तारीफ़ से पैसे नहीं मिलते… – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“क्या बात है शेखर आज तेरा लंच बॉक्स किधर है…भई हम तो इंतज़ार करते रहते हैं कब लंच टाइम हो और हमें तेरे साथ खाने को मिले…।” ऑफिस में ही साथ काम करने वाले तनय ने कहा 

” यार अब से मैं ऑफिस कैंटीन में ही लंच करूँगा…. मेरे बस का कहाँ रसोई में जाकर खुद के लिए कुछ बनाऊँ..।” उदास हो शेखर ने कहा 

“ क्यों क्या हुआ भाभी तो ठीक है ना….!” तनय के इस सवाल से शेखर के तन बदन में आग लग गई

“ ठीक ही होगी… मुझे क्या पता… कुछ बता कर जाती हैं क्या…!” बुदबुदाते हुए शेखर ने कहा 

“ लगता है आज फिर तेरा भाभी से झगड़ा हो गया…. अम्मा यार अभी तो जुम्मा जुम्मा छह महीने होने को है तेरी शादी के फिर भी तुम दोनों ऐसे लड़ते हो जैसे शादी के कितने साल हो गए…नई नई शादी का लोग आनंद लेते हैं तुम दोनों जब देखो लड़ते रहते हो… चल अब तेरे साथ मैं भी कैंटीन ही चलता हूँ उधर ही मिल बाँट कर खा लेंगे ।” अपने साथ लाए टिफ़िन की ओर इशारा करते हुए तनय ने कहा 

दोनों दोस्त कैंटीन में गए और खाने लगे। 

देख रहा है वो सब – डॉक्टर संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

तनय के टिफ़िन में वो स्वाद नहीं मिला जो शेखर के लाए टिफ़िन में होता था….. तनय भी अक्सर शेखर का ही टिफ़िन शेयर कर के खाना चाहता था।

“ ये तो बता हुआ क्या…. आया है तब से मुँह भी लटका रखा है…. क्या कहा भाभी ने जो तू इतना उखड़ा उखड़ा सा लग रहा।” तनय अपने दोस्त के हाल पर उदास हो पूछा 

“ छोड़ यार क्या बताऊँ… चल जल्दी से लंच करके चलते हैं मैनेजर ने मीटिंग रखी है देर से पहुँचे तो चार बात उसकी भी सुननी पड़ जाएगी ।” शेखर बेमन से खाना खाते हुए बोला 

दोनों दोस्त खा पीकर मीटिंग अटेंड करने चल दिए । शाम को सात बजे शेखर घर के लिए निकल गया पर घर जाने का जरा सा भी मन नहीं कर रहा था…पर घर जाना तो था ही…

घर पहुँच कर देखा तो जो हाल सुबह वो कर के गया था वही हाल अब भी था….. बिखरे सामान मुँह चिढ़ा रहे थे…. गंदे और गीले कपड़े यूँ ही इधर उधर फैले पड़े थे…. शेखर का मन किया जोर जोर से चिल्ला कर केतकी को आवाज़ लगा कर बोले ये सब क्या है…. पर केतकी वो अब यहाँ कहाँ थी…. बड़े ताव में ही तो उसे कह दिया था तुम्हारे बिना भी अच्छी तरह रह सकता हूँ क्या सोचती हो…. दिन भर घर सजाते रहने से ….अच्छा खाना पकाने से सब तुम्हारी तारीफ़ करते हैं उससे ही पेट भर जाता है….अरे मैं तो सोचता था पढ़ी लिखी लड़की हो नौकरी करोगी हाथ में कुछ पैसे आएँगे फिर ऐश ही ऐश पर तुम तो सारी सोच पर पानी फेर दी… तुम करती ही क्या हो…मुझे नहीं रहना ऐसी लड़की के साथ… और भी ना जाने क्या क्या कह कर केतकी को रूलाता रहा था।

केतकी सीधी साधी लड़की जिसने पढ़ाई तो ज़रूर की पर कभी ये ना सोचा की नौकरी करेंगी…. माता-पिता की इकलौती बेटी तो ज़रूर थी पर बदक़िस्मती से उनका साया बहुत पहले उठ गया था और ताई ताऊ ने उसे अपने साथ रख कर थोड़ी पढ़ाई करवाई और शेखर से शादी करवा दी ।

अखंड सौभाग्यवती भव… – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

केतकी को घर सजाने संवारने का बहुत शौक़ था और खाना वो तो लाजवाब बनाती थी…. पर ताई जी उससे अपने हिसाब से काम करवाती…. केतकी का कई बार दिल करता घर में ये करूँ वो करूँ पर ताई जी एक ही तान छेड़ती जो करना अपने घर करना मेरे घर को मेरे हिसाब से रहने दें… हाँ रसोई में केतकी को दिनभर खड़ा कर काम करवाया करती थी केतकी उफ़ तक ना करती और ख़ुशी से तरह तरह के व्यंजन बनाया करती।

शादी के बाद केतकी सारा वक़्त अपने नए आशियाने को सजाने संवारने में लगी रहती और शेखर के लिए तरह तरह के व्यंजन बना टिफ़िन में दिया करती …..जो शेखर पहले कैंटीन के खाने से ही दिन काट रहा था अब टिफ़िन में मन पसंद खाना देख तृप्त होने लगा था …ऑफिस के दोस्त और सहकर्मियों के बीच शेखर के टिफ़िन खुलने से पहले ख़ुशबू से जायज़ा लिया जाता कि आज क्या आया होगा… एक दिन सबने शेखर को छेड़ते हुए कहा,“ मान गए शेखर भई बीवी हो तो आपके जैसी पति के दिल तक पहुँचने का रास्ता बख़ूबी जानती है… भई हमें भी कभी अपने घर खाने पर बुलाया कर… जब ये बात शेखर ने केतकी से कही तो उसने कहा,“ इसमें सोचने और पूछने की क्या बात है आप जब चाहें बुला ले मैं सब तैयारी कर लूँगी ।”

केतकी ने तरह तरह के व्यंजन बना कर पूरी तैयारी कर ली …घर भी ख़ूब अच्छे से सजा संवार दिया सबने जमकर खाना खाया और जी भर केतकी की तारीफ़ की…केतकी उस दिन बहुत खुश थी…. एक तो पहली बार सबसे मिली और सबने इतनी तारीफ़ की ये सब केतकी को बहुत अच्छा लगा था।

 शेखर ने महसूस किया अब अक्सर दोस्त घर आने की ज़िद्द करने लगे हैं और केतकी भी बोलती रहती हैं आपके दोस्तों को घर क्यों नहीं बुलाते…. वजह सिर्फ़ ये था कि काम की अधिकता या फिर घर में आराम करने की वजह से शेखर कहीं बाहर ज़्यादा आता जाता नहीं था ऐसे में केतकी बोर हो जाती …. शेखर के दोस्तों के आने से रौनक लगती और उसे भी अच्छा लगता था ।

अभी दो दिन पहले ही तो केतकी ने कहा था,“बहुत दिनों से हम यहाँ आए हैं कहीं बाहर भी नहीं जाते जो चाहिए ऑनलाइन मँगवा लेते हैं… कम से कम आपके दोस्तों को ही बुला लीजिए वो आ जाते तो अच्छा लगता है…।” 

इतना ही तो कहा था केतकी ने पर ना जाने क्यों शेखर उखड़ गया…. 

अहंकार – चम्पा कोठारी : Moral Stories in Hindi

“ ये दोस्तों को बुला लो बुला लो करती रहती हो… वो थोड़ी तारीफ़ क्या कर देते उसमें ही खुश हो जाती हो… अरे मुझे नहीं बुलाना उन सब को… सबकी पत्नी जॉब करती… रसोई में खाना बना कर खुश होते बस तुम्हें ही देखा है तुम इसमें ही खुश रहो…. कुछ काम करती पैसे आते तो कोई बात थी … पर नहीं इन्हें तो बस घर पर ही रहना और रसोई सँभालना।” शेखर ना जाने किस बात की खुंदक लिए बैठा था जो मन में आया कहता चला गया ग़ुस्से में ये भी कह दिया नहीं रहना यार तुम्हारे साथ… केतकी को कुछ समझ नहीं आया पर वो बात को बढ़ाने से बेहतर यही समझ पाई कि यहाँ से चली जाती हूँ और वो अपना थोड़ा सामान लेकर घर से निकल गई ।

आज केतकी को गए दूसरा ही दिन था और शेखर की हालत बदतर होने लगी थी, उस दिन ऑफिस की टेंशन और केतकी के दोस्तों को बुलाने की बात कहते ही आग में घी का काम कर गई थी।

शेखर जानता था वो ताऊ जी के पास नहीं जा सकती और फ़ोन वो लेकर नहीं गई थी उसे खोजे तो कहाँ खोजें यही सोचते सोचते वो वही सोफे पर सो गया ।

तभी उसके फ़ोन की घंटी बजी….

“हैलो शेखर जी बोल रहे हैं ?” उधर से किसी महिला की आवाज़ आई 

“ जी शेखर बोल रहा हूँ पर आप कौन हैं?” शेखर ने पूछा 

“ मैं यही पास में अन्नपूर्णा मेस चलाती हूँ वही से बोल रही हूँ हमारे पास एक लड़की है उसके पास आपका नम्बर मिला है …उनकी तबीयत ठीक नहीं है आप हो सके तो आकर मिल लें।” उधर से आवाज़ आई 

शेखर जल्दी से उठा और भागा…… मेस दूसरी गली में ही था जल्दी से पहुँचा तो देखा केतकी बेहोश पड़ी है एक दिन में ही पीली पड़ गई थी…. उसने उन महिला से पूछा,“ ये आपके यहाँ कब से है?”

“ ये तो दो दिन से हमारे यहाँ ही है हमने कितना पूछा कहाँ रहती हो …. कुछ नहीं बोल रही थी ….बस बोले जा रही थी क्या मैं आपके मेस में काम कर सकती हूँ मुझे खाना बनाना अच्छी तरह से आता है आप चाहें तो बस मुझे खाना दे देना पैसे नहीं लूँगी…हमें भी लगा होगी कोई मजबूर हमने पनाह दे दी… वाक़ई इसके हाथ में तो जादू है… इसने जो कुछ भी बनाया  खा कर लोग कह रहे नया कुक रखा है क्या?….आज सुबह से इसे चक्कर आ रहे थे अभी बेहोश हो गई तो  मैं डर के मारे इसका समान देखने लगी कोई पहचान हो तो पता चले उधर ही काग़ज़ पर आपका नम्बर मिला …।”

आखिरी श्रृंगार – ऋतु गुप्ता : Moral Stories in Hindi

शेखर जल्दी से केतकी को लेकर डॉक्टर के पास गया… डॉक्टर ने जो कुछ कहा सुन कर शेखर के समझ नहीं आया केतकी से इस व्यवहार के लिए पहले माफी माँगे या उसके गले लग कर इस ख़ुशी के पल को साथ साथ महसूस करें।

केतकी के होश आते ही अपने सामने शेखर को देख कर अपना मुँह फेरने लगी…

“ अब माफ भी कर दो केतकी….. उस दिन कुछ ज़्यादा ही बोल गया….. अच्छा ये बताओ अब कैसा महसूस हो रहा है?” शेखर केतकी के सामने कान पकड़ कर खड़ा हो गया 

“ आपने तो मुझे अपने घर से जाने कह दिया था ना फिर यहाँ अस्पताल में क्या कर रहे हैं मैं तो मेस…।” बात पूरी भी नहीं कर पाई की डॉक्टर ने आ कर कहा,“ मिसेज़ केतकी अब आपको अपना पूरा ध्यान रखना है….. वैसे तो आप पूरी तरह फ़िट हैं पर ज़्यादा तनाव नहीं करना चाहिए था आपको… ये बच्चे के लिए सही नहीं है ।” 

“ बच्चा…!” केतकी आश्चर्य से शेखर को देखते हुए बोली 

“ हाँ केतकी हम पैरेंट्स बनने वाले है।” ख़ुशी से शेखर की आवाज़ में केतकी ने पहले सा प्यार महसूस किया 

अस्पताल से निकल कर शेखर केतकी को लेकर घर आ गया… हज़ार बार माफ़ी माँग चुका था… उपर से बच्चे की खबर ने केतकी के ग़ुस्से को शांत कर दिया था ।

शेखर की एक माफी और उसमें केतकी के लिए पहले से ज़्यादा प्यार के एहसास ने बिगड़ने से पहले रिश्ते सुधार दिए और प्यार को फिर से उसकी जगह पर ले आया नहीं तो शायद दोनों हमेशा के लिए अलग ही हो जाते।

“ केतकी सुना है जब महिलाएँ गर्भवती होती हैं चटोरी हो जाती है…जब तुम ख़ुद इतना अच्छा खाना बनाती हो कि लोग चाट कर खाते है तो तुम अपने लिए बना पाओगी….?” शेखर सोचते हुए बोला 

“ उसके लिए तुम हो ना…. तुम बना देना मैं खा लूँगी … ज़्यादा सोचो मत खाना बनाना मुझे हमेशा ही अच्छा लगा है अगर कभी जी मचला ,रसोई में परेशानी हुई तुमको बनाना पड़ेगा…. हमारे बच्चे को भी तो पता चले पापा के हाथ में कितना स्वाद है..!” हँसते हुए केतकी ने कहा

निर्णय तो लेना ही पड़ेगा ,कब तक आत्मसम्मान खोकर जियोगी – नीलम नारंग : Moral Stories in Hindi

“ केतकी अभी तो तुम अपना ध्यान रखों पर मुझे वो मेस वाली मैडम ने क्या कहा पता है…. आपकी पत्नी के हाथों में जादू है वो चाहे तो हमारे साथ बिज़नेस कर सकती हैं…. तुम बताओ क्या चाहती हो…?” शेखर ने पूछा 

“ सच में शेखर… जब तक मैं कर सकती हूँ आप मैडम को बोल दीजिए मैं तैयार हूँ… वैसे भी आप ऑफिस में रहते हैं मैं यहाँ अकेले रहती हूँ वो आँटी बहुत अच्छी है ऐसे में मुझे कुछ दिक़्क़त भी हुआ तो वो होंगी मेरे साथ…फिर उनके पास मेरा वक़्त भी कट जाएगा और पैसे भी आ जाएँगे । ” केतकी खुश होते हुए बोली 

केतकी को जब तक ऐसा लगा कि वो काम कर सकती है उसने अपने मन से वहाँ काम किया…. सब उसके खाने के प्रशंसक हो गए थे…. केतकी ने सोच लिया था अब पैसे कमाना मुश्किल नहीं है बस हुनर तो उसके हाथ में ही है ।

बच्चा हो जाने के बाद केतकी ने भी बाद में अपना“ केतकी कैटरिंग ” शुरू कर दिया था ।

केतकी ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी पर एक हुनर की मालकिन थी जिसकी वजह से चर्चा में रहती थी उसने उसमें ही अपना हाथ आज़माया और वो सफल भी रही।

आपको मेरी रचना पसंद आये तो कृपया उसे लाइक करे और कमेंट्स करे ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

मौलिक रचना 

#वाक्यकहानीप्रतियोगिता 

#एक माफी ने बिगड़ने से पहले रिश्ते सुधार दिए

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!