स्वार्थ – खुशी : Moral Stories in Hindi

मदन ,गीता और राधा तीनों भाई बहन थे।पिताजी अनोखे लाल का काम कुछ ऐसा जमा नहीं था आज छोड़ कल पकड़ घर का खर्चा बड़ी मुश्किल से चलता।मां आशा देवी आस पड़ोस के कपड़े सिल कर कुछ कमआती ।बच्चे स्कूल में पढ़ते थे।मदन पढ़ाई में अच्छा था और उसका सपना था

कि वो कुछ पढ़ लिख कर अपनी मां को सुकून की ज़िंदगी दे।गीता पढ़ाई में ठीक थी और मां का घर काम और सिलाई में हाथ बांटती।राधा देखने में सुंदर उतनी ही नख़रीली घर का कोई काम नहीं करती। उसके सपने भी बड़े बड़े थे।वो सोचती की मेरी जिंदगी में कोई अमीर लड़का आए और मैं उससे शादी कर लूंगी।मदन की एक ऑफिस में नौकरी लग गई

।गीता ने दसवीं पास कर पढ़ाई छोड़ दी और घर संभालने लगी।राधा कॉलेज में जाने लगी सिर्फ सहेलियों से बाते करने घूमने और इस फिराक में की किसी अमीर लड़के से दोस्ती हो जाए।राधा बहुत स्वार्थी थी उसे बस खुद से मतलब रहता आज कपड़े चाहिए आज ये चाहिए मदन लाडली है छोटी है कह कर उसकी जरूरत पूरी करता।इधर एक दिन राधा कॉलेज पहुंची

अचानक उसकी टक्कर एक लड़के से हुई वो चिल्ला पड़ी अंधे हो आंखें नहीं है वो वहां से आई तो उसकी सहेली बोली पता है वो कौन है उसने कहा कौन यह विक्रम है मिनिस्टर राघव का बेटा राधा बोली ओह मन में सोचने लगी ये मैने क्या किया उससे तो संबंध जोड़ने थे मै लड़ बैठी।तभी उसके सामने विक्रम आया और बोला आपको लगी तो नहीं राधा बोली नहीं शायद मैं ज्यादा ही

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रिएक्ट कर गई।विक्रम देखने में इतना अच्छा नहीं था पर पैसे वाला था राधा को और क्या चाहिए था राधा ने विक्रम को रिझाने की कोशिश शुरू कर दी विक्रम भी ऐसी खूबसूरत लड़की देख कर पागल हो गया और कुछ दिनों में उसने अपने घर में जिद पकड़ ली कि शादी करूंगा तो राधा से राघव ने राधा की मालूमात निकल वाई

वो बोले एक फटीचर घर की लड़की हमारी बहु नहीं बन सकती यह लड़कि सिर्फ पैसों के लिए तुम्हारे पीछे है परंतु विक्रम कुछ सुनने को तैयार  ना था।उसकी जिद के कारण मां बाप राजी हो गए और विक्रम और राधा की शादी हो गई।राधा अब सातवें आसमान पर थी।विक्रम उसकी खूबसूरती का दीवाना था।अब वो अपने मायके भी ना जाती।

घूमती पैसा खर्चांति और ऐश करती बहन की शादी नहीं हुईं और भाई भी स्ट्रगल कर रहा था।इसी बीच अनोखे लाल का देहांत हो गया राधा खड़े खड़े आई और वहां भी दिखावा करती रही मुझे तो बिना ऐसी के चक्कर आ रहे है मै नहीं रुक सकती मै जा रही हूं।मां देखती रही कितनी स्वार्थी है ये संसार जिस मां बाप ने पैदा किया आज उन्ही के जनाजे में खड़े होने का समय नहीं है।

समय बीता राधा अपने स्वार्थ और अमीरी के नशे में चूर थी  ना वो अपनी बहन की ना ही भाई की शादी पर गई क्योंकि उनकी शादी में जाने पर उसकी इज्जत छोटी हो जाती। 

एक दिन बाजार में एक साड़ी की दुकान से राधा निकल रही थीं वहीं उसे अपना भाई और भाभी नजर आए भाई आगे बढ़कर बात करने आया पर राधा ने ज्यादा बात ना की।भाई ने बताया कि गीता की भी शादी हो गई उसके पति अध्यापक हैं और एक 2 साल का बेटा भी हैं।राधा के अब तक कोई संतान ना थी वो भी चाहती थीं

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कि उसके कोई बच्चा हो पर डॉक्टर जवाब दे चुके थे अगले दिन वो गीता का पता पूछ उसके घर पहुंची उसका बेटा इतना प्यारा था कि बस राधा के दिमाग में यह बात आ गई क्यों न मै इसका बेटा गोद ले लू कुछ पैसों का लालच दे उसने विक्रम से बात की विक्रम बोला देख लो तुम्हारी बहन है अपने स्वार्थ के लिए राधा ने गीता से मेल जोल बढ़ाया और

एक दिन अपने दिल की बात कह दी बोली बहन तू गरीब है अपना बेटा राजू मुझे दे दे मै इसे गोद लूंगी और पालूंगी तुम्हारा इस पर कोई अधिकार नहीं होगा।इसके बदले थोड़ा पैसा भी दे दूंगी ये बच्चा मुझे दे दे।गीता ने राधा का हाथ पकड़कर बाहर निकाल दिया और बोली मै तभी सोचूं की जो हमारी शक्ल भी नहीं देखना चाहती वो रोज मेरे घर क्यों आती है

तुम  स्वार्थी संसार में रहते रहते उस जैसी ही हो गई हो जैसे तुम्हारे ससुर सिर्फ नेतागिरी में अपना स्वार्थ खोजते है वैसे ही मेरे घर से निकलो हम कम कमाते है पर अपने बेटे को पालना जानते है।आज पहली बार राधा को ठोकर लगी थी वो अपने स्वार्थ में अंधी हो अपनी बहन से सौदा करने चल पड़ी।  घर आकर वो रोई पछताई पर अब क्या हो सकता था जो बोया था वही कटेगी ।

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी 

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