(सखियों हम आम तौर पर देखते हैं हर घर में जब सास का अंत समय आता है तब उसे समझ आता है मगर तब तक उसकी बहू की जिंदगी तो बर्बाद हो चुकी होती है। जो गलती बहू ने की ही नहीं । उसे उसकी सजा मिल गई होती है। आप सब सोच रही होगी। मेरी कहानी का यह कैसा अंत है मगर जब तक ऐसी औरते अपने आप को अकेला नहीं महसूस करेगी तो वह कैसे समझ पाएगी की एक औरत को दूसरी औरत का दुश्मन बनकर रिश्ते का फायदा नहीं उठाना चाहिए बल्कि एक दूसरे के प्रति प्यार और सम्मान होना चाहिए भले वह सास बहू हो या देवरानी जेठानी हो या ननद भाभी हो।)
अरे बहू कहां रह गई सूरज सर पर चढ़ आया है, मगर अभी तक मुझे चाय नहीं दी। मुझसे मेरे पैरों में जोड़ों के दर्द के कारण ज्यादा चला नहीं जाता, फिर भी न जाने यह बहू को क्या हो जाता है। जो मेरा लिहाज करना तो दूर दया तक नहीं आती कि अपनी सास को गरमा गरम चाय पिला दे बड़बड़ाती हुई रमा जी हाल में रखी सोफा पर बैठ गई।
वह मम्मी जी मैं चाय बना ही रही थी कि मुन्ना उठ गया तो मैं उसके लिए दलिया गैस पर चढ़ाकर आपके लिए चाय बनाकर लेकर आ गई हूं इसीलिए शायद थोड़ी देर हो गई कहते हुए सोना ने अपनी सास रमा के हाथ में चाय की प्याली थमा दी।
रमा जी ने कुछ नहीं कहा, बस चाय पीने में व्यस्त हो गई।
इसी तरह रोज सुबह उठते ही रमा जी का अपनी बहू सोना पर हुकुम चलाना चालू हो जाता। जो रात होने तक खत्म होने का नाम ही नहीं लेता था। बहु कुछ भी कर ले। रमा जी उसमें कमी निकालने में बिल्कुल भी देर नहीं लगाती। शुरुआती दिनों में तो सोना ने कुछ नहीं कहा।
मगर धीरे-धीरे वह अपनी सास रमा जी के डर से अपने मन के अंदर घुटन महसूस करने लगी और धीरे-धीरे उसकी यह घुटन उसकी बीमारी में तब्दील हो गई। किशन अपनी पत्नी की ऐसी हालत देखकर अपनी मां को समझाने की कोशिश करता मगर रमा जी उसे तुरंत जोरू का गुलाम कहकर उसे धिक्कार देती।
मगर रामकिशोर जी अपनी पत्नी रमा जी के ऐसे व्यवहार को देखकर हमेशा उन्हें समझाते। देखो रमा वह तुम्हारे घर बहू बनकर आई है। इसका मतलब यह नहीं है कि वह एक कठपुतली है,वह भी एक इंसान है।
सुबह उठते ही जो तुम उसके ऊपर हुकुम चलाना शुरू करती हो। जो रात तक छोड़ती नहीं हो। उसे दो घड़ी भी तुम आराम करने नहीं देती हो। वह इस घर की लक्ष्मी है। वह कोई घर की कामवाली बाई नहीं है।
याद करो जब तुम इस घर में बहू बनकर आई थी। तब तुम तो दोपहर में हमेशा आराम किया करती थी, तो अब क्या हो गया है । जो रसोई का काम निपटते ही तुम उसे और दूसरे कामों में उलझा देती हो और फिर तब तक चाय की और रसोई का वक्त हो जाता है।
देखो रमा यह अच्छी बात नहीं है मैंने तो कभी नहीं देखा कि कभी तुमने उसे प्यार से पूछा हो कि बहू तुमने कुछ खाया कि नहीं। तुम सिर्फ अपने खाने की फिक्र रखती हो। तुम्हें क्या पसंद है, वह तुम बनवा लेती हो ।
मगर क्या बहू से कभी पूछा कि बहू तुम्हें क्या पसंद है और तुम भी खाओ । तुम औरत होकर भी औरत की दुश्मन हो। तुम तो यह भी नहीं सोचती हो कि आखिर उसके लिए रसोई में हमेशा खाने को बचता है या नहीं। रही पैरों में जोड़ों के दर्द वाली बात । मैं मानता हूं तुम्हारे पैरों के जोड़ों में दर्द रहता है।
मगर जब बहू की तबीयत किसी दिन खराब हो जाती है तो तुम उस पर गुस्सा हो जाती हो। मैं पूछता हूं क्यों?? क्या वह इंसान नहीं है??हो सकता है मेरी यह बातें अभी तुम्हें बुरी लग रही हो। मगर एक दिन तुम्हें इसके लिए पछताना होगा। जब तुम्हारा बुढ़ापा आएगा। यह हमेशा याद रखना बुढ़ापे में न बेटी न बेटा बल्कि असली सहारा बहू होती है।
अगर तुम इस तरह उसे सताओगी तो वह बुढ़ापे में तुम्हारा क्या सम्मान करेगी। वह अभी तुम्हारे डर से कुछ नहीं बोल पा रही है मगर जब तुम बूढी हो जाओगी,लाचार हो जाओगी।
तब तुम भी ऐसे ही व्यवहार के लिए तैयार रहना और हां बिस्तर पर बैठे बैठे अपने द्वारा सताए गए समय को याद करना और पछताती रहना क्योंकि हम सब जानते हैं । हम जैसा देंगे वैसा ही हमें मिलेगा ।
पति राम किशोर जी की बातें सुनकर रमा जी तुरंत बोल उठी ।
अजी ऐसा कैसे होगा। मैं उसकी सास हूं । अपने बेटे के पीछे उसे ब्याह लाई हूं तो,उसे तो मेरी सेवा करनी ही होगी। बहू का फर्ज तो उसे निभाना ही होगा।
पत्नी रमा की ऐसी बेमतलब की बातें सुनकर रामकिशोर जी निराश हो जाते क्योंकि वह जान गए थे की पत्नी रमा को समझाने का कोई फायदा नहीं है।
कुछ दिन बाद ही अचानक रामकिशोर जी को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया से चले गए।
अब रमा जी ज्यादा चल फिर नहीं पाती थी। ज्यादातर समय उनका बिस्तर पर ही गुजरने लगा । अब उनका अपनी बहू सोना के साथ चैन से बातें करने का हंस बोलने का बहुत मन करता। मगर बहू सोना तो आए दिन बीमार रहने लगी थी, तो उनके पास कौन बैठने वाला था। किशन तो रोज अपनी ऑफिस के लिए निकल जाता।
बहु सोना भी थोड़ा बहुत जितना उससे काम होता। वह करती और चुपचाप अपने कमरे में चली जाती क्योंकि अब उसे बात करना किसी से भी अच्छा नहीं लगता था।
आज अचानक शाम के वक्त जैसे ही किशन ने घर में कदम रखा। रमा जी लगभग रोते हुए बोल उठी। बेटा किशन मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई। जो मैंने बहु का कभी लाड प्यार नहीं किया। कभी उसे सम्मान नहीं दिया। बस दिन भर बिना दया भाव के उस पर हुकुम चलाती रही।
आज बहू की ऐसी हालत की जिम्मेदार मैं ही हूं। तुम्हारे बाबूजी ठीक ही कहते थे। जैसा करो वैसा भरो, जैसा दो वैसा पाओ। तुम्हारे बाबूजी के जीते जी तो मैं यह नहीं समझ पाई मगर आज बिस्तर पर इस तरह पड़े पड़े मेरा दिन नहीं गुजरता।
तब मैं आज ये बातें समझ पाई हूं और मैंने अपनी बहू को बहुत सताया है। मुझे बहू सोना तो क्या ईश्वर भी कभी माफ नहीं करेंगे।
तुम्हारे बाबूजी हमेशा कहा करते थे। बुढ़ापे का असली सहारा न बेटी न बेटा बल्कि बहू होती है मगर मैंने तो खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है अगर मैंने पहले उसे बहुत प्यार और सम्मान दिया होता तो आज मेरी हालत ऐसी नहीं होती और ना ही आज उसकी ऐसी हालत होती। बेटा मुझे माफ कर दे । मैंने ही तुम दोनों की जिंदगी बर्बाद कर दी। तुम दोनों की सारी खुशियां छीन ली।
सोना जो इतनी देर से बिस्तर में पड़ी पड़ी अपनी सास की यह बातें सुन रही थी तो उसका मन भी ग्लानि से भर आया और वह धीरे-धीरे उठकर अपनी सास तक आ गई और कहने लगी। मम्मी जी मैंने तो आपको इस घर में बहुत सम्मान दिया मगर आपने मुझे कभी भी दो प्यार के शब्द नहीं बोले।
आपकी हुक्म चलाने वाली आदत और क्रोध की वजह से ही मैं मन ही मन आपसे डरने लगी और आज मेरी हालत ऐसी हो गई है । मैं जब ब्याह कर इस घर में आई थी। तब आपकी जो उम्र थी। वही मेरी उम्र अब हो गई है मगर उस वक्त भी आप बूढ़ी खुद को कहने लगी थी और आज भी कह रही है और मैं तब भी बूढ़ी नहीं थी और आज भी बूढ़ी नहीं हूं । हम दोनों के उम्र का यह फर्क मुझे कभी समझ नहीं आया।
हां मैं प्यार और सम्मान आज भी आपका उतना ही करती हूं जितना इस घर में आई थी। उस वक्त किया करती थी। मगर मम्मी जी इंसान को जिंदगी एक ही मिलती है इसीलिए उसे प्यार और सम्मान के साथ गुजारना चाहिए ना कि रिश्ते का फायदा उठाना चाहिए।
आपने सास होने का फायदा हमेशा उठाया जिसकी सजा अब हम दोनों को ही मिल रही है जबकि मैंने तो कुछ किया भी नहीं कहकर सोना रोने लगी ।
रमा जी और किशन उसे बहुत समझाने लगे मगर सोना का रोना कम नहीं हुआ और अचानक उसे दिल का दौरा पड़ गया और इस दुनिया को छोड़कर चली गई।
अब रमा जी जीवन में बिल्कुल अकेली हो गई थी और पछतावे के अलावा उनके पास कुछ नहीं बचा था ।
स्वरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम