स्वार्थ की भाषा – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi

नीरज..! श्वेता की शादी की तारीख तय हो गई है… 3 दिसंबर..! तुम लोग समय पर सारी तैयारी कर लेना… क्योंकि अगले दो महीने तो बस त्योहारों में ही निकल जाएंगे… इसलिए कनक को पहले ही भेज देना… श्वेता की सारी खरीदारी वह साथ कर लेगी… विमला जी ने फोन पर अपने बेटे नीरज से कहा 

नीरज और उसकी पत्नी कनक नीरज के काम के सिलसिले में बेंगलुरु में रहते थे… उनका एक 2 साल का बेटा बिहान भी था… इधर नीरज के माता विमला जी, पिता जगमोहन जी और बहन श्वेता अपने शहर भोपाल में रहते थे… 

नीरज:  मां..! आप चिंता मत करो… हम जब दिवाली पर आएंगे, मैं कनक और विहान को वहीं छोड़ आऊंगा.. फिर मैं शादी के 10 दिन पहले ही आ जाऊंगा… तब तक मैं अतुल भैया (नीरज के ताऊजी का बेटा) से कह दूंगा कि वह थोड़ा बहुत देख ले… देखना कैसे धूमधाम से शादी होगी हमारी श्वेता की… 

विमला जी:   एक और बात बेटा… पापा अब रिटायर्ड है और उनकी सारी जमा पूंजी इस घर को बनाने में और तेरे बेंगलुरु के फ्लैट लेने में चली गई… तो अब जो थोड़ी बहुत बची कुची सेविंग हैं, वह भी श्वेता की शादी में खर्च हो ही जाएंगे… ऐसे में अगर कुछ घटे बढ़े, तो तू संभाल लेना 

अब तक चहकता हुआ नीरज पैसों की बात सुनकर थोड़ा गंभीर सा हो गया और बस हां बोलकर, मैं बाद में करता हूं कह कर फोन रख दिया… इधर विमला जी भी हैरान और दुखी होकर मन ही मन सोचने लगी… नीरज के इस रवैया का क्या मतलब हो सकता है..? क्या वह श्वेता की शादी में हाथ नहीं बटाएगा..?

ठीक है अब जब वह फोन करेगा तो उसे अच्छे से पूछ लूंगी… शायद अभी कोई जरूरी काम आ गया होगा… विमला जी ने अपने मन को यह कहकर समझा तो दिया, पर उनका मन बस नीरज की इस बात पर लगा हुआ था, जिसे जगमोहन जी ने भांप लिया 

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जगमोहन जी:   क्या बात है भाग्यवान..? बेटी के विवाह की चिंता है या कोई और बात..? 

विमला जी:   आज मैंने नीरज को फोन पर सब बताया… वह बड़ा खुश भी हुआ… पर जैसे ही मैंने उससे पैसों की बात की… वह खामोश सा हो गया और फोन रख दिया… ना ही उसने ना बोला और ना ही हां… बड़ी दुविधा में हूं… अगर उसने हाथ बटाने से मना कर दिया तो, हम क्या करेंगे..? 

जगमोहन जी:   देखो विमला… हमने जब श्वेता को जन्म दिया तब क्या यह सोचकर जन्म दिया था कि उसकी शादी नीरज के जिम्मे होगी..? और ना ही नीरज हमारा आगे हाथ बटाएगा, इस भरोसे से उसका लालन-पालन किया…? फिर अब यह उम्मीद करना क्यों..? जिसने अब तक किया वही आगे भी करेगा…

हम श्वेता की शादी में थोड़ा कम खर्च करेंगे… फालतू के खर्च दिखावटी चीजों से बचेंगे, भगवान जब किसी घर में कन्या को भेजता है तो उसके विवाह की भी तैयारी वह कर देता है… तुम व्यर्थ ही चिंता करती हो 

विमला जी:   यह सब तो मैं समझ रही हूं… पर मामूली से मामूली शादी में भी अच्छा खासा खर्च हो जाता है और मेरे पास मेरे गहने और कुछ चांदी के बर्तनों के अलावा और है ही क्या..? 

जगमोहन जी:   श्वेता के नाम मैंने कुछ पैसे रखे थे जो अब उसकी शादी में काम आएंगे और किसी से कुछ उधार ले लूंगा.. तुम चिंता मत करो सब हो जाएगा… 

जगमोहन जी के बातों से विमला जी थोड़ी आश्वस्त तो हुई पर शायद शादी के बीत जाने तक माता-पिता का पूरी तरह से आश्वस्त होना असंभव है…

उस दिन के बाद से विमला जी जब भी नीरज को कॉल करती या तो नीरज किसी काम का बहाना बनाता है या फिर फोन कनक को दे देता… कनक भी इधर-उधर की बातें करके फोन रख देती… यह बात विमला जी ने जगमोहन जी को बताया,

तो इस पर जगमोहन जी ने कहा तुम अब उनसे श्वेता की शादी के बारे में कोई बात नहीं करोगी… बस हाल-चाल पूछ कर फोन रख देना… पहले उन्होंने दिवाली पर आने का वादा किया था पर वह भी विहान बीमार है कह कर मन कर दिया… 

विमला जी और जगमोहन जी समझ चुके थे कि बेटे के हाथ तो कोई मदद नहीं मिलनी… इसलिए उन्होंने खुद ही सारा इंतजाम शुरू कर दिया… शादी को बस 15 दिन बचे थे… जगमोहन जी ने नीरज को फोन किया… जिस पर फोन कनक ने उठाया तो जगमोहन जी ने कहा…. बहू…! जरा नीरज को फोन देना 

कनक:   पापा जी..! वह बाथरूम में है… आप मुझे बताइए ना… मैं उनको बोल दूंगी… जबकि नीरज कनक के बगल में ही खड़ा था 

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जगमोहन जी:   वह बहू.. शादी का कार्ड तुम लोगों के पते पर भेज दिया है तो कृपया करके आप सपरिवार शादी में जरूर पधारे और हां शादी और रिसेप्शन दोनों एक ही दिन पर होना है, तो ज्यादा पहले से आने की जरूरत नहीं… हमारे औकात से बाहर है इतने दिनों तक मेहमानों का आवभगत करना.. बस यही कहना था… कार्ड कल तक पहुंच ही जाएगा… उसमें सारी विधि का समय और तिथि लिखी हुई है… उसके अनुसार अगर हो सके तो आ जाना 

कनक:   पर पापा जी..? हम तो आ ही रहे थे और अपनों को कौन कार्ड देता है..? 

जगमोहन जी:   बहू..! अपने होते तो मैं भी आज कार्ड ना भेजता और तुम लोग भी मेहमानों की तरह पेश न आते… खैर छोड़ो हमें तो अपनों से ज्यादा गैरों का साथ मिला… वह लड़के वालों ने आधा खर्च मिलाकर शादी को करने का फैसला किया… जिससे हमें भी बहुत सहारा मिला… आप लोग समय पर आ जाना और अगर आने का मन है तो, बिना कोई तोहफे के आना 

नीरज भी वहीं खड़ा सब सुन रहा था… उसको बड़ा गुस्सा आया के पापा ने हमें मेहमान कहा… पर उसे अपने किए पर जरा भी पछतावा ना था… खैर शादी संपन्न हो गई पर नीरज और कनक नहीं गए… जगमोहन जी और विमला जी अब उसे फोन भी नहीं करते थे और ना ही वह… लगभग कुछ महीने बाद अचानक नीरज का फोन आता है और वह विमला जी से कहता है… कैसी हो मां..?

विमला जी:   मेरी छोड़ अपनी बता…? बता क्यों फोन किया..? 

नीरज:   आखिर अपने बेटे को मेहमान बता कर पराया कर ही दिया ना..? आपको पता भी है यहां कितनी महंगाई है..? कितनी मुश्किल से अपना ही खर्चा निकलता है..? ऐसे में आपने श्वेता की शादी का खर्च मुझ पर डालना चाहा..? मैं कहां से करता..? आप लोगों को भी तो समझना चाहिए था ना…? बस इस बात के चलते आपने-अपने बेटे से रिश्ता ही तोड़ लिया..? फोन स्पीकर पर था इसलिए जगमोहन जी ने विमला जी से फोन ले लिया और फिर  

जगमोहन जी:   तुझे श्वेता की शादी का पूरा खर्च नहीं मांगा था… अगर तू अभी कार ना लेकर अपनी बहन की शादी में थोड़ी बहुत मदद कर देता तो मुझसे ज्यादा तेरी बहन खुश होती… तुझे क्या लगता है तेरे बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है…? सब पता है हमें और आज तेरे फोन करने का कारण भी पता है… बहु दोबारा मां बनने वाली है इसलिए अब तुझे हमारी जरूरत है… क्योंकि बहू की मां तो है नहीं… विहान के समय जैसे

उसे यहां देखभाल मिला था तुझे दोबारा वही चाहिए… पर माफ करना बेटा हमने अब परोपकार करना बंद कर दिया है… बेटा सलाह तो तुम्हें पसंद नहीं… पर मेरी एक सलाह चाहो तो ले लेना…. जीवन सुख दुख का संगम है… आज जो सुखी है, वह कल दुखी भी होगा और जो आज दुखी है,

वह कल सुखी भी होगा… पर परिवार का अगर साथ हो तो सुख बढ़ जाता है और वही दुख घट भी जाता है… पर यह जो तुम आज की पीढ़ी हो ना, सिर्फ स्वार्थ की भाषा समझते हो… तो हम भी तुम्हारे माता-पिता है, स्वार्थी बना हमने भी सीख लिया है… यह कहकर जगमोहन जी ने फोन रख दिया 

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दोस्तों… आजकल रिश्ता बस स्वार्थ का रह गया है… एक जमाना वह था… जब शादी एक घर की बेटी की होती थी… रिश्तेदारों का तो छोड़ो… पूरा मोहल्ला उसकी जिम्मेदारी उठाने में लग जाता था… और इसी तरह शादी इतनी अच्छी तरीके से निपट जाती थी की लड़की के पिता को कुछ पता भी नहीं चलता था…

पर आजकल तो अपने सगे ही ऐसे पेश आते हैं… मानो शादी पर आकर भी उन्होंने एहसान ही कर दिया हैं…. क्योंकि तब लोग पढ़े-लिखे कम थे, पर इंसानियत कूट-कूट कर भरी थी और आज पढ़े-लिखे ज्ञानी लोग भरे पड़े हैं पर इंसानियत कोसों दूर…

धन्यवाद 

रोनिता कुंडु

#जीवन सुख दुख का संगम 

(मौलिक रचना)

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