अक्सर हम लड़कियों को कभी न कभी बोझ समझा जाता है, कभी कभी ही क्या कुछ घरों में तो हमेशा ही बोझ समझा जाता है
अहमियत दी जाती है तो उस घर के बेटों को, बेटियाँ तो बोझ समझे जाने के बोझ तले ही दबी रही हैं।
ऐसी ही एक लड़की थी दिया,,, उसका नाम उस पर खूब भाता था, इसलिए नहीं कि उसने जन्म लेते ही सारे घर को रोशन कर दिया था, बल्कि इसलिए कि जन्म से ही उसके नसीब का जलना शुरू हो गया था
तीन बेटों के बाद जन्म हुआ था दिया का, माँ ने कहा कि चौथा भी बेटा ही होता, अर्थी को चारों कंधे पूरे हो जाते।
माँ के इन शब्दों ने ही दिया कि बद किस्मती लिख दी।
जन्म से लेकर हमेशा उसे बोझ ही समझा गया, माँ ने कहा, भाइयों ने समझा बस एक दिया के पापा ही थे जो उसे बोझ न समझ कर उसे बोझ नहीं
समझते थे लेकिन माँ के सामने मजबूर थे।
दिया को माँ और भाइयों का वो प्यार नहीं मिल पाया जिसके लिए उसने हज़ार जतन किये।
दिया बचपन में जान कर हर खेल में हार जाती , और अपने भाइयों को जीता देती, माँ के आगे पीछे घूमती, ताकि किसी तरह उसे प्यार मिल जाये। लेकिन नतीजा सिफ़र ही रहा।
माँ सिर्फ़ भाइयों को गोद में भरे रहती, उन्हें सब कुछ समझती, दिया छोटी थी लेकिन माँ भाइयों को अपने साथ सुलाती और दिया को एक अलग बिस्तर दे रखा था।। दिया अंदर ही अंदर घुट घुट कर पलती गई।
माँ का दिया के लिए बर्ताव देखकर भाई भी दिया को ठेस पहुंचाते,। कई बार दिया को लगता कि कहीं वो माँ कि सौतेली बेटी तो नहीं है लेकिन नहीं ये सच नहीं था, दिया माँ की सगी बेटी थी, यही सोच कर दिया ने सब्र कर लिया।।
दिया अभी 12 करके BA कर रही थी, भाइयों को तो पढ़ाई छोड़े हुए सालों बीत गए थे, अब उन्होंने छोटी मोटी दुकानें खोल रखी थी
लेकिन दिया को पढ़ने का शौक़ था, उसे इस घर से सिर्फ एक ही खुशी मिली थी कि उसकी पढ़ाई नहीं रोकी गई और उसके पीछे भी उसके पापा का ही हाथ था लेकिन दिया की ख़ुशी ज़्यादा दिन तक नहीं टिकी और 12वीं करने के बाद ही दिया की शादी तय कर दी गई।
पापा के मना करने के बाद भी माँ और भाइयों ने रट लगा ली थी कि सस्ते में छुट रहे, लड़के वाले कुछ नहीं मांग रहे, लड़की है बोझ है,,जल्दी निकाल दो।
उफ्फ्फ, ये बोझ शब्द दिया के कानों में गरम सीसे कि तरह जा गिरता था।
दिया ने ये सोच कर शादी को हाँ कर दी कि कम से कम अब बोझ शब्द सुनने को नहीं मिलेगा,एक घर होगा जिसे मैं अपना कह सकूँगी, जहाँ मेरी इच्छा मेरे आत्मसम्मान को भी सम्मान मिलेगा।
बहुत कम उम्र में दिया कि शादी कर दी गई, दिया ससुराल चली गई लेकिन कुछ दिनो बाद ही दिया को अहसास हो गया कि दिया एक घर से निकलकर दूजे घर का बोझ बन गई है।
दिया को हर वक्त ताने मारे जाने लगे कि उसके मायके वालों ने उसे बिल्कुल खाली हाथ घर से निकाल दिया और काफी हद तक यह सच भी था क्योंकि भाइयों की शादी में लाखों रुपए का सोना चढाने वाली उसकी मां के पास दिया की शादी के लिए एक अंगूठी तक के पैसे नहीं थे, दिया की शादी सिर्फ़ उन पैसों में कर दी गई जो दिया ने ट्यूशन पढ़ाकर कमाए थे।
दिया के घर से कभी कोई कुछ नहीं भेजता था, जबकि तीज त्योहार पर देवरानी के घर से त्योहार आता था। दिया मन मसोस कर रह जाती।
दिया को नौकरी के लिए पति ने कहना शुरू कर दिया, सारा दिन दिया इधर उधर नौकरी तलाश करती फिरती। आख़िर में दिया की नौकरी एक स्कूल में लग गई।कुछ दिन बाद दिया को पता चला कि वह मां बनने वाली है, दिया को अंदरूनी कमज़ोरी बहुत आ गई थी जिसके चलते दिया ने नौकरी करने से मना कर दिया पर पति द्वारा लगातार प्रताड़ित करने के बाद वह नौकरी पर वापस जाने लगी।
उसने एक दो बार अपने मायके में इस बात को लेकर बात करनी चाहिए लेकिन मां और भाइयों का रवैया दिया के लिए बहुत बुरा रहा, उनका कहना था कि हमने ब्याह दिया, अब हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं, अब तुम्हारा नसीब है। कुछ वक्त बाद दिया ने एक बच्चे को जन्म दिया। बच्चे को जन्म देकर दिया को लगा कि शायद अब उसकी जिंदगी में भी बहार आ जाएगी लेकिन दिया के बच्चे को जन्म देने के बाद से दिया के लिए मुश्किलें और बढ़ गई । ससुराल वाले दिया से दूसरे दिन ही घर का सारा काम कराने लगे, जिससे दिया की सेहत बिगड़ती चली गई। अपने छोटे बच्चे को लेकर दिया स्कूल में पढ़ाने भी जाती और घर आकर काम भी करती और फिर भी दिया को वही शब्द सुनने को मिलते कि तू घर का बोझ है।
इन सब चीजों के बीच दिया ने अपने पढ़ाई जारी रखी, वह अपनी कमाई का कुछ हिस्सा छुपा कर अपनी पढ़ाई में लगा देती। कुछ सालों में दिया ने पोस्टग्रेजुएट और प्रोफेशनल डिग्री हासिल कर ली, तब तक दिया को इतनी समझ आ चुकी थी कि वह बोझ नहीं है और दिया ने अपने ससुराल को छोड़ने का फैसला कर लिया। दिया ने बहुत शांतिपूर्वक अपने ससुराल को छोड़कर अपने बेटे को लेकर अपनी ज़िन्दगी शुरू कर दी। लोगों ने उस वक्त दिया को बहुत ताने मारे लेकिन दिया ने इन सब बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया। मायके से भी दिया का नाता लगभग खत्म हो चुका था । कभी मायके वालों ने कोशिश भी नहीं करी कि दिया अकेले किस तरह से बच्चे के साथ ज़िन्दगी गुज़ार रही है,लेकिन कुछ वक्त बाद दिया के पिता की मौत हो गई और उसके बाद से दिया की मां का बुरा वक्त शुरू हो गया । जिन बेटों को दिया की मां गोद में भर भर कर बैठती थी उन बेटों ने दिया की मां को खुद से अलग कर दिया और अपनी अपनी बीवियों के साथ रहने लगे।
दिया को माँ के हालात पता चले तो दिया ने माँ की मदद करने का फ़ैसला किया, क्योंकि अब दिया एक अच्छे मुक़ाम पर थी ।
दिया हर महीने माँ को इतनी रकम भेजने लगी कि उस का गुज़ारा अच्छे से होने लगे।
दिया कि माँ पैसे देख कर दिया से मीठा बोलने लगी, जो फ़ोन पहले करने चाहिए थे वो फ़ोन अब रोज़ाना करने लगी।
लेकिन दिया को इस बात का एहसास था कि दिया की मां के दिल में उसके लिए मोहब्बत आज भी नहीं है। वह बस अपना वक्त अच्छे से गुज़ारना चाहती है इसलिए अब दिया से बातें करने लगी है।पर दिया को वह सब आज भी याद है वह मां के प्यार के लिए तरसती थी, जब वह मां के आगे पीछे घूमती थी, जब वह मां के घर जाकर मां के पल्लू में सर रखकर रोना चाहती थी, जब वह ससुराल में आ रही मुश्किलों को माँ से शेयर करना चाहती थी,जब वह उन मुश्किलों का हल माँ से चाहती थी। उस वक्त यह माँ मौजूद नहीं थी लेकिन आज बेटों के तिरस्कार कर देने के बाद मां दिया को ऐसे ज़ाहिर कर रही है, जैसे उनसे ज्यादा प्यार दिया को कोई करता ही नहीं।
दिया को सब बातें समझ आती है लेकिन वह फिर भी मां की मदद कर रही है ।
दिया जानती है कि माँ के बर्ताव कि वजह से उसे आज अकेले ज़िन्दगी गुज़ारनी पड़ रही है। अगर मां का बर्ताव बचपन से सही होता तो उसे घर का बोझ न समझा जाता। जल्दबाजी में उसकी शादी करके घर से ना निकला जाता और उसे किसी ऐसे इंसान के हाथ में ना दिया जाता जो उसे संभाल न पाए ।
यह सब मां का किया धरा है जिन सपूतों पर मां इतराया करती थी, आज वह सपूत मां के लिए कपूत साबित हो गए, यही माँ के लिए सबसे बड़ी सज़ा है और यह दिया के दिल से ना निकली हुई आह का असर क्योंकि भले से दिया ने कभी माँ को बद्दुआ नहीं दी लेकिन ऊपर वाले ने वक्त का पहिया घूमा दिया ।
आज दिया उनके लाख बुलाने पर भी घर नहीं जाती, क्योंकि दिया जानती है कि वो अब अपना बोझ ख़ुद उठाने के क़ाबिल हो गई है और दिया को घर का बोझ समझने वाली मां आज अपने बेटों के घर का बोझ बन गई है।
लेखिका : शनाया अहम
