मेरी आत्मा को तकलीफ देकर तू कभी सुखी न रह सकती है। फोन पर स्पीकर से ताई जी का लगातार कुछ भी बोलना जारी था और आंखों में आंसू लिए मृदुल भाभी कुछ भी नहीं कह पा रही थी। मेरा मन हुआ मैं ताई जी को कुछ भी कहूं परंतु उन्होंने फोन बंद कर दिया था। भाभी ने पीछे मुड़कर जब मुझे देखा तो वह फफक-फफक कर रो पड़ीं। मैंने उन्हें प्यार से समझाते हुए कहा भाभी मम्मी हमेशा कहती थी कौओं के कोसे से ढोर नहीं मरते। मैंने सुना है ताई जी क्या कह रही थी अरे तुम्हारी भी तो आत्मा दुख पा रही होगी
बिना वजह तुम्हारे पास कोई भी इल्जाम लगाई जा रही हैं। उन्होंने सब रिश्तेदारों को ऐसे ही फोन करा है। तुम तो भाभी इस घर में बाद में आई हो हम तो हमेशा से ही ताई जी को देख रहे हैं। आपको ही लगता था कि मम्मी नहीं है तो हर त्यौहार के बाद उनसे आशीर्वाद लेकर आऐं। वह किसी को आशीर्वाद दे ही नहीं सकती अगर ऐसे ही आशीर्वाद दे रही होती तो भला उनकी बहू उर्वशी भाभी इस तरह घर छोड़कर ही क्यों जाती?
आइए पाठकगण आपको बताती हूं कि समस्या क्या हुई है? मैं मीना और रजत हम दोनों भाई बहन में बहुत प्यार है।मेरा घर भी पास में ही है।मेरी भाभी मृदुल अपने नाम के समान ही बहुत ही मृदुल है। भैया के विवाह को 10 साल हो गए हैं। उनके विवाह के 2 साल बाद ही पापा को हार्ट अटैक हो गया था।
मम्मी तो हमेशा से ही बीमार ही रहती थी अस्थमा बीपी, शुगर जॉइंट पेन, ऐसी शायद ही कोई बीमारी हो जो हमारी मम्मी को नहीं थी परंतु भाभी ने मां की सेवा में कहीं कोई कमी नहीं रखी और मुझे भी सदा घर में बहुत सम्मान मिला। मम्मी की मृत्यु के बाद तो वह मुझे मां के समान ही अपनापन देती है। करवा चौथ होई ,होली, दिवाली, मेरे तो हर त्योहार मनाते ही थे मां की मृत्यु के उपरांत उन्होंने हर त्यौहार के बाद ताई जी के भी घर उन्हें बायना( त्योहार के बाद पूजा के प्रसाद स्वरूप सासूमां/ बुजुर्ग को देने वाला सामान) देने जाती थी।
ताई जी सदा से ही बहुत अहंकारी और सबको दबाने की प्रवृत्ति रखती थी। मां और चाची दोनों ही उनके सामने कुछ बोल ही नहीं सकते थे। ऐसा ही क्रूर व्यवहार वह अपनी बहू के साथ करती थी। उनकी पढ़ी-लिखी बहू घर के सारे काम करती थी फिर भी वह उसे यूं ही तंग किया करती थी। भैया सब कुछ समझते जानते हुए भी ताई जी के डर के मारे कुछ नहीं कहते थे। मृदुल भाभी उर्वशी भाभी की जेठानी लगती थी क्योंकि ताई जी के बेटे मेरे भैया से छोटे थे।
अभी 2 दिन पहले ही मृदुल भाभी जब ताई जी के पास दिवाली के बाद उनका आशीर्वाद लेने गई तो ताई जी ने मृदुल भाभी को कहा कि देख तेरी दोहरानी उर्वशी 2 दिन से मुंह फुलाए अपने कमरे में बैठी है ना तो कोई घर का काम कर रही है और ना ही खाना खा रही है। ना इसे घर का तौर तरीका आता है, बस यूं ही कभी भी बीमार पड़ जाती है कभी कुछ। आलकस इतना भरा हुआ है कि कोई घर का काम ही नहीं कर रही है। मृदुल भाभी ने तो हमेशा उर्वशी को काम करते हुए ही देखा था और उर्वशी भाभी
के इस तरह से जिद करके कमरे में बैठने का कारण क्या हुआ यह तो मृदुल भाभी को पता ही नहीं था परंतु फिर भी ताई जी के कहने पर वह उर्वशी भाभी के कमरे में उन्हें मनाने और खाना लेकर खिलाने तो गई थी। मृदुल भाभी ने उर्वशी भाभी को कुछ खिलाया भी था और फिर वह शाम को अपने घर आ गई थी। दूसरे दिन उर्वशी भाभी ने ताइजी के पैर छूकर अपने मायके जाने को कहा और भैया ने भी ताई जी से कहा कि इसे एक-दो दिन मायके मायके में रहने दो वहां इसकी तबियत ठीक हो जाएगी तो आ जाएगी। ताई जी के कहने पर भाभी अपनी एक अटैची लेकर
मायके चली गई। यह तो ताई जी को बाद में ही पता चला कि वह मायके नहीं गई अपितु भैया और उर्वशी भाभी ने एक अलग घर ले लिया और वह इस तरह से घर से अलग हो गए।
ताई जी तब से मृदुल भाभी को गालियां बक रही है और सारे परिवार में फोन कर करके यही कह रही है कि मृदुल भाभी ने ही उर्वशी को सिखाया है और वह मृदुल भाभी के कारण ही घर से अलग हुई है। यही कारण था कि वह अभी भी फोन करके मृदुल भाभी को डांट रही थी और मृदुल भाभी का रो-रो करके बुरा हाल था।
पाठक गण आप ही बताइए क्या इस तरह का व्यवहार उचित है? किसी की भी आत्मा को तकलीफ देकर कोई सुखी नहीं रह सकता मेरा भी यही ख्याल है और आपका कॉमेंट में बताइए?
मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा।
प्रतियोगिता के अंतर्गत।