“मना किया था तुम्हें… मत लादो इतना सामान… पर तुम्हारी तो जैसे कुछ समझ में ही नहीं आता… अब उठाओ तो अपना बैग… उठा पाओगी… कहां आया तुम्हारा बेटा… बड़ी शान से बोल रही थी… आपको नहीं उठाना पड़ेगा… मेरा बेटा खुद उठा कर ले जाएगा… अब क्या हुआ…?”
” सामान क्या… वह तो मुझे भी नहीं आने को बोला… उसका क्या करूं… मां का जी है… दो साल से मिली नहीं… जो जो मन में आया डालती गई… मैंने थोड़े ही समझा था कि वह लेने नहीं आएगा… पता नहीं कौन सा काम करता है…!”
कोमल जी अपने बेटे विवेक से मिलने शहर आई थीं… दो साल हो गए विवेक घर नहीं गया था… नौकरी और पढ़ाई दोनों साथ-साथ कर रहा हूं… यही बोलकर हर बार घर आने की टाल जाता था… इसलिए इस बार कोमल जी ने जिद ठान दी कि…” मैं ही जाऊंगी… देख तो आऊं एक बार की… कैसे रहता है… कहां रहता है… क्या करता है…?”
जगन्नाथ जी ने तो बहुत मना किया… वे अपने बेटे की हरकतों से वाकिफ थे… पर मां का मन नहीं बदल सके… पूरे हफ्ते भर से बेटे की पसंद की चीजें बना बनाकर बैग में भरती रही थी कोमल… जिस दिन ट्रेन पर बैठी उसी दिन फोन किया विवेक को कि…” कल स्टेशन पर सुबह आ जाना… हम आ रहे हैं…!” जानती थी पहले से बोलने से टाल जाएगा… विवेक को तो जैसे झटका लग गया…” अरे मां इतनी क्या जल्दी है… मैं खुद आऊंगा ना…!”
” नहीं बेटा…हम तो ट्रेन में सवार हो गए…तुम्हें स्पेशल सरप्राइज देना था.… वैसे तो तुम मना ही कर देते… ट्रेन तो खुल गई… बस अब तो सुबह लेने आ जाना…!”
दो घंटे स्टेशन पर इंतजार करने के बाद विवेक आया… सामान देखकर झुंझला उठा…” क्या मां इतना सामान क्यों लाद लाई…!”
” अरे बेटा कुछ नहीं बस खाने पीने का है…!”
” खाने पीने का… मैं क्या यहां भूखा मर रहा हूं…!”
मां उसका मुंह ताकती रह गई… उसके चेहरे पर जरा भी खुशी का भाव नहीं था… या यूं कहें वह उन दोनों के अचानक आ जाने से चिढ़ा हुआ था… पूरे रास्ते चुप रहा… जितना कोमल जी पूछतीं बस उसी का हां ना में जवाब देता… बस इतना ही कहा…” इतनी जल्दी क्या थी आने की… आना ही था तो आराम से बात करके आती…!”
इस पर जगन्नाथ जी ने भी कोमल जी को घूरा… “देखा मना किया था तुम्हें…!”
इसके बाद विवेक कुछ नहीं बोला… विवेक का घर एक बढ़िया फ्लैट था… 3 बीएचके खूबसूरत घर… बढ़िया सोसायटी में भी…इतना बढ़िया घर देखकर तो कोमल का मन प्रसन्न हो गया…” कितना सुंदर घर है बेटा… तभी तो तुझे गांव आने का मन नहीं करता.… इतनी सुख सुविधा छोड़ कहां गांव के पुराने घर में मन लगेगा…!”
सुबह ही काम वाली सब काम कर गई थी… नाश्ता खाना भी बना कर गई थी… कोमल जी को तो कुछ करना ही नहीं था… विवेक उन दोनों को घर पहुंचा फिर थोड़ी देर बाद बाहर निकल गया… ना कोई बातें ना लाड़… कोमल जी का जी अंदर से दुखी हो रहा था… पर ऊपर अपने पति को दिखाकर खुश होने का नाटक कर रही थीं… नहीं तो चार बातें उनसे भी सुननी पड़ती…
चार दिन हो गए उन दोनों को आए पर विवेक ने कभी भी दस मिनट बैठकर उनसे बातें नहीं की…मां के प्यार से… जतन से लाए सामानों को खोलना खाना तो दूर… हाथ भी नहीं लगाया…
कोमल जी का मन अब बैठे-बैठे पूरी तरह उकता गया था… कोई काम नहीं दिन भर रूम में पड़े रहो… आज उन्होंने सोच लिया था कि विवेक के आते ही शादी की बात करेंगी… बहू आ जाएगी तो घर सूना नहीं रहेगा… और कितना कमाएगा… इतना बढ़िया घर है… नौकर चाकर हैं… किस चीज की कमी है… शादी हो जाए तो हमें भी कोई चिंता नहीं होगी…
विवेक भी आज सोच कर आया था…” मां कितने दिन हो गए.… आप लोगों की वापसी का टिकट कब है…!”
” वह तो नहीं लिया बेटा… इस बार तो तेरा घर बसा कर ही जाऊंगी…!”
” क्या… यह क्या बकवास है…!”
” बकवास नहीं बेटा… अब किस लिए देर करनी… अब तो सब बढ़िया है… ब्याह कर ले… कोई पसंद है तो वही बता दे…!”
विवेक जैसे फट पड़ा…” हां पसंद है… और मेरे साथ यहां रहती भी है… पर यह आपके स्पेशल सरप्राइज के चक्कर में बेचारी चार दिनों से होटल में पड़ी हुई है…पहले बता देते तो उसे इतनी परेशानी तो नहीं उठानी पड़ती…!”
जगन्नाथ जी और कोमल जी दोनों एक दूसरे का मुंह देखने लगे कोमल बोली…”हम तुम्हें सरप्राइज देने आए थे तुमने तो हमें सरप्राइज दे दिया… क्या कहते हो विवेक… बिना शादी के साथ रहते हो बेटा… शादी कर लो ना… किस चीज की कमी है… उसी से कर लो…!”
” नहीं करनी अभी शादी… ना उसे करनी है… ना मुझे… जब करनी होगी तब आपको बता देंगे…हम दोनों अभी अपने करियर पर फोकस कर रहे हैं… वैसे भी शहरों में यह आम बात है… लोग ऐसे ही रहते हैं…!” बोलकर विवेक झटके से बाहर चला गया…
अब कोमल जी के समझ में सारी बात आ गई… क्यों विवेक इतना उखड़ा हुआ था… क्यों उसे उनका आना नहीं पसंद आया… क्यों वह दिन भर घर के बाहर ही रहता है…क्यों वह गांव नहीं आना चाहता… उन्होंने जगन्नाथ जी का हाथ पकड़ते हुए लड़खड़ाते कदमों को थाम कर कहा…” चलिए… जितनी जल्दी हो सके अपने घर चलें…!”
उनके कमरे के एक तरफ उनके लाए हुए सारे सामान बैग में इसी तरह पड़े हुए थे…और सामान ही क्या था उनका… एक छोटे से बैग में दो चार कपड़े…
दूसरे दिन दोनों जाने को हुए तो विवेक बैग उठाकर बोला…” चलिए मैं स्टेशन छोड़ आता हूं…”
कोमल जी ने अपना बैग छुड़ाते हुए कहा…” नहीं बेटा कोई जरूरत नहीं… मुझे नहीं पता था तुम हमारे साथ ऐसा व्यवहार करोगे… मेरा सामान मैं खुद उठा लूंगी… और जो तुम्हारे लिए लाया था…उस बैग में जो सामान है… वह अपनी कामवाली को दे देना… बड़ी मेहनत से बनाया था सब खराब हो रहा है… और हां तुम जब चाहो तब गांव आ सकते हो… अपने घर… हमारे पास कुछ भी ऐसा नहीं है… जो हमें अपने बेटे से छुपाना पड़े…!”
स्वलिखित
रश्मि झा मिश्रा
#मैंने कभी नहीं सोचा था तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार करोगे
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