अब मैं मंच पर बुलाना चाहता हूं श्री मति सुमन गुप्ता जी को,उनका सम्मान करने के लिए प्लीज़ मंच पर आए श्री मति संगीता अग्रवाल जी । संगीता जी ने सुमन जी को शाल पहना कर माल्यार्पण कर स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया।और फिर सुमन जी ने मंच से सुंदर सा काव्यपाठ किया। तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा स्वागत कक्ष गूंज उठा। मौका था काव्यधारा पुस्तक के लोकार्पण का । जिसमें दूर दूर से विभिन्न क्षेत्रों से करीब सौ रचना काल आए हुए थे। कविताओं का सांझा संकलन प्रकाशित हुआ था । जिसमें सुमन जी की भी कविताएं प्रकाशित हुई थी।
सुमन जी को ये दूसरी बार काव्यपाठ का अवसर मिला था। इससे पहले भी इसी तरह की एक काव्यगोष्ठी हो चुकी थी तब थोड़े छोटे रूप में थी आज काफी बड़ा रूप ले लिया था इस गोष्ठी ने और दो दिन का प्रोग्राम था । इसके पहले की गोष्ठी में भी ऐसे ही काव्य पुस्तक का लोकार्पण था ।
सुमन जी एक गृहिणी थी और इस तरह से कभी भी मंच पर कुछ पढ़ने या बोलने का मौका नहीं मिला था। सुमन को थोड़ी घबराहट थी कि कैसे इतने लोगों के सम्मुख कुछ बोल पाऊंगी। लेकिन वहां पर आए सभी रचनाकारों को देखकर सुमन में भी थोड़ी हिम्मत आ गई थी।
काव्यपाठ में जो कविता सुमन ने पढ़ी वो लोगों को काफी पसंद आई और जोरदार तालियां बज रही थी । सुमन कविता पढ़ कर लोगों के उत्साह को देखकर बहुत ही अच्छा महसूस कर रही थी। सोचने लगी अपने से ज्यादा प्यार तो इन अनजाने , अपरिचित लोगों से मिल रहा है।जो मेरे कुछ भी नहीं लगते । महज़ दो सालों का परिचय है वो भी सोशल मीडिया पर । आमने-सामने तो कुछ लोगों से आज ही मिल रही हूं।
अपनी कविता छपी किताब को लेकर सुमन पन्ने पलटते हुए कुछ साल पहले की दुनिया में खो गई। सोचने लगी इतना कुछ पाने के लिए मैंने कितना तिरस्कार और अपमान सहा है। जहां मैंने अपना दिल बिछा दिया था, कितना प्यार दिया था निःस्वार्थ प्यार लुटाया था वहां से मुझे तिरस्कार मिलता रहा।उस समय तो ऐसा लग रहा था कि ये जीवन ही बेकार है नष्ट कर दूं इसको जीनेका क्या मतलब है। लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर होता है।इस तिरस्कार के बदले मुझे एक नई राह मिल गई।
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सुमन और विकास के दो बच्चे थे एक बेटा अमित और एक बेटी दिव्या। बच्चे पढ़-लिख कर नौकरी कर रहे थे ।अब शादी का समय आ गया था ।बेटे की शादी बड़ी धूमधाम से किया लेकिन बेटे की बहू से आपस में पट नहीं पाई ।रोज रोज के लड़ाई झगडे से आखिर में तीन साल बाद तलाक़ हो गया ।
सुमन और विकास के लिए ये भी किसी सदमे से कम न था । सबसे ज्यादा तो नाते रिश्तेदार जलील कर देते हैं ।इस हादसे से उबर भी न पाई थी कि सुमन की 28 साल की बेटी करोना संक्रमित हो गई और उसकी मौत हो गई । इतना बड़ा सदमा बर्दाश्त के बाहर था सुमन और विकास बिल्कुल टूट गए संभालना मुश्किल हो गया था ।रो रोकर बुरा हाल था । लेकिन समय कहां रूकता है किसी के लिए ।साल बीत गया बेटे को देखकर मन फिर उदास हो जाता था फिर से उसकी शादी करनी थी आखिर बेटे की गृहस्थी तो बसानी थी न । फिर से लड़की ढूंढने लगे ।
और किसी परिचित के माध्यम से बेटे की फिर से शादी हो गई ।एक दो मुलाक़ात में लड़की ठीक लगीं तो बेटे से बोला सुमन ने कि भाई तुम लोगों को साथ रहना है देख लो समझ लो ।जब बेटे ने हां कर दी तो शादी हो गई।बहू को सुमन घर ले आई और बेटे को भी समझाया कि देखो एक बार तलाक हो चुका है अब एहतियात बरतने की जरूरत है पहले शादी वाली कोई ग़लती न हों। लेकिन जैसा हम सोचते हैं वैसा होता
नहीं है।एक हफ्ते रहने के बाद बेटा बहू दिल्ली चले गए क्योंकि बेटे की वहीं नौकरी थी ।बहू बेटे के जाने के बाद सुमन सोचती थी कि कभी कभार फोन करके बहू हालचाल पूछें तो अच्छा लगता है।या ऐ कहे कि मम्मी पापा आप लोग कुछ दिन को यहां आ जाओ। लेकिन जाने के बाद बेटे का तो फोन आता था लेकिन बहू अंकिता फोन नहीं करती थी।दो महीने हो गए थे बेटे बहू को गए आज सुमन ने बहू अंकिता को फोन लगाया जो बार तीन बार लेकिन घटी जाती रही फोन नहीं उठा।
सुमन हर काम में बहुत होशियार थी पाक-कला में तो निपुण थीं ऐसा कोई काम नहीं था जो वो कर नहीं पाती है । स्कूल के समय से ही थोड़ा बहुत लिखने का भी शौक था । कुछ पहले की मैगजीन में लेख वगैरह छपते थे लेकिन जब बच्चे हो गए तो घर गृहस्थी में ही रम गई समय ही नहीं मिलता था तो सबकुछ दरकिनार हो गया ।अब कुछ समय से फिर थोड़ा थोड़ा लिखना शुरू किया है तो पेपर में कभी कभी छप जाता है ।ये बात बड़े मन से विकास ने बहू को बताया था कि तुम्हारी सास को लिखने का भी शौक है पेपर में छपता रहता है ।
सुमन घर का काम खुद ही करती थी सिर्फ बर्तन धोने को लगाया था काम करने से शरीर स्वस्थ रहता है ऐसा उसका मानना था। सुमन का बहू के साथ कुछ दिन रहने का मन हो रहा था । यहां बेटी के न रहने से वैसे भी बहुत उदास रहती थी अब लें देके बेटा बहू ही थे और कौन था बुढ़ापे का सहारा। सुमन ने विकास से कहा क्यों हम लोग एक हफ्ते को बेटे बहू के पास चले शादी के बाद साथ रह ही नहीं पाए हैं ।
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विकास जी बोले अच्छा ठीक है उन्होंने अमित को फोन किया बेटा तुम्हारी मम्मी आना चाहती है तुम्हारे पास बहू के साथ एकाध हफ्ता रहने का मन है अमित बोला ठीक है।जब अमित ने अंकिता को बताया तो वो कहने लगी क्यों, क्यों का क्या मतलब है अमित बोला आने को कह रहे हैं तो क्या करूं। अंकिता का मूड खराब हो गया ।वो नहीं चाहती थी कि सास-ससुर आए । लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी ।
सुमन और विकास जी पहुंच गए बेटे के घर । अंकिता ने दो कप चाय और कुछ नाश्ता रखकर पैर छूकर कमरे में मोबाइल लेकर बैठ गई।बेटे से कुछ देर बात करने के बाद सुमन करती रही । और विकास जी ने थोड़ा आराम किया और रात के खाने का इंतजार करने लगे । लेकिन अंकिता कमरे से बाहर ही नहीं आई , फिर थोड़ी देर में अमित बोला पापा बाजार से खाना मंगवा लेते हैं अरे नहीं बेटा बाहर का नहीं खाना है घर पर ही रोटी सब्जी बना जाती तो अच्छा था। लेकिन अंकिता कमरे से बाहर ही नहीं आई तो सुमन ने ही खाना बनाया ।
अंकिता खाना खाने को भी नहीं आई मेरे सिर में दर्द है ऐसा कहकर लेटी रही ।अब ऐसा रोज़ होने लगा।सुबह की चाय का भी नहीं पता होता था तो चाय से लेकर खाना नाश्ता सब सुमन ही बनाती रही ।घर में कोई लड़ाई झगड़ा न हो इस लिए सुमन भी सब चुपचाप करती रही ।एक बार कोई घटना घट जाती है तो इंसान के अंदर एक डर समा जाता है कि कहीं फिर कुछ वैसा न हो जाए। अंकिता का व्यवहार बहुत अजीब सा था।
एक हफ्ते बाद सुमन और विकास जी वापस आ गए। पीछे फिर अमित ने अंकिता से कुछ कहा होगा कि मम्मी पापा आए थे तो तुमने कुछ किया नहीं आपस में बहस हुई होगी।तो दूसरे दिन अंकिता ने सुमन के मोबाइल पर मैसेज भेज दिया कि आप बहुत घटिया औरत है
आप यहां हमारा घर तुड़वाने आई थी ।आपकी वजह से ही अमित की पहली शादी टूटी थी और अब मेरी शादी तोड़ेगी। फिर तीसरी बहू की तलाश करना। किसी गांव देहात की ले आना जो आपकी नौकरानी बनकर रहे ।जो घर का काम करें आपको खाना बनाकर खिलाएं। मुझसे न होगी आपकी चाकरी। अरे खाना ही तो बनाया था अपने घर बनाती है तो यहां बना दिया तो क्या हो गया। मुझसे उम्मीद न करें किसी चीज की । सुमन ने पढ़कर सिर पीट लिया ये क्या लिख रही हैं मैंने तो कुछ कहा भी नहीं। कोई मां क्या अपने ही बच्चे का घर तोड़ती है ।
बस ऐसे ही चलती रही खींचातानी पता नहीं क्यों अंकिता सुमन से उखड़ी उखड़ी रहती। सुमन को थोड़ा डर था कि एक शादी टूट गई है ,,,,,,,,,,,। इसबार पहली दीवाली पड़ी तो दोनों घर आए बस दीवाली की पूजा करके मायके चली गई। पंद्रह दिन हो गए तो सुमन ने अमित से कहा जबसे आई है मायके में ही रह रही है यहां नहीं रहेगी तो हमलोगों से अपनापन कैसे आएगा
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जाओ ले आओ ।जब अमित लेने गया तो कह दिया मेरी तबियत ठीक नहीं है ।दो दिन बाद वापस जाना था रात की ट्रेन थी तो बस उसी दिन शाम को आई और दो घंटे बाद वापस चली गई। शादी के डेढ़ साल बाद अंकिता प्रेगनेंट हो गई । सुमन कभी फोन करती हालचाल लेने को तो फोन ही न उठाती।
डिलिवरी के समय अमित ने मम्मी को बुला लिया । जबकि अंकिता का मन था कि अपनी मम्मी को बुलाएं । डिलिवरी हुई बेटा हुआ ।एक हफ्ते बाद अस्पताल से घर आ गए । सुमन सबकुछ भूलकर अच्छे से ध्यान रख रही थी ।एक दिन रात को बच्चा रोने लगा तो सुमन उठ गई पूछने लगी क्यों रो रहा तो कहने लगी आप तो बस पड़े पड़े सोती रहिए । सुमन को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्यों नाराज़ रहती है हमसे ।
फिर एक दिन रात को अंकिता के कमरे से आवाज़ आने लगी दोनों आपस में लड रहे थे ।अमित मैं अपनी मम्मी को बुला रही हूं अपनी मम्मी को वापस भेज दो । क्या हो गया आखिर अमित ने पूछा तो अंकिता बोली तुम्हारी मम्मी तो बस पड़े पड़े सोती रहती है , कच्चा पक्का खाना बना कर खिलाती है ।
अब सुमन से रहा नहीं गया वो कमरे में गई और बोली क्या मैं तुम्हें कच्चा पक्का खाना दे रही हूं मुझे खाना बनाना नहीं आता क्या , हां उस दिन आपने हलुवा जैसी दाल बना दीं थीं ,तो अरे कोई बात सीधे से भी तो कहीं जा सकती है कि मम्मी दाल को थोड़ा पतली कर दें ।तुम तो हर वक्त लड़ने को तैयार रहती हो । जबसे शादी हुई है तुम्हारी बदतमीजी देख रही हूं ।तुम मेरा हर वक्त अपमान करती रहती है ऐसी क्या बुराई कर दी है मैंने तुम्हारे साथ ।बुराई आप हर वक्त अमित को भड़काती रहती है जिससे वो मुझसे झगड़ा करता है।
अरे मैं क्यों सिखाऊंगी मुझे क्या पड़ी है सिखाने की कोई छोटा बच्चा है क्या अमित जो ग़लत देखता होगा वो बोलता होगा।और तुम उस दिन क्या कह रही थी बड़ी लेखिका बनी है बस इधर उधर से नकल उतार कर लिख दिया। हां तो सही तो कह रही थी। अच्छा ठीक है मैं जा रही हूं बुला लो अपनी मम्मी को और आज से मुझसे बात न करना और न मेरे घर आना।
उस दिन से आज तक , दो साल का हो गया है बेटा लेकिन सुमन बात नहीं करती अंकिता से । कभी जब मायके आती है तो आधा एक घंटे को बच्चे के साथ आ जाती है मैडम घर क्यों कि बच्चा छोटा है अकेले आ नहीं सकता । लेकिन सुमन बात नहीं करती ।
अमित के बच्चे को गोद में खिलाने की हसरत हसरत ही रह गई। सुमन एकबार फिर ग़म की दुनिया में डूबतीं जा रही थी । फिर उसने अपनी लेखनी का सहारा लिया ।जब भी लिखने बैठती तिरस्कार और अपमान याद आ जाता ।आज उसकी लेखनी ने कमाल कर दिया । कविताएं लिखकर बेटी का ग़म हल्का करती है । उसके तीन काव्य संग्रह छप चुके हैं ।और कहानियों के माध्यम से बेटियां के मंच से जुड़ी जिसमें सुमन को सर्वोच्च लेखिका के सम्मान से नवाजा गया। सुमन ने बहू द्वारा किए गए अपमान को अपना अभिमान बना लिया।अब उसे अंकिता जैसी बहू की जरूरत नहीं है।
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दोस्तों कभी कभी कोई ठोस वजह न होने पर भी कुछ बहू बेटियों द्वारा ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर दी जाती है कि रिश्तों में न मिटने वाली दरारें आ जाती है । जिससे वो दूर रहना चाहती है इस तरह दूर हो जाती है ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
16 जनवरी
#अपमान बना वरदान