स्वार्थी संसार – अमित रत्ता : Moral Stories in Hindi

कल तक अम्मा बाबा बुलाने वाले लोग अब उन्हें बूढ़ा, बुढ़िया कहकर बुलाते थे। जो लोग एकदूसरे से पहले खाना लेकर पहुंच जाते थे आज उन्हें पीनी पिलाने की गुहार भी लगाते तो कोई न कोई बहाना मारकर निकल जाते देखते ही देखते दोनों की जिंदगी जानवरों से बदतर हो गई। इसके पीछे बजह था लोगो का स्वार्थ जिसपर पानी फिर गया था।

हमारे पड़ोस में एक बृद्ध दम्पति रहता था। उनके कोई औलाद नही थी। आमदनी के नाम पर या तो दोनों की सरकारी बुढ़ापा पेंशन थी या तीन बकरियां जिनके बच्चे पालकर बो बेचा करते थे। लेकिन उनके पास जमीन काफी थी जो कि उपजाऊ होने के साथ साथ सड़क के किनारे थी। हम प्यार से उन्हें दादा दादी बुलाते थे। दादी की नजर के साथ साथ खुद भी काफी कमजोर थी। दादा बकरियां चराकर लाता तो दादी खेतों में बने शेड्नुमा लकड़ी के डंडो पे बनाये गए एक चारपाई जैसी मेज पर पर बैठकर फसल की रखवाली करती थी।

उसको ज्यादा दिखाई तो नही देता था मगर बो टिन के डिब्बे को लकड़ी से पीटती रहती जिसकी आवाज से बन्दर पास न आते थे। बच्चे भी जाकर दादी के पास बैठ जाते थे दादी उन्हें अपने जमाने की बातें कहानिया बताया करती जिनको सुनने का बहुत आनंद आता और दादी की फसल की  रखवाली भी हो जाती थी। 

सबसे अच्छी बात ये थी कि उन्हें रोटी की चिंता नही थी क्योंकि गांव के लोगों में एक होड़ रहती थी कि आज उन्हें खाना सबसे पहले कौन देगा। कोई ताई कोई चाची कोई अम्मा कोई मौसी बुलाता था तो कोई मां बुलाकर उसे अपनापन जताता था।

खाना अक्सर उनकी जरूरत से ज्यादा आ जाता जितना खाना होता खा लेते बाकी बकरियों को खिला देते। गांव वालों का ये प्यार ये अपनापन यूँ ही नही था सबकी नजर उनकी जमीन पर थी उन्हें उम्मीद थी कि कभी न कभी मरने से पहले ये दोनों अपनी थोड़ी थोड़ी जमीन सबको बांट जाएंगे। कुछ भी था मगर दादा दादी की जिंदगी मजे में गुजर रही थी जो खाने का मन होता किसी को भी बोल देते तो शाम तक हाजिर हो जाता।

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गांव का एक आदमी शहर में रहता था पैसे वाला था ही एक दिन बो गांव आया शहर की मशहूर दुकान से ढाई सौ ग्राम बर्फी भी ले आया। शाम को उनके घर आकर बैठ कर हाल चाल पूछा बड़े प्यार से उसने बो बर्फी उनको दी बर्फी बहुत ही स्वाद थी दोनों ने खुश होकर खाई और उसको कितने ही आशीर्वाद दिए। अब बो आदमी जो सालों में आता था हर पन्द्रह दिन बाद आने लगा हर बार ढाई सौ ग्राम बर्फी ले आता और उनको खिला देता। अब दादी को तो जैसे लत सी लग गई थी बर्फी की बो पन्द्रह दिन निकालना भी उसके लिए मुश्किल होने लगा था। उस आदमी ने भी भांप लिया था कि अब उसका तीर निशाने पर लग चुका है।

इसबार बो घर तो आया मगर बर्फी नही लाया बो उनसे मिलने गया तो दादी की नजर उसके हाथों की तरफ ही थी कि कब उसका हाथ कोट की जेब मे जाए और बर्फी निकालकर उसे पकड़ाए उसके मुहं में पानी भर आया था । मगर जब उसे पता चला कि इसबार बर्फी नही लाया है तो उसके सपनो पर पानी सा फिर गया। तभी बो आदमी कहने लगा अम्मा परेशान मत हो मैं इस बार जल्दवाजी में इसलिए आया हूँ कि शहर में आंखों का मुफ्त इलाज हो रहा है कि कल मैं तुम दोनों को साथ ले जाऊंगा तुम्हारी आँखों का इलाज भी करवा दूंगा और शहर में जितनी चाहे बर्फी खाना जी भरके। 

थोड़ी सी न नुकर के बाद दोनों मान गए सुबह की बस पकड़कर बो लोग शहर चले गए। दस दिन बाद बापिस आए तो अम्मा काला चश्मा पहने थी उस आदमी ने उन्हें खूब खिलाया पिलाया और कहा कि अब वो उनका बेटा बनकर रहेगा तुम दोनों जिंदगी भर मेरे पास रहोगे आज से आप लोगो की सारी जिम्मेदारी मेरी होगी। ऐसे ही कई सपने दिखाकर सारी जमीन अपने नाम करवा ली उनको इस भरोसे में लेकर की बो सारी उम्र उनकी सेवा करेगा। गांव में जैसे ही ये बात पता चली तो सब खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे थे। और करते भी क्यों न आखिर पिछले दस पन्द्रह साल से वो बराबर उनकी सेवा कर रहे थे और आज अचानक कोई आया और सारी जमीन हड़प गया। 

हर कोई अपने स्वार्थ की बजह से उनकी सेवा करता था जब वो बजह ही खत्म हो गई तो भला अब उनसे किसी को क्या लेना देना था। अब खाना तो दूर कोई पानी भी पूछने को तैयार नही था। अब बो आदमी उन दोनों को ये कहकर शहर चला गया कि हर दस पन्द्रह दिन में वो आता रहेगा

और उनको राशन पानी रख दिया करेगा कुछ पैसे उन्हें पकड़ा दिए। शुरू शुरू में तो वो आदमी आता रहा मगर जैसे ही जमीन का इंतकाल बगैरह पीर हो गया उसके बाद धीरे धीरे उसने आना कम कर दिया अब महीनों गुजर जाते मगर वो न आता। अब दोनों को कोई पूछने वाला न था अब दादा रोटी बनाता तो दोनों मिलकर रूखी सुखी खाते। उनकी हालत वद से बदतर होती चली गयी। अब बो किसी से पैसे या कुछ सामान लाने को बोलते तो लोग टाइम न होने की बात कहकर टाल देते।

अब दादा दादी को समझ आ गया था कि ये जो जबर्दस्ती के रिश्ते बनाने वाले लोग थे ये सिर्फ जमीन के लिए आते थे। अब उन्हें कोई ताई चाची मौसी अम्मा कहकर नही बुलाता था हर कोई बुड्ढा या बूढ़ी कहकर बुलाते। कुछ ही महीनों में दादी चल बसी अब दादा अकेला रह गया। बो बर्फी वाला आदमी अंतिम संस्कार में भी नही आया तो गांव वालों ने जैसे कैसे अंतिम संस्कार कर दिया। अब दादा ने बकरियां भी बेच दी थीं अकेला खोखले रिश्तों पर लोगो को ज्ञान बांटता की कभी किसी पर भरोसा मत करना सब मतलब के रिश्ते हैं। मुझे याद है एक दिन सुबह जब बो देर तक घर के बाहर नही आया तो पड़ोस की आंटी ने जाकर देखा

तो उसका कमर तक का शरीर चारपाई पर था और ऊपर का शरीर नीचे लटका हुआ था उसके हाथ के पास पानी का गिलास था जिसका पानी गिरा हुआ था शायद आखरी बक्त में वो पानी पीना चाहता था मगर बो असफल रहा था। कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि इस स्वार्थी संसार मे कोई भी बिना बजह आपकी मदद नही करता हर किसी का कोई न कोई स्वार्थ होता है हर कोई आपको की गई मदद के बदले कुछ न कुछ बसूलना चाहता है।

                  अमित रत्ता

       अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश

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