स्वार्थी संसार – अर्चना झा : Moral Stories in Hindi

नाजों से पहली सुमन को कहां पता था कि उसके जीवन में एक मोड़ ऐसा भी आएगा कि  सुमन वो सिर्फ नाम की यह जाएगी, न कोई सुंगध न ताजगी बस किसी मुरझाए फूल की तरह जिंदगी गुजारनी होगी , घर के कामों से थक कर ज़रा सा बैठी ही थी सुमन की सासूमां की कर्कश आवाज कानों में गूंजी, बर्तन मांजने में इतना समय लगता है क्या, और भी कितने काम पड़े हैं जल्दी जल्दी हाथ चलाओ, जी मां जी ,कहती हुई सुमन अपनी थकान भूल कर बिजली की तेजी से काम निबटाने लगी ,

कामों से जब कभी फारिग होती अपने मायके की यादों में पहुंच जाती , कितनी शोख कितनी चंचल थी सुमन, उसके पैदा होने पर पापा ने गोद में लेते हुए कहा था,मेरी सुमन है ये मेरे जीवन की बगिया को महकाने वाली, मां झट से कहती आं हां हमारी सुमन, आखिर मैंने भी तो कोख में रखा है इसे ,पापा कहते हां हां हमारी सुमन है ये, हमारी जिंदगी।

स्वभाव से नटखट सुमन अपने पापा से बहुत करीब थी, अगर मां किसी गलती पर हल्की सी डांट लगाती तो पापा के ऑफिस से आने का समय होते ही वो उदास होकर बैठ जाती, पापा कहते क्या हुआ हमारी बिटिया को, क्यूं उदास है ये, मां बड़ी हैरानी से देखती ,अरे अभी तक तो अच्छी भली थी क्या हुआ इसे पता नहीं, सुमन तुनक कर कहती,पापा मां ने मुझे दोपहर में डांटा था , मां सर पर हाथ दे मारती ,हे भगवान कितनी नाटकबाज है ये लड़की, अपने पापा की लाडली,अरे घर में उछर कूद कर रही थी,तो बस ज़रा सा डांट दिया कि

अब तुम बड़ी हो रही हो ज़रा तौर तरीके सीखो, हमेशा लड़कों के साथ खेलती है उछल कूद मचाती है,ना जाने कब अंकल आएगी इसे, कहते हुए मां किचन की तरफ चाय बनाने चली गई, पापा ने गुस्से की बनावटी आवाज में कहा, खबरदार मेरी बेटी को किसी ने डांटा तो, चलो बेटा मैं तुम्हें आइसक्रीम दिला कर लाता हूं, मां ने किचन से बोला,अरे पहले चाय तो पी लिजिए,थके हुए आए हैं, पापा ने गेट का दरवाजा खोलते हुए कहा, बस अभी आया, और सुमन खिलखिलाती हुई अपने पापा के साथ चल पड़ी, पापा के

ऑफिस से आते ही सुमन अपनी दिन भर की कहानी लेकर बैठ जाती,पता है पापा आज ये हुआ,आज ये हुआ,बीच में मां बोल पड़ती ,अरे बेटा अपने पापा को चैन की सांस तो लेने दो अभी अभी थक कर घर लौटे हैं,पर पापा कहते अरे तुम बीच में मत पड़ो, मेरी थकान तो इसकी बातों से ही उतर जाती है, सुमन हमेशा अपने पसंद के कपडे खरीदवाती उसको कपड़ों के दाम से कोई मतलब नहीं था

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वो पापा से कहती मुझे ये चाहिए,कभी कभी बहुत महंगा होने की वजह से पापा कहते बेटा कोई और देख लो,तो सुमन कहती चाहिए तो यही वाला नहीं तो कुछ नहीं चाहिए,घर चलो, फिर पापा भी उसे वही उसके पसंद के कपडे दिलवाते, उसके चेहरे की खुशी बरकरार रखने के लिए पापा हर नाज़ उठाते,वो कहते इसे कभी अपनी आंखों से ओझल नहीं होने दूंगा, हमेशा मेरे पास रहेगी ये, मां कहती और ससुराल चली जाएगी तब क्या करोगे, सुमन पापा के गले पर झूल कर कहती , अपनी सासूमां से शादी करवा दूंगी पापा की फिर पापा मेरे पास ही रहेंगे,उसकी बातों पर सब हंस पड़ते,

पर होनी को कौन टाल सकता था, सुमन की मौसी ने एक रिश्ता बताया, वहीं बात चली और बस झटपट शादी हो गई, दिल्ली में रहने वाली सुमन की शादी मुम्बई में रहने वाले लड़के से हो गई, वो जूहू चौपाटी,हीरो हिरोइन,बस यही सब सोचकर खुश हो रही थी मुम्बई शादी होने पर , और साधारण से नैन नक्श वाली सुमन को एक खूबसूरत नौजवान मिला जैसे उसका पति नहीं बल्कि उसके सपनों का शहजादा हो , उसे देखते ही अपना तन मन हार बैठी , उसने अपने पापा से कहा भी था कि पापा मेरे लिए ऐसा लड़का ढ़ूंढ कर लाना,

जिसकी आंखें बहुत बड़ी हो,बाल सिल्की और लम्बा हो,गोरा हो और हां,उसकी मूंछें न हो बिल्कुल भी,पापा हंस पड़ते, कहते अब तेरे लिए बिना मूंछों वाला लड़का कहां से ढ़ूंढ कर लाऊं, वो कहती मुझे नहीं पता,अगर लड़के की मूंछें हुई तो मैं बैठुंगी ही नहीं मंडप में , और सच मंडप की तरफ जब उसके कदम बढ़ रहे थे तो हौले

से उसने अपनी पलकें उठाई और सामने अपने सपनों के राजकुमार को पाकर लगा कि सच, पापा ने अपनी ये ज़िम्मेदारी भी इमानदारी से निभाई, पापा के गले लग कर सुमन बहुत रोई , और दिल्ली से मुंबई की तरफ राजधानी से रवाना होने निकले थे पापा स्टेशन पर छोड़ने आए थे तो सुमन बोली पापा मुझे तो जोरों की भूख लग गई,पापा उसकी मासूमियत पर मुस्कुराने लगे और साथ ही उनकी आंख भी भर आई, सोचने लगे मेरी नाजों से पली बेटी , एक नये संसार में जा रही है पता नहीं कैसे सब हैंडल कर पाएगी ,

ट्रेन से उतर कर टैक्सी में बैठते ही ऊंची ऊंची इमारतों पर नजर दौड़ने लगी सुमन की ,उसका बस चलता तो अभी टैक्सी से उतरकर पूरी मुम्बई घूम लेती ,पर संकोच वश वो बैठी रही, और ससुराल पहुंचते ही उसे इतनी हिदायतें मिलने लगी कि बहूं पल्ला अच्छे से करो , सर झुका के चलो,ये करो, वो करो , रस्में करते करते बहुत रात हो गई, उसे बहुत भूख लगी थी कि उसकी ननद दूथ का ग्लास लेकर अंदर आते हुए बोली लो ये पीलो आज खाना नहीं खाया जाता, सुमन ने बेचारगी

से अपने पति की तरफ देखा तो वो सो चुके थे ,या सोने की एक्टिंग कर रहे थे पता नहीं, पूरी रात बीत गई, राकेश न उसके पास आया न बात की , सुमन मन ही मन सोच रही थी कि फिल्मों में तो कुछ और देखा था,पर वो भी थकी हुई थी तो सो गयी, सुबह गहरी नींद में थी तो उसकी ननद ने पांच बजे ही उसे जगाते हुए बोला,भाभी अभी सब सो रहे हैं आप जाकर नहा लो मां ने कहा है, कच्ची नींद से उठकर नहाने चली गई सुमन, नहाकर जैसे ही निकली सास ने डांटना शुरू कर दिया,अरे बहू तुम सिर्फ अपने कपड़े धो कर निकल गई, तुम्हें बाथरूम में और कपड़ों का ढ़ेर दिखाई नहीं दिया क्या,

आगे से ऐसा मत करना, समझीं, सुमन ने सर झुका कर कहा जी मां जी , और फिर बोली इधर आओ आज तुम खीर बनाओ सबके लिए और हां पुरियां भी बना लेना, देखूं तो मां बाप ने कुछ सिखा कर भेजा भी है कि नहीं, बाथरूम से तो तुम बस अपने कपड़े धो कर निकल गई, खाना सबके लिए बनाना है लेकिन, सुमन ने फिर से कहा,जी मां जी , खीर बनाकर आंटा गूंथ कर रख दिया है मां जी और कुछ , हां सबके लिए चाय बना लो ,उठने का वक्त हो गया , राकेश को ऑफिस भी जाना होगा,

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ऑफिस ..? सुमन चौंक पड़ी,आज तो शादी का दूसरा दिन है और राकेश ने छुट्टी नहीं ली , सोचते हुए सुमन चाय बनाने लगी, सबको चाय पहुंचा कर जब वो अपने कमरे में राकेश के लिए चाय ले जाने लगी तो उसकी ननद ने कहा , भाभी चाय ले जा रही हो तो भैया को उठाने से पहले कमरा अंदर से बंद कर लेना, कहकर वो मुस्कुराती हुई चली गई, सुमन को कुछ समझ नहीं आया ,पर वो कमरे में जाकर कुंडी इसलिए लगा दी कि सुबह से घूंघट के भार से सर भारी सा हो रहा था, सर से पल्ला हटा कर गीले बालों से पानी टपकते हुए उसने जैसे ही

राकेश को चाय के लिए उठाया, राकेश ने उसे अपनी बाहों में खींच लिया, सुमन तभी हंस पड़ी, राकेश ने पूछा क्या हुआ तो बोली ,अभी मुझे नूतन ने कहा था भाभी दरवाजा अंदर से बंद कर लेना,तो शायद इसीलिए कहा था, राकेश ने कहा कितनी समझदार है मेरी बहन और तुम कितनी नासमझ हो , तुमने तो कल रात मुझे उठाया ही नहीं, राकेश ये सब कहते हुए उसकी चूड़ियां उतारने लगा, वो बोली ये क्या कर रहे हो ,बाहर आवाज़ जाएगी इतना भी नहीं समझती क्या, और कुछ ही समय में खुद को व्यवस्थित करती हुई सुमन बाहर आ गयी , और सामने अपनी ननद से नज़रें मिलते ही शर्मा गई,

मैंने कहा था ना भाभी दरवाजा बंद कर लेना, सुमन ने भी शरारत से कहा, अच्छा आपको बड़ा पता है,वो बोली भाभी मेरी शादी नहीं हुई तो क्या हुआ मैं बीस साल की तो हूं और आप इक्कीस की , कहकर दोनों हंसने लगी,कि तभी सास की कर्कश आवाज बहू, इतनी ज़ोर से नहीं हंसते ,चलो अब घर में झाडू लगा लो और कल से सुबह उठाना ना पड़े,उसी समय से उठकर, पहले झाड़ू लगाना फिर नहा लेना, फिर बाक़ी के काम निबटाना,समझ गई,जी मां जी सुमन की तो जैसे आदत बन गई थी जी मां जी कहने की ,

सुबह उठते ही काम का पहाड़ उसको थोप दिया जाता, घूंघट में वो घर के काम निबटाती ,कभी टीवी देखने का मन करता तो सांस प्रवचन लगा कर कहती ये देखा करो , और खुद पुराने ज़माने की फिल्में देखती , और तो और सुमन सोती तो सास जाकर पंखा बंद कर देती , नहाने जाती तो लाइट बंद कर देती कि भला नहाने के लिए लाइट की क्या जरूरत, और ना मशीन में कपड़े धोने देती कि बिल ज्यादा ना आ जाए , दो ही महीनों में सुमन सूख कर कांटा हो गई, उसे ना बाहर जाने दिया जाता ना पड़ोसियों से बात करने दिया जाता ,

और ही वो कहीं घूमने गयी थी, और तो और उसके पति राकेश ने भी ना कभी चेहरे के भाव पढ़े ना मन की इच्छाएं जानने की कोशिश की अबतक,यही वजह है कि उसके पापा ने फोन पर पूछा और बेटा हमें भी तो बताओ खुश तो हो ना, और कहां कहां घूमी , पापा की आवाज सुनकर सुमन के धैर्य का बांध टूट गया,वो फफक कर रो पड़ी, पापा बहुत परेशान हो गए, सुमन ने फोन काट दिया और अपने कमरे में आकर रोती रही, वो अपने पापा से क्या कहती उसके सपनों का महल टूट गया,कि आपने जहां मेरी शादी करवाई उन्हें

बहू नहीं बल्कि एक नौकरानी चाहिए थी ,वो रोती रही, कि उसकी सास ने दरवाजा खटखटाते हुए कहा ये क्या नाटक लगा रखा है, तुम रोकर क्या साबित करना चाहती हो कि तुम्हें अच्छा ससुराल नहीं मिला, तुम्हारे दो घंटे से फोन के पास ही बैठे हैं, उन्हें तुम्हारे मूंह से सुनना है कि तुम ठीक हो ,अब चलकर ढ़ंग से बात करो , सुमन ने आंसू पोंछते हुए कहा जी मां जी, और पापा को फोन पर बोली पापा मैं कहीं घूमने नहीं गयी ना अभी तक और आपने पूछा कहां कहां घूमी तो मुझे रोना आ गया, पापा ने राहत की सांस लेते हुए कहा बस इतनी सी बात,बेटा तूने तो मुझे ब्रा ही दिया था कि पता नहीं शायद तेरे साथ अच्छा सलूक नहीं होता, सुमन मुस्कुराते हुए बोली अरे पापा अब आप मेरी चिंता छोड़ दो, मुझे तो बहुत अच्छा परिवार मिला है 

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पर पापा को उसकी बातों से तसल्ली नहीं हुई वो टिकट कटा कर तुरंत अपनी बेटी से मिलने पहुंच गये, सुमन भी अपने पापा देखते ही उनसे बच्चों की तरह लिपट गई, 

उसके दादाससूर जी कहने लगे आपने लक्ष्मी बहू दी है हमें सुबह पांच बजे ही उठ जाती है सब नाश्ता खाना समय से सबको करवाती है और मेरी दवाइयां भी समय से देना नहीं भूलती, पापा हैरान थे ,बोले ये आप किसकी बात कर रहे हो मेरी सुमन तो ऐसी नहीं थी, मैं इससे एक ग्लास पानी मांगता था वो बोलती ,पापा मेरी नेलपालिश खराब हो जाएगी , कहते हुए पापा भावुक हो गए , और पूरा दिन बिताने के बाद उन्हें महसूस हुआ सुमन में कितना बदलाव आ गया,सारा दिन सर पर पल्लू रख कर काम करती , और फीकी मुस्कान से अपने पापा को जताने की कोशिश करती की वो बहुत खुश हैं, 

पापा भी उसे किस्मत के सहारे छोड़ भारी मन से घर लौट गए, और सुमन सबकी स्वार्थ पूर्ति करते करते एक मशीन बन गई,वो हंसना,रोना सब भूल गयी, उसे दिन का और रात का दो बार खाने की इजाजत थी और चाय भी एक बार सुबह और एक शाम, उसने भी नियती मान सब स्वीकार लिया, लेकिन समय ने करवट ली और राकेश का तबादला दिल्ली हो गया, वो वापस दिल्ली आई और अपनी जिंदगी को एक नया मोड़ दिया,हां वर्ष कुछ ज्यादा लग गये, लेकिन सुमन फिर से खिल उठी।

सुमन समय रहते ये जान गई कि इस स्वार्थी में अपने लिए स्वयं सोचना पड़ता है,आज वो एक मशहूर लेखिका है, अपने पापा का मान अपनी पहचान स्वयं बनाने वाली सुमन, जिसके गुणों की खुशबू उन लोगों तक भी पहुंची जिन्होंने अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए उसके अस्तित्व को दांव पर लगा दिया।

अर्चना झा ✍🏻

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