अभी तुलसी लेटी ही थी कि घंटी बजी। उसका बिल्कुल भी मन नहीं था उठने का लेकिन मजबूरी में उठना पड़ा। उसे मालूम था नीलू ही होगी, और वही थी, नीलू , उसकी अपनी बेटी।
नीलू आई , डेढ़ साल के बेटे वरूण को गोदी से उतारा और सोफे पर पैर फैला कर बैठ गई।” ओफ्, हो कितनी गर्मी है, हाथों से पंखा हिलाने की मुद्रा बनाते हुए बोली, सितंबर खत्म होने को है, लेकिन गर्मी जाने का नाम ही नहीं ले रही।हालाकिं वहां ए.सी. चल रहा था।
उधर तुलसी पानी लेने गई, इधर वरूण ने धीरे धीरे चलकर कोने में रखी साईड टेबल के ऊपर बिछे अति सुदंर मेजपोश के कोने को खींचा तो उसके ऊपर रखी प्यारी सी पानी का घड़ा लेकर खड़ी औरत की मूर्ति धड़ाम से नीचे गिर कर टूट गई।तुलसी भाग कर आई तो ये नजारा देख कर उसकी समझ में न आया कि क्या कहे और क्या करे।
उसकी बेटी आंखे मूंदे ऐसी लेटी थी जैसे कुछ हुआ ही न हो। पानी रखकर तुलसी ने वरूण को उठा कर बैड पर बिठाया और उसके आगे लाकर कुछ खिलौने और खाने को रखा और कमरे का हुलिया ठीक किया।ये मूर्ति कुछ दिन पहले ही उसकी बहू इनाया बड़े चाव से खरीद कर लाई थी। जब उसे पता चलेगा तो क्या सोचेगी। चलो बच्चे तो ये सब करते ही रहते हैं, तुलसी ने अपने मन को समझाया।
लेकिन उसे गुस्सा तो नीलू पर आ रहा था, भला ऐसे भी कोई बच्चे को कहीं पर भी छोड़ देता है,अरे इतने से बच्चे का तो पल पल ध्यान रखना पड़ता है। “ अरे मां, कुछ चाय वाय भी पिला दो, बेटी आई है, लोग तो पता नहीं बेटियों के लिए क्या क्या करते है, और यहां चाय भी मांग कर पीनी पड़ती है।
वैसे तो सुनीता वहां दिन भर काम पर रहती है, परतुं बीच में दो घंटे को लिए चली जाती थी।बहू इनाया और बेटा हेंमत सुबह आफिस के लिए निकल जाते , चार साल की नूर भी स्कूल चली जाती है, वो शाम को ही आती है, छुट्टी के कुछ घंटे बाद भी वही डे केयर में रहती है ताकि तुलसी जी कुछ घंटे आराम कर लें।
हेंमत के पिताजी का देहांत हो चुका था। हेंमत बड़ा था और नीलू उससे दो साल छोटी। नीलू की शादी के एक साल बाद ही उसके पिता चल बसे थे। उन्हें रिटायर हुए अभी दो साल ही हुए थे। छोटी होने के बाद भी नीलू की शादी हेंमत से पहले हो गई थी। साथ वाले मुहल्ले के वीरेन के प्यार में पड़ गई थी, अभी ग्रेजुऐशन भी पूरी नहीं हुई थी।
जात बिरादरी एक न सही कोई बात नहीं लेकिन वीरेन अभी ढ़ग से कुछ कमाता भी नहीं था। किसी अखबार में पत्रकार था। लिखता बहुत अच्छा था और कभी कभी प्रोग्रामों में गाता भी था, बस इसी पर ही मर मिटी थी नीलू। उसकी शायरी पर मत्रंमुग्ध हो जाती।
घर वालों ने बहुत समझाया कि नाजों में पली वहां गुजारा नहीं कर पाएगी, हेंमत का परिवार भले ही बहुत अमीर नहीं था लेकिन हाई मिडल क्लास फैमिली थी जबकि वीरेन का बहुत साधारण सा परिवार था। वीरेन के पिताजी किसी प्राईवेट फर्म में काम करते थे, भले सस्कांरी लोग थे,लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर ही थी। नीलू के प्यार का बुखार जल्दी ही उतर गया।
उसके पिताजी रहते तो बीमार थे, लेकिन बेटी के इस कदम से शायद टूट गए थे और इस संसार से विदा हो गए। नीलू के अभी बच्चा नहीं हुआ था, वो चाहती थी कि वीरेन पहले अच्छे से कमाने लग जाए और वो भी अपनी पढ़ाई पूरी कर ले, लेकिन दोनों काम ही नहीं हुए। वीरेन का काम में मन नहीं लगता था तो उसकी कमाई भी कम थी।
नीलू बहुत पछता रही थी इस शादी से। सुख सुविधाओं में पली नीलू के लिए यहां वो सब नहीं था। एक ननद की शादी हो चुकी थी। सास ससुर और पति ही थे परिवार में। हेंमत की शादी इनाया से हुई , दोनों अच्छी नौकरी पर थे। पिताजी की पैंशन भी मां को मिलती थी।
पहले तो नीलू मायके बहुत कम जाती थी, और न ही उसे वहां ज्यादा बुलाया जाता था क्योंकि वो इस शादी से खुश नहीं थे। लेकिन हेंमत की शादी पर तो बुलाना ही पड़ा। साल बाद ही नूर का जन्म हो गया। तब भी उसका आना जाना लगा रहा। अब उसे वहीं रहना अच्छा लगता लेकिन उसका ज्यादा आना घर में किसी को पंसद नहीं था।
वीरेन तो बहुत कम आता। वरूण के प्रसव से पहले नीलू बीमार होने का बहाना करके वही पड़ी रहती। आखिर माँ भी क्या करे। बेटी को कैसे समझाए कि शादी के बाद बेटियां अपने घर में ही अच्छी लगती है। कभी कभी आने से ही सम्मान मिलता है, बिना बुलाए या ज्यादा आने से निरादर ही होता है।
लेकिन नीलू भी अब ढ़ीठ बन चुकी थी। वरूण का जन्म भी ननिहाल में हुआ। तुलसी जी के घुटनों में दर्द रहता , डाक्टर ने आप्रेशन के लिए कहा लेकिन तुलसी का मन नहीं था, वो डर रही थी। हेंमत और इनाया तो नीलू से बहुत कम मिलते और बात करते। लेकिन वरूण के जन्म के बाद तो वो हर दूसरे तीसरे दिन स्कूटर उठाकर चली आती। वरूण के जन्म के बाद उसने स्कूटर भी मां से मांगकर ही लिया।
सास ससुर और वीरेन को भी उसका इस तरह मायके जाना पंसद नहीं था लेकिन वो माने तब ना।तुलसी के घुटनों की खराब हालत देखते हुए उनहें आप्रेशन के लिए एडमिट करवाना ही पड़ा। चूकिं बेटा बहू दोनों नौकरी करते थे तो उन्हें हस्पताल में ही महीना भर रखने का इंतजाम कर दिया, दोनों शाम के समय मां से मिलने जाते।
नौकरानी सुनीता सुबह जल्दी ही काम निपटाकर तुलसी के पास चली जाती। किसी ने नीलू को इसके बारें में नहीं बताया। दिन में जब वो जाती तो घर में ताला लगा मिलता। मां का फोन बंद मिलता। भाई भाभी से तो वैसे ही बहुत कम बात होती। एक हफ्ते बाद उसे पड़ोसियों से मां के बारे में पता चला। उसने अपने आप को बहुत अपमानित महसूस किया कि इतनी बड़ी बात उसे किसी ने बताई नहीं।
अगले दिन वो हस्पताल गई तो मां को देखकर रोने लगी। तुलसी भी आखिर मां थी। उसकी आंखों से भी आंसू बह निकले। एक दो बार वो बाद में भी हस्पताल गई।
तुलसी घर आ चुकी थी। इतवार को नीलू और वीरेन मिठाई और नूर के लिए कुछ तोहफे लाए , और थोड़ी देर बैठकर चले गए।हेंमत और इनाया भी घर पर थे। अब नीलू को आए बहुत दिन हो चुके थे।तुलसी भी काफी ठीक हो गई थी। दीवाली आने वाली थी। इनाया और हेंमत नीलू से मिलने आए और दीवाली शगुन भी लाए।
नीलू ने बताया कि उसने एक नौकरी ज्वाईन कर ली है और साथ में कम्पयूटर कोरस भी कर रही है और अब वीरेन भी दिल लगा कर काम करता है। हेंमत ने उसके सिर पर प्यार से हाथ रखा और वापिस आ गए।
नीलू को अपनी गल्ती समझ आ गई थी कि रोज रोज कहीं जाने से भले ही वो अपना मायका हो निरादर ही होता है, और दूसरी बात अपनी कमाई और अपना घर ही सुखी स्थल है। वीरेन भी दिल का बुरा नहीं था।अब वो शायरी और गाना शौक के लिए करता लेकिन अखबार के लिए दिल लगा कर काम करता।
दोस्तों, अपनी इज्जत अपने हाथ में ही होती है, हर कोई व्यस्त है, सबकी अपनी दिनचर्या होती है, कभी कभी मिलने से आदर सम्मान मिलता है वरना तो निरादर ही होगा।
विषय- निरादर
विमला गुगलानी
चंडीगढ