चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात, यह कहावत आज रीता पर सटीक बैठ रहा था। बेचारी ने अपने जीवन मे चार दिन का पति सुख प्राप्त किया और आज वह जब उसकी विधवा बनकर रो रही है, चिल्ला रही है, बार बार बेहोश हो रही है, अपने पति का नाम ले लेकर पुकार रही है तो लग रहा है जैसे सारी प्रकृति उसके साथ सुर मिला रही है। किसी के पास सांत्वना के शब्द नहीं है। राजाराम जी अपनी ही सोच मे डूबे है कैसे आज से तीन महीना पहले उनके घर मे ऐसी ही चहल पहल थी परन्तु रुदन की जगह मंगल गीत थी।
घर के बड़े बेटे का विवाह था। चारो तरफ खुशियाँ बिखरी थी। उनकी पत्नी पड़ोशियों और रिश्तेदारो के साथ मिलकर तिलक, हल्दी, मड़वा – मटकोड़ के गीत गा रही थी। बहू घर आई। उसने घर को अपनी उपस्थिति से जीवंत कर दिया जो की दोनों बेटों के नौकरी पर चले जाने से बुझ सा गया था। राजाराम और उनकी पत्नी की जैसे वर्षो की तपस्या के फल मे बहू प्राप्त हुई हो वैसी प्यारी और संस्कारी थी रीता। रीता का स्वभाव बहुत मिलनसार था जिसके कारण गाँव की सारी लड़कियां दिनभर आकर उसके पास बैठी रहती
और भाभी, भाभी करती रहती। रीता भी सबको प्यार और आदर देती थी। गाँव की बड़ी बुजुर्ग भी आते तो वह उन्हें प्रणाम करती आदर से बात करती थी। उसके इन्ही गुणों के कारण आज उसके ससुर जी को अपने बेटे के मरने का उतना दुख नहीं था जितना कि बहू के विधवा होने का था। सोच रहे थे, हे भगवान! हमारे नियति मे बेटे की जुदाई लिखी थी तो तीन महीना पहले ही उसे मृत्यु प्रदान कर देते, परन्तु यह दुख क्यों दें रहे हो? बेटी से भी प्यारी बहू का दुख तो मुझसे नहीं सहा जाएगा। तभी एक सिपाही ने आकर कहा चलिए
सर मेजर साहब की अंतिम विदाई का समय हो गया। उन्हें गुमसुम देखकर फिर उसने कहा धीरज रखिये सर, नहीं तो मेजर साहब का बलिदान लज्जित होगा। आपको तो गर्व करना चाहिए कि आपका बेटा देश कि रक्षा करते हुए शहीद हुआ है। शोक मत कीजिए, चलिए ख़ुशी ख़ुशी सर को सम्मान के साथ विदा कीजिए।सिपाही के बोलने पर उनकी तंद्रा टूटी और वे उसके पीछे पीछे चलने लगे। सारे काम यथा रीति से हो गया। सारे रिश्तेदार अपने घर चले गए. कोई कितना दिन किसी के घर रुक सकता है? दुख भी इतना कठिन था
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कि कोई धैर्य नहीं दें सकता था उन्हें स्वयं ही अब धीरज रखना था। छोटा बेटा जो कि इंजीनियर था और मुंबई मे रहता था वह भी कुछ दिन रहकर मुंबई चला गया। शादी के वक़्त भी उसे चार दिन की ही छुट्टी मिली थी इसलिए बहूभोज के दूसरे दिन ही वह चला गया था इसलिए भाभी से उसका ज्यादा मेलमिलाप नहीं था तो उसके रहने से भी रीता के दुखो मे कोई खास अंतर नहीं पड़ना था। राजाराम जी का बड़ा बेटा यानि रीता का पति फौज मे मेजर था। शादी के वक़्त उसे भी दस दिनों की ही छुट्टी मिली थी
इसलिए वह भी शादी के चार दिन बाद अपनी पोस्टिंग पर चला गया था जहाँ से सीधे उसकी लाश ही आई थी। पहले भी घर मे रीता और उसके सास ससुर ही रहते थे लेकिन तब घर मे रौनक थी परन्तु बड़े बेटे की मृत्यु के बाद वही घर राजाराम जी को काट खाने को दौड़ता था। पहले की तरह आज भी गाँव की बेटियां आती थी परन्तु रीता बस उनकी बातो का जबाब सिर्फ हाँ और ना मे देती थी। रीता की हँसी तो कही खो ही गई थी। आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहा था। दिन सुख के हो या दुख के बीत ही जाते है
,इसीतरह देखते देखत छह महीना बीत गया। बीच बीच मे छोटा बेटा भी आते जाते रहता था। कुछ दिनों बाद राजाराम जी की बड़ी बहन उनसे मिलने आई। रीता उनका आदर सत्कार पहले की तरह ही कर रही थी परन्तु अब उसके मुँह पर वैसी रौनक नहीं थी जिसे देखकर उन्हें बहुत ही बुरा लगता था। एकदिन उन्होंने मौका देखकर बात छेड़ दी.। उन्होंने कहा आजकल रीता कितना उदास रहती है। माना की विपत्ति बड़ी है पर जिंदगी भी बहुत लम्बी है,इसतरह से कैसे कटेगी?
राजाराम जी ने कहा ठीक कह रही हो दीदी। मैंने भी इस पर बहुत विचार किया। तो क्या पाया उसकी दीदी ने बीच मे ही टोका। मै सोच रहा हूँ कि समधी जी को बुला कर बहू को उनके साथ भेज दूँ और कह दूँ कि बहू को किसी तरह का कोर्स कराकर वे कोई नौकरी मे लगा दें ताकि उसका समय आराम से कट जाय। सास ने भी कहा क्या करे दीदी ऐसी बहू तो बहुत भाग्यवान को मिलती है और एक हमारा भाग्य देखिए मिली हुई बहू को फिर मायके भेजना पड़ रहा है। इसपर उनकी बहन ने कहा
तो बहू को भेज ही क्यों रहे हो? क्या करे दीदी हमारे बाद उसका कौन ख्याल रखेगा? दोनों ने एकसाथ कहा। मुझे समझ मे नहीं आ रहा है कि तुम लोग किस जमाने मे जी रहे हो? बहू पसंद भी है उसकी चिंता भी है पर जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहते हो। नहीं दीदी ऐसी बात नहीं है हम तो यही चाहते है कि बहु हमारे पास ही रहे।जब यही चाहते हो तो फिर उसका विवाह अपने छोटे बेटे मनोज से करवा दो और उसे अपनी बहू के रूप मे उसे अपने पास ही रखो। यह सुनकर सकूचाते हुए राजाराम जी ने कहा यह क्या कह रही
हो दीदी समाज वाले क्या कहेंगे, बहू के माता पिता तैयार होंगे और सबसे बड़ी बात मनोज और बहू इसबात के लिए तैयार होंगे? हमें समाज की ख़ुशी देखनी है या अपनी बहू की, और उसके माता पिता भला क्यों मना करेंगे? समाज वाले हो सकता है कुछ दिन बात बनायगे फिर सब ठीक हो जाएगा। मनोज से मैंने बात कर ली है वह तैयार है उसके बाद ही तुमसे बात करने आई हूँ। अब चुपचाप दोनों की शादी करवाओ और दोनों को लेकर तुम दोनों भी मुंबई चले जाओ। कभो कभी गाँव मे आते जाते रहना। अब ज्यादा सोचो मत सही मायने मे तम्हारे बेटों को तुम्हारी तरफ से यही सच्ची श्रद्धांजलि होंगी।
आँसू बन गए मोती
लतिका पल्लवी