बुढ़ापा
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बुढ़ापा

महिमा जी अपनी पोती की शादी में सम्मिलित होने कानपुर गईं थीं।वे सोफे पर बैठीं थीं। चाय का दौर चल रहा था और भी रिश्ते दार महिलाएं बैठीं थीं आपस में चुहलबाज़ी, गपशप चल रही थी।तभी रुपाली उनके भतीजे की पत्नी आती दिखाई दी वह कमर झुका कर चल रही थी। एक तो रुपाली का कद छोटा था और ऊपर से झुक कर चल रही थी तो महिमा को अजीब सा लगा।वे अनायास पूछ बैठीं रुपाली तुम्हारी कमर में दर्द है क्या झुक कर क्यों चली रही हो।

जबाब सुन महिमा जी का मुंह खुला का खुला रह गया। रुपाली बोली नहीं चाची दर्द नहीं है अब घर में बहू, दामाद आ गये तो बुढ़ापा आ गया सो बस ऐसे ही चलती हूं।

कुछ देर की चुप्पी के बाद महिमा जी बोलीं रुपाली तुम्हारा बुढ़ापा आ गया तो अब मैं क्या बोलूं। मैं तो तुम्हारी चाची सास हूं कम-से-कम तुम से पंद्रह साल तो बड़ी होऊंगी मेरे भी तीन दामाद कब से आ गये मुझे तो बिल्कुल दोहरा हो कर चलना चाहिए।यह सुन सभी का एक सम्मिलित हंसी का फव्वारा छूटा।

रुपाली तुमने बुढ़ापे का क्या ही बढीया संबंध जोड़ा है बहू और दामाद के आने से। अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है मुश्किल से पचास बावन की होगी। बुढ़ापे को छोड़ो और अपना जीवन अच्छी तरह जिओ।इसी वार्तालाप के बीच रुपाली का पति प्रमोद भी वहां आ गया।वह बोला चाची इसने तो बहू के आने के बाद से सास बन पूरा सास का चोला पहन लिया है कुछ भी कहो, कहीं आने-जाने को, घूमने को तो बस एक ही जवाब मिलता है कि घर में बहू -बेटी है इस उम्र में हमें यह सब करना शोभा देता है क्या। मैं तो परेशान हो गया यह सब सुनते सुनते। ऐसा लगता है कि हमारा व्यक्तिगत जीवन तो खत्म हो गया बहू के आने से।

तभी रिश्ते में प्रमोद की भाभी लगतीं थीं वे बोलीं लल्ला सही तो कहे है रुपाली। बेटे-बहू के सामने तुम ये सब चोंचले करते अच्छे दिखो है क्या।

ये लो चाची एक ओर रुपाली की हम विचार तैयार है। अन्य महिलाएं भी जो वहां बैठीं थीं सोचने लगीं। क्या उनके मन में भी यही विचार आ रहे हैं।वे भी बेटे-बहू और पोते -पोती होने के बाद क्या अपने को बूढ़ा और निष्क्रिय नहीं समझने लगीं हैं। पहले वे कितना घर का काम करने के बाद भी अपनी रुचि का काम सिलाई,बुनाई घर की सजावट का काम कर लेती थीं बच्चों को भी पढ़ातीं थीं फिर भी कितना सक्रिय रहतीं थीं।कभी पति के संग पार्क में घूमने जाना,कभी सहेलियों के साथ शापिंग पर जाना,कभी किसी के बच्चे की जन्मदिन की पार्टी में जमकर नाचना गाना ।पर अब क्या करतीं हैं बुढ़ापे का सहारा लेकर बैठीं रहतीं हैं या लेटी रहतीं हैं और टीवी के सामने बैठ कर समय व्यतीत करतीं हैं।

तभी महिमा जी माहौल को हल्का बनाते हुए बोलीं क्या हुआ तुम सब ऐसे चुप क्यों हो गईं । तुम में से भी अधिकांश सास बन चुकी हो बेटे -बहू, बेटी-दामाद के

साथ -साथ बच्चे भी आ गये हैं अब आप लोगों ने भी नया सास का चोला ओढ़कर टिपीकल सास बन गईं हैं जो अपने छोटे-छोटे कार्यों के लिए बहू पर निर्भर हैं।

चाय पीने की इच्छा है पर बैठीं आवाज लगा रहीं हैं बहू को।उसे देरी के लिए कोस रहीं हैं। एक कप चाय बनाने में देर कितनी लगती है। जितनी देर आपने इंतजार किया,चार बातें बहू को सुनाकर अपना दिमाग और जुबान गंदा बोलकर खराब किया बहू का मन दुखाया उतनी देर में तो चाय बना कर उसका आंनद लिया जा सकता है। कौनसी किताब में लिखा है कि बहू के आने के बाद सास काम नहीं कर सकती या उसे नहीं करना चाहिए ।थोडा बहू की परेशानी भी समझो।घर में चार-पांच सदस्य हैं वह एक पैर सबकी फरमाइशें पूरी करते नाचती है। एक का काम कर रही होगी तो दूसरे के काम में देरी होना लाजिमी है ऐसे में उसे कोसना , अपशब्द बोलना कहां की समझदारी है। यदि उसके छोटे-छोटे बच्चे हैं तो वे उसकी प्राथमिकता हैं वह उनका काम करें, उन्हें सम्हाले या अन्य सदस्यों की आवश्यकता पूरी करे।

बहू के आने के पहले भी तो आप अपना घर सम्हालतीं थीं तो उसके आते ही पूरी जिम्मेदारी उसके नाज़ुक कंधों पर डालना क्या उचित है।सभी पूर्व की तरह अपना अपना कार्य करते रहेंगे तो वह भी कुछ समय अपने लिए निकाल पाएगी थोड़ा आराम, सुकून के क्षण बिता पाएगी। बहू ना हुई एक रोबोट मिल गया जो अनवरत बिना थके चौबीस गुणा सात घंटे चलता ही रहेगा ।

बुढापा क्या है एक सोच है जो उम्र बढ़ने के साथ हमारे मस्तिष्क पर हावी हो जाती है कि अब हमें कुछ नहीं करना बस बैठे रहना है और आराम करना है।जैसी सोच वैसा ही हम पर असर होता है और असमय ही हम निष्क्रिय हो जिंदगी से उदास हो जाते हैं। जबकि यह समय हमारे जीवन की दूसरी पारी शुरू करने का होता है। हमारे शौक, हमारी सुरुचियां, जो जीवन की आपाधापी में कहीं खो से गए थे उन्हें ढूंढ निकालीए फिर देखिए आपको कितना सुकून मिलेगा। कुछ बेटे-बहुओं को इससे परेशानी होती है कि बुढ़ापे में नये शौक पाल रहे हैं। उन्हें समझाइये कि ये नये शौक नहीं है जीवन में जिम्मेदारियों को निभाने के चक्कर में भूले -बिसरे हो गये थे जिन्हें हम अब पूरा करना चाहते है।

उम्र केवल एक बढ़ती संख्या है जिसका हमारे दैनिक जीवनके क्रिया कलापों से कोई संबंध नहीं। यदि हम मन को सक्रिय रखेंगे, प्रसन्न रहेंगे तो उम्र हम पर हावी नहीं होगी और अपना प्रभाव जल्दी नहीं छोडेगी। हमारे निष्क्रिय होते ही उम्र का प्रभाव शरीर पर दिखने लगता है। उम्र के हिसाब से शक्ति कम हो जाती है, दिखने में अंतर आ जाता है तो यथासंभव वे कार्य ही करने चाहिए जो आसानी से हो सकें।

कहा है ना मन चंगा तो कठौती में गंगा।

मन को चंगा रखिए आंनद ही आंनद है।

वहां उपस्थित महिलाएं अपने -अपने ढंग से जीवन के समीकरण को समझने का प्रयास कर रहीं थीं कि वे कहां गलत और कहां सही हैं। आगे समस्या का हल उन्हें ही खोजना था।

शिव कुमारी शुक्ला

जोधपुर राजस्थान

22-10-25

स्वरचित एवं अप्रकाशित

लेखिका बोनस प्रोग्राम

कहानी संख्या 5


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Shiv Kumari Shukla

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