सोने के कंगन - खुशी
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सोने के कंगन - खुशी

रमा चार भाई बहनों में सबसे छोटी थी।पिताजी रेलवे में थे और दिल्ली में उनकी पोस्टिंग थी। रमा की बड़ी बहन विद्या उसके पति महेश MR थे।उसकी शादी बॉम्बे में हुई।उससे छोटी निर्मित उसकें पति अपने पारिवारिक व्यवसाय से जुड़े थे। रमा अभी पढ़ रही थी।भाई यमन इंजीनियरिंग पूरी करने वाला था और उसने दिल्ली में अप्लाई किया और पूना में भी।सब सही चल रहा था कि पिताजी रामनाथ जी की रिटायरमेंट हुई और अगले दो दिन बाद वो ऐसे सोए की उठे ही नहीं उन्हें हृदयाघात हुआ था। रमा को बचपन से ही सोने के कंगन पहनने का बड़ा शौक था वो हमेशा अपने पिता और माता लक्ष्मी को कहती मां मुझे भी अपने जैसे कंगन बनवा कर देना। मां कहती हा क्यों नहीं मेरी लाडो जरूर दूंगी ।पर पिता की मृत्यु के बाद सब बदल गया।यमन का पूना में सिलेक्शन हो गया और वो मां रमा को ले कर पुणे शिफ्ट हो गया। रमा ने अपना कॉलेज पूरा किया।बीच में ही भाई की शादी हुई तब मां ने अपने कंगन बहु शारदा को दे दिए। रमा का दिल टूट गया पर वो जानती थी अब पिताजी नहीं हैं तो मां कहा से सब करेगी।फिर रमा के लिए प्रतीक का रिश्ता आया।प्रतीक इकलौता बेटा था और दो बहने थी ।प्रतीक की मां शान्ति बहुत तेज तरार महिला थी इसके उलट ससुर दीनानाथ बिल्कुल संत आदमी थे।प्रतीक की मां ने शादी में बड़ा दिखावा किया।सोने का हार मंगलसूत्र और सोने के कंगन चढ़ाए।कंगन देख रमा खुश हुई चलो मेरी इच्छा पूरी हुई।पर शांति लालची थी शादी के चार दिन बाद ही उसने सारे गहने उतर वा लिए साथ ही साथ एक औरत के सुहाग की निशानी मंगलसूत्र भी उतर वा लिया। रमा बहुत उदास हुई पर घर में प्रतीक की नहीं चलती थी अपने पिता की तरह वो भी मौन ही रहता।मां और दोनों बहने आशा और ऊषा उसका जीना दूभर करके रखती।वो परेशान रही शादी के 20 साल उसके ससुराल में ही गुजरे ।वो दो बेटियों की मां बनी ।ससुर सास दोनो स्वर्ग सिधार गए छोटी ननद ऊषा की शादी हुई बड़ी नंनद की शादी नहीं हुई।20 साल इतना सहने के बाद और इच्छा मारने के बाद आदमी की इच्छाएं खत्म हो जाती हैं।बेटियां रीवा और रेवती दोनो बड़ी प्यारी थी।रीवा तो पढ़ाई पूरी कर के एक Mnc में लग गई थी।छोटी रेवती pshycology इन्फोरेंसिक का कोर्स कर रही थी गांधी नगर से। रमा और प्रतीक की 25 शादी की सालगिरह आ रही थी।दोनो बेटियां ने सरप्राइज़ पार्टी प्लान की मामा ने बताया उसका बचपन से सपना था सोने के कंगन पहनने का कई बार रमा भी बातों बातों में कभी कभी बोल जाती।फंक्शन बहुत अच्छा planned था।प्रतीक और रमा अपनी खुशी बयान नहीं कर पा रहे थे।तभी स्टेज पर बेटियां आई बोली मां ये आपके लिए जैसे ही रमा ने बॉक्स ओपन किया उसमें सोने के कंगन थे। रीवा बोली मां अब ये आप कभी नहीं उतारेंगी।प्रतीक आगे आया और उसने भी एक बॉक्स रमा के हाथ में रखा ये तुम्हारे लिए उसमें सोने का बड़ा मंगलसूत्र था।प्रतीक बोला सॉरी रमा मै तुम्हारा ये अधिकार भी तुम्हे नहीं दे पाया था मुझे माफ कर दो।रमा बोली क्यों आपने मुझे ये छोटा मंगलसूत्र बनवा कर दिया था । रेवती और रीवा बोली जो हो गया उसे भूल जाइए और आगे खुशी के पल याद रखिए।रीवा और रेवती ने मां बाप को मनाली घूमने का पैकेज दिया। घर आकर सब सो गए रमा गैलरी में खड़ी थी और उन कंगनों को देख रही थी और सोच रही आखिर तुम मेरी झोली में आ ही गए बचपन का अरमान थे तुम मेरे आज तुम मेरे हाथों में हो।

और वो धीरे धीरे गीत गुनगुनाते हुए अपने बिस्तर पर आई सोने के गहने क्यों तूने पहने। अगले दिन नंनद आशा भी मां के गहने ले कर आई बोली रमा ये भी तुम रख लो। मेरे ये किसी काम के नहीं है और मेरा ट्रांसफर भी बैंगलोर हो गया है अगले हफ्ते मैं वहां जा रही हूं। रमा सोच रही थीं जब हसरत थी तब कुछ नहीं मिला और आज अरमान ठंडे हो गए तो सब मेरे पास है।

स्वरचित कहानी

आपकी सखी

खुशी


K

Khushi

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