रंजना ओ रंजना ऽऽ रंजना ऽ कहां हो । पति बृजेश ने जैसे ही आवाज लगाई, पति की चिल्लाती हुई आवाज सुनकर रंजना जो रसोईघर में नाश्ते, उनके ऑफिस के लिए लंच की तैयारी कर रही दौड़ती हुई आई बोली क्या हुआ ? आप इतने गुस्से में क्यों चिल्ला रहे हैं ? पति बृजेश तो जैसे नाक पर गुस्सा ही लिए बैठा था । एकदम चिल्ला कर बोला क्या हुआ..? तो ऐसे कह रही हो जैसे कितनी भोली भाली हो। कुछ जानती ही नहीं हो। ये शर्ट देखों मेरी, इसकी जेब पर ये सामने कितना बड़ा दाग लगा है। कपड़े धोती हो या मजाक करती हो । जानबूझकर कर लगाया होगा तुमने पता है.. मेरी कितनी लक्की, फेवरेट शर्ट है ये, अपने ऑफिस के हर खास वक्त पर इसको ही पहनता हूँ । आज कितना जरूरी प्रजेंटेशन है। तुमको एक हफ्ते पहले ही बता कर मैंने बहुत बड़ी ग़लती कर दी तुमने ही इस पर ये दाग लगा दिया। आखिर तुम जैसी गंवार औरतों से और आस ही क्या की जा सकती है ? “जाने कहां का गुस्सा कहां निकालती रहती हो “ । मेरी उन्नति तो तुमको रास आने से रही ।
रंजना ने पति से शर्ट हाथ में ली फिर लेकर अच्छे से देखकर बोली- जब कपड़े धोये मैंने, तब शर्ट पर कोई दाग नहीं था आखिर ये लगा कैसे ? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा…
अच्छा लगा कैसे ? पति बृजेश पहले से भी और अधिक चिल्लाया।
रंजना ने पति को काफी सफाई दी मगर वो शान्त होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
पास बैठे स्कूल के लिए तैयार होते दोनों बच्चे बेटी अनू पन्द्रह बरस और बेटा अरू दस बरस पिता को इतनी ऊंची आवाज में चिल्लाते देख सहम से गए थे।
भाई को डरा सहमा देख बेटी जो अपनी उम्र से अधिक समझदार एकदम बोली पापा आप मम्मा पर इतना गुस्सा क्यों कर रहे हैं ? जब मम्मा कह रही उन्होंने ये दाग नहीं लगाया तो आप मान क्यों नहीं लेते हैं ? ये भी हो सकता है जब कपड़े प्रेस के लिए गये वहां दाग लग गया होगा। अब लग ही गया तो दुबारा साफ हो ही जायेगा पापा, आप आज दूसरी शर्ट पहन कर चले जायें । बेटी की बातें सुनकर बृजेश ने एक तीखी नजर से पत्नी की ओर देखा और चूपचाप कमरे में चला गया।
रंजना ने नाश्ता तैयार किया बच्चों को भी देकर स्कूल भेज दिया और पति से बोली चलिए, गुस्सा थूकिए.. नाश्ता करें और ये आपका लंच बाक्स आज मैंने आपके पसंदीदा मटर पनीर बनाया है । मगर पत्नी रंजना की बातों से बृजेश पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा उसने लंच बैग में रखा और वो बिना नाश्ता किये गुस्से से यह कहते हुए खाओ तुम ही इस नाश्ते को, ऑफिस चला जाता है।
रंजना बड़बड़ाती है…. रोज रोज का एक ही किस्सा किसी न किसी बात पर गुस्सा करते खुद भी उलझे रहते पूरे घर को उलझाए रहते हैं। बृजेश का व्यवहार रंजना भीतर ही भीतर घुटती खामोश सी रहने लगती है । कई बार उसके मन में आता सभी छोड़कर कहीं चली जाये मगर वो बेबस सी सोचती रहती काश वो भी पढ़ी लिखी होती तो आज कहीं नौकरी ही कर लेती ।कोई और आसरा भी नहीं जाये तो कहां जाये मजबूरन बृजेश द्वारा किया व्यवहार अपमान सहती रहती।
रंजना दिन भर के काम में व्यस्त थक कर दोपहर में थोड़ा आराम करने बैठी तभी बेटी अनु स्कूल से आ जाती है। और उसके पास आकर कहती हैं मम्मा जब कोई सामने वाला इंसान चिल्लाता है तो सुनने वाला इंसान भीतर ही भीतर घुटने लगता है। उसकी जिंदगी उसकी इच्छाएं भीतर ही भीतर दम तोड़ने लगती है।और तब इंसान खामोश होकर रह जाता है।
मम्मा ऽऽ आप पापा का व्यवहार खामोश होकर क्यों सहती रहती हो ?
पापा जब देखो तब बिना सोचे-विचारे आपका इतना अपमान करते रहते हैं।
आप सब सहती रहती है। चूपचाप सुनती है। तभी तो वो आपके ऊपर इतना चिल्लाते हैं ।
दिन भर काम में लगी रहती है। अपने बारे में खुद ही नहीं सोचती आप जब तक गलत बात पर विरोध नहीं करेंगी तब तक उन में बदलाव नहीं आने वाला वो नहीं सुधरेंगे ऐसे ही आप पर चिल्लाते रहेंगे। मम्मा आप पापा की गलत बात का विरोध करें उनको जतायें वो गलत कर रहे हैं। तभी उनको अपनी ग़लती का अहसास होगा ।
बेटी अनु की बातें सुनकर रंजना का दिल भर आता है। उसकी आँखों में आँसू बहने लगते हैं वो अनु को गले लगा लेती है। कहती हैं बेटा इतनी छोटी उम्र में तुम इतनी बड़ी बड़ी बाते कैसे करने लगी मेरी बच्ची ? समय और परिस्थितियों ने तुमको समय से पहले परिपक्व कर दिया बच्ची । बेटा मेरी तो किस्मत ही खोटी है बचपन में माता-पिता को खो बैठी मामा मामी के खुद के बच्चे नहीं तो उन्होंने पाल पोसकर बड़ा किया विवाह कर दिया समय बाद वो भी नहीं रहें । अब मैं दुखियारी तेरे पापा के कटु वचन नहीं सुनूं तो क्या सुनूं भला ? अब कौन है मेरे दुख दर्द सुनने वाला ? रंजना कहकर फूट-फूट कर रोने लगी।
अनु बोली “ माँ मेरी अध्यापिका कहतीं हैं अन्याय के आगे कभी चूप नहीं रहना चाहिए इससे अन्याय करने वाले का सहास और बढ़ जाता है। “
“इसलिए जो अच्छे से इज्जत से बात करे वहां चुप्पी भली लेकिन जो अपमान करे बेइज्जती करे वहां कभी भी चुप्पी धारण नहीं करनी चाहिए “ ।
रंजना में बेटी की बातों से हिम्मत बंध जाती है वो प्रण करती है अब अन्याय सहन नहीं करेगी वो पति को अन्याय अपमान करने से रोकेगी ।
दूसरे दिन किसी बात पर बहस करते हुए जैसे ही पति बृजेश उस पर हाथ उठाने लगता है। रंजना उसको रोक देती है… और तेज आवाज में जवाब देती है। बहुत हुआ बृजेश, आपको न तो अपनी इज्जत का ख्याल है न दूसरे की इज्जत का ।आप बेमतलब बात पर गुस्सा करने लगते हो । अनाप-शनाप बोल भड़क जाते हो। आराम से भी तो बात कर सकते हो । बच्चों के सामने चिल्लाने लगते हो। सोचा है कभी… उन पर कितना असर हो रहा होगा आपके इस व्यवहार का । अब मैं आपके इस व्यवहार को सहने वाली नहीं हूँ ।
अच्छा तो क्या करोगी तुम जरा मैं भी तो जानूं बृजेश गुस्से से चिल्लाया।
रंजना ने एक पल बृजेश की तरफ देखा नफरत और गुस्से भरी नजरों से बोली -
“ मुझे भी जीना है, मैं भी सम्मान से जीना चाहती हूँ मुझे केवल सांसें ही नहीं लेनी हैं “ ।
वो कहती हैं.. आज के बाद यदि आपने मेरा अपमान किया या बेवजह गुस्से से बात की तो मैं आपका कोई काम नहीं करूंगी। आप अपने सभी काम खुद ही करेंगे। पत्नी की बात सुनकर उसके व्यवहार से अपेक्षित बृजेश आश्चर्यचकित रह जाता है। और फिर वह कुछ नहीं कहता चुपचाप नाश्ता करके ऑफिस के लिए निकल जाता है।
रंजना के बच्चों के स्कूल में आज छुट्टी थी दोनों बच्चे घर पर ही थे । बेटी अनु कहती हैं देखो मम्मा आज आपने गलत बात का विरोध किया तो पापा ने आगे फालतू कुछ नहीं बोला अब आप ध्यान रखिए आपको सदैव अपने आत्मसम्मान के लिए खड़े रहना है।और हाँ मम्मा मेरी एक पक्की दोस्त हैं उसकी मम्मी का टिफिन सर्विस का व्यवसाय है उनको बहुत मुनाफा होता है मैं तो कहूंगी आप भी शुरू कर दीजिए आप कितना अच्छा खाना बनाती है। इससे आप की कमाई भी होने लगेगी और इससे आप और अधिक मजबूत बन सकेंगी आर्थिक रूप से भी किसी पर निर्भर नहीं रहेंगी ।
रंजना को बेटी की बात भा जाती है वो उसकी सहेली की मम्मी के साथ मिलकर टिफिन सर्विस कि काम शुरू कर देती हैं । रंजना के हाथ के बने खाने की सभी बहुत तारीफ करते हैं उसको अधिक काम मिल जाता है। और वो अपने पैरो पर खड़ी हो जाती है ।खुद अच्छा खासा कमाने लगती है। उसमें आत्म स्वाभिमान बढ़ जाता है। वो घर के छोटे-छोटे कामों के लिए मेड भी रख लेती है।
और अब बृजेश पत्नी रंजना को व्यस्त देखकर उस पर चिल्लाने से डरने लगता है। बात बात पर अपमान करना ही भूल जाता है। उसमें बदलाव आने लगते हैं। वो रंजना के महत्व को महसूस करने लगता है । धीरे धीरे उनके घर का वातावरण भी सुखद होने लगता है। अब घर में रोज रोज के झगडे कलह की जगह हल्के फुल्के हंसी मजाक के दौर चलने लगते हैं। बृजेश बच्चों के साथ समय बिताना शुरू कर देता है उसको उसमें सुकून मिलने लगता है। इस बदलाव से रंजना की जिंदगी भी बदल जाती है।
इसलिए ज़िन्दगी में अपने अधिकार के प्रति सदैव सजग रहना जरूरी है । और व्यर्थ अपमान को सहने की अपेक्षा विरोध करना भी बहुत जरूरी है- “ क्योंकि केवल सांसें लेते रहने का नाम ही जिन्दगी नहीं है….और हर सांस लेने वाला जिंदा नहीं होता ”!…
बल्कि जीवन में ऐसा करना चाहिए जो महत्वपूर्ण हो और जिसका प्रभाव दूसरों पर पड़े यह गहरी बात जीवन के अर्थ और उद्देश्य की ओर इशारा करती है। सदैव जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। नये अनुभव नई सीखों और नये सपनों को अपनाना ही जिन्दगी का असली मकसद है और होना भी चाहिए ।
लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया
20. 10 . 25