवार वहाँ देश में हैं तो निश्चिंत रहता हूँ। महीने दो महीने में वो लोग वहाँ जाते भी रहते हैं इसलिए पापा का हाल चाल भी मिल जाता है मयंक की ज़िंदगी में इधर बीच कितनी परेशानियाँ भी तो चल रही हैं। नई नौकरी नया शहर रिया, टिया का एडमीशन उफ्फ! अचानक इतनी उथलपुथल से आर्थिक स्थिति भी दो साल पहले जैसी नहीं रही। मयंक मन ही मन अपने को जस्टीफाई कर रहा है।

पर सुमी तो दो बार जा कर अपने माँ-पापा से और पापा से किसी तरह मैनेज कर के मिल आई। फिर मैं क्यों नहीं जा सकता। हम लड़के ऐसे ही होते हैं हार्टलेस कोई भावना नहीं फीलिंग्स नहीं ,तभी सब सच कहते हैं बेटों से ज्यादा अच्छी बेटियाँ होती हैं। माँ की बड़ी इच्छा थी कि उनको एक बेटी हो,

शायद यही सब सोच कर, पर हुए हम दो भाई। वैसे माँ से बड़ा लगाव था हम दोनो को हमने माँ को कभी दुखी नहीं किया, जब तक वो रहीं, खूब आते-जाते रहे उनके पास, उनको जबरदस्ती अपने पास भी लाते रहे। और पापा ! जो हमारे बीमार होने पर पूरी रात दरवाजे पर खड़े रहते गाड़ी की चाभी लेकर तैयार।

माँ हमारे मन का खाना बनाती पर उसका सारा सामान पापा ही तो लाते। “तुम उसके मनपसंद की मटर पनीर भूल गई थी ना । देखो आज ताजी मटर मिल रही थी तो ले आया।” छोटी छोटी बात का पसंद का खयाल वो ही तो रखते भले बैकअप सपोर्ट की तरह । हमारी पहली साइकिल, फुटबाल, सभी कुछ तो लाते थे ।

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जन्मदिन पर सुबह चार बजे उठाकर गिफ्ट के साथ ढेर सारा प्यार भी। फिर हम लड़कों को सिर्फ माँ का प्यार ही क्यों याद रहता है। घर तो पापा से भी होता है। माँ तो चली गई हम उनको याद करके रोते हैं दुखी होते हैं पर पापा ! जो हैं! जिन्हें हमारी ज़रूरत भी होगी शायद, हम नालायक लड़के क्यों उनको भूल जाते हैं।

हैलो पापा ! कैसे हैं आप साॅरी बहुत दिनों से बात नहीं कर पाया। बहुत व्यस्त और थोड़ा परेशान भी था।

अच्छा हूँ बेटा! तुम कैसे हो। क्या हुआ? परेशान क्यों हो बच्चे। सुमी आई थी तो अच्छा लगा पर तुम भी आते और खुशी होती। सुमी बता रही थी कि तुम अपने नए काम से संतुष्ट और खुश नहीं हो। कोई समस्या तो नहीं है ना। अभी तुम्हारा पापा है बेटे कुछ भी ज़रूरत हो तो बताना।

नहीं नहीं! पापा अब सब सही है। बस आज आपकी बहुत याद आ रही थी इसलिए मयंक की आँखों में दो मोती झिलमिलाने लगे आवाज़ भर्रा उठी।

बस आपके प्यार भरे स्पर्श की ज़रूरत है पापा, एक बार फिर नन्हा बच्चा बन कर आपके मजबूत कंधो पर सर रखना चाहता हूँ साथ ही आपका संबल बनना चाहता हूँ, मन ही मन मयंक ने सोचा और फोन रख दिया।

नये साल की शुरुआत लखनऊ में शीतलहर का प्रकोप, पर क्या करें आनंद जी की आँख चार बजे ही खुल जाती, रोज सुबह चार बजे ही उठ जाते और अपना रोज का काम निपटा मार्निंग वाॅक पर निकल जाते पर अभी ठंड के चलते बाहर नहीं जा रहे थे बिस्तर पर लेटे लेटे ही सोचा चलो उठकर चाय बना लाता हूँ अभी वो रजाई हटा ही रहे थे कि दरवाज़े की घंटी बजी। ठंड में इतनी सुबह सुबह कौन आ गया सोचते हुए जाकर दरवाज़ा खोला तो सामने मयंक और रवि दोनों खड़े थे। आनंद जी हड़बड़ा कर अरे तुम दोनों अचानक इस समय, सब खैरियत तो है ना।

हाँ हाँ पापा सब खैरियत है, हम दोनो ने सोचा क्यों न हम एक बार फिर से वही सब करें जो माँ जब नाना जी के घर चली जातीं थीं तब करते थे ….मस्ती। हमें पता है आप ये घर और माँ की यादों को छोड़कर कहीं नही जाना चाहते हैं पर अब से आप हमारे पास भी आते जाते रहेंगे और हम भी, कोई बहाने नहीं।

“अरे भैया! छोड़िए न ये सीरियस बातें, चलिए न पापा फिर से सो जाते हैं बहुत ठंड है, अभी तो साढ़े चार ही बजे हैं।” रवि ने पापा के गले में बांह डाल कर कहा।

“हाँ मैं पापा के कमरे में एक और गद्दा डालता हूँ, अब से पूरे पंद्रह दिन पहले की तरह हम तीनो साथ में सोएँगे” बोलकर मयंक गद्दा निकालने चला गया।

आनंद जी दोनों के बालों में उंगलियाँ फिराते फिर से पचीसों साल पहले की दुनिया में पहुँच गए थे। विह्वल भावुक से सोचते हुए कि कौन कहता है बेटे प्यार नहीं करते। ईश्वर करे दुनिया के सारे बेटे ऐसे ही हों।

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“सुन रवि आज संक्रांति है उड़द दाल की खिचड़ी बनेगी”।

“नहीं नहीं! भैया प्लीज़ खिचड़ी नही, दाल चावल बना लो।”

“नहीं भाई खिचड़ी तो ज़रूर बनेगी।”

“जाओ ठीक है फिर मैं बाहर से कुछ मंगा लूँगा।”

“नही जी! आज बाहर का खाना नहीं खाते हैं, तुझे तो आज खिचड़ी ही खानी होगी।”

दोनों भाई की आपस की नोकझोंक चल रही। और आनंद जी पूरी तरह से संतुष्ट और ‘तृप्त’ होते जा रहे हैं।

ऋचा उपाध्याय

स्वरचित, मौलिक

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