ताईजी – विभा गुप्ता : Moral stories in hindi

moral stories in hindi : काजल से मेरी मित्रता आठवीं कक्षा में हुई थी,काॅलेज़ में आते-आते तक हमारी मित्रता और अधिक गहरी हो गई जिसका कारण यह था कि वह एक संयुक्त परिवार की सदस्या थी और मैं एकल परिवार से ताल्लुक रखती थी।मेरे पिता दादाजी की इकलौती संतान थें, इसलिए मैंने चाचा-ताऊ के स्नेह को कभी जाना नहीं।काजल जब अपनी माँ-चाची और दादी- ताईजी के बारे में बताती तो मेरी उनसे मिलने की ललक तीव्र हो जाती।

काजल ने मुझे बताया था कि उसके पिता तीन भाई हैं और सभी एक ही छत के नीचे रहते हैं।मेरठ शहर के पास ही उसके दादाजी ने आयरन की एक छोटी फ़ैक्ट्री लगाई थी जिसे बाद में उनके तीनों बेटों ने संभाला।ताऊजी के गुज़रने के बाद उसके पिता-चाचा के साथ ताईजी भी फ़ैक्ट्री जाने लगीं थीं।

स्वभाव की कड़क ताईजी भले ही मैट्रिक पास थीं लेकिन अपने काम के प्रति वे बड़ी अनुशासनप्रिय थीं।उनकी अपनी तो कोई औलाद नहीं थीं लेकिन देवरों की संतानों पर अपना स्नेह लुटाने में उन्होंने ज़रा भी कंजूसी नहीं की थीं।

हमारी बीए द्वितीय वर्ष की परीक्षा समाप्त होने वाली थी, तभी काजल के बड़े भाई का विवाह तय हुआ। उसने कहा कि ताईजी ने तुम्हें भी बुलाया है।अपने पिता की अनुमति लेकर मैं उसके साथ भाई की शादी में सम्मिलित होने के लिए चली गई।

जैसा सुना था, वैसा ही मैंने ताईजी को पाया।आकर्षक व्यक्तित्व और चेहरे पर गंभीरता का आवरण ओढ़े ताईजी विवाह के व्यस्त माहौल में भी फ़ैक्ट्री के वर्कर्स से बात करने के लिए समय निकाल ही लेतीं थीं।

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रिसेप्शन पर ताईजी ने अपने फ़ैक्ट्री के सभी स्टाफ़ को न्योता दिया था।मैंने देखा कि ताई जी उन सभी का स्वागत वैसे ही मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कर रहीं थीं जैसे कि बाकी मेहमानों का कर रहीं थीं तो मुझे बेहद आश्चर्य हुआ।फिर बिना किसी ऊँच-नीच-अमीर-गरीब का फ़र्क करते हुए उन सभी को बाकी मेहमानों के साथ डाइनिंग टेबल पर बैठाया तो मैंने धीरे-से पूछ लिया,” ताईजी, ये लोग तो आपके वर्कर्स हैं ना, फिर उन्हें बाकी मेहमानों के साथ कैसे….।”

” वर्कर्स हैं तो क्या हुआ बचिया..,हैं तो हमारी तरह ही इंसान ही ना….,और फिर बचिया…, आज तो ये सभी हमारे मेहमान हैं …।अतिथि तो भगवान का रूप होते हैं, उनके साथ भेदभाव कैसा।हम तो सभी को एक ही आँख से देखते हैं बचिया..,उनके भी आदर-सत्कार में हम कोई कमी नहीं होने देंगे।” मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा और सबके टेबल पर जाकर कहने लगीं कि कुछ भी चाहिए तो बेहिचक कहियेगा, संकोच तनिक भी न कीजियेगा।

मैं तो उनके आगे नतमस्तक हो गई।ऊपर से कठोर दिखने वाली ताईजी का हृदय इतना सरल और कोमल होगा,मैंने कभी नहीं सोचा था।उस दिन मेरी नज़रों में उनका सम्मान और बढ़ गया था।ताईजी जैसे एक समानता का भाव रखने वाले लोग बिरले ही मिलते हैं।जाते समय उन्होंने मुझसे पूछा कि फिर कब आओगी तो मैंने काजल की ओर इशारा करते हुए कहा,” इसकी शादी में।” तब वे मेरे सिर पर हाथ रखते हुए बोली,” उस समय तो तुम अपने पति के साथ आओगी ना।” सुनकर सभी हँस पड़े थें और मैं शर्म से लाल हो गई थी।

विभा गुप्ता

# एक आँख से देखना स्वरचित

 

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