स्वच्छंद परिंदा – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

 कितना बदल गया है मुन्ना,अपने बाप का इतना तिरस्कार?कैसे रहूं इसके साथ?प—र- इस उम्र में जाऊं भी तो कहाँ?किसी वृद्धाश्रम में ही जाना ठीक होगा।हां-ये ही ठीक रहेगा।पर कौनसे वृद्धाश्रम में-कैसे पता लगाऊं?ऐसे ही सोचते सोचते शांतिशरण जी की आंख लग गयी।सोते सोते भी सपने में वही मुन्ना का व्यवहार ,घटना चित्रपट के समान तैर रही थी।

       ये क्या बाबूजी?आपको कितना मना किया है कि आप किचन में नही आयेंगे, पर आप मानते ही नही।जरा निगाह बचती नही कि आप यही दिखायी देते हैं।किचन में आते हैं तो कुछ भी उठा कर खाने लगते हैं।चलिये, ये डिब्बा वही रखिये और अपने कमरे में जाइये।

     टोकता तो पहले भी था,पर आज उसकी आवाज में जो तल्खी थी,वह पहले कभी नही देखी थी।मुन्ना के इस व्यवहार ने ही शांतिशरण जी का दिल तोड़ दिया।वे उस मुन्ना की उपेक्षा नही सह सकते थे,जिसकी परवरिश के लिये शांतिशरण जी ने अपने जीवन को झौंक दिया था।

          शांतिशरण जी एक विद्यालय में क्लर्क की नौकरी करते थे।दो पुत्री और एक पुत्र संतान रूप में पाये थे।सीमित आय में उन्होंने परिवार को चलाया था।चूंकि विद्यालय में क्लर्क थे,इस कारण बच्चो की फीस माफ हो जाती थी,पर उच्च शिक्षा का खर्च तो खुद ही वहन करना था।किसी प्रकार तीनो बच्चो को ग्रेजुएट कराया।

अब शांतिशरण जी के सामने दोनो बेटियों की शादियां और मुन्ना की प्रोफेशनल शिक्षा के खर्च की समस्या थी।दोनो बेटियों की उम्र में एक-सवा वर्ष का ही अंतर था।दोनो की शादी भी इसी अंतर में करनी थी।बेटियो के लिये जो बचाकर रखा था,वह आज की महंगाई के समय मे एक बेटी की शादी के लिये भी पर्याप्त नही था।

बड़ी बेटी कुसुम को देखने लड़के वाले आये थे,उन्हें कुसुम पसंद भी आ गयी,उन्होंने हालांकि दहेज की मांग तो नही की,पर शादी शान शौकत से किसी होटल में हो,आव भगत में कोई कसर नही रहनी चाहिये, यह उनकी इच्छा थी।बाराती भी लगभग 250 आने थे।शुरू में तो शांतिशरण जी को खुशी हुई कि दहेज मुक्त शादी हो रही है,

पर जब होटल में 250 -300व्यक्तियो की शादी के बारे में खर्च की पूछताछ की तो शांतिशरण जी के पावँ नीचे से जमीन ही सरक गयी।उस खर्च को वहन करने की उनकी औकात नही थी।कुसुम को भी लड़का पसंद था,वह बहुत खुश थी।शांतिशरण जी सोचते वे कितने अभागे हैं जो बेटी को भी खुशी नही दे सकते।उन्होंने किसी भी प्रकार इस शादी कराने का मन बना लिया।उन्होंने अपने पैतृक घर को गिरवी रख कर्ज ले कर कुसुम की शादी कर दी।

     एक माह बाद ही छोटी बेटी सुमन ने अपनी माँ को अपने प्रेम के विषय मे बताया।सुमन ने ये भी बताया कि अनुज कल ही घर पापा से मिलने आयेगा।कुसुम की शादी करने के बाद इतनी जल्दी दूसरी बेटी की शादी के बारे में शांतिशरण जी सोच भी नही सकते थे।

दूसरी शादी पर होने वाले खर्च तथा बेटी के प्रेम विवाह की जिद ने उन्हें तनावग्रस्त कर दिया।अगले दिन ही अनुज अपनी माँ व पिता के साथ उनके घर आया।अनुज के साथ ही उसके माता पिता भी सुलझे विचारो के थे।मध्यम वर्ग से सम्बंधित अनुज के माता पिता ने दहेज रहित सादी शादी करने की इच्छा जताई।

अनुज एक ही नजर में सबको भा गया था,ऊपर से दहेज रहित सादी शादी के प्रस्ताव पर सोचने की बात ही नही रह गयी थी।कुल 11 बाराती लेकर अनुज के पिता लेकर आये और सुमन भी अपने घर चली गयी।दो दो बेटियो की जिम्मेदारी से मुक्त होने पर शांतिशरण जी अपने को काफी हल्का महसूस कर रहे थे।

        अब मात्र मुन्ना की शिक्षा की जिम्मेदारी शांतिशरण जी के ऊपर थी।मुन्ना का चयन अहमदाबाद में बिजिनेस मैनेजमेंट के लिये हो गया।फीस काफी अधिक थी,मुन्ना ने कहा भी पापा जरूरी थोड़े ही है,ये पढ़ाई करनी,कहाँ से आयेंगे इतने पैसे,पापा सामान्य शिक्षा से भी भविष्य बनाया जा सकता है,आप विश्वास रखे मैं आपको निराश नही करूँगा।

पर शांतिशरण जी अपनी जिम्मेदारी से पीछे हटने को तैयार नही थे।वे बोले,अरे मुन्ना क्यो चिंता करता है,तेरा बाप जिंदा है अभी,कैसे हार मान लूँ।तुझे अहमदाबाद में ही पढ़ना है।शांतिशरण जी ने अपना घर जो कुसुम की शादी में गिरवी रखा था,उसे बेच दिया और खुद एक कम किराये के मकान में रहने चले गये।

मुन्ना का दाखिला हो गया।आगे भी दो वर्षो के खर्च पूरा करने की तपस्या थी।धीरे धीरे अपनी भविष्य निधि से कर्ज लिया, साथ ही अन्य पार्ट टाइम जॉब भी अतिरिक्त रूप से रात्रि में करना प्रारंभ कर दिया।शांतिशरण जी मुन्ना की शिक्षा को एक चुनौती के रूप  में ले रहे थे।

रात दिन के परिश्रम और बढ़ती उम्र शरीर पर अपना प्रभाव दिखाने लगे थे।लेकिन इस सबकी परवाह न करते हुए शांतिशरण जी मुन्ना के भविष्य निर्माण में अपने को झौंक रहे थे।उनकी तपस्या रंग लाने लगी थी,मुन्ना का एक अच्छी कंपनी में काफी अच्छे वेतन पर कैंपस प्लेसमेंट हो गया था।कोर्स पूरा होने पर मुन्ना ने अहमदाबाद में ही जॉब जॉइन कर लिया।

उसने वही एक फ्लैट किराये पर ले लिया।मुन्ना सबसे पहले अपने माता पिता को अपने पास ले आया।उसने अपने पिता से साफ कह दिया,पापा बस बहुत हो चुका,अब आप केवल आराम करेंगे।अब सब जिम्मेदारी मेरी।शांतिशरण जी बेटे द्वारा जताई भावना से अभिभूत हो गये।उन्हें लगा उनका परिश्रम,समर्पण सफल हो गया।

        अहमदाबाद जाने पर शांतिशरण जी ने वही सीनियर सिटीजनस के पास बैठना शुरू कर दिया।मुन्ना अपने पिता के गिरते स्वास्थ्य से चिंतित था,उसने उनका बॉडी चेकअप कराया।तो उनको डाइबिटीज निकली।उनका खाना पीना नियंत्रित हो गया।दवाइयां शुरू हो गयी।इसी बीच मुन्ना की माँ स्वर्ग प्रस्थान कर गयी।अकेले रह गये शांतिशरण जी।मुन्ना की शादी भी हो चुकी थी।अब उसका समय स्वाभाविक रूप से पत्नी में भी विभाजित हो गया था।

      शांतिशरण जी को पहले से ही किचन में जाकर कुछ न कुछ खाने की आदत थी।सो वह आदत अब भी थी।डाइबिटीज के कारण मुन्ना ने पापा से कहा,पापा अब आप यह किचन में जाने की आदत छोड़ दो।इसको शांतिशरण जी मुन्ना के व्यवहार में परिवर्तन का सूचक मान रहे थे।पर जब भी मौका लगता वे किचन में चक्कर लगा आते और कुछ न कुछ खा लेते।जब मुन्ना उन्हें वहां देखता तो उन्हें टोकता।

इससे शांतिशरण जी की चिढ़ बढ़ती जा रही थी।उस दिन कही से आये मिठाई के डिब्बे को ही शांतिशरण जी खोल लिया और एक मिठाई के पीस को मुँह में डालने ही वाले थे कि मुन्ना आ गया और उसने जोर से बोलकर उन्हें रोक दिया।यही आकर शांतिशरण जी का धैर्य जवाब दे गया।उन्हें लगा मुन्ना बदल गया है।वे वृद्धाश्रम जाने की योजना बनाने लगे।

        अचानक लगी प्यास से आंखे खुली तो देखा कि पानी तो पास में रखा ही नही,वे पानी लेने उठे तो देखा मुन्ना के कमरे की लाइट जल रही है,पति पत्नी परस्पर बात कर रहे हैं।शांतिशरण जी के मन मे आया जरूर उससे पीछा छुड़ाने की योजना ही बना रहे होंगे।इन्हें ये नही पता कि इतना अपमान और तिरस्कार के बाद मैं खुद यहां नही रहने वाला। पापा शब्द सुन उनके पावँ ठिठक गये,वे जानने की कोशिश करने लगे कि मेरे बारे में क्या बाते हो रही हैं?

     मुन्ना अपनी पत्नी से कह रहा था,देखो माधवी-पापा की आज ही रिपोर्ट आयी है, उनकी शुगर काफी बढ़ गयी है,मुझे चिंता हो गयी है,पापा को थोड़ी थोड़ी देर में कुछ न कुछ खाने की आदत है,मिठाई तो उन्हें बेहद पसंद है।मैंने आज पापा को मिठाई खाने से रोक तो दिया,पर मुझे अच्छा नही लगा।

मैं कल सुगरफ्री मिठाई लाकर रख दूंगा।तुम ऐसा करना कि इसी प्रकार के शुगर रहित अन्य कुछ और चीजे लाकर रख दो, जिससे पापा सबकुछ खा सके।और हाँ पापा की इच्छा रामेश्वरम जाने की थी,अबकी बार शनिवार को हम पापा को रामेश्वरम और कन्याकुमारी लेकर  जा रहे है,तुम सब व्यवस्था कर लो,मैंने छुट्टियों के लिये अप्लाई कर दिया है।

       मैं कितना निकृष्ट हूँ जो अपने मुन्ना को ही पहचानने में भूल कर रहा था।उनकी आंखों से आंसू तो अब भी बह रहे थे।पर ये आंसू खुशी के थे,अपने बेटे के लिये गर्व के थे।आंसुओ को पौछते हुए शांतिशरण जी अपने बिस्तर पर जा लेटे।आज उनके मन पर कोई बोझ नही था।स्वछंद परिंदे की तरह वे आकाश में ऊंची उड़ान भर रहे थे।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

#अपमान शब्द पर आधारित कहानी:

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