तब तो जीजा जी का दोगुना खर्चा हो गया होगा !! – सविता गोयल : Moral Stories in Hindi

“आ गए आप !! , दरवाजा खोलते ही अपने पति वरुण को खड़ा देखकर रिया चहकते हुए बोली ।

” हां, आ गया … तभी तो सामने खड़ा हूं ।” वरुण भी शरारत से बोला तो रिया हंस पड़ी ।

अंदर आते ही सामने बैठक में बैठी हुई वंदना जी भी बेटे को वापस आया देख बोल पड़ीं, ” आ गया तू … कैसी रही तेरी मीटिंग ??”

” अच्छी रही मां, हमें घूमने के लिए भी काफी वक्त मिल गया था इसलिए जयपुर की मार्केट में भी चला गया था। “वरुण बोला।

” अच्छा, क्या लाए वहां से। वहां की लहरिया तो बहुत मशहूर है ना ….” रिया खुश होते हुए बोली।

” हां हां, मेरे सभी दोस्तों ने अपनी अपनी पत्नियों के लिए साड़ी ली तो मैंने भी ले ली। मां ये देखो , ये साड़ी तुम्हारे लिए… और ये साड़ी रिया के लिए दो साड़ियां बैग से वरुण ने निकाली एक सुंदर सी हल्के नीले रंग की अपनी मां के लिए और एक बहुत खूबसूरत गुलाबी साड़ी रिया के लिए।

 रिया तो साड़ी देखकर उछल ही पड़ी लेकिन वंदना जी का मुंह उतर गया , ” बस दो ही साड़ियां लाया है ?? अपनी बहनों को भूल गया क्या?? बीवी आ गई तो बहनों का हक मारने लगा।”

वरुण मां की इस बात पर असहज हो गया , ” मां … प्रिया दीदी और कविता के लिए तो कभी कुछ दिनों पहले ही त्यौहार का शगुन गया था इसलिए….. “

” तो क्या हुआ, सुन ले बेटा जब तक मैं जिंदा हूं अपनी बेटियों के साथ पक्षपात नहीं होने दूंगी… आगे से घर में जो चीज बहू के लिए आएगी तो मेरी बेटियों के लिए भी आएगी …. आखिर उनका भी अपने भाई की कमाई पर कुछ हक बनता है….”

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सास की बहस सुनकर रिया की सारी खुशी रफूचक्कर हो गई। वरुण का भी मन बुझ गया।

कुछ दिनों बाद रिया और वरुण की शादी की पहली सालगिरह आने वाली थी। वरुण सोच रहा था कि रिया को कोई अच्छा सा उपहार दे जो यादगार हो । उसने देखा था कि रिया के पास सिर्फ दो ही अंगूठियां थी एक सगाई की और एक ज्वेलरी सेट के साथ की जो बड़ी होने के कारण रिया कम ही पहनती थी। वरुण ने एक सुंदर सी रिंग रिया के लिए बनवा ली। सालगिरह वाले दिन जब वरुण ने रिया को रिंग गिफ्ट की तो वंदना जी के बर्दाश्त से बाहर हो गया।

” वरुण, तू बहू के लिए चुपचाप गहने बनवा लेता है और मुझे बताता भी नहीं!! अभी शादी में तो पूरा सेट चढ़ाया था फिर इतनी जल्दी और गहनों की क्या जरूरत पड़ गई। अरे , सिर्फ अपनी बीवी के बारे में ही सोचता रहता है जैसे तेरी मां बहनें तेरी कुछ नहीं लगतीं …. मैंने कहा था तुझसे की घर में कोई चीज आएगी तो मेरी बेटियों के लिए भी आनी चाहिए। आखिर उनका भी इस घर पर हक है … ,,

 अपनी मां की इस ज़िद्द पर वरुण और रिया स्तब्ध थे । ये भला किस घर का नियम है कि पति अपनी पत्नी को कोई उपहार भी नहीं दे सकता !!!
उस दिन के बाद वरुण रिया के लिए कुछ लाना चाहता तो भी रिया मना कर देती थी। घर में क्लेश से अच्छा है वो बिना उपहार के ही रह जाए।

कुछ दिनों बाद रिया की बड़ी ननद प्रिया अपने मायके आई। वंदना जी अपनी बेटी को देखकर फूली नहीं समा रही थीं। प्रिया के गले में नई सोने की चेन देखकर वंदना जी पूछ बैठीं, ” बेटा, इस चेन की गढ़ाई तो बहुत सुंदर है ….. नई लग रही है ।”

” हां मां ,अभी कुछ दिनों पहले ही बनवाई है । आपके दामाद को इस बार बोनस मिला था तो उन्होंने दिलवा दी।”

ननद की बात सुनकर रिया झट से बोल पड़ी, ” दीदी, तब तो जीजा जी का दोगुना खर्चा हो गया होगा ?? ,,
रिया के सवाल पर वंदना जी और ननद हैरान सी उसका मुंह देखने लगी , ” दोगुना खर्चा, वो क्यों भाभी??” प्रिया ने पूछा।
” दीदी, आपकी ननद के लिए भी तो जीजा जी ने चेन बनवाई होगी ना ??”

” क्या बेकार की बात कर रही है बहू!! ननद को आए दिन कोई सोने की चेन देता है क्या?? ” वंदना जी रिया को झिड़कते हुए बोली।

” हां भाभी, भला ननद के लिए चेन क्यों बनवाएंगे!! उनको जो देना था शादी में दे दिया। अब ननद के जेवर बनवाने की जिम्मेदारी उनके पति की है उनके भाई की नहीं…..” प्रिया चिढ़ते हुए बोली ।

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 ” अच्छा दीदी!! लेकिन मम्मी जी तो कहती हैं कि बहनों का हक पत्नी के बराबर होता है …..
घर में कुछ भी आए तो बेटियों का उसमें बराबर का हिस्सा होता है !! ,,

रिया की बात पर प्रिया अपनी मां का मुंह देखने लगी। वंदना जी नजरें चुरा रही थीं । प्रिया समझ गई कि उसकी मां बेटियों के मोह में भाई भाभी पर नाजायज दबाव बना कर रखती है। वो मां को समझाते हुए बोली, ” मां, हम मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए गहने बनवाना या कुछ लाना वैसे ही बहुत मुश्किल होता है …… हमारे मोह में आकर आप अपने बेटे बहू के साथ ये ठीक नहीं कर रही हैं ….. मां हमें तो मायके से अपनापन और प्यार चाहिए अपनी भाभी का हक नहीं….. । आपके हिसाब से तो भाभी सही कह रही है कि मुझे भी अपनी चेन के साथ अपनी ननद के लिए भी एक चेन बनवानी चाहिए चाहे उसके लिए आपके दामाद को अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च क्यों ना करना पड़े ….”

” अब छोड़ ना बेटा, मैं तो बस यूं ही कह देती हूं …. अब से नहीं कहूंगी बस …. पक्षपात तेरा भाई नहीं बल्कि मैं ही कर रही थी । बहू तूं भी मेरी बातों का बुरा मत मानना , मैं ही भूल गई थी कि मेरी बेटी भी किसी के घर की बहू है ।”

वंदना जी की बात पर दोनों ननद भाभी मुस्कुरा दी । सच में वैसे तो बेटियां मां की परछाई होती हैं लेकिन बेटियों के मोह में फंसी एक मां को उसकी बेटी ही समझा सकती है ……

लेखिका : सविता गोयल 

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