स्त्रियां कहां बुद्ध हो पाती हैं!! – ऋतु यादव : Moral Stories in Hindi

सीमा जी  शाम को टहलने पार्क निकली तो देखा सोसाइटी की सभी महिलाएं झुंड बनाकर चर्चा में व्यस्त थी। सीमा जी 3 महीने बाद बेटी के पास से अमेरिका रहकर लौटी थी। पहुंचते ही उन्हीं के ब्लॉक की सत्यवती बोली, “और बताइए कैसा रहा बेटी के यहां का विदेश भ्रमण?” वे कुछ कह पाती उससे पहले ही एक अन्य महिला, “अरे उन्हें बता तो दो उनकी पड़ोसन क्या गुल खिला रही है?” तभी श्रीमती वर्मा, “बहन जी, आपको पता भी है आपके बाजू वाले फ्लैट में रहने वाली मिसेज तनेजा, मिस्टर तनेजा को छोड़कर चली गई हैं?” सीमा जी की स्थिति काटो तो खून नहीं जैसी थी। 

इतने में सत्यवती बोली “आपकी तो परम सखी थी ना मिसेज तनेजा ? उनके बीच कोई अनबन थी क्या ? और थी भी तो अब बुढ़ापे में भागने की उन्हें क्या सूझी । कहीं कोई चक्कर तो नहीं था उनका?

सीमा जी को बिना मिसेज तनेजा से बात किए , इस बारे में चर्चा करना उचित नहीं लगा। वे सिर्फ इतना ही कह वहां से उठ चली कि मुझे तो पता नहीं मैं आज सुबह ही बेटी के पास से आई हूं।

सोसाइटी की महिलाओं की चर्चा बदस्तूर जारी थी। 

वहां से उठ सीमा जी पार्क के चक्कर लगाने लगी इस दौरान उन्होंने मिसेज तनेजा को एक दो बार फोन भी लगाया परंतु लगा नहीं।

सीमा याद करने लगी, जब उन्होंने इस सोसाइटी में नया-नया फ्लैट लिया था और पड़ोसन के रूप में हमउम्र मिसेज तनेजा मिली। चूंकि दोनों के बच्चे भी एक सी उम्र के थे तो वह भी साथ खेला करते एवं मिसेज तनेजा और सीमा जी भी साथ में पार्क में टहल लिया करती। 

कभी ज्यादा मन खोलकर बात नहीं करती थी मिसेज तनेजा। वैसे भी कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत थी तो समय कम ही मिलता था उन्हें। सोसाइटी की अन्य महिलाओं का तो कहना था कि बड़ी घमंडी हैं  परंतु उनका व्यवहार सदैव सीमा जी के लिए बड़ी बहन और सह्रदया के रूप में ही रहा। 

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इस कारण सीमा जी उनकी स्थिति से अनजान नहीं थी। बातों बातों में कई बार मन हल्का करने के लिए मिसेज तनेजा बताती थी कि कहने को तो पति का अपना व्यवसाय है परंतु बच्चों की फीस, घर बाहर की जिम्मेदारियां सभी मिसेज तनेजा ही उठाती थी। अगर वह कभी पैसे मांगती भी तो भी मिस्टर तनेजा का कहना था ,”क्यों तुम्हारे पास नहीं हैं क्या? बल्कि उल्टे वे ही मिसेज तनेजा से बिजनेस बढ़ाने के बहाने से पैसे ऐंठते रहते थे। 

शुरू शुरू में तो मिसेज तनेजा स्वयं ही सारी जिम्मेदारियां उठाती गई ,परंतु जब कभी मानसिक एवं सामाजिक रूप से भी उन्हें पति की जरूरत महसूस होती तो, मिसेज तनेजा ने स्वयं को अकेला ही खड़े पाया। 

एक दिन कितना रोई थी मिसेज तनेजा कि उनके  लिए तो छोड़िए कभी मिस्टर तनेजा ने बेटी के बारे में भी चिंता नहीं की। एक बार जब  ट्यूशन से आते समय उसे कुछ आवारा लड़कों ने छेड़ दिया तो मिस्टर तनेजा का कहना था, शक्ल देखी है तुम मां बेटी ने अपनी ? तुम्हें कौन छेड़ेगा? वैसे भी तुमने ही बिगाड़ रखा है इसे, क्या जरूरत है ऐसे लड़कों से मुंह लगने की या अधिक बात करने की इसने भी कुछ किया ही होगा तभी उनकी इतनी हिम्मत हो गई। और अब अगर बात हो भी गई है तो इसे आई गई कर भूल जाओ वरना अपनी ही बदनामी कराओगी। 

उस दिन मिसेज तनेजा को लगा कि पति उनके लिए तो छोड़ो कभी पिता की भूमिका भी अच्छे से नहीं निभाएंगे। 

असलियत तो जबकि यह थी कि मिस्टर तनेजा इतने स्वार्थी, भीरू और अपनी ही दुनिया में मग्न थे कि वो न कभी मर्द होने की जिम्मेदारियां उठा पाए न ही पति एवं पिता होने की। 

चूंकि अच्छे घर से ताल्लुकात रखते थे इसीलिए मिसेज तनेजा से उनका विवाह हो गया और सास ससुर ने भी इसके साथ ही इतिश्री समझी। 

मिसेज तनेजा घर बाहर बच्चों की जिम्मेदारियां में बहुत व्यस्त रहती, परंतु फिर भी सदैव सकारात्मक रवैया रखती कहती, “मैं तो शुक्र मांगती हूं भगवान का कि मेरे पास नौकरी है और अच्छी नौकरी है। शायद इसीलिए उसने मुझे इतना काबिल बनाया ताकि मैं ,अपना एवं अपने बच्चों का अच्छे से ख्याल रख सकूं एवं इस आदमी को बर्दाश्त करने की ताकत रख सकूं।”उन्हीं की मेहनत थी की बेटा- बेटी आईआईटी करके जर्मनी में सेटल हो गए थे। 

उनके जाने से पहले जब मिसेज तनेजा से बातचीत हुई थी तो वह बता रही थी  कि देखो सीमा मैंने पूरा जीवन औलाद के लिए इस आदमी के साथ निकाल दिया परंतु अब और अधिक सहना मुश्किल हो रहा है। अभी भी यह दिन-रात शराब में डूबा रहता है और मुझ पर हाथ भी उठा देता है।सारे जीवन तो मैं केवल इसीलिए इसके साथ रही कि कम से कम बच्चों को सामाजिक तौर पर सम्मान की दृष्टि से देखा जाएगा परंतु अब रिटायरमेंट के बाद मेरा मन करता है कि सब छोड़कर कहीं वृंदावन चली जाऊं और भक्ति में लीन हो जाऊं ।

पेंशन से इतना पैसा मेरे पास सदैव रहेगा ही कि मैं अपना जीवन सुख और शांति से गुजार सकूं ।बच्चों को अब मेरी आवश्यकता नहीं है वे दोनों ही बहुत समझदार, संपन्न एवं अपने जीवन में खुश हैं। उनके हंसते खेलते जीवन को मैं अपनी टेंशन बताकर  बर्बाद नहीं करना चाहती। और क्योंकि उन्हें मेरी जरूरत नहीं है

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इसलिए मैं उन पर बोझ भी नहीं बनना चाहती।मेरी सब जिम्मेदारियां अब पूरी हो गई हैं तो मैं भी चाहती हूं कि अब सुकून से रहूं। इस आदमी के पीछे तो मुझे लगता है सारा जीवन इसी प्रकार निकल जाएगा। कभी प्यार से, कभी गुस्से से और तो कभी मार से यह तो मेरे पास जो है उसी को छीनने में लगा रहता है एवं अपनी शराब और अय्याशी में लुटा देता है। 

सीमा जी की तंद्रा तब टूटी जब पड़ोसन सत्यवती बाजू में आकर बोली के कहो ना सीमा तुम्हें कुछ पता है क्या इस बारे में?सीमा जी केवल इतना ही कह पाई कि देखो हर किसी के जीवन में कोई ना कोई वजह होती है परंतु हम सभी महिलाएं अब जब खुद इस उम्र में पहुंच रहे हैं

तो हमें किसी भी अन्य महिला को आलोचनात्मक दृष्टि से देखने से बचना चाहिए । वैसे भी एक स्त्री तो किसी भी उम्र की हो गृहस्थ जीवन में तो उसके चारों पल्ले कीच में ही रहते हैं, इसीलिए तो स्त्रियां कभी बुद्ध नहीं हो पाती।जरूर उनकी कुछ मजबूरियां रही होंगी ,जिस कारण से उन्होंने ऐसा फैसला लिया वरना मैंने उन्हें सदैव एक सुलझी हुई एवं समझदार महिला के रूप में पाया है। 

अभी भी अन्य पड़ोसिनों की खुसर फुसर जारी थी कि सीमा के तो अमेरिका जाकर विचार बदल गए हैं। देखो अब क्या-क्या देखना बाकी है, वहां तो सुना है कि औरतें 60 की उम्र में भी जवान आशिकों के साथ नया घर बसाती हैं। फिर भी सीमा जी ने केवल मुस्कुराकर इतना ही कहा कि कोई क्या जाने पीर पराई, 

जिसके साथ बीतती है वही जानता है ।कम से कम अगर हम मिसेज तनेजा के बारे में कुछ जानते नहीं हैं तो हमें उनके बारे में अफ़वाहें फैलाने से बचना चाहिए। इतना कह सीमा जी चली गई परंतु उनके मन में एक खुशी थी कि मिसेज तनेजा जो अपनी औलाद के मोह जवानी में सब सह गई, कम से कम प्रौढ़ अवस्था में तो शांति और सुकून से अपना मन मुताबिक जीवन जी पाएंगी।

लेखिका 

ऋतु यादव 

रेवाड़ी (हरियाणा)

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