आभा नीली साड़ी में खुले बालों के साथ तैयार होकर जाने के लिए आई तो नीलेश अपलक उसे देखता रहा , फिर उसका हाथ पकड़ कर बोला -आज तो बहुत सुंदर लग रही हो । आभा अपने चिर-परिचित अंदाज में हंसकर नीलेश के हृदय से लगा कर बोली, यह सब तुम्हारे प्यार का ही तो सबब है। वरना कहां मैं और कहां यह सब ।
नीलेश उस के होंठों पर अंगुली रख कर बोला , चलो वरना लेट हो जाएंगे। और वे कार की तरफ बढ़ गये।कार में बैठ कर नीलेश तो अपने कारखाने के आने बाले फोन में व्यस्त हो गया। आभा अपनी पिछली जिंदगी के साथ खो गई।
उसे याद आया वो पल जिसमें मां मिट्टी के बर्तन बेचकर स्वयं को तथा आभा का जीवन पाल रही थीं। पिता तो उसे याद ही नहीं , उसके पैदा होने के एक साल बाद ही गुजर गए थे। पुराने जमाने की मां को और तो कुछ सूझा नहीं , मिट्टी की चीजें बना कर बेचना ज्यादा आसान लगा। जैसे तैसे दिन गुजर ही रहे थे। आभा का बचपन बस बीत ही रहा था। वह मुनिसपलटी के स्कूल मेउ पढ़ भी रही थी। आठवीं , दसवीं तक आते आते वह नवयौवना बन गई थी । बेहद सुन्दर नवयुवती हो गई थी
नजर पड़ने पर एक बार तो उस पर नजर ठहर ही जाती थी। तिस पर उसका बहुत होशियार होना सोने पर सुहागा बन प्रतीत होता था। वह स्कूल के हर कार्य क्रम में हिस्सा लेती। उसके इसी हुनर ने उसे विश्विद्यालय में भी प्रवेश दिला दिया।
वह स्कूल की ही भांति यहां भी सारे अध्यापकों की चहेती बन गई। पढ़ाई के साथ विश्विद्यालय में होने वाले अन्य कार्य कर्मों में भी रूचि से हिस्सा लेती। ऐसे ही एक प्रोग्राम मे चीफ गेस्ट बन कर आए नीलेश , उससे प्रभावित हो गये तिस पर वह बेहद सुन्दर तो थी ही। उन्होंने उसी क्षण प्रपोज कर दिया।
आभा कोई फैसला न कर पाई व बाद में बात कर लूंगी कहकर चली आई। बाद में नीलेश उसकी मां से मिलकर शादी की बात करने चले आए। मां ने जो उनके हालात थे, बयान कर दिए। सबकुछ सुनकर नीलेश ने शादी का ही प्रस्ताव रखा। और आभा नीलेश की दुल्हन बन कर आ गई। इतनी सुन्दर व गुणवती बहु पाकर सावित्री, जो नीलेश की मां है बहुत खुश हुईं।
इतने बड़े घराने की व पैसे वाले खानदान की बहु बन आभा निखर गई । तिस पर नीलेश का प्यार उसे अपनी किस्मत पर गर्व करने पर मजबूर कर देता। नीलेश उसका , उसकी पसंद का बेहद ख्याल रखते। उनके ही कहने पर उसने कला केंद्र की शुरुआत की ।
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जिसमें वह अपनी रूचि के नाटकों व अन्य कार्य कर्मों में स्वयं हिस्सा लेती है तथा , ऐसे बच्चों को ट्रेनिंग भी देती है जो इसका खर्च नहीं उठा सकते। आज उसका खुशी का ठिकाना नहीं है क्योंकि उनकी इस संस्था को विशेष अवार्ड व उसकी संस्था के बच्चों को पुरस्कार मिलने वाले हैं।
उसे याद आ गया नीलेश का कहा, जब उसने कहा था कि आभा, मैंने तो अपने सपने पूरे कर लिये व अन्य के लिए तत्पर हूं । अब बारी तुम्हारी है मेहनत करो, अब तुम्हारे सपने मेरे भी है, उन्हें पूरा करो। तभी नीलेश की आवाज आई कि कहां खो गयी आभा। और नीलेश बोला, आज तो तुम्हारे मेरे सपने पूरा होने का दिन है, आगे कदम उठाओ और वह नीलेश के साथ हो ली।
* पूनम भटनागर ।
Nice Story