त्रिभुज के तीन बिन्दु – पुष्पा जोशी

त्रिभुज के तीन बिन्दु ही तो थी हम तीनों, सामली, रुपाली,और मैं कहानी। तीनों की विचारधारा भिन्न, तीनों की ख्वाइशें भिन्न, शोक भी भिन्न फिर भी तीन रेखाएं थी जो हम तीनों को जोड़े हुए थी।पहली हम तीनों एक ही कॉलोनी में रहती थी, दूसरा तीनों मध्यम वर्गीय परिवार से थी, तीनों एक ही कॉलेज में पढ़ती थी।हम तीनों शाम के समय साथ में घूमने जाती, गाँव में एक सुन्दर तालाब था, और उस तालाब के पास बहुत सुंदर- सुंदर फलों और फूलों से लदे वृक्ष और पौधे थे। फूलों की बेले वृक्षो से लिपटी रहती,  और फूलों की खुशबू से वातावरण महकता रहता था। तालाब में तैरती बतखें, वृक्षों पर पक्षियों का कलरव, पूरे माहौल को संगीतमय बनाए रखता। हम तीनों जाती तो साथ में थी, मगर तालाब के किनारे पर बने टीले पर विभिन्न कोणों पर बैठ जाती।वहाँ हम तीनों अपने सपनों का महल बनाती रहती,अपने आप से ही बातें करती, और कल्पना में खोई रहती। मोबाइल में अलार्म लगा रखा था, जैसे ही बजता तीनों अपने यथार्थ धरातल पर आ जाती और चल देती अपने घर की ओर क्योंकि तीनों के घर अनुशासन प्रिय थे।

          बी.ए. फाइनल की परीक्षा समाप्त हो गई थी,और हम अपनी कल्पना के पंख लगाए, अपने आसमान को छूने के लिए लालायित थी। सामली को ज्यादा बनाव श्रृंगार का शोक नहीं था, उसकी वेशभूषा, रहन-सहन सब बिल्कुल साधारण था। वह दिल की दुनियाँ में जीने वाली थी, उसे सुख ऐश्वर्य की चाहत नहीं थी, वह चाहती थी कि उसका जीवन साथी उसे समझे, दिल की अतल गहराई से उससे प्यार करे, विश्वास करें, अपने सुख – दु:ख उसके साथ बांटे। उसे साज- श्रृंगार के बाह्य उपकरण बेमानी लगते थे।उसकी दौलत उसका निर्मल मन था,वह अपने प्यार को सभी में बांटना चाहती थी।

               रुपाली के लिए सुख की परिभाषा भिन्न थी।वह बहुत खूबसूरत थी, और उसे बनाव-श्रंगार का शोक था, मंहगे से महंगे कपड़े, आभूषण सौन्दर्य प्रसाधन के साधन उसे बहुत लुभाते थे।उसे बन-ठन कर घूमने-फिरने का, खाने पीने का बहुत शोक था। उसकी दृष्टि में सुख-समृद्धि जीवन की प्राथमिक आवश्यकता थी, उसे दिल और दिल से जुड़ी बातों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी।उसे सिर्फ सुख और ऐश्वर्य की चाहना थी।

          मैं कहानी इन दोनों से  भिन्न अपनी दुनियां में मस्त थी। मैंने निर्णय कर लिया था कि मैं शादी नहीं करूंगी । साहित्य की सेवा करना मैंने अपना लक्ष्य बना लिया था। और लेखनी को अपना साथी। नित नई रचनाओं का सृजन करना,कविता,कहानी, आलेख हर विधा में लिखती और उसे निखारने का प्रयास करती और अपनी धुन में मगन रहती। 




                  गर्मी की एक शाम मैं और रुपाली ही घूमने के लिए गए, पता चला कि सामली को देखने के लिए लड़के वाले आए हैं। सामली का रिश्ता धनाड्य परिवार में हो गया था। सोमेश देखने में बहुत खूबसूरत था। उसकी यह दूसरी शादी थी, उसकी पत्नी उसे छोड़कर चली गई थी। बहुत बड़ी हवेली थी, नौकर चाकर किसी बात की कमी नहीं थी। सामली का विवाह हो गया। पति का कपड़ों का व्यापार बहुत अच्छा चल रहा था।वह सामली के लिए नित नवीन उपहार लेकर आता, उसकी सुख सुविधा का ध्यान रखता। मगर सामली के मन को सुकून नहीं मिल रहा था,उसे  चाहत थी प्यार और विश्वास की। ऐसे हमसफर की जो उसे समझे, सोमेश से शिकायत नहीं थी, मगर दिल में कुछ तो  था जो कसकता था, भिन्न था उसके सपनों के उस महल से जो वह तालाब के किनारे टीले पर बैठ कर बनाती थी।

              रुपाली बेहद खूबसूरत थी, उसका रहन- सहन, उसकी अदाएं और सुन्दरता ने नीरज का मन मोह लिया था,वह उसका दीवाना बन गया था।नीरज उसी महा विद्यालय में रुपाली का सीनीयर था, प्रभावशाली व्यक्तित्व था,शायर कवी था और छात्र संघ का अध्यक्ष था। रुपाली से पहली बार वह चुनाव प्रचार के सिलसिले में ही मिला था। चुनाव जीतने के बाद उसने दोस्तों को जोरदार पार्टी दी। पार्टी में माइक पकड़ कर उसने भाषण दिया, तो दोस्तों ने कविता सुनाने की फरमाइश कर दी,उसने एक के बाद एक कविता सुनाकर समा बांध दिया। बीच-बीच में कनखियों से रुपाली को देखता जाता,उसे अपनी ओर आकर्षित करने का अच्छा अवसर था, उसके लिए।उसके क‌ई शेर तो ऐसे लग रहै थे जैसे रूपाली के लिए ही लिखें हो। रूपाली के ऊपर नीरज की कविताओं और व्यक्तित्व का खुमार चढ़ने लगा था,उसके जीवन में नीरज ने अपना विशेष स्थान बना लिया था। वे आपस में मिलते-जुलने लगे और मुलाकात प्यार में बदल गई। दोनों ने शादी का फैसला कर लिया। रूपाली के माँ-पापा शादी से खुश थे, मगर नीरज के मम्मी-पापा रिश्ते से खुश नहीं थे। नीरज उनका इकलौता बेटा था और वे अपने बेटे का विवाह उनके स्टेटस के अनुरूप करना चाहते थे। वे एक धनाढ्य परिवार की लड़की को अपने घर की बहू बनाना चाहते थे।नीरज इसके लिए तैयार नहीं हुआ,उसने रूपाली के साथ विवाह कर लिया। माँ – बाप ने नीरज को सम्पत्ती से बेदखल कर दिया।

            नीरज ने अपनी लेखन प्रतिभा को अपना रोजगार बना लिया और  क‌ई कवी सम्मेलन में भाग लेने जाने लगा। क‌ई किताबें प्रकाशित हुई। दोनों का भरण पोषण आराम से हो जाता, वह अपना पूरा प्यार रूपाली पर लुटाता, नित नये गीत उसके लिए लिखता।उसके सौन्दर्य पर न्यौछावर होता। कुछ समय रूपाली उसके प्यार में आकंठ डूबी रही। मगर उसके पेशे में कभी-कभी अभावों का भी सामना करना पड़ता था। रूपाली को उसके प्रेम से ज्यादा उसके ऐश्वर्य से लगाव था, और उसकी यह इच्छा पूरी नहीं हो पाई।उसे बनाव श्रृंगार का शोक था, नये-नये आभूषण पहनने का। घूमने फिरने का शोक था।उसे लगता कि उसने जो सपनो का महल बनाया था वह खण्ड-खण्ड होकर टूटता जा रहा है।उसे नीरज की प्रेम रंग में रंगी रचनाएं भी बेमानी लगती।उसके मन में उदासी छा गई थी।

                   दोनों के जाने के बाद, मैंअपना पूरा ध्यान अपने लेखन को देने लगी। क‌ई कहानी, कविता, आलेख, उपन्यास, व्यंग लिखे । प्रकृति की सुन्दरता, मौसम, राजनीति, सामाजिक समस्याऐं, और भी कई विषयों पर लेखनी चलाई। क‌ई रचनाएं पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। कुछ पारितोषिक भी मिले , कुछ प्रशंसा भी मिली । कुछ पाठकों की शिकायत थी, कि मेरी रचनाओं में मानवीय संवेदनाओं की कमी है। मेरी तमाम कोशिशों के बाद भी मेरी रचनाओं में, वह गहराई नहीं आ पा रही थी, जिसकी सबको दरकार थी। मुझे ऐसा कोई विषय नहीं मिल रहा था, जो मेरी रचना को पूर्णता प्रदान करता। मेरा मन भी कुछ अशांत सा  रहता।




        रक्षाबंधन के अवसर पर सामली और रूपाली दोनों अपने मायके आई थी । मैं बहुत खुश थी कि आज हम तीनों तालाब किनारे टीले पर एक साथ जाएंगी। मैं सोच रही थी दोनों अपने जीवन में खुश होंगी, अपने अनुभव सुनाएगी।

        शाम के समय हम तीनों  तालाब किनारे घूमने गए, मुझे उन दोनों के चेहरों पर वह खुशी नजर नहीं आई, जिसकी मुझे उम्मीद थी। तीनों के मन में उत्सुकता थी एक दूसरे के बारे में जानने की। आज हम तीनों टीलों पर जाकर बैठी, मगर हमारे चेहरे एक दूसरे की ओर थे, त्रिभुज के तीनों कोण मानो एक दूसरे  के बारे में जानने के लिए बैचेन थे। मैंने सामली से पूछा- ‘सामली अपने बारे में बताओ क्या हालचाल है?तुम्हारे सपनो के महल में कितने रंग भरे? सोमेश जीजू के क्या हालचाल है।’ सामली ने लम्बी साँस ली और कहॉ- 

      ‘सब ठीक है, मगर सपनों का महल तो सपनों में ही दिखता है ना, वास्तविक जीवन में तो उसकी झलक भी नहीं दिखती।’ ‘क्यों क्या बात है? क्या जीजू तेरा ध्यान नहीं रखते?’ ‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।  सोमेश बहुत अच्छे है, हर सुविधा का ध्यान रखते हैं।हर तरह के गहने कपड़े मेरे पास है। हर अवसर पर वे अनमोल उपहार देते हैं, ये उपहार मुझे आकृष्ट नहीं करते । मैं उनके सुख,दु:ख अपनाना चाहती हूँ, मगर वे मुझसे कुछ कहते ही नहीं। कुछ समझ नहीं आता क्या करूँ? मन का एक कोना सूना सा लगता है….. ।

        अच्छा मेरा छोड़ो, अपनी सुनाओ, रूपाली तुमने तो तुम्हारे सपनो के बादलों को छू लिया ना?’  रूपाली ने कुछ हँसकर कहॉ – ‘कवी महोदय की प्रेमभरी रचनाएं,उनका प्रेम निवेदन क्षणिक सुख की अनुभूति जरुर कराता है। मगर मैं तो हर पल सज संवर कर, घूमना-फिरना, खाना-पीना, जीवन के सारे आनंद उठाना चाहती हूँ। देश-विदेश की सैर करना चाहती हूँ। अभावों से भरी जिंदगी ने मेरे सुनहरे पंखों को काट दिया है। नीरज मुझे प्रेम करते हैं, पर केवल प्रेम के सहारे तो जिन्दगी नहीं कटती। अब तुम बताओ कहानी, तुम्हारी लेखनी कैसी चल रही है?’

     ‘लेखनी तो चल रही है, मगर मन संतुष्ट नहीं है, कोई ऐसा विषय ढूंढ रही हूँ, जिस पर ऐसी लेखनी चले कि मन को संतुष्टि मिले।मगर….।’तभी अलार्म बजा और हम घर जाने के लिए उठ खड़ी हुई।

          मन भारी हो गया था,लिखने के लिए मन में कुछ कुलबुला रहा था, और मैं डायरी लेकर लिखने लगी, लेखनी चलती जा रही थी और मन के भाव अंकित होते जा रहै थे, तभी आँखों में कुछ नमी आ गई और लेखनी रूक गई, यह क्या मेरी कहानी का समापन दर्द में डूबा नहीं हो सकता,  मुझे किसी का दु:खद अंत पसंद ही नहीं,  चाहे कहानी हो या कोई सपना। अगर सपने में कुछ दु:ख देख लेती हूँ, तो स्वप्न के सुखद अंत की आशा में पुनः आँखें बंद कर लेती हूँ।यदि फिर भी अन्त सुखद नहीं होता, तो उसके सुखद अन्त की कल्पना कर लेती हूँ। फिर यह तो कहानी है और कहानी तो जिन्दगी से जुड़ी होती है उसका अन्त  दु:खद हो ही नहीं सकता। सोचते-सोचते मुझे नींद आ गई।

       दूसरे दिन हम तीनों फिर साथ में घूमने ग‌ई। आज मैं कुछ सोच कर निकली थी कि दोनों से क्या बात करनी है। हम अपने चिर-परिचित स्थान पर बैठ गए थे। बात का सिलसिला मैंने ही शुरू किया।हम तीनों अपने सपनों के महल को इस तरह बिखरते नहीं देख  सकते हमें प्रयास करना होगा। फिर मैंने सामली से पूछा -‘ क्या तूने कभी सोमेश जीजू से अपने मन की बात कही?’




        ‘नहीं कभी हिम्मत ही नहीं हुई, लगता है वे मेरी  सुख सुविधा का इतना ध्यान रखते हैं तो मैं उनसे कैसे कुछ कहूँ कही अनजाने में उनका मन न दु:खा दूं।

         ‘अगर तुम कहोगी ही नहीं तो वे कैसे जान पाएंगे कि तुम क्या  चाहती हो। तुम्हें उनके मन की बात जाननी होगी बिना प्रयास के सपनों का महल कैसे पाओगी।?और रूपाली तुम्हें तो नीरज जीजू बहुत प्यार करते हैं। हो सकता है तेरी ख्वाइशें पूरी न कर पाने की उनकी अपनी विवशता हो,पर जरा यह तो सोच तुझे पाने के लिए उन्होंने घर – परिवार,अपनी धन – दौलत सभी को छोड़ दिया। तू भी पढ़ी लिखी है, तू भी तो नौकरी कर सकती है, दोनों मिलकर कमाओगे  तो तू अपनी ख्वाइशें पूरी कर सकती है और तेरे सपनों का इन्द्रधनुष फिर से महकने लगेगा।हार मान लेने से तो हम कुछ नहीं पा सकते।मैंने भी एक कहानी लिखनी शुरू की है मैं कोशीश करूंगी कि जीवन के रंग उभर कर सामने आए।’

दूसरे दिन वे दोनों ससुराल चली गई और मैं कहानी अपनी कहानी लिखने में मस्त हो गई।इस बार लिखने में मुझे सुकून मिल रहा था, भाव दिल की अतल गहराई से निकल रहै थे, और लेखनी उसे कल्पना के रंगों में भिगोकर लिखती चली जा रही थी।

        अगली बार जब वे दोनों आई तो बहुत प्रसन्न थी,सामली ने मुझसे कहॉ – ‘कविता तू सच कह रही थी, मैंने कभी उन्हें जानने की कोशीश ही नहीं की, मैंने एक बार जोर देकर पूछा, कि वे मायूस क्यों रहते हैं? मुझे ये उपहार नहीं आपके  गमों में, मेरी सहभागिता चाहिए। तो उनकी आँखें छल-छला गई, फिर मुश्किल से  बोले – ‘मैं भी यही चाहता हूँ मगर जिन्दगी ने इतने दर्द दिए हैं, कि भूल ही नहीं पाता, तुमसे मन की बात करना चाहता हूँ, मगर डरता हूँ कि कभी तुम भी सोना की तरह मुझे छोड़कर न चली जाओ।उस समय मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी,उसे नित नये जेवर और कपड़े की चाहत रहती थी, मेरा प्यार उसे रोक न पाया,उसके जाने बाद परिश्रम से दौलत कमाई। मैं  हमेशा तोहफे इसीलिए लाता हूँ कि कहीं तुम भी…….। मैंने बात को बीच में काटते हुए कहा मेरे लिए आपका प्यार ही बहुत है। और…..।’

      मैंने उत्सुकता से पूछा ‘और फिर …।’

‘फिर क्या…… सब बता दूं तुम्हें। कहते हुए सामली की आँखे शर्म से झुक गई और गालों का रंग गुलाबी हो गया।  मैंने समझ लिया की सामली के सपनों के महल में रंगत आ गई है।

रूपाली ने भी एक विद्यालय में अध्यापिका की नौकरी कर ली, नीरज उसकी कमाई को हाथ भी नहीं लगाता, उससे वह अपने सारे शोक पूरे करती और दोनों का जीवन खुशियों से महकने लगा।

      मैं कहानी, अपनी कहानी पूरी कर चुकी थी और इस बार मेरी कहानी को सर्वश्रेष्ठ कहानी का और मुझे सर्वश्रेष्ठ कहानीकार का पुरूस्कार प्राप्त हुआ। आज त्रिभुज के तीनों बिंदु अपनी पूर्णता में खुश थे।

हम तीनों को समझ में आ गया था कि सपनों के महल को अगर मुकम्मल करना है तो प्रयास करना जरूरी है। 

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

  #मासिक_कहानी_प्रतियोगिता

अप्रैल २०२३

कहानी नंबर ३.

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