सोने का कंगन - परमा दत्त झा
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सोने का कंगन - परमा दत्त झा

आज दीपावली के अवसर पर रिया को सास ने नये सोने के कंगन दिये थे।वह अकचका गयी और सास को देखती रह गई।

मांजी आप और यह-वह बड़ी मुश्किल से बोली।

बहू तेरे श्वसुर कहा करते थे देखना ममता मैं अपनी बहू को सोने का कंगन दूंगा ,मगर वह तो रहे नहीं।सो आज उनकी मृत्यु के दस साल बाद यह काम मैं कर पायी।-इतना बोलते बोलते उनकी आंखें डबडबा गई मगर तुरंत में सम्हल कर मुस्कुरा उठी।

इधर रिया अपने पति रोहन के साथ दीपावली की तैयारी कर रहीं थी । मां ने कुछ बताया नहीं बस अचानक से बारह बजे आ गयी और बच्चों को खिलौने तथा मिठाई,पटाखे ,इन सबके कपड़े लेकर आ गयी।

रिया समझ नहीं पा रही थी।क्या बोले और क्या न बोलें।

फिर तो सबके साथ दीपावली मनाकर वह सुबह चार बजे की गाड़ी से वापस लौट गयी ।

इधर रिया और रोहन अपनी दोनों बेटियों के साथ आज अकचका गयी थी।वह खो गई अतीत की याद में।

एम काम करके रोहन ठाकुर एण्ड कंपनी में एकाउंटेंट था। सुबह सात बजे आना और दिनभर काम कर शाम के आठ बजे जाना।जाना भी कहां -इसीके मकान में उसे एक कमरा दिया था। चुपचाप आता और खा-पीकर सो जाता या मोबाइल चलाता।रिया को देखता तक नहीं था। जब वह बैंक पी ओ की नौकरी निकाल बैठा तो इसके पापा ने उसका विवाह रिया से करना चाहा।फिर लव मैरिज हुई और यही बात ममता जी और उनके पति को नहीं भायी। परिणाम एक लड़का वह भी समाज से बाहर शादी करे उसे वे पचा नहीं पाये और दस दिन के अंदर चल बसे।तबसे ममताजी अकेले भोपाल में रहती थी।सिलाई का काम करती और अपने में मगन रहती।शायद ही कभी दस साल में आई हो।

रोहन ने मकान लिया तो चुपचाप बीस लाख दे दिया।

मगर गृह प्रवेश और पूजा में नहीं आयी।

बस कभी न फोन नं ही कोई बातचीत।बस मुंह लटकाये काम करना।रोहन एक बार इसे लेकर गया भी था मगर उदासीन रवैया देखकर हिम्मत नहीं हुई।

आज ये इतने बड़े फ्लैट में रह रहे हैं वहीं मां आज भी वन बी एच के में रहती हैं।उनका सिलाई मशीन दिन-रात चलता है।बस चार पांच घंटे बंद रहता है।बाद बाकी हमेशा चलता रहता है।नयी साड़ी या जेवर में किसी ने नहीं देखा। सामान्य साड़ी ,हाथ में घड़ी और पैर में हवाई चप्पल।बस यही उसकी पोशाक थी और एक जैसा जीवन जीती थी।

तभी तीन साल पहले बीस लाख मकान के लिए दिया और आज दीपावली में सोने के कंगन दे गयी जो कम से कम चार पांच लाख का होगा।

ऐसी अजीब सास है जो सिर्फ देना जानती है।आज भी बच्चों संग खडी दीपावली का आनंद लेती रही। सुबह चुपचाप निकल गई।बस इसके घर एक बार का खाना खाया।

सो समझ नहीं पा रही थी कि सास नाराज हैं या खुश।एकदम सपाट चेहरा और काम करके चुपचाप निकल जाना।वह जितना सोचती उतनी उलझती जा रही थी।

#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।

#सोने का कंगन

#कुल शब्द-कम से कम 700

(रचना मौलिक और अप्रकाशित है इसे मात्र यहीं प्रेषित कर रहा हूं।)


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parma dutt jha

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