आज छोटे बेटे का गृहप्रवेश है ।खूब जोर शोर से तैयारी चल रही है ।मै भी बहुत उत्साहित हूं ।दोनों बेटों ने अपनी अपनी राहें चुन ली है ।बड़ा अमर मैनेजमेंट की पढ़ाई करके अपना बिजनेस संभाल रहा है ।छोटा अमित इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके पूना में नौकरी कर रहा है ।एक मल्टी नेशनल कंपनी में ।हमे और क्या चाहिए ।दोनों बच्चों की शादी हो गई है ।लड़की भी मैंने अपने पसंद की ही लाई ।बेटे बहुत आज्ञाकारी हैं
तो किसी ने मेरी पसंद को ठुकराया नहीं ।पढ़ी लिखी,सुन्दर, शालीन कन्या है दोनों ।मुझे तो अपने हाथों पर लिए रखती है ।लेकिन मन का बावरा पंछी कई साल पीछे लौटना चाहता है ।उस रात मेरे जीवन की अंधेरी रात बन गई थी जब अपने ससुराल में सबको खिला पिला कर निश्चिंत हो कर अपने दोनों बच्चों को लेकर सो गयी थी ।गरमी का दिन था।पति का बिस्तर बाहर
ओसारे पर था।सबकुछ ठीक ही चल रहा था ।सुबह हुई ।पति को सुबह पानी पीने की आदत थी ।मै पानी लेकर गई तो वह अपने बिस्तर पर नहीं थे।” कहाँ गये इतनी सुबह सुबह “? कहीँ गये होंगे, आ जायेंगे ।यह सोच मै निश्चिन्त हो गई थी ।लेकिन पहर बीत गया ।उनका कहीँ पता नहीं था।मेरी घबराहट बढ़ती गई ।अपना दुख परेशानी किससे कहती ।घर में सौतेली सास थी
जिन्होने कभी अपना प्यार नहीं दिया हमे।थोड़ी देर बाद बिस्तर समेटने लगी तो तकिया के नीचे एक कागज का टुकड़ा मिला।मेरे पति का लिखा हुआ ।” मैं घर छोड़ कर जा रहा हूँ, कह नहीं सकता, कब लौटेंगे ” बच्चे तुम्हारे भरोसे हैं, तुम माँ हो तो जरूर खयाल रखोगी “। मै माथा पकड़ कर बैठ गयी ।अब क्या होगा? कौन मेरे बच्चो की देखभाल करेगा?
कहाँ से भोजन का,शिक्षा का प्रबंध होगा? ससुर जी बाहर डी एस पी थे ।लेकिन वे अधिक तर बाहर ही रहते थे।कभी साल में एकाध बार आते थे।घर में सास की तानाशाही चलती थी।घर खानदान तो हमारा बहुत नाम वाला था।अच्छी खेती-बारी भी थी।जन मजदूर लगे रहते थे ।किसी चीज की कमी नहीं थी।लेकिन जिसका पति नहीं हो तो वह औरत बेचारी हो जाती है ।
मै भी बेचारी,दिन भर सिर पर पल्ला रखे अपने काम में लगी रहती ।घर भर की सेवा और काम के बदले हमे सासूमा के तरफ से मोटा अनाज,जो खाने लायक नहीं होता, गाय के सानी में देने लायक होता वही मिलता, और बिस्तर के बदले टाट मिल जाता ओढ़ने और बिछाने के लिए ।मै थोड़ी बहुत पढ़ी लिखी तो थी।पर उतनी नहीं कि कुछ कर सकूं ।
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और फिर देहात का रहन सहन अलग ही था।खैर सोच लिया जिंदगी है तो ” दुख सुख का संगम ” चलता रहता है ।ईश्वर पर भरोसा था।जीवन की गाड़ी पटरी पर दौड़ती रही ।बच्चे कुछ बड़े हुए ।किसी तरह थोड़ी बहुत पढ़ाई हो गई घर में ही ।लेकिन जिंदगी चलाने के लिए जितना चाहिए था उसकी कमी थी।फिर गांव वाले एक सज्जन के सहयोग से दोनों बेटे बाहर चले गये ।
शहर में ।एक भाई छोटा मोटा नौकरी करने लगा, बड़ा भाई पढ़ाई में आगे बढ़ने लगा ।वह पढ़ाई में तेज था।नौकरी से कुछ पैसे मेरे लिए भी भेज देता ।बहुत तकलीफ के दिन थे हमारे लिए ।फिर बड़े की तरक्की होती गई तो उसने छोटे भाई को भी पढ़ाई में आगे बढ़ने का मौका दिया ।इस तरह दोनों आगे बढ़ने लगे।ईश्वर हमारे साथ थे।तभी सबकुछ संभव हुआ ।
मेरे पति का कुछ पता नहीं चला कि कहाँ हैं, किस हाल में है? मैंने सिंदूर लगाना छोड़ दिया ।एक बार बच्चे मुझसे मिलने आये ।घर में सासूमा ने स्वागत में फिर मोटे अनाज की रोटी परोस दिया ।तभी अचानक मेरे ससुर जी का पदार्पण हुआ ।” यह क्या किया तुमने? बच्चों को कैसी रोटी खिला रही हो” ? ससुर जी दहाड़ उठे।” घर में आटा खत्म हो गया है ” सासूमा की आवाज सुनाई दी ।
ससुर जी अन्दर गये।आटे से भरी हुई कनस्तर लाकर आँगन में पटक दिया ।” यह क्या है “? फिर उस रात घर में पूरा घमासान मचा ।दूसरे दिन मै अपने बेटे के साथ शहर आ गयी ।एक कमरे का छोटा सा किराये का घर था।पर सुख शांति थी।अमर और अमित दोनों मेहनती थे।पढ़ाई और नौकरी साथ साथ करते ।मैंने भी घर में एक सिलाई मशीन खरीद लिया ।मै सिलाई अच्छा करती थी
मेरी भी मेहनत रंग लाई ।आमदनी होने लगी ।अब एक बेटा बिजनैस मैनेजमेंट, और दूसरा इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर चुका था ।और अच्छी जगह लग गया था ।समय अच्छा चलने लगा तो दोनों की शादी भी कर दिया ।अब हम तीन कमरे के मकान में चले गये थे ।लेकिन अमित को संतोष नहीं था ।वह अकसर कहता ” अम्मा, अपना एक घर तो होना चाहिए था
” और दौड़ धूप कर उसने जमीन खरीद लिया ।फिर हम सभी के मेहनत से घर भी बन कर तैयार हो गया ।सब तैयारी चल ही रही थी कि खबर मिली मेरे पति पटना स्टेशन पर बीमारी के अवस्था में पड़े हुए हैं ।दोनों भाई पिता को लाने के लिए तैयार हो गये ।मेरा सर्वांग जल उठा ।” जब बच्चों को पिता की जरूरत थी ,खाने की समस्या थी,शिक्षा की समस्या थी
कपड़े की समस्या थी तब तो आप सबको छोड़ कर चले गये ।अब किस मुंह से आयेंगे? फिर मेरे परिवार ने मुझे समझाया ” जाने दो ना अम्मा ” यह उनकी सोच थी” हमे तो अपना कर्तव्य करना चाहिए ही ।मै क्या करती ।चुप हो गई ।दूसरे दिन मेरे पति लौट आये, बेटों के साथ ।सिर झुकाये हुए ” मुझे माफ कर दो नन्दिनी, मै तुम सब का गुनाहगार हूँ
वे जार जार रो रहे थे।बहू ने इशारा किया कि मै उन्हे कुछ न कहूँ ।मैंने भी मन को तसल्ली दी ।जीवन है तो सुख दुःख का संगम है ।सबकुछ निभाना पड़ता है ।एक बार फिर खुशियाँ हमारे पास आने को थी तो हमें खुश रहना चाहिए अपने परिवार के साथ ।मै बहुत भाग्यशाली रही कि मेरा परिवार अच्छा मिला ।और आज बेटे का गृहप्रवेश है ।
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मैंने अपने आंसू पोछ लिए जो खुशी के थे।तभी बहू की आवाज सुनाई दी ” मम्मी, आइये, आपका घर बुला रहा है ” देखा तो द्वार पर नेम प्लेट लगा था । बड़े बड़े अक्षरों में ।””नन्दिनी विला””। मैं खुशी से निहाल हो गई ।मैंने अपने बेटे बहुओं को गले लगा लिया ।पति दूर खड़े मुस्कुरा रहे थे जैसे कह रहे हों “देखा नन्दिनी, मैंने कुछ नहीं किया इनके लिए, लेकिन देखो सबकुछ तुम को मिल गया ।आखिर बेटा तो मेरा ही है ना ” ” हाँ पापा, “,कहकर दोनों बेटे अपने पिता के पैरों पर झुक गये ।
समाप्त—उमा वर्मा, राँची, झारखंड ।स्वरचित, मौलिक ।