क्या पिता को सुख दुख की अनुभूति नहीं होती - शिव कुमारी शुक्ला
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क्या पिता को सुख दुख की अनुभूति नहीं होती - शिव कुमारी शुक्ला

आज दशहरा था और सुखविंदर अपने ट्रक का माल उतरवा रहा था एक अंजान शहर में।वह अंतराज्यीय परमिट से चलने वाले लम्बी दूरी के ट्रक का ड्राइवर था। खाना खा वह तन्हा लेटा था तो अपने घर पत्नी, बच्चों की याद आ गई। आज त्योहार के दिन वह अकेला इस अनजान शहर में पड़ा है और पत्नी बच्चे वहां अकेले हैं सब रावण दहन देखने जा रहे होंगे। बच्चे भी जिद कर रहे होंगे मां से चलने के लिए लेकिन भीड़ में दो बच्चों को लेकर अकेली मीता कैसे जा सकती है।पता नहीं उन्हें क्या कहकर बहला-फुसला रही होगी पर क्या करूं त्योहार के दिन ज्यादातर ड्राइवर छुट्टी कर देते हैं ऐसे में अतिआवश्यक सामान पहुंचाने के लिए रोज से डेढ़ दो गुने तक पैसे मिल जाते हैं सो वह ऐसे अवसर का फायदा उठाता है। ज्यादा पैसों से कुछ बच्चों की फरमाइश पूरी हो जाती है कुछ उनके स्कूल की फीस

के लिए जमा हो जाते हैं और कुछ आडे वक्त के लिए बच जाते हैं। त्योहार के दिन घर से दूर रहना अच्छा तो उसे भी नहीं लगता पर क्या करें मजबूरी है यही सब सोचते -सोचते नींद के आगोश में चला गया। दीवाली आ रही थी बच्चे खुश थे नये कपड़े मिलेंगे।

मीता बोली सुक्खू इस बार तुम अपने लिए नए कपड़े लोगे कैसे तो तुम्हारे कपड़े घिसे हुए हैं और हां जूते भी फट गये हैं कितनी बार सिलाओगे इस बार नए ले लो।

मेरा क्या है मीतू तुम सबको पहने -ओढे देख कर ही खुश हो लेता हूं।

नहीं इस बार मैं तुम्हारी एक ना सुननेवाली लेने ही पड़ेंगे।

सुखविंदर हंसते हुए अच्छा भाग्यवान ले लूंगा।

वह दीवाली पर सबके लिए कपड़े, खिलौने, मिठाई ले आया सिर्फ स्वयं को छोड़ कर। मीता बहुत नाराज़ हुई तो बोला अगली बार लें लूंगा किन्तु वह अगली बार कभी नहीं आता।

वह जब ट्रिप पर जाता तो उसे सप्ताह भर लग जाता। अक्सर वह घर से बाहर ही रहता हो बच्चे मां से ही अधिक घुल-मिल कर रहते। वे अपने मन की बात एवं जरुरतों के लिए मां से ही कहते। मां ही उन्हें लाकर देती तो वे सोचते मां ही हमारे लिए सब कुछ करती है पापा तो बस बाहर चले जाते हैं। ऐसे विचार उनके पापा के लिए बचपन में थे,जब वे इस दुनियां में रहने के लिए पैसों की आवश्यकता से अंजान थे। जैसे -जैसे बड़े होते गए वे यथार्थ से वाकिफ होने लगे तब उनकी समझ में आया कि पापा घर से बाहर इतने-इतने दिनों तक क्यों रहते हैं।अब वे बड़ी कक्षा में आ गए थे और अपनी जरूरतों को कम करने लगे थे कभी नये कपड़ों, खिलौने कि अब जिद नहीं करते वल्कि पापा को अपने लिए कुछ ना लेता देख दुखी होते और कहते इस बार पापा आप अपने लिए कुछ लेंगे। उनकी बात सुनकर सुखविंदर निहाल हो जाता और कहता कि जब तुम बड़े होकर कमाओगे तब मैं और तुम्हारी मम्मी अपने शौक पूरे करेंगे। अभी तो तुम चिंता मुक्त हो कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। मीता भी सुगृहणी थी एक -एक पाई बचा बचाकर जमा करती ताकि बच्चों की पढ़ाई में रुकावट ना आए।

समय रेत की तरह मुट्ठी से फिसल रहा था और देखते ही देखते मानस ने स्कूलिंग अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण कर ग्रेजुएशन के लिए कॉलेज में प्रवेश ले लिया। अपने बच्चों को अच्छा पढ़ते देख सुखविंदर फूला नहीं समाता अपने सारे दुख दर्द भूल जाता।

जिंदगी गुज़र रही थी राह की विघ्न बाधाओं को तोडते आगे बढ़ रही थी। पारिवारिक परिस्थितियों ने बच्चों को समय से पूर्व ही परिपक्व बना दिया।अब उनके दिमाग में अपने पापा की मदद करने की भावना हर समय रहती। समय चलता रहा बेटे का ग्रेजुएशन पूरा हो गया।बस अब उसका एक ही सपना था कि किसी भी तरह सरकारी अफसर बनना है सो उसने इस सबकी जानकारी अपने दोस्तों से, इन्टरनेट पर प्राप्त की। कॉलेज में उसकी तीव्र बुद्धि से प्रभावित हो दो व्याख्याता उससे बहुत प्रसन्न थे और यथा संभव उसकी मदद के लिए तैयार रहते थे।वह उनके पास भी गया मार्गदर्शन हेतु। उन्होंने समझाया कि अभी आर ए एस की जगह के लिए रिक्तियां निकलने वाली हैं सो तुम ध्यान से उसका आवेदन पत्र भर देना और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में जुट जाओ। उन्होंने उसे कोचिंग लेने की भी सलाह दी।

वह बोला सर कोचिंग की फीस तो बहुत होगी और फिर बाहर रहना खाना बहुत मंहगा पड़ेगा इतना खर्च नहीं कर पाऊंगा।

तब उन्होंने कहा एक बार अपने माता-पिता से बात करके देखो। मंहगा तो पड़ेगा किन्तु एक बार इसमें निकल गये तो तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के दिन फिर जाएंगे। बात करके तो देखो यदि जरूरत पड़ी तो कुछ यथासंभव मदद हम भी कर देगे ।यह सुन वह प्रसन्न हो गया और उसकी आंखों में ख़ुशी के आंसू आ गए।सर आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। पिता तो थे नहीं घर पर मां को पूरी बात बताई वे सोच में पड़ गईं बोलीं -बेटा तेरे पापा को आने दें फिर सोचते हैं।

पिता के आने पर जब उन्हें यह बात बताई तो वे बोले तू इतना क्यों सोच रहा है पता कर कितनी फीस लगेगी तेरा पिता अभी जिंदा है। मैं अपने मालिक से कुछ उधार मांग लूंगा।

मां बोली बचत के करीब बीस-पच्चीस हजार रुपए मेरे पास हैं।यह सुनते ही वह खुशी से उछल पड़ा। मां मैं सस्ता कोचिंग ढूंढ लूंगा और सस्ता कमरा ले खाना खुद बना लूंगा ।

वह अपने सर के पास गया और पूरी बात बताई। एक सर के दोस्त का कोचिंग चलता था वहां उसका एडमिशन कम फीस करवा कर करा दिया और फीस भी दो किश्तों में जमा कराने की अनुमति मिल गई।

दूसरे सर के रिश्तेदार का मकान उसी शहर में था सो उसमें सस्ते में एक कमरे की व्यवस्था हो गई साथ ही कुछ पैसों से भी उसकी सहायता कर दी।इस तरह उसके पिता को अग्रिम पैसा नहीं लेना पड़ा और उसका काम भी हो गया।

वह भावविभोर हो जाते समय अपने सर से मिलने गया और बोला सर मैं नौकरी लगते ही आपके सारे पैसे जल्दी से जल्दी लौटाने का प्रयास करूंगा।

उसकी पीठ पर प्यार से धौल जमाते वे बोले जा पहले मन लगाकर तैयारी कर और सब छोड़।

वह दिन -रात पढ़ाई में जुटा रहता केवल कोचिंग जाने को घर से निकलता।कभी खाता कभी भूखा ही रह जाता कि बनाने में समय नष्ट होगा। मकान मालकिन काफी सहृदय महिला थीं उसकी मेहनत एवं अच्छे व्यवहार से वे खुश थीं कभी कभार कुछ खास बनातीं तो उसे खाने को दे देतीं।कभी सब्जी दे देतीं तो वह रोटी बनाकर खा लेता।

उसकी एकाग्रता मेहनत, एवं लक्ष्य प्राप्ति का जुनून रंग लाया। उसके पेपर अच्छे हो गये।आज वह शुभ दिन आया जब वह आर ए एस की परीक्षा में दसवीं रैंक से चयनित हो गया। ग्रामवासियों ने उसके साथ-साथ उसके माता-पिता को भी फूल मालाओं से लाद दिया।उनका स्वागत ढोल नगाड़े बजा कर किया गया। गांव में कोई लड़का पहली बार ऑफिसर बनने जा रहा था। आज उसने साबित कर दिया कि जहां चाह वहां राह।

आज मां के साथ -साथ उसके पिता की खुशी का ठिकाना नहीं था। उनके बेटे ने उन्हें गौरवान्वित जो कर दिया।उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया।

कौन कहता है कि पिता को सुख दुख की अनुभूति नहीं होती है। पिता तो एक बट वृक्ष की तरह अपनी शाखाएं फैलाए अपने परिवार को सुरक्षित अपनी छांव में समेटे रखता है। स्वयं सारे झंझावातों को झेल लेता है किन्तु उनकी भनक भी अपने बच्चों और पत्नी को नहीं लगने देता ।

बच्चों के उचित विकास के लिए मां के लाड़-प्यार के साथ-साथ पिता का कुछ कठोर अनुशासन भी अपेक्षित है।वह अपनी सारी जरूरतों को दर किनार कर जीवन भर कठोर परिश्रम सिर्फ अपने परिवार की परवरिश के लिए करता है। पिता की छांव तले परिवार निश्चिंत रहकर अपने कार्य करता है क्योंकि हर अवरोध के समय पिता ढाल बनकर खड़ा जो होता है।भले ही वह अपना प्रेम दर्शाता नहीं है किन्तु अपने फर्ज से कभी मुंह नहीं मोड़ता।

पिता की छत्रछाया में ही बच्चे सही मायने में पुष्पित -पल्लवित हो पाते हैं।

शिव कुमारी शुक्ला

जोधपुर राजस्थान

19-10-25

लेखिका बोनस प्रोग्राम कहानी संख्या 4


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Shiv Kumari Shukla

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