माँ, तुम ठीक तो हो ना?आज रक्षाबंधन है, पर मेरी तो कोई बहन ही नही है, अब तक हमेशा कलाई सूनी ही रही है माँ, दूसरे लोगो के हाथ मे राखी और बाजार में अपनी बहनों के लिये खरीदते लोगो को देख, मेरा तो दिल मुरझाया ही है।पर माँ इस बार मेरा हाथ राखियों से भरा है।
सरहद पर हम सैनिकों को देश की अनेक बहनों ने राखियां भेजी है, हमने मिलकर एक दूसरे को राखियां बांध ली है, आज- आज, माँ मेरा हाथ सूना नही है, पर माँ बताओ तो अपने मन में अपनी किस अनजानी बहन की प्रतिमा अंकित करू—
गलवान घाटी में तैनात सैनिको को आज रक्षाबन्धन पर घर बात करने की अनुमति कमाण्डर से मिली थी।रमेश अपनी माँ से ही बात कर अपना अनुभव सुना रहा था।उसके मन कसक तो यही थी कि किसकी छवी वो बहन रूप में अपने मन मष्तिष्क में बनाये? उसने राखियों से भरे हाथ को खाली कर उन राखियों को अपने सामान के साथ सँजो कर रख लिया बस एक राखी को अपने हाथ में बंधे रहने दिया।
समय किसका इन्तजार करता है, वो तो अपनी स्पीड से दौड़ता ही है।सर्दियां प्रारम्भ होने को थी, रमेश को घर जाने का अवकाश मिला।रमेश और उनके साथियो ने तय किया,कि पता नही भविष्य में इधर आना हो या ना हो,सो दो दिन लेह में व्यतीत करके तब घर जायेंगे।
लेह में घूमते हुए रमेश को एक स्थान पर शोरगुल सुनाई दिया।उत्सुकतावश देखने पर पता चला कि एक दबंग व्यक्ति एक लड़की को घसीट रहा है।स्वाभाविक रूप से एक सैनिक के लिये यह असहनीय था, फिर भी रमेश ने धैर्यपूर्वक उस दबंग लग रहे व्यक्ति को रोका ,
इस बीचबचाव में उसकी कलाई पर बंधी एकमात्र राखी भी खुलकर नीचे गिर गयी,जिसका रमेश को पता भी नही चला।बीचबचाव से ज्ञात हुआ कि उस लड़की के पिता ने उस दबंग से रुपये ब्याज पर उधार लिये हुए थे,लड़की के पिता ने मूल चूका दिया था
,भारी ब्याज नही चुका पा रहा था, सो वो दबंग उस लड़की के पिता से झगड़ रहा था और लड़की अपने पिता को बचा रही थी।रमेश ने उनका फैसला करा दिया और आगे न झगड़ने की हिदायत दे वहाँ से चलने लगा तो उस लड़की ने रमेश को रोक कर
उसकी कलाई से गिरी राखी को रमेश के हाथ में बांध दिया।रमेश अवाक रह गया।रमेश के हाथ यकायक उसके सिर पर आ गये।भावुक हुए रमेश ने उसका नाम पूछा तो उसने बताया येन।रमेश ने येन से पूछा तुम्हे पता है इस धागे के बांधने का मतलब?उसने सिर हिलाकर मना कर दिया।रमेश ने उसे राखी का मतलब समझाते हुए कहा येन अब तुम मेरी बहन हो गयी हो।येन सुनकर बहुत खुश हुई।
अगले दो वर्षों तक येन की राखी डाक द्वारा आती रही और एक दिन उसका शादी का कार्ड आया, उसका होने वाला पति बैंक अधिकारी था।रमेश येन की शादी में जाना चाहता था पर माँ की तबियत खराब हो जाने के कारण जा नही पाया।
येन का अपनी शादी हो जाने के बाद फोन आया बोली भय्या शादी तो हो गयी पर आपका और माँ का आशीर्वाद तो मिला ही नही, रमेश ने येन को सांत्वना दी कि वो उससे मिलने आयेगा जरूर।
पर ये क्या येन तो अपने पति के साथ प्लेन में बैठ सीधे दिल्ली रमेश के घर अगले दिन ही आ गई, ऐसा सरप्राइज तो सपने में भी नही सोचा जा सकता था।अवाक सा रमेश किंकर्तव्यविमूढ़ हो बस येन को देखता ही रह गया।येन बोली भैय्या क्या अंदर आने को नहीं कहोगे?रमेश ने लपक कर येन को बाहो में भर लिया और जोर से चिल्लाया मां ओ मां देख तो तेरी बेटी आयी है, मेरी बहन——!
बालेश्वर गुप्ता
पुणे(महाराष्ट्र)
मौलिक एवं अप्रकाशित