सुमित्रा जी की छोटी बेटी की बेटी का विवाह तय हो गया है।बेटी के मुंह से अपनी नवासी की शादी पक्की होने की खुशी उनके बूढ़े चेहरे पर साफ झलक रही थी।
नीरा(इकलौती बहू)भी भांजी को बहुत प्यार करती थी।जब -जब आती ,एक ही बात कहती"मामी,मामा तो नहीं रहे।तुम्हें आना ही होगा मेरी शादी में।नहीं तो------",नीरा चिढ़ाकर पूछती उससे"मैं अगर नहीं आ पाई तो क्या तू शादी नहीं करेंगी?",वह ढीठ भी बिंदास होकर कहती "कभी नहीं।"
नीरा का बड़ा मन था रिमी (ननद की बेटी)की शादी में जाने की। असुविधा बस मां (सास,)को ले जाने में थी। मध्यप्रदेश से पुणे जाना,कुछ एक घंटे का सफर तो है नहीं।छियासी वर्ष की उम्र में वैसे तो वे बहुत सक्रिय थीं।मेडिकली फिट का प्रमाणपत्र डॉक्टर ने दे दिया शुगर और ई सी जी की रिपोर्ट देखकर।
अब बातें होने लगीं जाने की।बेटे की नई नौकरी है,ज्यादा छुट्टी मिलेगी नहीं।पिता की अनुपस्थिति में बुआ की बेटी की शादी में जाने की अपनी जिम्मेदारी बखूबी समझता था बेटा(रोहित)।बेटी पुणे में ननद के घर से दूर रहकर नौकरी करती है।उसने कहा "मैं तो हर फंक्शन में चली जाऊंगी।दादा आएगा तो वह अटेंड कर लेगा।",
दोनों की तरफ देखकर छियासी साल की दादी ने कहा" तुम लोग सभी कार्य क्रम अटेंड करो या ना करो,पर तुम्हारी मां का वहां रहना बहुत जरूरी है।मामा की प्रतिनिधि हैं अब वह रिमी की शादी में।उसका वहां होना ,तुम्हारे पापा के होने जैसा होगा।"
सासू मां की बातें सुनकर नीरा ने कहा" मां,मन तो मेरा भी बहुत है।तुम्हारे लिए इतना लंबा सफर ठीक नहीं होगा।तुम नहीं जा पाओगी,तो मैं तुम्हें छोड़कर कैसे जाऊं?",
सुमित्रा जी का मन भारी हो गया।इसी बहू ने मेरी छोटी बेटी की शादी पूरी अपने दम पर दी।उसके ससुराल पक्ष के सभी कार्यक्रमों में दौड़-भाग करके काम किया है।नीरा का हांथ पकड़ा और माथा चूमकर बोलीं" बहू तुम मेरी वजह से नहीं जा पा रही हो ना।रुको मैं ऐसी व्यवस्था करवाती हूं कि,मैं भी जाऊं और तुम भी जा सको।तुम मेरे साथ बैठकर शादी के नेंग की तैयारी बस करवा लेना।"
हिप्स के आपरेशन ने उन्हें चलने -फिरने में असमर्थ कर दिया था पूरी तरह से।आठ महीनों के बाद छड़ी लेकर फिर से चलने लगी थीं। असमर्थता को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया।
शाम को घर के बच्चे ,और नीरा सुमित्रा जी के पास बैठे।दोनों दादी को नेंग में दिए जाने वाली चीजों को दिखाने लगे।पोती बोली",मैंने सूटकेस ले लिया है।अच्छी सी साड़ी, मेकअप का सामान, दूल्हे के लिए एक कुर्ता पायजामा और परफ्यूम ले लिया है।और भी लिस्ट में हैं चीजें।मैं धीरे-धीरे जोड़ती रहूंगी।अब आप लोग क्या दोगे सोच लो।अभी से तैयारी शुरू कर देना चाहिए।"
दादी (सुमित्रा देवी)ने झट पोती को एक चाबी दी,लकड़ी की बड़ी आलमारी की।खोलने के लिए कहा।पोती ने जैसे ही आलमारी खोली, आश्चर्य से मुंह खुला का खुला रह गया।उस दादी की पोटली में मानो शादी की सारी रस्में तह की हुईं रखी थी।सारी चीजें जिसे अब तक वह कबाड़ समझ रही थी,निकाल कर दादी के सामने रखती गई पोती।
अब सुमित्रा जी ने,मैट की बड़ी सी चादर आधी कढ़ाई की हुई, दिखाकर बोली"कल से मेरी थोड़ी मदद करना ना डुग्गू।हम दोनों मिलकर सुंदर चादर और पिलो कवर बनाएंगे।पिलो कवर में फ्रील लगाना सिखा दूंगी तुझे।"काफी देर तक दोनों में बातचीत होती रही।नीरा ने बाकी चीजों को दिखाकर पूछा" इन बेरंगी , बर्तनों का क्या करना है? आज कल के जमाने में ऐसे बर्तन कोई देता है क्या अपनों को? "सुमित्रा जी ने हंसकर कहा" जानती हो बहू, यह मेरा दहेज है।जमींदार घर की बेटी थी।विभाजन के समय बांग्लादेश से छिपते-छिपाते आ पाएं कम से कम।मेरे बाबूजी ने चार कहार के साथ मुझे बैलगाड़ी में बैठाकर भेजा था।गाड़ी में सोने-चांदी के जेवर और बर्तन हंडियों में भर-भर कर भेजा था। अपने उसी दहेज से पांच ननदों की शादी की ।अब जो भी बचा है,मेरे नाती-पोते और नवासियों को मिलेगा।"
सासू मां की बात सुनकर नीरा को पति की कमी खलने लगी।आज अगर वोहोते,तो इतनी मारा मारी ना होती,शादी में।पता नहीं क्या-क्या देते
अपनी भांजी को।बेटे से कहा"हम बड़े असमर्थ हैं ये।चाह कर भी रिमी को कुछ अच्छा नहीं दे पा रहे।" बेटे ने तुरंत कहा" क्यों असमर्थ हो तुम? तुम वही दोगी मम्मी, जो पापा रहने पर देते।सोना अगले महीने ले लेना।कैश मैं जनवरी में दे दूंगा तुमको।तुम असमर्थ क्यों होने लगीं? "
बेटे की बातों से बड़ी राहत मिली।तभी छोटी ननद का फोन आया।वह कहने लगी"भाभी,मैं शादी से एक महीने पहले मां को आकर ले जाऊंगी।हमें अपने पुश्तैनी घर में पूजा भी चढ़ाना है।उसी समय मां को मैं ले जाऊंगी।"नीरा को तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ।जो मां बारह सालों से घर से बाहर कहीं गई नहीं,वह पुणे जाएगी।वो भी एक महीने पहले।तुरंत पूछा उनसे" मां तुम जा पाओगी पुणे?बहुत लंबा सफर है।सच में तुम जा पाओगी?रास्ते में बीमार पड़ गईं तो!!!!"
वो भी सास थीं ,हंसकर बोलीं" तुम्हारी ननद से मैंने ही कहा था कि मुझे पहले आकर ले जाए,ताकि तुम जा सको।बेटी है ,बेटी की मां भी है अब समझ में आता होगा कि मां से ज्यादा खुश कोई नहीं होता।तुम अपनी तैयारी रखना।जब आओगी बेटे के साथ,बता देना।बेटी से कहना दिखाने को कढ़ाई वाली चादर पूरी हो गई थी।और भी बहुत सामान रखा है।मैं तो हूं असमर्थ, पर तुम्हें सामर्थ्य के साथ ननद की बेटी की शादी में पहुंचना है।लौटते समय बेताल की तरह तुम्हारे कंधे पर आऊंगी।",
सासू मां की निकाली हुई चीजें सारी जरूरतें पूरी करने वाली थी।बेटी से चादर दिखाने को कहा।जब उसने दिखाया चादर,नीरा नि:शब्द हो गई थी।
बर्तनों को पालिश करने दे दिया गया।दो चांदी के छोटे-छोटे पर्स थे।उसमें से एक नवासी के लिए,एक पोती के लिए।कांसा-पीतल के बर्तन,खाना बनाने के बर्तन,पूजा के बर्तनों के ढेरों सैट थे।कब की संभालकर रखी गई कालीन, चादरें, मसनद, उन सबके कवर धुलवाना था बस।नीरा ख़ुद कभी वह पेंटी देखी नहीं थी।इतना सामान लाड़ली भांजी को दे पाएगी,यही सोचकर नीरा सातवें आसमान पर थी।
समय आने पर सुमित्रा जी ने दो कान के सोने के टप्स नीरा के हांथ में दिए,जो चमचमा रहे थे।इशारा समझ गई थी सुमित्रा जी का नीरा।बाकी की तैयारी बेटे,बेटी और नीरा को करनी थी।बेटी को तो वापस पुणे जाना था,सो चली गई।तय समय पर अपना वादा निभाते हुए ननद भी मां को लेकर गई।शादी के दो दिन पहले नीरा और बेटा पहुंचे पुणे।पहले तो गए बेटी के पास।सुबह जब ननद के घर जाने के समय बेटी ने सूटकेस खोलकर नीरा को दिखाया ,तो बेटा भी दंग रह गया।बहुत समर्थ ना होते हुए भी जिस तरीके से जरूरत के हिसाब से बेटी ने सूटकेस सजाया था,अतुलनीय था।ननद के घर सासू मां के द्वारा दिया जाने वाला गिफ्ट पोती जमाकर आई थी।बेटे ने सोने की बड़ी सी अंगूठी,और चांदी का बड़ा सिंदूर दान खरीदा था।जाते ही सारा सामान ननद की बेटी के हांथ में देकर बोली नीरा"देख रिमी,मामा होते तो तुझे बहुत कुछ देते।हम लोग असमर्थ हैं।तू सामान देख ले,पसंद ना आए तो बेझिझक बता देना।बदला जा सकेगा।"
सामान देखकर रिमी लिपट गई मामी से।उसने कहा" यह सामान नहीं,मेरे मामा का पथ है।तुम लोगों ने मेरे संप्रदान को कितना आलीशान बना दिया है,पता ही नहीं होगा तुम लोगों को।हर समय नानी भी खुद को असमर्थ कहती हैं,मामी भी वही चीज कहती हैं।जो तुम लोगों ने दिया है ना, वो सामर्थ्य वान भी देने की हिम्मत नहीं करते मामी।प्यार करने वालों के लिए उनका प्यार ही समर्थ बन जाता है।"
रिमी की शादी की आपाधापी में,बेटा पैसे का लिफाफा नीरा के हाथों से बुआ को दिलवाया सकुचाते हुए,तो बुआ तो रो पड़ी।गले से भतीजे को लगाकर बोली" इतने की जरूरत नहीं थी ये,तुम सब ने मेरी बेटी का आधे से ज्यादा दहेज दे दिया।तूने अपना फर्ज पापा की तरह निभाया।तेरी बहन ने हर वो चीज दी है,जो खरीदना हम अक्सर भूल जातें हैं।तुम लोग सच्चे सामर्थ्य वान हो।दुनियादारी के दिखावे से परे,स्नेह के आभूषण से भर दिया रिमी का एक-एक अंग।"
आज नीरा बहुत खुश थी।दामाद के साथ रिमी विदाई के समय मामी के पैर छू रही थी।पिन्नी रोती भी जा रही थी।
शुभ्रा बैनर्जी
#असमर्थ