निरंजन जी और मधु दोपहर में आंगन में धूप का आनंद ले रहे थे। घर के बाहर गली में बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे उनकी नोंक झोंक दोनों को सुख दे रही थी । बचपन के दिन भी बड़े अलमस्त होते हैं पल में लडाई पल में सुलह हो जाती है।
तभी एक महिला गेट खोलकर अंदर दाखिल हुई। उम्र यही कोई 50 के करीब होगी , बगल में बड़ा सा थैला लटकाये थी । दोनों ने एकसाथ प्रश्नवाचक दृष्टि से उसकी ओर देखा। वह बैठते हुए बड़े अधिकार से बोली एक गिलास पानी पिला दो, बड़ी दूर से आई हूँ हड्डी के दर्द की आयुर्वेदिक दवा देती हूँ। आपके घर में किसी को तो यह समस्या नहीं है?? उन दिनों निरंजन जी के पैर में बहुत दर्द था, कई डॉक्टरों को दिखा चुके थे पर लाभ नहीं हो रहा था। दोनों तत्काल बोल पड़े.. हाँ इनके टखने में दर्द है । उसने तुरंत पैर को हाथ में लेकर उलटते पलटते हुए कहा.. आप एक बार मुझ पर विश्वास करके देखिये। महीने भर की मालिश से आपका दर्द हमेशा के लिए चला जायेगा। आप मुझे अभी पैसे भी मत दीजिये मैं अप्रैल में आऊँगी तब मना मत करना।
दोनों उसकी बातों से प्रभावित हो रहे थे तभी उसने थैले में से तेल निकाल कर पैर पर लगाना शुरू कर दिया। उन्हें तुरंत आराम महसूस हुआ और थोड़ा विश्वास भी जमने लगा उस पर। फिर उस महिला ने एक लंबा सा पर्चा निकाल कर दिया जिसमें बहुत सारी जड़ी बूटी लिखी थी जिनसे वह तेल बनाना था पर बनाने की प्रक्रिया बहुत जटिल थी। तो उन्होंने कहा कि तुम्हारे पास अगर तैयार तेल हो तो दे दो और काफी ना नुकुर के बाद 500 रु और बाद में कपड़े देने के वादे के साथ उन्होंने वह तेल ले लिया।
फिर वह बोली इसकी दवाई बहुत महंगी आती है आप थोड़ा सरसों का तेल दे दीजिये ताकि मैं और दवाई तैयार कर सकूँ। मधु अंदर से तेल की बोतल ले आई यह सोचकर कि थोड़ा तेल उसकी बोतल में पलट देगी पर उसने तो उसने वह पूरी ही थैले में डाल ली दोनों कुछ बोल ही नहीं पाये।
फिर बोली सर्दी बहुत है एक शॉल दे दो मैं मंदिर में गरीबों को आपके नाम से दे दूँगी। मधु बोली शॉल तो नहीं है साड़ी ले जाओ। साड़ी को थैले में रखने के बाद बोली यह तो मैं पहन लूंगी वहाँ के लिए तो शॉल ही दे दो, गरीब आपके नाम के गुण गाएंगे ऐसी ठंड में।
दोनों समझ रहे थे कि वे ठगे जा रहे हैं पर गरीबों के नाम पर फिर एक बार शॉल दे ही दिया। चलते चलते बोली आप पर शनि भारी है और कहते हुए चप्पल उठा कर निरंजन जी के ऊपर से तीन बार घुमा कर वह भी रख ले गई।
दोनों भौंचक्के से एक दूसरे को देख रहे थे कि आज एक ठगनी कैसे सरे आम ठग ले गई उन्हें। तभी बच्चों की बॉल अंदर आ गई एक बच्चा बॉल लेने आया तो बोला यह आंटी हमसे पूछ रही थी कि यहाँ आसपास कोई ऐसा व्यक्ति रहता है क्या जिसे चलने में तकलीफ हो? तभी अंकल जी बाज़ार से लौटे तो उन्हें देखकर यह भी अंदर आ गई।
अब दोनों को पूरा माज़रा समझ में आ गया था वह दोनों ही बहुत होशियार थे पर आज वह चिकनी चुपड़ी बातों से उन्हें चूना लगा गई थी।
कमलेश राणा
ग्वालियर