माँजी आज कितनी देर तक सो रही हैं आप ,टाइम देखा है ,पिंकी को स्कूल बस पर छोड़ने जाना है आपको ,भूल गई क्या आप?
मालती आँखों को मलती हुए हड़बड़ातीं सी उठी,देखा चाय का कप हाथ में लिए सिप करते हुए उनकी बहू रेखा का तीखा स्वर उनके कानों में सुनाई दिया।
चाय पीने की इच्छा तो उनकी भी हो रही थी,लेकिन रेखा का आदेश पालन न करने का नतीजा भलीभाँति जानती थी कि शाम को नमक मिर्च लगा कर उनकी शिकायत अपने पति से करेगी और फिर बेटा भी उनकी क्लास लगा देगा।मालती ,को आर्डर देकर रेखा अपने योगा क्लास के लिए निकल गई हाँ जाते जाते सास को काम बताना नहीं भूली ।सब्ज़ी काट दीजिएगा ,दाल बना कर मेरा व अपने बेटे का टिफ़िन रेडी कर दीजियेगा।योगा क्लास से आकर मुझे ऑफिस के लिए निकलना है ।हम लोगों के लिए कुछ फल भी काट कर रख दीजियेगा।और हाँ पिंकी को स्कूल बस में बिठाकर जल्दी घर आज़माइयेगा,ताकि बाक़ी के काम समय से पूरे कर सके।
मालती जी का आज एकादशी का व्रत था,सोचा अपने लिए साबूदाने की खिचड़ी बना कर चाय के साथ खा लेंगी।पिंकी को छोड़कर आई तो सोचा पहले एक कप चाय पीकर सुस्ती दूर करके फिर काम करेगी।
रसोई में जाकर देखा तो दूध का पतीला एकदम ख़ाली था।फिर पास के बाज़ार से जाकर दूध लाई और अपने लिए चाय बनाकर पीने लगी।
जल्दी से नहा धोकर कुछ देर पूजा की फिर रेखा के आदेशानुसार काम निबटाने लगी,काम करते करते ही समय का पता नहीं चला,पिंकी का स्कूल से लौटने का समय हो गया था।सोचा पिंकी को वापस लाकर ही अपने लिए साबूदाने की खिचड़ी बना लेंगी।
घर वापस आने पर पिंकी को हाथ मुँह धुलाकर कुछ खाने को दिया फिर रसोई मे अपने लिए खिचड़ी
बनाने चली गई ।रसोई में जाकर देखा तो साबूदाना का डिब्बा ख़ाली था ।फिर दो आलू उबाल कर उनको भून कर चाय पीकर अपना व्रत पूरा किया। टी वी पर भजन सुनने लगी तभी बहू बेटे ने घर में प्रवेश किया,क्या माँ आप यहाँ आराम से बैठकर इतना ऊँची आवाज़ करके भजन सुन रही है, पास पड़ौस के लोगों का तो ख़्याल कीजिए,आपको शहर में रहना है तो यहाँ के तौर तरीक़े सीख ने होंगे।
मालती जी मन ही मन घुट कर रह गई,सोचने लगी कि जिस बेटे को अपनी माँ से बात करने की तमीज़ नहीं है बही आज उनको शहर में रहने के तौर तरीक़े सिखाने की बात कर रहा है।ख़ैर वे बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहतीं थीं,सो टीवी बन्द करके चुपचाप अपने कमरे में जाकर लेट गई।
पति के साथ बिताए आनंद के क्षण किसी रील की तरह उनकी आँखों के आगे घूमने लगे।परंतु ईश्वर की मर्ज़ी के आगे किसका ज़ोर चला है आजतक,दुख सुख का रचयिता वही तो है।सुख के दिन बीत गए तो ये दुख के दिन भी बीत ही जाएँगें ।पर कब भला ,अब बहू रेखा के फ़रमान पूरे करते करते थक चुकीं हैं वे परंतु अपना मन हल्का करें तो किसके साथ । यहाँ मुंबई में तो न कोई उनका परिचित है न कोई सगा सम्बन्धी।
बस मन में ईश्वर को याद करती ,पति की याद में आंसू बहती कब सो गई पता ही नहीं चला।मन में ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि हे प्रभु इस जीवन से छुटकारा दिला दे,किसी तरह या अपने पास बुला ले।कहते हैं कि यदि सच्चे मन से प्रभु से कुछ माँगा जाए तो वे अपने भक्तों की पुकार अवश्य सुनते हैं।
यही करिश्मा मालती जी के जीवन में हुआ ।एक दिन पिंकी को स्कूल से वापस लाकर लौट रही थीं कि पीछे से किसी ने उनको नाम लेकर पुकारा,पहले तो मालती जी ने ध्यान नहीं दिया कि यहाँ उनको कौन जानता है जो नाम लेकर पुकारेगा,और भला यहाँ उनका नाम मालूम भी किसको है।लेकिन जब दोबारा एक बार फिर वही स्वर कानों में पड़ा तो उनकी पोती पिंकी ने कहा दादी माँ आपको कोई पुकार रहा है,पीछे मुड़कर देखा तो उनके बचपन की सहेली सुधा थी जो उनको पुकार रही थी।
सुधा उनको देख कर पास आई फिर दोनों सखियाँ एक दूसरे से लिपट कर रोने लगी। तू यहां कैसे,फिर मालती जी ने संक्षिप्त में अपनी दुख भरी कहानी सुधा को कह सुनाई,पिंकी भौचक सी अपनी दादी की कहानी सुन रही थी ।उम्र में सिर्फ़ सात साल की थी लेकिन अपनी माँ के दुर्व्यवहार को देखती व समझती थी,कि किस तरह उसकी माँ दादी के साथ व्यवहार करती है और खाने को सिर्फ़ रूखा सूखा व बचा हुआ बासी खाना देती है।पिंकी कुछ कर नहीं पातीं थी मन ही मन सोचती दादी कितना काम करती है और मुझसे कितना प्यार भी करती है फिर भी माँ पता नही दादी के ऊपर हमेशा चीखती चिल्लाती रहती है और पापा वे भी तो सब कुछ देख कर अनजान बने रहते हैं। मालती की सखी ने उनका फ़ोन नम्बर ले लिया था कि मैं कल तुमसे बात करती हूँ,समझ ले तेरे दुख के दिन बीत गए अब सुख से रहने के दिन आगये हैं ।तू सच कह रही है क्या सुधा ।दूसरे दिन जव मालती पिंकी को स्कूल से वापस लेकर लौट रही थी तो सुधा से मुलाक़ात हुई ।सुधा ने कहा कि हम पाँच सखियों का एक गुरप है हम कल सिरडी साईं बाबा के मन्दिर जा रहे हैं तू चाहे तो हमको जॉइन कर सकती है,फिर आगे का कार्यक्रम मिल कर बताती हूँ।सारी बातें सुनने के बाद मालती जी ने कहा कि मैं अपने बहू बेटे से पूछ कर बताती हूँ।पिंकी सारी बातें सुन रही थी कहने लगी दादी माँ आप तो घर में सबसे बड़ी हैं ,फिर आपको किसी से पूछने की क्या ज़रूरत है फिर माँ आपके साथ व्यवहार भीतों ठीक से नहीं करतीं । पिंकी से मुँह से ऐसी बातें सुनकर मालती जी ने पिंकी को कहा ,बेटे अपनी माँ के बारे में ऐसा नहीं कहते।
घर वापस आकर मालती जी ने एक बैग में अपने कपड़े रखें और पैन पेपर लेकर बेटे के नाम पत्र लिखा कि बेटे मैं अब और तुम लोगों के पास नहीं रह सकती,मैं अपनी बचपन की सखी सुधा के साथ सिरडी जारही हूंऔर अब शेष जीवन उन लोगों के साथ ही बिताऊँगी,जहां कुछ क्षण का सुख तो मिलेगा।
दूसरे दिन सुबह ही सबके उठने से पहले मालती ने घर छोड़ दिया हाँ एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा ।नियत स्थान पर उनकी सखी सुधा अन्य सखियों के साथ उनका इन्तज़ार कर रही थीं।कुछ देर में सिरडी जाने बाली बस आ गई सभी हंसती चहकती बस में बैठ गई।सुधा ने मालती को खिड़की की साइड बिठाया और खुद उनकी बग़ल में आकर बैठ गई ।
खिड़की से आती ठंडी हवा से मालती की लटे उड़ रही थी लेकिन चेहरे पर एक असीम सुख की अनुभूति थी।
फिर सुधा ने मालती को अपनी पाँचों सखियों की आपबीती बतलाई कि किस तरह वे सब मिलती गई और एक कारवाँ वन गया।हम सबमें कोई न कोई हुनर है हम सब एक फ़्लैट में रहते हैं और अपने हुनर को एक व्यापार का नाम देकर अपनी ज़िंदगी हँसी ख़ुशी गुज़ारते हैं ।हम साल में दस महीने कमाई करते हैं फिर शेष दो महीने तीर्थ स्थान पर घूमने निकल जाते है।अब हमारे इस समूह में तुम्हारा स्वागत है।
मालती जी को सुधा की बातें सुनकर बहुत अच्छा लगा ।सोचने लगी चलो कुछ देर से ही सही ईश्वर ने मेरी पुकार सुन तो ली।इस बात को पाँच साल हो, चुके हैं मालती जी अपनी सखियों के साथ हंसी ख़ुशी ज़िन्दगी बिता रही हैं अब उनके जीवन में सिर्फ़ सुख ही सुख है। बस ज़िंदगी सुख दुख का संगम ही तो है।धूप छाँव की तरह ये दोनों हमारी ज़िंदगी में आते जाते रहते हैं।
स्वरचित व अप्रकाशित
माधुरी गुप्ता
नई दिल्ली ७६