निरादर - सुदर्शन सचदेवा
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निरादर - सुदर्शन सचदेवा

देखो ज़रा, ये वही हाथ हैं जो कभी बेटे के लिए खिलौने खरीदते थे, और अब मोबाइल पर ऑर्डर पैक कर रहे हैं।

ज़िंदगी का नाम है बदलना, लेकिन आज सविता को महसूस हुआ — बदलाव सबसे मुश्किल तब होता है, जब वह अपने ही बच्चे की नज़रों में करना पड़े।

सुबह बेटे आर्यन ने कहा था,

“माँ, प्लीज़… जब मेरे फ्रेंड्स घर आएँ, तो तुम थोड़े मॉडर्न कपड़े पहन लिया करो। सबके पेरेंट्स कितने स्मार्ट लगते हैं।”

सविता ने हँसकर कहा, “बेटा, मैं अपनी साड़ी में ही खुश हूँ।”

पर उस हँसी के पीछे एक टीस छिपी थी — एक माँ का दिल जो बस इतना चाहता है कि उसका बच्चा उसे प्यार से देखे, नज़रें झुकाकर नहीं।

आर्यन अब कॉलेज में था, नए दोस्तों और डिजिटल दुनिया में खोया हुआ।

और सविता? वह अब भी उस दुनिया की थी जहाँ भावनाएँ इमोजी से नहीं, आँखों की नमी से जताई जाती थीं।

वह ऑफिस जाती, घर संभालती, फिर रात को अकेले सोचती —

“कहाँ चूक गई मैं? जो बेटा कभी मेरी गोद में सिर रखकर सपने देखा करता था, आज मेरी उपस्थिति से शर्माता क्यों है?”

पर सविता ने हार नहीं मानी।

उसने तय किया — अगर समय बदल गया है, तो वह भी बदलेगी, लेकिन अपने आत्मसम्मान को कुर्बान किए बिना।

उसने ऑनलाइन कोर्स किया — “Digital Literacy for Beginners.”

धीरे-धीरे उसे लैपटॉप, ईमेल, ऑनलाइन पेमेंट्स सब समझ आने लगा।

फिर एक दिन उसने अपने हाथों से बने कपड़े और पर्स की तस्वीरें अपलोड कीं।

पेज का नाम रखा — “SaVi Creation” (सविता + विजन)।

पहले ऑर्डर छोटे थे, पर उसके जज़्बे बड़े।

हर रात वह नए डिज़ाइन सोचती, नए ग्राहकों से बात करती, और अपने भीतर की शक्ति को महसूस करती।

एक दिन आर्यन कॉलेज में था जब उसके दोस्त ने कहा,

“यार, तेरी माँ का क्राफ्ट पेज देखा? वो तो ट्रेंड कर रहा है! कितनी क्रिएटिव हैं!”

आर्यन चौंक गया — उसने तुरंत पेज खोला।

वहाँ सविता की मुस्कुराती तस्वीर थी, हाथ में साड़ी का पर्स और कैप्शन —

“हर माँ के हाथ में हुनर छिपा है, बस पहचान की देर है।”

उस दिन आर्यन देर से घर पहुँचा।

सविता ऑर्डर पैक कर रही थी, बालों में चाँदी की लकीरें चमक रही थीं।

“माँ…” उसने धीमे से पुकारा।

सविता ने सिर उठाया — “क्या हुआ बेटा?”

“आपने मुझे बताया क्यों नहीं कि आप इतना अच्छा काम कर रही हैं?”

वह मुस्कुराई — “क्यों बताती? तुम तो अब मॉडर्न लोगों के बीच रहते हो, मैं तो बस पुरानी माँ हूँ।”

आर्यन के आँसू छलक पड़े।

“नहीं माँ, आप सबसे मॉडर्न हैं… क्योंकि आपने खुद को किसी के ताने से नहीं, अपने हौसले से परिभाषित किया।”

सविता की आँखें नम हो उठीं।

वह बोली, “बेटा, निरादर तब तक होता है जब तक इंसान खुद अपनी क़ीमत नहीं समझता।

जिस दिन खुद पर भरोसा आ जाए, लोग वही करने लगते हैं जो पहले रोकते थे — सम्मान।”

आर्यन ने माँ के हाथ पकड़ लिए।

“माँ, आज मैं सच में गर्व महसूस कर रहा हूँ। आप ही मेरी असली inspiration हैं।”

सविता ने आसमान की ओर देखा — जहाँ चाँद पूरा था, और उसके जीवन की अमावस्या अब कहीं पीछे छूट चुकी थी।

दुनिया का निरादर आपके भीतर की ताकत को रोक नहीं सकता।

सम्मान किसी रिश्ते का तोहफ़ा नहीं, आत्मविश्वास की कमाई है।

सविता ने साबित कर दिया — जिसे लोग पुराना समझते हैं, वही असल में सब कुछ है |

सुदर्शन सचदेवा


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Sudarshan Sachdeva

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