काम के न काज के दुश्मन अनाज के -यह रमिया थी जो चाचा श्वसुर अनुराग पर भड़क रही थी।
अनुराग जी यानि उसके श्वसुर के छोटे भाई।रमिया के पति से मात्र चार साल बड़े। अनुराग जी पांच साल के थे तो भाई भावज के साथ हो गये।नौकर सा व्यवहार सब करते।मकान तक हथियाकर भगा दिया था।
पाप की कमाई नहीं फलती तो भाई के साथ हुआ था। गरीब होते गये और आज वे सड़क पर आ गये।अपने हिस्से का मकान बेचकर किराये में आ गये थे।
आज वे सब इसके मकान में थे।भाई और भावज खत्म हो गये थे। भतीजा मधुकर नाम के अनुरूप था।चाचा की कृपा से यह रहा था।शराब के नशे में चूर रहता। दस दस दिन पड़ा रहता था।यही अकेला रहने पर भी काम कर रहा था।
मगर पिछले एक महीने से तबियत खराब चल रही थी सो काम कम कर रहा था।
इधर भतीजा और उसकी पत्नी को हराम का खाने की आदत पड़ गई थी।आज यह आराम से काम कर रहा था।
सो आज बहू का सब्र जबाब दे गया और यह चिल्लाने लगी।
क्या हुआ -यह शांति से पूछा।
आप काम क्यों नहीं करते -वह चिल्लाते हुए बोली।
अरे मैं बीमार हूं,अपने घर में आराम कर रहा हूं।
आप कमाकर लाओ तो रोटी देंगे,मेरे कोई सगे श्वसुर थोड़े ही हैं आप-यह सुनते ही मानो इसका हृदय छलनी छलनी हो गया। पूरे बीस साल से साथ रखे हैं। कमाकर खिला रहा है।वह दस दिन क्या लेट गया कि औकात दिखाने लगी।
बस बहुत हो गया -तुम चुप रहो।
क्यों हराम का खाकर पेट नहीं भरा बुढ ऊं।-इतना कहना था कि यह आपे से बाहर होकर गाल पर बजा दिया।
आज परिणाम सामने है-बस तुम लोग मेरे मकान से निकल जाओ।अपना काम करो। मुझे मतलब नहीं रखना है।-अब गुस्से में आकर ये चीख उठे।
अब वह भतीजा और बहू दोनों सकपका गये।घर से निकाल देंगे तो कहां जायेंगे ,क्या खायेंगे -सारा कुछ दिखाई देने लगा।
भाई हमें माफ करें, तुम्हारी बहू नादान है,उससे ग़लती हो गई।
ना बेटा,ग़लती नहीं है यह ,यह गुनाह है,पूरे जिंदगी जिसने पाला आज वह बीमार है तो उसी के घर में रहकर सुना रहे हो।-ये थोड़ी देर फटकार कर चुप हो गये।जो बहू चिल्लाने लगी थी वह अभी तुरंत भींगी बिल्ली सी सेवा करने लगी।
#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।