बूढा - परमा दत्त झा
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बूढा - परमा दत्त झा

सुख के सब साथी दुख में न कोई-रामाधार यह गीत गाते हुए काम कर रहा था।आज तबियत ढीली थी और सत्तर का यह था।

आवाज बहुत सुन्दर,ऐसा लगता मानो मुकेश गा रहे हों।सो सब कार्यक्रम में बुलाते थे।अब तो मुंबई भी बुलाया जाता था।

मगर घर में -घर में इसकी औकात दाल के बराबर भी नहीं थी।

खो गया यह अतीत की याद में -आज से चालीस साल पहले दस साल के बेटे की मां कमला भाभी थी। अचानक सांप काटने से प्रदीप भाई की मृत्यु हो गई।अब पच्चीस छब्बीस की भौजी को चादर डालना पड़ा।

अरे क्या कर रहे हो,भाभी मेरी भाभी मां है-यह चीखता बोला था।

ना बेटा,हम सब समझते हैं,मगर क्या करें, समाज के नियम से बंधे‌हैं।

इसकी शादी में पचास हजार का समान दिया था और भैंस दी थी।भैंस भी मर गयी,तुम्हारा भाई भी नहीं रहा ,मगर कहां से लौटाएंगे जब खुद ही खाने के लाले पड़े हैं।

फिर भी नहीं माना तो इसे पीट पीट कर अधमरा कर दिया गया और जबरदस्ती हाथ पैर बांधकर शादी करा दी गई।इसके हाथ का सिंदूर उसकी मांग में डाल दिया गया।

फिर समय बीतने लगे,इसकी नौकरी लग गई।यह पूरे परिवार का खर्च उठाये था।बेटा दादा दादी मां के साथ रहता था।दस साल का दीनू कभी भी उसे पिता के रूप में स्वीकार नहीं कर पाया।

यह बस पैसा कमाने की मशीन बन गया। सुबह से रात तक काम करना,बेटे को पढ़ाना, गांव में मां बाबूजी की देख भाल करना।सब इसके जिम्मे था।

फिर तो समय बीतते गए।पहले मां बाबूजी फिर साल भर के अंदर भाभी मां भी नहीं रही।वह भी सांप काटने से चल बसी। तबतक यह दीनू बैंक क्लर्क की नौकरी पा गया।

फिर क्या था?वह शादी करके उद्दंड था।आज तक यह बाप के साथ सही व्यवहार कर नहीं पाया।पत्नी रही नहीं ,बहू ने स्वीकारा नहीं। नतीजा पूरा परिवार है मगर कोई अपना नहीं।

उस दिन बेटा बहू ने इसके गाल पर चाटे मारे थे और भगा दिया था।

क्या करें?-तिलमिलाता यह भाग गया था और उस दिन को तीस साल हो गये।यह गांव नहीं गया।बस संगीत का कार्यक्रम करता और आज जब इसे मुकेश अंतराष्ट्रीय गायक सम्मान से नवाजा गया तो बेटे बहू के दिल पर सांप लोटने लगे।

अरे बाबू को साथ रख लो न-बहू दीपू से बोली।

क्यों बुढ़े से कोई मतलब नहीं?-दीपू चिढ़कर बोला था।

कैसे मतलब नहीं है,पूरा दो करोड़ रूपए कमाये हैं।गाड़ी चलाकर अलग कमाते हैं सो साथ रखने से सारा पैसा अपना होगा।-पत्नी समझाती बोली थी।

अब आंखे चमक उठी -सच में पूरा पैसा अपना होगा ,सारी उलझन सुलझ जायेगी।

अब सब समझ गये और बुढ़े को बाबूजी कहकर साथ रखने की योजना बनाने लगे।

#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।


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