जमा पूंजी - गीता वाधवानी
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जमा पूंजी - गीता वाधवानी

बसंत आज बहुत उदास था। उसकी पत्नी कंचन ने पूछा, पर बसंत ने कुछ नहीं बताया। कंचन को लगा कि कुछ दिनों बाद उनकी बिटिया रिद्धि का विवाह है। वह ससुराल चली जाएगी, शायद यही सोचकर उदास हो गए हैं, रिद्धि का एक छोटा भाई सचिन भी था।

यह परिवार एक मध्यम वर्गीय परिवार से भी थोड़ा और गरीब था। बसंत एक सुनार की दुकान में लगभग 25 वर्षों से कम कर रहा था। दुकान के मालिक सेठ जी को सब बाबूजी कहते थे और उनका नाम था सेठ रतनलाल। बहुत ही शालीन और दयालु व्यक्ति थे। वह बसंत को बहुत पसंद करते थे क्योंकि बसंत बहुत ईमानदार और विनम्र था। सेठ जी का एक बेटा था जिसका नाम था कुंदन। 55-56 वर्षीय अपने पिता रतनलाल के स्वभाव से बिल्कुल विपरीत था। उसके अंदर दया बिल्कुल नहीं थी,स्वार्थी और लालची था। कुंदन का एक 4 वर्षीय बेटा था आयुष।

जब बसंत ने उनके यहां नौकरी शुरू की थी तब उसकी बेटी रिद्धि केवल दो वर्ष की थी। सेठ जी कभी-कभी आयुष को भी दुकान पर ले आते थे। आयुष बसंत को काका काका कहकर उनके साथ खेलने लगता था। सेठ जी की दुकान पर सोने के साथ-साथ चांदी के भी गहने थे।

एक बार बसंत की पत्नी कंचन वहां पायल खरीदने आई, तब उसने दूर से सोने के कंगन शोकेस में देखें। वह उसे इतने अच्छे लगे कि उसे सपने में भी कंगन दिखाई देने लगे। तब एक दिन उसने अपने पति बसंत से कहा -" सुनो जी, मैंने उस दिन दुकान पर सोने के कंगन देखे थे, वह मुझे बहुत ही ज्यादा अच्छे लगे। "

बसंत -" हां पता है, मैंने देखा था,जब तुम उन्हें बड़े ध्यान से देख रही थी और मुस्कुरा रही थी, पर कंचन सोना बहुत महंगा है, हम कंगन खरीद नहीं सकते, पूरे 4400 तोला है। मेरी तो तनख्वाह सिर्फ इतनी है कि सिर्फ गुजारा हो पता है। "

कंचन-" कोई बात नहीं, अगर मैं नहीं पहन पाई तो, पर हम कुछ सालों में पैसा जोड़कर रिद्धि के लिए तो खरीद सकते हैं ना कंगन, मैंने पहने या रिद्धि ने एक ही बात है, हम उसकी शादी में उपहार देंगे, तब तक थोड़ा-थोड़ा करके पैसा जोड़ लेंगे। "

बसंत जानता था कि कंचन का बहुत मन है सोने के कंगन पहनने का, पर वह तो मजबूर था। उसने कहा, " अरे पगली! थोड़ा-थोड़ा जोड़ लेंगे, तो क्या तब तक सोने का दाम वही रहेगा, बढ़ेगा नहीं, चलो फिर भी कोशिश करेंगे। "

दुकान पर बसंत की उदासी को बाबूजी ने भांप लिया और उससे उदासी का कारण पूछने लगे।

बसंत -" कंचन ने दुकान पर सोने के कंगन देखे थे तब से उसकी यही इच्छा है की बेटी के बड़े होने तक हम कुछ पैसे जमा करें और वैसे ही कंगन उसकी शादी में उपहार दे। तब से मैं यही सोच रहा हूं कि पैसे कैसे जमा करूं। "

बाबूजी-" बसंत, मैं तेरी तनख्वाह बढाने ही वाला था, तू समझ लेना तेरी तनख्वाह उतनी ही है और बाकी पैसे हर महीने बैंक में जमा करते रहना। "

बसंत -" ठीक है बाबूजी, पर मैं यहीं से कंगन लूंगा, तो आपको ही हर महीने कुछ रुपए देता रहूंगा, आप ही रख लीजिएगा, मेरे पास तो जमा करने के लिए रुपए बचते ही नहीं है तो बैंक में खाता खुलवाकर क्या करता। "

बाबूजी-" वैसे तो बैंक में ही ठीक रहेगा, लेकिन अगर तेरा खाता नहीं है तो चल जैसा तू चाहता है वैसा ही सही। "

बसंत खुश हो गया, वह अपनी बचत के हिसाब से कभी ₹100 कभी 150 रुपए बाबूजी के पास हर महीने जमा करता रहता था। कुछ समय बाद उसका एक बेटा भी हुआ जिसका नाम सचिन था।

बाबूजी हर वर्ष उसकी तनख्वाह बढाते रहते थे, लेकिन साथ-साथ खर्च भी बढ़ रहे थे। अब वह कभी ₹200 और कभी 250 रुपए जमा करने की कोशिश करता था। बाबूजी हर महीने एक डायरी में लिखते जाते थे।

देखते देखते 10 वर्ष बीत गए थे। उसने बाबूजी से पूछा तो उन्होंने बताया कि लगभग 18000 जमा हो चुके हैं और इधर सोने के भाव भी बढ़ गए थे।

तनख्वाह में से पैसे कटवाने की बात कंचन को उसने नहीं बताई थी। उसने सोचा था कि अचानक से कंगन खरीद कर जब कंचन के सामने रखेगा तो वह बहुत ज्यादा खुश हो जाएगी।

इसी तरह कभी त्यौहार, कभी बच्चों की पढ़ाई का खर्च, कभी रिश्तेदारी में शादी ब्याह, खर्च होते रहे और साल पर साल बीतते रहे। 10 साल और बीत चुके थे। बसंत ने अब 20000 और जोड़ लिए थे।

एक दिन बाबूजी ने कहा-" बसंत, तू अब अपने रुपए ले जा, मेरी भी उम्र हो चली है, ऐसा ना हो कि अचानक मुझे किसी दिन कुछ हो जाए। "

बसंत -" ऐसा ना कहे बाबूजी, अभी तो आपको रिद्धि बिटिया की शादी में आशीर्वाद देने आना है और आपको अपने पोते आयुष के लिए एक अच्छी लड़की भी ढूंढनी है। भैया जी, ( कुंदन) दुकान संभाल रहे हैं अब आप सिर्फ आराम करिए और अपना ध्यान रखिए। "

बसंत के बेटे सचिन की पढ़ाई का खर्च बहुत हो गया था, अब वह 3 साल से कुछ भी जोड़ नहीं पा रहा था। रिद्धि टीचर ट्रेनिंग कर चुकी थी। उसके लिए अच्छे रिश्ते भी आ रहे थे।

बसंत ने अच्छा रिश्ता देखकर उसकी शादी तय कर दी थी। अभी एक महीना पहले ही रिद्धि की नौकरी लगी थी। और इधर बाबूजी को अचानक एक दिन हार्ट अटैक आया और वह चल बसे।

बाबूजी के कारण बसंत बहुत दिन तक चुप रहा और फिर उसने भैया जी से कहा-" भैया जी, मैं कई वर्षों से बाबूजी के पास सोने के कंगन खरीदने के लिए पैसे जमा करवा रहा था, आप उनकी डायरी में देखकर बताइए की कुल कितने रुपए जमा हुए हैं और उनमें से कंगन आ सकेंगे या नहीं। "

कुंदन-" पैसे, कौन से पैसे, यह क्या बकवास है। बाबूजी के जाने का फायदा उठा रहे हो, उन्होंने तो मुझे कभी नहीं बताया। "

बसंत-" भैया जी, वह एक डायरी में मेरा हिसाब लिखते थे,आप चेक कीजिए, डायरी आपको मिल जाएगी और हिसाब भी, मेरी बेटी रिद्धि की शादी है, उसको कंगन देने की उसकी मां की बहुत इच्छा है। "

कुंदन-" कह दिया ना, कुछ नहीं है, ऐसे

कौन किसी के पास पैसे रखवाता है, हर कोई अपने घर में या फिर बैंक में रखता है, चले आते हैं बेवकूफ बनाने। "

इसी वजह से बसंत बहुत उदास था। बाबूजी पर उसे पूरा भरोसा था। पेट काट काट कर उसने पैसे जमा किए थे, वह भी गए। फिर उसने सोचा कि चलो कोई बात नहीं। भैया जी को उनकी नियत का फल ईश्वर खुद देगा। मैं अपनी रिद्धि के विवाह का खुशी भरा माहौल क्यों खराब करूं।

आज मेहंदी है। सभी बहुत खुश हैं। दिन में कीर्तन हो चुका है। कल विवाह है और आज रात को मेहंदी। तभी अचानक कंचन को सोने के कंगन याद आ गए।

कंचन-" कितनी कोशिश करने के बाद भी हम रिद्धि के लिए सोने के कंगन खरीदने के लिए पैसे जमा नहीं कर पाए। "

बसंत-" शादी के लिए थोड़ा बहुत पैसा है क्या यह कम है। जो है उसी में खुश रहो। "

कंचन-" हां आप ठीक कह रहे हो। "

विवाह के समय अचानक आयुष आ गया। जिसे देखकर बसंत और कंचन बहुत ज्यादा खुश हो गए। आयुष ने पूछा -" काका,रिद्धि कहां है? "

बसंत-" अंदर ही है बेटा। "

आयुष तुरंत अंदर गया और रिद्धि को दोनों हाथों में सोने के कंगन पहना दिए।

बसंत ने हैरान होकर कहा -" यह क्या बेटा? "

आयुष-" काका, रिद्धि मेरी छोटी बहन जैसी है और फिर मैंने किया ही क्या है यह कंगन के पैसे तो आपके ही थे, मुझे दादाजी ने सब कुछ बता दिया था, आप मेरे पापा को उनके व्यवहार के लिए माफ कर दीजिए। "

बसंत-" बेटा इतना आईडिया तो मुझे भी है की कंगन के पूरे पैसे जमा नहीं हुए थे और अब सोने का भाव भी बहुत ज्यादा बढ़ चुका है उस हिसाब से तो कंगन 60-65000 के होंगे और मैं इतने पैसे नहीं जोड़ पाया था। मुश्किल से 37 या 38000 ही हुए होंगे। तो बाकी पैसे-----? "

आयुष -" काका, भूल जाइए सब कुछ, मैं भी तो अपनी बहन को कोई उपहार देता या नहीं, अब हिसाब छोड़िए और शादी इंजॉय कीजिए "और आयुष बसंत और कंचन का हाथ पकड़ कर, म्यूजिक पर नाचने लगा।

बसंत का मन आयुष को ढेरों आशीर्वाद दे रहा था। उसकी जमा पूंजी उसे मिल गई थी।

अप्रकाशित स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली

#सोने के कंगन


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Geeta Wadhwani

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