तरीका – उमा महाजन : Moral Stories in Hindi

आजकल गांव से मेरी मां और बाबूजी आए हुए हैं। घर में रौनक आ गई है, किंतु उनके आने से स्वाभाविक रूप से ही मेरी पत्नी शिखा के घरेलू दायित्व भी बढ़ गये हैं। सामान्यतः तो मां-बाबूजी हमें मिलने की दृष्टि से केवल दो-चार दिनों के लिए ही आया करते हैं, लेकिन इस बार मां गंभीर रूप से बीमार थीं और गांव में चिकित्सा की पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं। 

    अतः मेरे अनुरोध पर बाबूजी मां को यहां शहर में ले आए ताकि मां का इलाज किसी शहरी विशेषज्ञ डॉक्टर की देखरेख में करवाया जा सके।उनका यह भी सोचना था कि बच्चों संग रहने से उसे मनोवैज्ञानिक एवं भावनात्मक संबल मिलेगा,जो उसके शारीरिक स्वास्थ्य लाभ में भी सहायक सिद्ध होगा। इसलिए शिखा बखूबी इस बात को जानती है कि इस बार उनका ठहराव कुछ अधिक दिनों के लिए रहेगा। 

   पूर्व में भी, जब मां-बाबूजी सिर्फ दो-चार दिनों के लिए भी शहर में उनके पास रहने आते हैं, तो शिखा को उनके  रहन-सहन, तौर-तरीकों और विशेषत: उनकी इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओं के रख-रखाव में अव्यवस्था की शिकायतें हमेशा बनी ही रहती हैं और इस बार मां बाबूजी का कार्यक्रम तो कुछ लंबे समय तक रहने का था ,सो कल रात वह मन ही मन में चल रही अपनी शिकायतों से बौखलाकर‌ बोली, 

    ‘ अमर !  तुम अपने बाबूजी को शहरी तौर-तरीकों के संबंध में थोड़ा समझा क्यों नहीं देते ? सारा दिन उनका‌ सामान इधर-उधर,न जाने किधर- किधर बिखरा पड़ा रहता है । बाथरूम के बाहर बाकायदा डोर मैट रखा है,लेकिन नहाकर निकलेंगे तो कुछ पल मैट पर‌ रुकने की बजाय, सारा घर गीला करते हुए सीधे बरामदे का रुख कर लेंगे। मैं अनगिनत बार कह चुकी हूं कि आप अपने गीले कपड़े और तौलिया बाथरूम में ही पड़ा रहने दिया करें, कपड़े सूखने डालने के लिए मैं जो हूं घर में, लेकिन सुनें तब न !’

  ‘शिखा! दरअसल बाबूजी को शुरू से ही अपनी दिनचर्या के छोटे-मोटे काम स्वयं करने की आदत है। उन्होंने तो कभी मां पर‌ भी इनका बोझ नहीं डाला।’

 ‘अब ऐसी भी क्या आत्मनिर्भरता जो दूसरे का काम बढ़ा दें।’ शिखा पुनः चिढ़ कर बोली।’

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   अब उसका गुबार‌ निकालने की दृष्टि से मैं उसकी इस चिड़चिड़ाहट को‌ चुपचाप सुनने लगा था, लेकिन आज तो वह रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी, ‘भला, छड़ी और जूते-चप्पल क्या ड्राइंग रूम में रखने की वस्तुएं हैं ? पढ़ने के बाद कभी अपनी अखबार तक नहीं समेटते। अखबार के सभी पन्ने सारे घर में फैले मिलते हैं। सुबह बाहर से सैर करके आएंगे तो अपना कुरता-पायजामा उतार कर डाइनिंग टेबल की कुर्सियों पर ही टांग देंगे। तुम्हीं बोलो, कौन करता है ऐसे ? मां की दवाइयां, दवाइयों के रैपर , हर कमरे, में यहां-वहां पड़े मिलते हैं।

पानी के गिलास-लौटा सब इधर-उधर रखे मिलेंगे। आज एक नया ही काम किया उन्होंने। सुबह धुले कपड़ों में से, मां के कपड़े निकाल कर बरामदे में सूखने डाल दिए कि मां को इन कपड़ों में अधिक आराम महसूस होता है। कपड़ों के झटकने की आवाज से चौंककर मैं तुरंत बरामदे की ओर भागी, कि कहीं उन्हें कपड़े सूखने डालते हुए कोई देख न ले।‌ आस-पड़ोस में बदनामी तो मेरी ही होनी थी न कि यह अपने सास-ससुर का ध्यान नहीं रखती है। अरे, कपड़े सुखाने की इतनी ही जल्दी थी ,तो मुझे बोल देते न, मैं छत पर डाल देती।’

    ‘कहां तक गिनाऊं तुम्हें ?’ वह फिर भड़की‌,’शाम को मिट्टी से भरे, अपने सैर वाले जूते बाहर बरामदे में ही छोड़ दिए। मिसिज शर्मा को घर में आते देख कर मैंने अपने पैर से, छिपाते हुए, एक तरफ किए। मैं तो तंग आ चुकी हूं इनके रहने के तौर-तरीकों से ।’

    अब तक उसके शिकायती स्वर‌ थोड़े ऊंचे भी होने लगे थे। अतः मैंने उसे तनिक धीमी आवाज में बोलने के लिए कहा, किंतु मेरे ‘जरा धीरे बोलो’ कहने पर तो वह और अधिक बिफर उठी,  ‘तुम खुद तो सज-धजकर बड़ी निश्चिंतता से सुबह-सुबह ऑफिस चले जाते हो और यहां सारा दिन मैं अकेली खटती रहती हूं। अब तो सचमुच मैं तंग आ गई हूं। इसीलिए मैंने भी एक फैसला कर लिया है आज। अब से जब भी मां- बाबूजी को यहां आना हो, तुम मुझे एक नौकर का इंतजाम करके दोगे उनकी चीजों के रख-रखाव के लिए ।’

   यहां तक आते-आते अब, मैं भी अपना संयम खो चुका था, ‘ यह क्या कह रही हो तुम? मां बाबूजी की देखरेख के लिए नौकर ? तुम होश में तो हो न ? कुछ भी बोले जा रही हो ! छोटी-छोटी बातों पर कुढ़ने-चिढ़ने लगती हो आज कल । संतान के लिए अपने माता-पिता क्या किसी नौकर के मोहताज होने चाहिएं ?’ 

     अंतिम वाक्य बोलते समय मेरी आवाज़ भी संभवतः कुछ अधिक ही ऊंची हो गई थी,क्योंकि तभी एकाएक बाबूजी अपने कमरे से बाहर आ गए थे,

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      ‘ क्या हुआ मुन्ना ! क्यों चिल्ला रहा है बहू पर ? तेरी मां भी चिंता कर रही है। इस तरह चिल्लाकर यह कौन सा तरीका है अपनी पत्नी से बात करने का ? क्या तुमने मुझे कभी अपनी मां पर इस तरह चिल्लाते सुना है ? बेटा ! तुम दोनों में कुछ मतभेद भी हुआ है तो सभ्य‌ तरीके से, आराम से बैठ कर शांति से बात करो। 

    मैं सकपका गया था । शिखा पूरी तरह निःशब्द हो चुकी थी।  आज बाबूजी के तौर-तरीकों से परेशान शिखा को बाबूजी ने ही जीवन के ‘तरीके’ का असली सबक जो सिखा दिया था।

उमा महाजन 

कपूरथला 

पंजाब।

#बड़ा दिल

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