स्वाभिमान – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

  एक बात बोलूं राजीव,मैं चाहती हूं हम अपने घर मे अपने कस्बे में ही शिफ्ट कर ले।मेरा मन यहां नही लगता।मुन्ना के स्कूल की बस तो अब वहां भी आने लगी है,हमारा मुन्ना अब स्कूल बस से स्कूल आ सकता है।

        अचानक शिवि के मुख से ये बात सुन राजीव हक्का बक्का रह गया।शिवि क्या बोल रही है?जिस घर मे उसका जन्म हुआ,शादी से पूर्व का जीवन व्यतीत हुआ,उस घर के बारे में शिवि कह रही है कि यहाँ उसका मन नही लगता।पर राजीव उसकी मनःस्थिति समझ रहा था।उसने शिवि का हाथ अपने हाथ मे ले दबा दिया।

         राजीव अपने परिवार के साथ जब पहली बार शिवि को देखने गया तो उसे शिवि पहली ही नजर में भा गयी थी।मोहिनी सूरत मीठी आवाज और सलीके ने राजीव को मंत्रमुग्ध कर दिया था।शिवि को भी राजीव पसंद आया।तो दोनो का रिश्ता पहली बार मे ही तय हो गया।शिवि के पिता श्यामलाल जी एक सरकारी अधिकारी रहे थे,

ईमानदार रहे।ईमानदारी के कारण वे केवल अपने बेटे व बेटी को अच्छी शिक्षा ही दिला पाये और एक घर बना पाये।घर दुमंजिला बनवाया,जिससे एक मंजिल पर किराएदार को रख सके,जो निवृति के बाद अतिरिक्त आय का  साधन बन सके।ऐसा ही हुआ, रिटायरमेंट के बाद उन्होंने ऊपर का पोर्शन किराये पर दे दिया। 

      बेटा रवि अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर जॉब ग्रहण कर चुका था।उसे सरकारी आवास मिल गया था।इधर शिवि की शादी राजीव से तय हो गयी।श्यामलाल जी ने शान्ति की सांस ली कि बिटिया की शादी होते ही वे जिम्मेदारी से मुक्त हो जायेंगे।

       अच्छे मुहर्त में शिवि और राजीव की शादी संपन्न हो गयी।दोनो बहुत खुश थे।धीरे धीरे शिवि अपनी गृहस्थी में रम गयी।दो वर्ष के अंतराल में राजीव और शिवि को पुत्र रत्न की प्राप्ति भी हो गयी।

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     वर्ष में एक बार 15 दिन वास्ते शिवि अपनी माँ और बाबूजी के पास रहने को अवश्य जाती थी।रवि अपनी नौकरी में इतना रम गया था कि बाबूजी के पास वह बहुत ही कम आ पाता था।वे तो माँ और बाबूजी ही खुद उसके पास कभी भी चले जाते थे।श्यामलाल जी महसूस करने लगे थे कि बहू को उनका आना अधिक पसंद नही आता है।सो उन्होंने भी रवि के पास जाना न के बराबर कर दिया।शिवि मात्र 25 किलो मीटर की दूरी पर ही

पास के कस्बे में रहती थी।वह वैसे भी अपनी माँ और बाबूजी के पास उनकी दुख तकलीफ में आती भी थी और वहां रुक भी जाती थी।श्यामलाल जी को बिटिया शिवि और राजीव का बड़ा सम्बल मिला हुआ था।

       शिवि का बेटा भी अब पढ़ने जाने लगा था, वे उसे शहर में पढ़ाना चाहते थे,पर कोई साधन न होने के कारण उन्हें वही कस्बे में ही उसका दाखिला कराना पड़ा।सब ठीक ही चल रहा था कि  शिवि की माँ का फोन आया कि उसके पिता को दिल का दौरा पड़ा है और पड़ोसी की मदद से उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट कराया है।शिवि और राजीव तुरंत ही हॉस्पिटल पहुंच गये।शिवि वही रुक गयी।पर ईश्वर की मर्जी के आगे किसकी चलती है,

तीसरे दिन श्यामलाल जी स्वर्ग सिधार गये।रवि भी आ गया था,अंतिम संस्कार की सभी रश्में स्वाभाविक रूप से रवि ने ही पूर्ण की।तेहरवीं के दौरान सब रिश्तेदार एकत्रित हुए।माँ चूंकि अकेली रह गयी थी,सो उन्हें रवि को अपने साथ ले जाना पड़ा।श्यामलाल जी अपनी वसीयत में घर शिवि को देकर गये थे,बाकी जो उनका बैंक बैलेंस था

वह रवि को मिलना था।राजीव ने घर लेने से मना कर दिया,उसका कहना था कि इस पर अधिकार रवि का है,शिवि का नही।सबका कहना था फिलहाल शिवि को ही घर की देखभाल करनी चाहिये।शिवि के मन के कोने में यह स्वार्थ  छुपा था कि वे अगर इस घर मे रहेंगे तो उनका मुन्ना भी शहर में पढ़ने लगेगा।

      कुछ दिनों के बाद राजीव शिवि उस घर मे रहने लगे,मुन्ना का दाखिला भी वही स्कूल में करा दिया गया।चूंकि श्यामलाल जी की मृत्यु अभी हुई थी इसलिये  अधिकतर रिश्तेदारो का आवागमन शिवि के पास उस घर मे ही था।

        समस्या तब खड़ी हुई जब कोई भी रिश्तेदार आता तो वह बात बात में घर के बारे में जरूर पूछता और अधिकतर सभी का एक ही कमेंट होता-और क्या जब शिवि ने ही उनकी सेवा की तो घर  तो उसे ही मिलना चाहिये था।रवि ने क्या किया?

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        इस बात से राजीव अंदर तक घायल हो जाता, वह सोचता कि क्या हमने माँ और बाबूजी की देखभाल इस घर को प्राप्त करने के लिये की थी।रिश्तेदारो का उनके पक्ष में जस्टिफिकेशन करना भी उनके आत्मसम्मान को चोट ही पहुचाता।राजीव में एक प्रकार की अपराध भावना घर करने लगी थी,वह खिन्न रहने लगा।वह अपने मन की बात शिवि को भी नही बता पाता,उसे लगता कि उसका जन्म ही इस घर मे हुआ है, तो उसका लगाव घर के प्रति स्वाभाविक रूप से होगा ही।

    पर ऐसा था नही शिवि भी अपने को अपराधी सा महसूस करने लगी थी।उसे लगता कि सब  उसे देख रहे है देखो इसने कैसे घर पर कब्जा कर लिया।जब ये विचार उसके लिये असहनीय हो गये तो उसने राजीव से अपने कस्बे वाले घर मे ही जाने की इच्छा जता दी।राजीव को यह सुनकर आश्चर्यजनक प्रसन्ता हुई।

         अगले दिन से ही उन्होंने अपने सामान को समेटना प्रारम्भ कर दिया।छुट्टी के दिन उन्होंने अपने घर मे शिफ्ट कर लिया।रवि को सूचित कर दिया गया और घर की चाबियां उसे भेज दी गयी।उसकी ओर से कोई विशेष प्रतिक्रिया नही आयी।हाँ कुछ दिनों बाद रवि ने घर के ऊपर व नीचे वाले दोनो पोर्शन किराये पर दे दिये।

      राजीव व शिवि को इस सबसे कोई मतलब नही था।उन्हें आत्मिक शांति प्राप्त हुई थी,उस घर से पीछा छुड़ा कर,आखिर वे अपना आत्मसम्मान बचाने में सफल जो हो गये थे।

बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित

#आत्मसम्मान साप्ताहिक विषय पर आधारित कहानी:

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