सुमित्रा जी एक लोटा पानी लेकर आई और गणेश लक्ष्मी जी की पूजा में बैठे बेटे दीपेश के सामने जलते हुए दीपक में पानी डाल दिया। बेटा दीपेश चौक गया ये क्या किया मां पगला गई हो क्या ,इन जलते दीपक पर पानी क्यों डाल दिया । तुमने गणेश लक्ष्मी जी का अपमान किया , उनका निरादर कर रही हो। हां कर रही हूं निरादर ,,इन मिट्टी के गणेश लक्ष्मी जी की तूझे बड़ी चिंता है कि उनका निरादर हो रहा है ।और उसका क्या जो जीती-जागती लक्ष्मी तेरे घर में है ,जिसे सात फेरे लेकर तू घर लाया है उसका क्या , जिसकी तू हर रोज निरादर करता है ,हर रोज उसका अपमान करता है। कितनी बार तुझको समझा चुकी हूं पर तू समझता ही नहीं है ।
मैंने प्रण लिया था कि जो निरादर तेरे बाप के सामने मेरा होता था और मैं अपमान का घूंट पीकर रह जाती थी ।वो मैं अपनी बहू के साथ नहीं होने दूंगी । तेरे दादा दादी के सामने मेरा पल पल निरादर होता था और वो कुछ नहीं बोलते थे । लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगी ।बहू अनुरिता का निरादर मैं पल पल पल देखती रहती हूं। पहले उसको सम्मान देना सीख ले फिर ये भगवान की पूजा कर तभी तेरी पूजा सफल होगी नहीं तो नहीं।
सुमित्रा जी की शादी बृजमोहन जी के साथ हुई थी ।घर में सास ससुर थे । बृजमोहन जी गुस्से के बड़े तेज थे ।वो पत्नी को पत्नी नहीं अपनी बपौती समझते थे और हर समय रौब झाड़ते रहते थे बात बात में गुस्सा दिखाना और औकात दिखाने की बात करते रहते थे ।सास ससुर भी कुछ नहीं बोलते थे । सुमित्रा जी कई बार अपने माता-पिता से भी ऐ बात कही लेकिन वहां से भी टका सा जवाब मिल गया कि अब वही तुम्हारा घर है और तुम्हें वहीं रहना है ।कल के तुम मायके आकर बैठ गई तो लोग क्या कहेंगे । मेरी कितनी इज्जत है गांव में सरपंच हूं मैं , पिता जी बोले।अब तो तेरी शादी हो गई है चाहे जैसे निभाना तो पड़ेगा ही ।और मैं बस चुप हो जातीं थीं ।और ऐसे ही अपमान सहकर अपना निरादर होते हुए देखती रहती थी । उसके बाद बेटी पैदा हुई और फिर तू ,जब तू बड़ा हो रहा था तो मैंने ये तय कर लिया था कि जो कुछ भी मेरे साथ हुआ वो सबकुछ मैं अपनी बहू के साथ नहीं होने दूंगी।
एक पत्नी होने के नाते मेरे तन मन सबपर उनका अधिकार था और हर चीज अधिकार से ली जाती थी । सबकुछ था उस घर में बस नहीं थी तो मेरी इज्जत।मैं घुट घुटकर जीती थी ,पल पल मरती थी ।लाख कोशिश के बावजूद मैं उनको खुश नहीं कर पाती थी ।मैं तुम लोगों के जन्म के बाद तुम बच्चों के लिए जीने लगीं उनकी तरफ से मेरा मोहभंग हो गया । फिर एक दिन तेरे पिताजी जी की हृदयाघात से मृत्यु हो गई और मैंने तुम बच्चों को सीने से लगा कर जीना सीख लिया । लेकिन मैं देख रही हूं तू भी वही सबकुछ कर रहा है जो तेरे पिताजी करते थे । कोई ग़लती न होने पर भी तू बहू का हर वक्त निरादर करता रहता है ।मैं बहुत बार तुझको समझा चुकी पर तू है कि मानता ही नही है ।
सुमित्रा जी के एक बेटा और एक बेटी थी। बेटी बड़ी थी तो उसकी शादी पहले कर दी थी और वो अपने घर में सुख-शांति से रह रही थी। दीपेश की अनुरिता के साथ शादी हुई थी। बहुत प्यारी थी अनुरिता और समझदार भी।वो दीपेश को खुश रखने की बहुत कोशिश करती लेकिन वो खुश ही नहीं रहता। सुमित्रा जी दीपेश को हर वक्त समझाती रहती थी कि देखो बेटा इस तरह हर वक्त गुस्सा करते रहने से रिश्ता नहीं निभता। इतना गुस्सा मत किया कर वो पलटकर जवाब नहीं देती इसका मतलब ये नहीं है कि उसको बुरा नहीं लगता।काम तुम्हारा तो वो सब करती रहती है सब चीजों का ध्यान भी रखती है फिर भी तू उसपर हर वक्त चीखता चिल्लाता रहता है।कितने दिनों से तुझे ऐसे ही देख रही हूं कि शायद ये अब संभव जाएगा पर तू कुछ भी समझने को तैयार हुए नहीं हैं।
आज ही सुबह-सुबह अनु ने नाश्ता लगाया लेकिन पांच मिनट लेट हो गई थी और दीपेश गुस्सा होते हुए बड़बड़ करते हुए नाश्ता छोड़कर बाहर निकल गया। अनुरिता पीछे पीछे गई लंच बॉक्स लेकर कि ये तो ले लो और नाश्ता के लिए भी कहती रही लेकिन दीपेश नहीं माना और बोला जा तू ही कर लें सारा नाश्ता। तुमसे कितनी बार कहा कि जल्दी उठाकर लेकिन नहीं रोज देर कर देती है नाश्ता बनाने में इसके कानों पर जूं ही नहीं रेंगती।
अनु अनु मेरे मोज़े कहां है ,अनु जल्दी से मोजे लेकर आ गई ये है और जूते कौन उठाकर लाएगा तेरा बाप ।अनु ने जूते भी लाकर जल्दी से रख दिए। तूझे दीखता नहीं है जूते गंदे हैं क्या मैं गंदे जूते पहनकर जाऊंगा। अनु जल्दी से ब्रश उठा लाई और जूते साफ करने लगी ।दीपेश का ये रोज का काम था कभी किसी चीज को कभी किसी चीज को लेकर अनु पर चिल्लाता ही था। आफिस जाते समय सारा घर सर पर उठा देता था दीपेश।आज खाने की थाली फेंक दी ये क्या सब्जी बनाई है अब खाना भी बनाना भूल गई है क्या गंवार कहीं की ।
यही सब झेलते झेलते अनु एक बच्ची की मां बन गई । बच्ची छोटी थी तब-तक तो ठीक था लेकिन बच्ची जब कुछ समझदार हुई तो जैसे ही दीपेश घर आता वो दादी के पास जाकर छुप जाती और पूछती दादी पापा मम्मी को क्यों डांटते हैं ।अब दादी क्या जवाब दे ।आज दादी को पापा को डांटते हुए देखा तो वो बच्ची भी बोल पड़ी ।सात साल की हो गई है वो भी बोलने लगी हां पापा आप मम्मी को क्यों डांटते हैं। मम्मी तो आपका सारा काम करती है ।पूरा ध्यान रखती है फिर क्यों डांटते हैं अनुरिता बेटी को गले से लगा ली बेटा ऐसा नहीं बोलते पापा है न वो बड़े है तुम अभी छोटी हो बेटा ।
आज मां की बातें सुनकर दीपेश गर्दन झुकाए खड़ा था। आगे बढ़कर मां के पांव पकड़ लिया शर्मिंदा हूं मां ,अब से ऐसा नहीं होगा ,आप कब से मुझे समझाती रही है पर मैंने कुछ ध्यान ही नहीं दिया । शुरू से मैंने पापा को आपसे ऐसे ही बात करते देखा है ।आज मुझे डाटकर आपने मेरी आंखे खोल दी। पापा का असर तो आएगा ही न आखिर उनका ही खून हूं मैं।
सुमित्रा जी बोली मुझसे नहीं बेटा माफी मांगनी है तो अनुरिता से मांग।जो हर पल घुट घुटकर जीती है।जिसकी आंखों में हर दिन आंसू रहता है तुम्हारी वजह से।उस नन्ही सी बेटी को गले से लगाओ जो तेरे प्यार को तरसतीं है। तूझे अनु को इस तरह से डांटते देखकर सहम जाती है। हां मां तुम सही कह रही हो। मैंने अनु के साथ बहुत ज्यादती की है । उसकी कोई ग़लती न होते हुए भी उसको हर समय ज़लील करता रहता हूं ।हर वक्त उसका निरादर करता हूं ।
मुझे माफ कर दो अनु मैंने तुम्हारा बहुत निरादर किया है।अब मैं ऐसा नहीं करूंगा।आओ सब मिलकर गणेश लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं ।घी के दिए जलाकर गणेश लक्ष्मी जी के सामने मन का अंधकार भी दूर कर लें ।हे गणेश जी सद्बुद्धि दो मुझे , सही रास्ता दिखाओ । सच्चे अर्थों में तो आज दीपावली मन रही है मां, हां बेटा जब जागो तभी सवेरा है। तूझे अपनी गलती समझ आ गई यही बड़ी बात है । बेटा ये तेरी पत्नी है, शादी साथ जन्मों का बंधन होता है ।निरादर न कर उसका । पति-पत्नी साथ साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए होते हैं एक दूसरे को नीचा दिखाने को नहीं।हां मां तुम सही कह रही हो ।एक बार फिर से तुम्हारा बहुत बहुत आभार धन्यवाद भगवान जी और मां तुम्हारा भी ।तुम तो बहुत दिनों से मुझे समझाती रही लेकिन मैं अपने गुरूर में अंधा था एक बार फिर से माफी मांग रहा हू मां मुझे माफ कर दो ।खुश रहो बेटा ।
सब मिलकर पटाखे और फूलझणी चलाए जा रहे खुशियों के रंग बिखर गए हैं सब ओर । धन्यवाद
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
22 अक्टूबर