शाम के वक़्त राहुल जब खेत से लौटा तो अस्मिता नें पूछा सारा धान कट गया या अभी बाकी है?कार्तिक का महीना था।सभी के खेत मे धान लहलहा रहा था।जिसे काटने का काम पांच दिन पहले शुरू हुआ था। राहुल नें कहा दो तीन दिन अभी और लगेगा।राहुल के पास अपनी जमीन बहुत कम थी।पर वह अपने पड़ोस के कुछ खेत को किराया पर लेकर उसमे खेती करता था। गाँव के जो लोग शहर मे रहने चले जाते है वे प्रायःअपने खेत एक फ़सल के लिए कुछ पैसे लेकर किराये पर दे देते है। राहुल वैसे लोगो से खेत लेकर उसमे अर्गेनिक खेती करता था और ऑनलाइन प्लेटफार्म पर अपनी फ़सल को बेचता था।राहुल नें इंजिनियरिंग के साथ MBA भी किया था, पर करोना के कारण जब जॉब चली गईं तो उसने अपने गाँव आकर खेती करनी शुरू कर दी थी।रात मे खाना खाने के बाद माँ पापा और बेटी के सोने के बाद जब अस्मिता और राहुल सोने गए तो राहुल नें कहा अस्मिता तुमसे एक बात कहनी है।तो कहो, इसमें सोचने की क्या बात है?नहीं पहले तुम मेरे पास आकर बैठो तबकहूंगा। अस्मिता पास आईं और बोली अब बोलो। पहले वादा करो गुस्सा नहीं होंगी।अस्मिता को कुछ अजीब लगा पर उसने कहा नहीं होंगी, अब जल्दी से बोलो मुझे नींद आ रही है। आज तुम्हारे पापा का फोन आया था। तुम्हारे भैया की पच्चीसवी वैवाहिक वर्षगाठ मनाई जा रही है।हमें भी बुलाया है।तुम्हारे पास फोन करने की उनकी हिम्मत नहीं हुई, इसलिए मेरे पास फोन किया था और कहा था कि तुम्हे किसी भी तरह से मनाकर लाऊं।राहुल की बात सुनकर अस्मिता को अपने अतीत के वह भयावह दिन याद आ गए जब वे एक एक पैसे के मोहताज थे।अन्य दिनों की तरह वे दिन भी कट ही गए पर जो घाव मन पर दे गए उसकी भरपाई किसी भी तरह संभव नहीं है। अस्मिता की बेटी अर्पिता की तबियत बहुत ही ज्यादा खराब थी। रह रह कर बुखार हो जा रहा था। जब भी बुखार होता तो अस्मिता उसे पेरासिटामोल दे देती तो बुखार उतर जाता पर दो चार घंटे बाद फिर शरीर तपने लगता।एक दो दिन जब इसी तरह होता रहा तो उसने अपने पति राहुल से कहा लग रहा है इसे किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा। यह बुखार इस तरह नहीं उतरने वाला है।राहुल नें कहा सही कह रही हो,मै समझ रहा हूँ। पैसो का इंतजाम करने की कोशिश कर रहा हूँ जैसे ही इंतजाम हो जाता है।हम मुंबई तुम्हारे भैया के पासचलेंगे। वह अच्छा से इलाज भी कर देंगे और सही से देखभाल भी हो जाएगी। यहाँ तो सही इलाज भी नहीं होगा और करोना के भय से पता नहीं हमारी बेटी को कहाँ रख देंगे।अस्मिता ने कहा ठीक है, पर जल्दी करो। राहुल एक मल्टीनेशनल कम्पनी मे काम करता था।करोना के कारण उसकी कम्पनी मे छटनी हुई और इसकी जॉब चली गईं थी। पारिवारिक रूप से वह बहुत धनी नहीं था। उसके पिता एक कम्पनी मे गार्ड थे और उनकी ड्यूटी अस्मिता के कॉलोनी मे ही थी। संयोग से दोनों का गाँव और जाति एक ही थी। गाँव और जाति के एक होने के कारण राहुल के पिता के प्रति अस्मिता के पिता के मन मे थोड़ा लगाव हो गया था।जिसके कारण आते जाते कभी कभी अस्मिता के पापा राहुल के पापा से उनके बच्चे का हालचाल पूछ लेते थे।राहुल पढ़ने मे बहुत ही तेज था। इसलिए सारे आभाव के बावजूद भी उसके पिता नें उसे MBA करवाया था।अस्मिता के पिताजी नें देखा कि लड़का अच्छी नौकरी कर रहा है। बचपन से जाना सुना है और सबसे बड़ी बात थी कि गरीब घर से होने के कारण वे मेरी बेटी से थोड़ा दबकर ही रहेंगे।यह सब सोचकर उन्होंने अपनी बेटी का विवाह राहुल से करवा दिया था।पर जैसा उन्होंने सोचा था वैसा कुछ हुआ नहीं। उन्होंने सोचा था कि इतना दहेज देंगे कि पूरा परिवार मेरी बेटी की जी हजूरी करेगा।पर राहुल विवाह के लिए तो तैयार हो गया लेकिन जब दहेज की बात आई तो उसने लेने से साफ इंकार कर दिया। विवाह के बाद जिंदगी मज़े से ही चल रही थी,पर गृहस्थी के सारे आधुनिक सामान EMIपर खरीदने के कारण कुछ बचत नहीं हो पा रही थी।आज के समय की कठिनाई है कि कोई भी ज़रा सा भी समझौता नहीं करना चाहता है और बाजार भी कर्ज पर सामान देने के लिए तैयार बैठा ही है।कर्ज खत्म होते होते बेटी बड़ी हो गईं तो उसकी पढ़ाई के खर्चे भी बढ़ने लगे तो बचत की बात फिर धरी की धरी रह गईं।शिक्षा आज इतनी महंगी हो गईं है कि एकबार बच्चे का नामांकन स्कूल मे हो जाए तो पैसे बचने का सवाल ही नहीं उठता।पर जब करोना नें दस्तक दिया तो लोगो को बचत का अर्थ समझ आयाऔर रिश्तो की भी परख हुई।जो परिवारिक रूप से समर्थ थे उनको तो कोई खास फर्क नहीं पड़ा लेकिन साधारण लोगो पर इसकी मार बहुत ही महंगी पड़ी। राहुल और अस्मिता उसी दौड़ से गुजर रहे थे।एक तो पैसे कीकमी झेल ही रहे थे उपर से बेटी की बीमारी से डर भी लग रहा था।डॉक्टर के पास जाने से भी डर लग रहा था। देश की स्थिति ऐसी हो गईं थी कि डॉक्टर के पास जाते ही वह लोगो को करोनटाइन कर दे रहा था।किसी तरह पैसो का इंतजाम करके वे लोग मुंबई की गाड़ी पकड़ लिए, पर मायके जाने की ख़ुशी और सभी को सरप्राइज देने के चक्कर मे राहुल के कहने के बाद भी अस्मिता नें मायके मे अपने आने की खबर नहीं दी थी। ख़ुशी ख़ुशी पाँचो व्यक्ति घर पहुंचे। समधी समधन को देखकर अस्मिता की मम्मी को बहुत अच्छा नहीं लगा। अभी वे कुछ कहती ही तभी उसकी भाभी भी आ गईं और पूछा इस समय जब कोई बाहर नहीं निकलना चाह रहा है तो तुम इतनी दूर सफर कर के यहाँ क्यों आई?तुम्हे डर नहीं लगा?डर की क्या बात है अब तो थोड़ी एहतियात के साथ सभी सफर कर ही रहे है।वैसे अर्पिता की तबियत खराब थी तो हमने सोचा कि इस समय दूसरे अस्पताल जाने से अच्छा है कि भैया के अस्पताल मे ही इलाज कराया जाए।यह सुनकर तो उसकी भाभी नें अपना आपा ही खो दिया और बहुत ही खराब तरीके से अस्मिता से बोली तुम्हारा दिमाग़ खराब हो गया है? इन गँवारो के साथ रहकर तुम्हारी समझ भी खत्म हो गईं है?आज के समय मे कोई किसी के घर मरीज को लेकर जाता है? फिर अपने पति से कहा इनके रहने का कही और इंतजाम कर दो।मै इन्हे अपने घर मे नहीं रख सकती। इतनी बेइज्जती के बाद वहाँ रुकने का कोई सवाल भी नहीं था।भाई नें कहा कि चलो किसी होटल मे रुकने का इंतजाम कर देता हूँ। अस्मिता नें कहा कि भैया होटल हमने भी देखा है। आपको शायद नहीं याद पर मुंबई मे हम भी बहुत वर्ष रहे है।यह कहकर वे सब बाहर आ गए। भाई नें दवा देने की कोशिश की पर उन्होंने नहीं लिया।बहुत जिद करके भाई नें कुछ दवाईया लिख दी और कहा इसे खिला देना, ठीक हो जाएगी।उस समय अस्मिता जो बेइज्जती महसूस कर रही थी. उसे कोई समझ नहीं सकता था। बेटी की शादी के बाद उसके लिए मन मे इतना परायापन आ गया था कि उसके सास ससुर और पति के सामने उसकी भाभी नें उसका इतना अपमान कर दिया। भाभी से कोई गिला नहीं पर माँ -पापा या भैया कोई तो झूठ मुठ का ही सही भाभी को एकबार तो कहते कि तुम चुप रहो। हमारे सामने घर की बेटी को इस तरह से निरादर करके तुम निकाल नहीं सकती हो। पर किसी नें भाभी को कुछ नहीं कहा। दुख का समय बीता। राहुल नें शहर जाकर नौकरी करने के बजाय गाँव मे ही रहकर खेती को अपनी जीविका बनाने का निर्णय लिया। उसका फैसला सही भी रहा, करोना के बाद अर्गेनिक फ़सल की माँग बढ़ गईं थी तो उसने उसे ही अपना व्यवसाय बनाकर आज लाखो कमा रहा है।बहुत देर तक जब अस्मिता नें कुछ जबाब नहीं दिया तो राहुल नें उससे कहा कहाँ खो गईं?बोलो कब की टिकट करवा दूँ?राहुल की आवाज से अस्मिता वर्तमान मे लौटी और कहा तुम कुछ मत करो, मै पापा से बात करलुंगी।सुबह उठकर अस्मिता नें सबसे पहले अपने पापा को फोन किया और कहाँ आइंदा मेरे पति को फोन नहीं कीजिएगा। उन्होंने कहा बेटा मेरी बात तो सुन, मानता हूँ कि हमसे गलती हुई है,तुम गुस्से मे हो पर खून के रिश्ते इसतरह से तोड़े तो नहीं जा सकते है।अब उस बात को भूल जाओ और इस ख़ुशी के मौक़े पर सपरिवार घर आओ।किसके घर पापा? शादी के बाद बेटी का घर उसका ससुराल होता है। और जहाँ मेरे सास, ससुर, पति बेटी और मेरा अपमान हुआ हो वहाँ कभी भी दुबारा जाने का सवाल ही उत्पन्न नहीं होता है। आपको माँ -पापा या राहुल भले ही माफ़ कर दे पर मै कभी नहीं माफ़ करूंगी। सच्चाई यह है कि आपने मेरे सास ससुर को कभी भी मन से संबंधी का दर्जा दिया ही नहीं। हमारे देश मे दामाद और उसके परिवार को सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है वहाँ आपने उन्हें समधी जैसा कभी आदर तो कभी दिया नहीं और नहीं तो आपकी बहू नें उनका आपके सामने ही निरादर किया और आप चुप रहे। आपके लिए वे आपके कॉलोनी मे काम करने वाला एक गार्ड हो सकते है पर वे मेरे पति के माता पिता है इसलिए मेरे लिए सबसे सम्मानिय है। इसलिए अब आपसे रिश्ता चलाना मेरे लिए सम्भव नहीं है।
विषय —-निरादर
लतिका पल्लवी