किसकी बदौलत - अर्चना सिंह
0

किसकी बदौलत - अर्चना सिंह

मन से # असमर्थ तो थी दिशा लेकिन तन से नहीं । एक छोटी सी कम्पनी में रिसेप्शनिस्ट का जॉब करके अपना और अपनी तीन बहनों का गुजारा करती थी । माँ - बाप एक सड़क दुर्घटना में मारे गए । सारी जिम्मेदारी दिशा पर थी । परिवार के नाम पर बस एक बुजुर्ग मौसी थी । बाकी रिश्तेदार , परिचय पहचान वाले सब आ रहे थे मिलने लेकिन किसी ने नहीं कहा कि इन चार बेटियों का कोई जिम्मा ले सके ।



आखिरकार..बहुत सोच समझकर पड़ोसियों ने कहा दिशा के चाचा सोहन जी से की आप चारों बहनों को शरण दें , अर्थात अपने घर ले जाकर रखें । सोहन जी असमंजस में थे । धन - धान्य से परिपूर्ण थे वो पर धाक उनकी पत्नी रेणु की चलती थी । वो रेणु को बखूबी समझते थे । उन्होंने बच्चियों को घर मे घुसाने का रास्ता खोजा और रेणु के सामने बात रखी । पहले तो रेणु जिम्मेदारी लेने से मुकर गई ये कहकर कि उसका बेटा है उसके मामले में वो कोई समझौता नहीं करेगी । फिर सोहन जी ने कहा..."तुम्हारे घर को अच्छे से चमका कर रखेगी, रंग - बिरंगा पकवान बनाकर खिलाएगी तुम्हें और क्या चाहिए..? रेणु के आँखों की चमक बढ़ गयी...उसे अपनी पड़ोसन माला की बात याद आने लगी । माला बोलती थी...."मेरी ननद की दोनो बेटियाँ मेरे साथ रहती हैं तभी तो इतने मज़े से किट्टी और बाजार कर लेती हूँ, घर जाकर मनमुताबिक खाना भी खाती हूँ । उसने अपने पति सोहन के सामने हामी भर ली और भतीजियों को ले आने कहा ।




रेणु जानती थी सवसे ज्यादा स्वाभिमानी दिशा है । उसने दिशा से कहा..."जॉब यहाँ बहुत अच्छी मिल जाएगी दिशा, मैं भी सहयोग करूँगी इधर आ जाओ तो..! दो दिन बाद सोहन चारों भतीजियों को लेकर अपने घर पहुंचे । जैसे ही चारों घुसने लगी अंदर रेणु ने तरेरकर देखा लेकिन फिर भी पुचकार के बोली.."अंदर आ जाओ । अब रोजमर्रा का रेणु का तांडव शुरू हुआ । बाई के जाने के बाद हर दिन कभी झाड़ू पोछा कभी डस्टिंग तो कभी खुद खाना न बनाकर उन सबसे बनवाती । कुल मिलाकर चैन नहीं लेने देती । हर दिन के उत्पात से बहने तंग आ रही थीं पर मन मसोस कर ब्यस्त रहतीं ।दो महीने बीत गए पर जॉब के कोई आसार नहीं दिख रहे थे दिशा को । खुद रेणु बाहर आधा समय बिताती और अपने पन्द्रह वर्षीय बेटे को पढ़ा देने का टास्क देती । रेणु अब बच्चे को समय कम देती थी लेकिन वो बच्चा शिवम दीदी के बहुत करीब आने लगा । जो भी रेणु आर्डर करके मंगवाती वो थोड़ा ज्यादा मंगवाकर दीदी को भी देता । बीच मे दो दिन रेणु घर पर होती तो शिवम का घुलना मिलना देख चिढ़ती लेकिन शिवम उसकी एक नहीं सुनता ।



अब रेणु को बहुत चिढ़ होने लगी । एक दिन सोहन के ऑफिस वाले ग्रुप में उसके दोस्त की पत्नी ने कहा.."रेणु ! तुम दोनों के सालगिरह की पार्टी चाहिए, कब दे रही हो । रेणु ने झट दीपाली का हाथ पकड़ते हुए कहा..."अभी चलिए ! सबने मिलकर एक साथ कहा...लेकिन तुम्हें तो पता है हम बाहर का कचरा नहीं घर का शुद्ध खाना खाते हैं । सब रेणु की कामचोरी का मज़ा ही ले रहे थे कि रेणु की बातें सुनकर सब दंग रह गए..रेणु ने मुस्कुराते हुए कहा..."हाँ ..हां ! घर का मनपसंद खाना बनाऊंगी । शनिवार शाम सात बजे का समय पक्का रहा ।सबके हामी भरने के बाद रेणु ने घर मे घुसते ही दिशा से कहा.. "आठ परिवारों का खाना बनेगा और सब कुछ अच्छा होना चाहिए ।रविवार को समय से खूब सारे व्यंजन और केक बहनों ने बनाकर डायनिंग टेबल पर सजा भी दिया । आखिरी में दिशा की बहन उदिता और निष्ठा ने ट्रॉली से सुंदर से रंग - बिरंगा जार निकालकर हाथ से बने सूखी चटनी और अचार के साथ सजाया । जैसे ही रेणु की नज़र पड़ी उसने तुरंत बोला..."क्या ये गंवारों जैसा लगा रखा है हटाओ । बहुत सारे ब्रांडेड अचार रसोई में हैं । हटाने ही वाली थी जार तब तक दरवाजे पर घण्टी बजी । रेणु के आदेश मिलते ही पहले उदिता ने दरवाजा खोला ।



त्योरियाँ चढाकर चारों बहनों की तरफ मुँह टेढ़ा करके रेणु ने देखा और मेहमानों को बैठने का आग्रह करने लगी । अभी बातें शुरू भी नहीं हुई थी कि दीपाली ने बोला...अहा ! क्या बनाई हो रेणु ? ज़माने बाद तुम्हारे हाथ का खाना मिला, कितने पकवान बनाए हैं, बहुत अच्छी खुशबू आ रही है । ये सब सुनते ही रेणु की सहेली मालती ने कैसरोल खोलकर देखा तो खाने की सुगंध पूरे घर मे फैल गयी । उसी वक़्त दिशा की बहन उदिता ने अचार चटनी ज़ार को हटाने की कोशिश करनी चाही तो ये बोलते हुए दीपाली ने रोक लिया कि..क्या ले जा रही हो बेटा ? वाह अचार..चटनी ! इसी से तो खाने में स्वाद लगता है वरना फीका लगता है खाना । मुझे चखाओ तो ज़रा !




एक चम्मच से लेकर दीपाली ने अचार चटनी चखा तो उसे उसकी माँ की याद आ गयी ।बहुत दिनों बाद इतना बेजोड़ स्वाद चखने को मिला था । सब खाना ही शुरू करने वाले थे कि दिशा ने रेणु के दोस्तों से पूछा..."आंटी अगर बुरा न लगे तो हमलोग चटाई बिछाकर सारे लोग नीचे बैठकर खा लें । रेणु ने दिशा की बहन मेघा से पानी का जग छीनते हुए कहा..."तुमलोग हर किसी को एक तराजू से ही क्यों तौलते हो ? रेणु की दूसरी सहेलियों ने मुस्कुराते हुए कहा..."बहुत फॉर्मेलिटी तुम कर रही हो रेणु ? कितनी अच्छी हैं तुम्हारी जेठानी की बेटियाँ ...! मेरा तो गाँव जाना न जाने कब से छूट गया लेकिन सच कहूँ ...अरसों बाद पारिवारिक सुकून और अपनापन तुम्हारे घर आकर मिला है, और ऊपर से खाने का स्वाद...अचार..चटनी ! उफ्फ ! क्या कहना ! माँ की और मायके की याद दिला गया ।




"तुम पढ़ाई कर रही हो बेटा , या कहीं जॉब कर रही हो ? रेणु की दोस्त विजया ने पूछा । दिशा मुँह ही खोलने वाली थी बोलने के लिए की इससे पहले रेणु ने बोल दिया..."विजया मैडम ! सोहन जी दोनो भाइयों में सबसे स्मार्ट धनी और सुंदर हैं । दिशा बस किसी तरह खुद का और अपनी बहनों का पेट पालती है । गम्भीरता से विजया ने पूरी बात सुनी और बोला.."आजकल ऐसी लड़कियाँ कहाँ मिलती हैं ? मेरे बेटे आलोक के लिए मुझे दिशा बहुत पसंद है । सोहन जी विजया की बातें सुनकर भीतर से गदगद होते हुए बोलने लगे....इन चारों बहनों में भैया - भाभी के संस्कार कूट कर भरे हुए हैं । बहुत नाजुक मन है इनका सबके लिए भला ही सोचती हैं । आगे कुछ बोलते सोहन जी तब तक विजया ने अपने पर्स से निकालकर पाँच हजार रूपए दिशा के हाथ मे रखते हुए कहा..."ये शगुन है बेटा ! अगली बार आलोक के साथ आऊँगी ।



दिशा ने विजया जी के चरण छू लिए । सबने छेड़ना शुरू किया..."वाह विजया ! तुम्हें तो बैठे - बिठाए सर्व गुण सम्पन्न बहु मिल गई । सबके जाने के वक्त विजया ने दिशा की बहनों से भी गले मिलते हुए कहा..."तुम्हें जब जिस चीज की जरूरत हो बताना बेटा, हर कदम पर तुमलोग के साथ हूँ । मेरे बेटे को मेरी पसन्द पर भरोसा है, जल्दी आकर मुहूर्त निकलवाती हूँ । माहौल बड़ा सकारात्मक और सुकून देह लग रहा था ।



जैसे ही सबके जाने के बाद रेणु घर मे घुसी दिशा पैसे ही दिखाती तब तक रेणु ने पैसे छीनते हुए कहा.."मेरी बदौलत तुम्हें ये ज़िन्दगी मिली वरना कुत्तों की तरह भटकती । चारों बहने चुपचाप दबी कुचली सी बैठी थीं । सोहन जी ने कहा..."मत करो ये अत्याचार रेणु ! अब पराए घर चली जाएगी । "वही तो पूछ रही हूँ किसकी बदौलत ..? "शिवम जो इतनी देर से वॉशरूम से सारी बातें सुन रहा था उसने बाहर आते ही कहा..."मम्मी ! चाची के रूप में आप ऐसी दैत्य बन गयी हैं कि बड़े पापा की बेटियाँ आपको दुश्मन दिख रही हैं । अगर आप इन्हें अच्छे से रखकर विदा नहीं कर सकती तो मुझे यहाँ रहने का कोई हक नहीं । शिवम तैश में उठा और बाहर निकलने लगा...अब रेणु को जैसे कमजोरी सी लगने लगी ताक़तविहीन सा महसूस होने लगा । उसने तुरंत बेटे के आगे हाथ जोड़कर कहा..."अब ऐसा नहीं होगा बेटा पर ये कदम मत उठाना । शिवम ने भी नाराजगी दिखाते हुए कहा.."सिर्फ आज नहीं आगे के लिए भी कह रहा हूँ कि किसी दीदी को कोई तकलीफ दोगे तो यही करूँगा और याद रखना..आपकी बदौलत नहीं अपने किस्मत की बदौलत उन्हें सब मिला ।



रेणु नाराजगी में ही सही भतीजियों से गले मिली और खुश रखने की सोचने लगी ताकि थोड़ी देर पहले वाला दृश्य दुबारा न हो और विजया जी को फोन लगाकर दिन बैठाने की चर्चा करने लगी ।

(अर्चना सिंह)

# असमर्थ


A

Archana Singh

0 फॉलोअर्स

8 मिनट

पढ़ने का समय

0

लोगों ने पढ़ा

You May Also Like