ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया - सुदर्शन सचदेवा
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ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया - सुदर्शन सचदेवा

आज के जमाने में ज़िंदगी भी सोशल मीडिया की तरह हो गई है—कभी चमकदार तस्वीरें, तो कभी अंदर छिपे संघर्ष।

अवनी एक युवती थी, दिल्ली में नौकरी करती थी। बाहर से उसकी ज़िंदगी बहुत सुखी दिखती थी—अच्छी सैलरी, स्टाइलिश कपड़े, और हर वीकेंड दोस्तों संग पार्टी। लोग कहते, “वाह! कितनी खुश है अवनी।”

पर सच्चाई कुछ और थी।

हर रात वह अपने छोटे-से कमरे में अकेली बैठी माँ की याद में रोती थी। पिता की तबीयत खराब थी और उसे घर की जिम्मेदारियों के साथ नौकरी का तनाव भी उठाना पड़ता था।


दूसरी ओर, उसके ऑफिस में काम करने वाला रवि था। देखने में साधारण, हमेशा मुस्कुराता हुआ। सभी को लगता, “रवि तो बहुत भाग्यशाली है, हमेशा खुश रहता है।”

लेकिन किसी को नहीं पता था कि उसकी मुस्कान के पीछे एक अधूरी कहानी थी। वह अपने छोटे भाई की पढ़ाई और माँ के इलाज के लिए दो नौकरियां करता था।


एक दिन ऑफिस में दोनों को साथ एक प्रोजेक्ट मिला। बातचीत के दौरान जब उन्होंने एक-दूसरे के जीवन की सच्चाई जानी, तो दोनों को एहसास हुआ—“हर इंसान के जीवन में कहीं धूप है, तो कहीं छाया।”

उन्होंने सीखा कि दूसरों की चमक देखकर अपने जीवन को तुच्छ नहीं समझना चाहिए।


धीरे-धीरे अवनी ने अपनी परेशानियों को स्वीकार किया और परिवार से खुलकर बात की। रवि ने भी अपनी थकान छिपाने के बजाय मदद मांगी। दोनों के जीवन में संतुलन आने लगा।


अवनी ने कहा, “सच में रवि, ईश्वर की माया बड़ी अद्भुत है—कहीं धूप, कहीं छाया।”

रवि मुस्कुराया, “हाँ, शायद यही जीवन का सौंदर्य भी है और सच भी है |


सुदर्शन सचदेवा


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Sudarshan Sachdeva

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