क्या? सारी जिम्मेदारी बहूओं की ही है - मीनाक्षी गुप्ता
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क्या? सारी जिम्मेदारी बहूओं की ही है - मीनाक्षी गुप्ता

दिनेश जी और मालती देवी दिल्ली के एक सामान्य उच्च-मध्यम वर्गीय परिवार थे। उनके दो बेटे—विक्रांत, रोहित—और एक बेटी अनीता थी। मालती देवी की उम्र हो चली थी और उनका स्वास्थ्य अब उतना साथ नहीं देता था।

बड़े बेटे विक्रांत की शादी कामिनी से हुई। कामिनी बहुत ही सरल और अच्छे स्वभाव की थी। शादी की भाग-दौड़ के कारण मालती देवी का स्वास्थ्य और भी बिगड़ गया, जिसके कारण उन्हें आराम की ज़रूरत थी।

कामिनी ने घर आते ही सारा काम ख़ुशी-ख़ुशी अपने हाथों में ले लिया। वह अपनी मन की इच्छा से, बिना किसी शिकायत के, सुबह से शाम तक घर के सारे काम करने लगी। जब मालती देवी रसोई में जाने के लिए उठीं, तो कामिनी ने उन्हें तुरंत रोक दिया। "अरे माँ जी! नहीं-नहीं। आप बस आराम कीजिए। यह सब मेरा काम है, और मुझे अच्छा लगता है।"

शाम को जब दिनेश जी के कहने पर रोहित और अनीता मदद के लिए रसोई की तरफ़ बढ़े, तो कामिनी ने दोनों को तुरंत प्यार से मना कर दिया। उसने कहा, "अरे देवर जी! आप क्यों परेशान हो रहे हैं? आप जाइए, मैं ख़ुशी से कर रही हूँ। आप बस कमरे में आराम से बैठिए।" इसी तरह कामिनी की यह आदत थी कि वह हर काम ख़ुद ही करती थी और अगर कोई उसकी मदद करने आता भी था, तो वह उन्हें ख़ुशी-ख़ुशी मना कर देती थी।

धीरे-धीरे मालती देवी, रोहित, अनीता और यहाँ तक कि विक्रांत भी घर के हर छोटे-बड़े काम के लिए पूरी तरह कामिनी पर निर्भर हो गए। चूँकि कामिनी हर काम ख़ुशी-ख़ुशी कर देती थी, इसलिए परिवार के बाकी सदस्यों की घर का काम करने की आदत लगभग छूट चुकी थी।


विक्रांत और कामिनी की शादी को अब लगभग तीन साल हो चुके थे। इस बीच उनके घर एक प्यारा-सा मेहमान भी आ चुका था। बच्चे के साथ काम करने में कामिनी को अब काफ़ी दिक्कतें आने लगी थीं, पर वह अब भी ज़्यादातर काम ख़ुद ही करने की कोशिश करती थी। घर में बर्तन और साफ़-सफ़ाई के लिए एक मेड ज़रूर थी, लेकिन रसोई, कपड़े और बच्चे की ज़िम्मेदारी कामिनी के ही पास थी।

बच्चे की देखभाल और पूरे घर के काम के बोझ के कारण कामिनी कई बार बहुत थक जाती थी और कभी-कभी उसकी चिड़चिड़ाहट घर के माहौल को थोड़ा डिस्टर्ब कर देती थी। थकान के चलते वह अब ख़ुद पर भी ध्यान नहीं दे पाती थी।

एक शाम, विक्रांत ने कामिनी से थोड़ा नाराज़गी भरे लहजे में कहा, "कामिनी, तुम्हें ख़ुद पर भी थोड़ा ध्यान देना चाहिए। हमेशा थकी-थकी सी क्यों रहती हो? तुम्हें थोड़ा ठीक से रहना चाहिए।" कामिनी उसकी बात सुनकर बस चुपचाप रह गई, क्योंकि वह जानती थी कि उसे फुर्सत ही नहीं मिलती थी।

घर के कामों में तो कामिनी अभी भी किसी की मदद नहीं लेती थी, लेकिन अब बच्चे को संभालने में परिवार के सभी लोग कामिनी की मदद करते थे। मालती देवी ने अब कामिनी को रसोई या घर के अन्य कामों में मदद के लिए कहना पूरी तरह छोड़ दिया था। क्योंकि कामिनी को कुछ भी कहने का कोई फायदा नहीं था वो इस मामले में किसी की भी नहीं सुनती थी।

एक साल और इसी तरह बीत गया। रोहित की पढ़ाई पूरी हुई और उसने ऑफिस में काम करने वाली रिया नाम की लड़की से शादी करने की इच्छा जताई। रिया सभी को पसंद आई और जल्द ही रोहित और रिया की धूमधाम से शादी हो गई।

रोहित की शादी के बाद रिया बहू बनकर घर आई। कुछ दिन बाद, रिया ने घर के कामकाज और बाकी सब कामों में कामिनी की मदद करने के लिए पहल की। रिया ने घर का काम करते हुए एक नई व्यवस्था शुरू की। वह छोटे-मोटे काम घर के हर सदस्य को ख़ुशी-ख़ुशी सौंप देती थी। उसने मालती देवी को सब्ज़ी काटने, अनीता को प्लेटें लगाने , खाना परोसना, छत से कपड़े लाना , और रोहित को बाज़ार से सामान लाने के लिए कह दिया। और भी छोटे छोटी काम वो सबको देने लगी और सब लोग बिना किसी विरोध के, ख़ुशी-ख़ुशी उसके काम में हाथ बँटा देते थे।

इस का नतीजा यह था कि रिया हरदम फ्रेश और ख़ुश नज़र आती थी। पूरा परिवार काम के बहाने आपस में और ज़्यादा घुला-मिला रहने लगा था। यहाँ तक कि छोटे-मोटे मामलों में परिवार के सदस्य रिया से सलाह भी लेने लगे थे।

कामिनी के मायके में हमेशा से यह रिवाज़ रहा था कि घर का सारा काम सिर्फ़ घर की महिलाएँ ही करती थीं, इसलिए रिया का सभी सदस्यों से छोटे-छोटे कामों में मदद लेना और उन्हें काम सौंपना, कामिनी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। वह कई बार इशारों-इशारों में रिया को कहती भी थी कि काम करना तो बहू का फ़र्ज़ होता है, यह बाकी सदस्यों से नहीं कराना चाहिए, लेकिन रिया इस बात पर कभी ध्यान नहीं देती थी और हँस कर टाल देती थी। इस बात ने कामिनी के अंदर एक अनजाना-सा चिड़चिड़ापन और झुंझलाहट पैदा कर दी थी।

एक दोपहर, जब रिया मालती देवी को कपड़े तय करने के लिए दे रही थी, तो कामिनी से रहा नहीं गया। उसने रिया को अलग बुलाकर थोड़ा रूखेपन से कहा, "रिया, यह सब काम घरवालों से मत कराया करो। बहू का फ़र्ज़ होता है घर संभालना।"

रिया ने मुस्कुराते हुए कामिनी के कंधे पर हाथ रखा और प्यार से जवाब दिया, "भाभी, यह घर है, कोई ऑफ़िस नहीं, जहाँ सिर्फ़ एक ही कर्मचारी काम करे। सब मिलकर करेंगे, तो काम हल्का होगा।”

कामिनी की झुंझलाहट और काम को अकेले करने की उसकी ज़िद अब उसके स्वास्थ्य पर भारी पड़ने लगी थी। एक दिन सुबह, कामिनी जब रसोई में थी, तो उसे तेज़ ठंड लगी और बहुत तेज़ बुख़ार आ गया। उसे अस्पताल ले जाया गया, जहाँ पता चला कि तेज़ बुख़ार और कमज़ोरी के कारण उसे किसी गंभीर इन्फ़ेक्शन ने जकड़ लिया है। डॉक्टर ने कामिनी को कम से कम दो हफ़्ते बिस्तर पर पूरी तरह आराम करने को कहा।

कामिनी के घर लौटने पर सब ने उसे आराम करने के लिए कहा। कामिनी बिस्तर पर लेटे हुए लगातार चिंता कर रही थी कि वह तो बीमार पड़ गई, अब घर का काम कैसे होगा? किसी को काम करने की तो आदत ही नहीं है, सब कुछ कैसे 'मैनेज' होगा?

लेकिन कामिनी के बिस्तर पर लेटे रहने के बावजूद, घर धीरे-धीरे पूरी तरह से पटरी पर आ चुका था। रिया ने सब कुछ बहुत अच्छे से संभाल लिया था, क्योंकि अब घर के हर सदस्य को छोटे-मोटे काम करने की आदत पड़ चुकी थी। विक्रांत कामिनी की देखभाल करने के साथ-साथ अपना काम भी कर लेता था। उसे समय पर सूप, खाना और दवाई दे दिया करता थी।

मालती देवी, रोहित और अनीता भी अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियाँ ख़ुशी-ख़ुशी निभा रहे थे। सब लोग मिल-बाँटकर इतनी अच्छी तरह से घर संभाल रहे थे कि कामिनी की बीमारी का असर घर के माहौल पर कहीं नज़र नहीं आता था।

कामिनी ने देखा कि सब लोग ख़ुश थे और अपने-अपने काम ख़ुशी से कर रहे थे।

धीरे-धीरे कामिनी पूरी तरह स्वस्थ हो गई। स्वस्थ होते ही वह फिर से अपने पुराने रूटीन की कोशिश में रसोई की तरफ बढ़ी।

तभी रिया वहाँ आई और उसने कामिनी का हाथ पकड़ लिया।

"भाभी, एक मिनट मेरी बात सुनिए," रिया ने प्यार से पर दृढ़ता से कहा, "भाभी, क्या सारी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ बहू की होती है? यह घर हमारा परिवार है, और परिवार की ज़िम्मेदारी हम सबकी होती है। आपने देखा, आप बीमार पड़ गई थीं। अगर हम सब लोगों को काम करने की आदत नहीं होती, तो घर पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो जाता। यह कोई अच्छी बात नहीं है।"

रिया ने आगे समझाया, "जब आप बीमार थीं, तो सब लोग अपना काम समय से करते थे ताकि सारा बोझ किसी एक इंसान पर न पड़े। इसलिए घर संभल गया और आप भी बिल्कुल ठीक हो गईं। अगर मैं भी आप ही की तरह सारी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले लेती, तो आपके बाद मैं ख़ुद भी बीमार पड़ सकती थी। इसीलिए हमें सबको मिलाकर काम करना चाहिए। इससे काम भी होता है और हम सब साथ भी रहते हैं।"

रिया की बात सुनकर कामिनी को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसकी आँखें नम हो गईं। उसने तुरंत रिया को प्यार से गले लगा लिया। कामिनी ने नम आँखों से कहा, "रिया, तुमने न सिर्फ़ घर को संभाला, बल्कि मेरी आँखें भी खोल दीं। तुम्हारा तरीका सचमुच बेहतर है।" उसने देखा कि काम बाँटने से न सिर्फ़ काम हल्का हुआ, बल्कि परिवार में ख़ुशी और अपनापन भी बढ़ गया था। कामिनी ने रिया की बात मान ली और उस दिन के बाद, कामिनी ने भी रिया के साथ मिलकर, ख़ुशी-ख़ुशी घर की ज़िम्मेदारियाँ परिवार के सभी सदस्यों में बाँटनी शुरू कर दीं।

समाप्त

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