कोर्ट में जज के आते ही सभी खड़े हो गए। जज की अनुमति के बाद कार्यवाही शुरु की गई। प्रीति के वक़ील ने इजाज़त मांगी और प्रीति को अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया। प्रीति ने भरी आँखों से जज को नमस्ते कहा। ३२ साल की प्रीति , सांवला रंग , सामान्य कद -काठी और पेट पर उभार मातृत्व को दर्शा रहा था।
जज ने कहा : कहो प्रीति क्या तुम सच में इस हालत में तलाक़ लेना चाहती हो ?जी जज साहब, प्रीति ने धीरे से कहा। एक बार फिर सोच लो , बच्चों की परवरिश कैसे करोगी ? जज साहब ने फिर से कहा। प्रीति फीकी सी मुस्कान के साथ कहती है : जज साहब एक दिहाड़ी लगाने वाली मजदूर औरत अगर अपने बच्चे को पाल सकती है , तो मैं तो फिर पढ़ी -लिखी हूँ , कुछ न कुछ तो कर ही लूंगी।
बहुत सोच -समझ कर फैसला लिया है , सर। पिछले दो महीनों में तिल -तिल मरी हूँ मैं। पर अब और नहीं सहा जाता। हर रोज़ वही ताने , वही बातें , अब और नहीं झेली जातीं। एक लड़की का तीसरी बार माँ बनना इतना अभिशप्त हो सकता है , सोचा नहीं था।
सर, मेरे पहले दो बच्चे स-सेक्शन से हुए थे। छोटी बेटी जब 11 महीने की थी तब टाँकों में दर्द होने लगा। मुझे लगा शायद इन्फेक्शन हुआ हो , तो डॉक्टर के पास चेक -अप करवाने गई। वहां पता चला मैं तीन महीने से गर्भवती हूँ। मैं बहुत परेशान हो गयी , क्योंकि बेटी अभी बहुत छोटी थी।
मैंने डॉक्टर से एबॉर्शन के लिए कहा , तो उन्होंने मना कर दिया और कहा ये तुम्हारे लिए जानलेवा हो सकता है। घर आकर ये बात मैंने अपने पति अनुज को बताई , तो वो जोर -जोर से मेरे ऊपर ही चिल्लाने लगे , ज़ाहिल , गँवार और पता नहीं क्या -क्या कहा। क्या इन सबमे सिर्फ मेरी ग़लती थी ? इतना कहकर प्रीति फूट -फूट कर रो पड़ी।
दूसरी पंक्ति में बैठा अनुज ये सब देख-सुन रहा था , और उसे पछतावा हो रहा था की उसने प्रीति के साथ गलत किया। जज ने वक़ील को इशारा किया और पानी देने को कहा। थोड़ा संभलकर प्रीति ने आगे कहना शुरू किया , सर, ऑपरेशन होने की वज़ह से मुझे माहवारी नहीं आती थी। बड़े बेटे के दौरान भी मुझे लगभग साल के बाद पीरियड्स आए थे। न कोई मॉर्निंग सिकनेस थी, ना थकावट , फिर मुझे कैसे पता चलता कि मैं pregnant हूँ ?
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पर मेरे ससुराल वालों ने हर तरह से मुझे ही दोषी माना। रिपोर्ट्स लेकर हम प्राइवेट , सरकारी , क्लिनिक हर जगह घूमे , जिससे इस बच्चे को अबो्र्ट किया जा सके , पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ। हर जगह एक ही जवाब मिला की ये सब मेरे लिए जानलेवा हो सकता है। एक जगह तो मेरे पति ने यहाँ तक कह दिया था कि ये मरती हे
तो मर जाये पर हमें ये बच्चा नहीं चाहिए। उस दिन मुझे अपनी अहमियत पता चली जोकि शायद नगण्य थी। अब आये दिन मुझे ताने सुनंने को मिलते।मैं घर का सारा काम करती , अपने बच्चों को भी खुद ही देखती थी । उसके बाद से मेरे पति हमारे कमरे में ना सोकर दूसरे कमरे में सोने लगे थे। कई बार तो इन लोगों ने यहाँ तक कह दिया की इन्हे मुझसे शादी करनी ही नहीं चाहिए थी।
सर,जब तकलीफ़ बढ़ने लगी , तो इन लोगों ने मुझे मेरे मायके छोड़ दिया। उस दिन से लेकर अभी तक मैं अपने मायके में ही हूँ। इतने दिनों से मेरे पति ने मुझसे न कभी बात की , न कभी मेरी तकलीफ़ जानने की कोशिश की।
मेरे मन में बहुत बार आया की ऐसे जिंदगी से अच्छा है , मैं सुसाइड कर लूँ , कुछ खाकर ही मर जाऊं , पर फिर अपने दोनों बच्चों के मासूम चेहरे देखती तो खुद को रोक लेती।
हर औरत अपने पति से सिर्फ प्यार और सहारे की ही उम्मीद रखती है , लेकिन वही पति अपनी गलती होने पर भी औरों के साथ मिलकर आपको ताने मारे, आपके अस्तित्तव को ही नकार दे, तो सारी उम्मीदें खत्म हो जाती हैं। हमसफ़र का मतलब होता है , हर मुश्किल, परेशानी में साथ खड़े रहना , पर यहाँ तो ये मुझसे पीछा छुड़ाना चाहते हैं। एबॉर्शन के लिए जाते वक़्त , इस इंसान ने एक बार भी ये नहीं कहा की चल छोड़ , रहने देते हैं , कहीं तुझे कुछ हो गया तो बच्चों का क्या होगा , मेरा क्या होगा ?
क्या इस बच्चे के लिए सिर्फ मैं दोषी हूँ , इनका कोई कसूर नहीं है ? फिर सज़ा मैं अकेली क्यों भुगत रही हूँ। सर, मुझे ऐसे इंसान के साथ नहीं रहना, और वैसे भी इतने दिन दूर रहकर ये बात तो समझ आ गई है कि इन्हें मेरी कोई ख़ास जरूरत भी नहीं है। इसलिए मुझे तलाक चाहिए , अपने पति से,
अपने ससुराल से, अपने समाज से , हर उस इंसान से जहाँ ऐसी सोच हो। जहाँ हर परिस्थिति मैं सिर्फ औरतों को ही दोष दिया जाता हो। मुझे तलाक चाहिए बस तलाक चाहिए। सर एक और बात मुझे इनकी तरफ से कोई खर्चा भी नहीं चाहिए ताकि कल ये लोग ये न कह दें की पैसों के लिए तलाक़ लिया था। इतना कह कर प्रीति फूट -फूट कर रो पड़ी। कोर्ट में बैठे हर शख़्स की आँखों में आँसू आ गए थे। यहाँ तक कि अनुज की ऑंखें भी भर आई थीं। कुछ देर बाद अनुज अपनी सीट से उठकर प्रीति के पास आ गया , मुझे माफ़ कर दो प्रीति।
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मैंने तुम्हारा बहुत दिल दुखाया है। अपराधी बन गया हूँ मैं , तुम जो चाहे सजा देना बस अपने से दूर मत करो बस एक और मौका दे दो। मैं तुम्हें एक सच्चा हमसफ़र बनकर दिखाऊंगा। मुझे मेरे बच्चों से अलग मत करो। तुमसे दूर रहकर मैं भी तुम्हें याद करता था , पर मेरा ईगो मुझे आगे बढ़ने से रोक रहा था।
जज साहब ने स्थिति को देखते हुए केस के लिए अगली तारीख़ दे दी और वहां से चले गए। धीरे -धीरे उसके बाद वक़ील और बाकि लोग भी चले गए। अब कोर्ट में सिर्फ प्रीति और अनुज ही बचे थे। प्रीति अपनी जगह से खड़ी होने लगी तो अनुज ने उसे सहारा दिया और एक बार फिर अपने किये की माफ़ी मांगने लगा।
अनुज बोला : मैं तुम्हारा दर्द समझ ही नहीं पाया। मैं तो सिर्फ मानसिक रूप से परेशान था , पर तुम मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से परेशान थीं। वादा करता हूँ आगे से तुम्हें कभी अकेला नहीं छोडूंगा। इतना सुनकर प्रीति अनुज के गले लग गयी और बड़ी देर तक रोती रही। अनुज की ऑंखें बराबर बरस रही थीं। अब शायद तलाक़ की वजह ख़त्म हो गयी थी।
लेखिका : समिता बड़ियाल
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