बहु - खुशी
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बहु - खुशी

जानकीनाथ चार भाई और तीन बहने थी। जानकी नाथ जी का बर्तनों का कारोबार था। बाजार में उनकी पांच दुकान थी चारों भाई मिलकर एक ही घर में रहते ।नंदा और मंदा दोनों की शादी हो चुकी थी।विजय नाथ ,राजीवनाथ और श्यामनाथ चारों मिलकर दुकान संभालते थे।पत्नियों में भी एका था जानकी नाथ की धर्मपत्नी सावित्री,विजय नाथ की उमा,राजीवनाथ की शारदा और श्यामनाथ की विजया चारो बहनों की तरह रहती ।ये देख उनकी माता जी यानि जानकीनाथ की मां तारा देवी खुश रहती और बलाएं लेती।एक ही चौके में खाना बनता।आगे इनकी अगली पीढ़ी में जानकी नाथ के दो बेटे विवेक और महेश, विजयनाथ के एक बेटा रवि और बेटी कृष्णा,राजीवनाथ के दो बेटे आशीष और मनीष और श्यामनाथ की तीन बच्चे गौरव , नित्या और नंदिनी ऐसा भरा पूरा परिवार था।सब खुश रहते थे साथ रहते थे अब बच्चे बड़े हो रहे थे बड़े मकान की जरूरत थी तो जानकी नाथ ने कहा हम ऐसी जगह घर लेते है जहां घर पड़ोस में हो साथ साथ हो पर चूल्हा अलग होगा अपना अपना पर त्योहार सारे एक साथ एक चूल्हे पर।उमा बोली भईया कोई गलती हुई क्या चूल्हा अलग क्यों।सावित्री बोली अरे हमारी पीढ़ी एक साथ खुश थी और हम घर पर रहती थी ।आज की बहु बेटी नौकरी करती है।एक सुबह जल्दी जाएगी एक देर से तो घर में शांति रहे इसलिए ये फैसला किया है और चूल्हे अलग हुए तो क्या हम तो एक है एक साथ ही खाना खाएंगे।जमीन खरीद कर एक ही जैसे चार घर बनने शुरू हो गए।इधर जानकी नाथ का बेटा विवेक अपनी इंजीनियरिंग पूरी कर एक कंपनी ज्वाइन कर चुका था अब सब उसकी शादी के सपने देख रहे थे।सबने कहा भाभी लड़की अपने जैसी ढूंढना घर को जोड़ने वाली विवेक ने भी ये जिम्मेदारी मां को ही सौंपी। महेश ने पिता के साथ दुकान संभाल ली क्योंकि वो बी.कॉम कर चुका था।नौकरी के लिए आवेदन किया पर कही से कोई जवाब नहीं आया।इसलिए उसने पिता का कारोबार ज्वाइन कर लिया।विवेक के लिए मंजरी का रिश्ता आया जो इंटीरियर डिजाइनर थी और उसी की मौसी की लड़की आरती सबको महेश के लिए भाई जो स्कूल अध्यापिका थी।एक ही मुहूर्त पर दोनों विवाह हुए और बहुएं घर आ गई ।दोनो बहुएं सर्वगुण संपन्न थी।सावित्री ने शुरू में ही बता दिया था।हमारा इतना बड़ा परिवार है सब साथ है रोज का आना जाना हसी मजाक सब है बुरा लगे मुझे बताना पर किसी को भी पलट कर जवाब नहीं देना।दोनो बहुएं घर में सेट हो गई।मंजरी सुबह का करती और आरती शाम का और यदि सब लोग आ जाए तो मिलकर यूं काम हो जाता की बस।सारा घर उन दोनों की तारीफ करता। विजयनाथ की बेटी कृष्णा और श्यामनाथ की नित्या की शादी थी दोनो बहुओं ने जिम्मेदारी संभाली अच्छे से अच्छा सब किया ।पर किसी रस्म पर कोई शगुन तैयार करना मंजरी भूल गई विजयनाथ वही शुरू हो गए क्या बहुएं हे इतनी बड़ी भूल ससुराल वालों के सामने सावित्री ने बात संभाली और शगुन का थाल बेटे के साथ घर जा कर ले आई।सब रस्मे अच्छे से हुई और बेटियां विदा हो गई।पर सावित्री को विजय का यू सबके सामने बहुओं पर चिलाना पसंद नहीं आया।अगले दिन सब बेटियों की ससुराल मिलकर वापस आए एक लिफाफा कम था जो विजय नाथ के पास था।विजय नाथ परेशान हो गए।जानकी नाथ बोले कोई नहीं मिल जाएगा।सावित्री बोली भैया आपसे गलती कैसे हो गई आप तो बिल्कुल परिपक्व है।जानकी नाथ बोले सावित्री ये क्या कह रही हो।जब सारी जिम्मेदारी बहुओं की हो सकती हैं तो क्या आप अपना काम जिम्मेदारी से नहीं कर सकते।ऐसे ही दोनों बहुओं ने सारे शादी के काम अच्छे से संभाले शगुन का थाल भूल आने पर आपने उन्हें कितना सुनाया इतने लोगों के सामने सोचिए भैया बच्चियां है वो अभी सीख रही है सॉरी भाभी मेरी गलती थी।तभी बाहर से आरती दौड़ती हुई आई और बोली चाचाजी ये लिफाफा गाड़ी में था।विजय ने लिफाफा ले लिया और बोले भाभी मै आगे से ध्यान रखूंगा।ये ध्यान आपको नहीं सब को रखना है सारी जिम्मेदारी सिर्फ बहुओं की नहीं होती बेटों की भी होती हैं घर के हर फर्द की होती हैं समझे।सब मुस्कुरा दिए और बहुओं ने खाने के लिए आवाज लगाई तो सारे बच्चे भाभी और अपनी पत्नियों की मदद के लिए चल पड़े।सब खुश थे कि परिवार एक है ।बहुएं खुश थीं कि हमारी सास समझदार है और जानकी नाथ खुश थे कि मेरी पत्नी को परिवार जोड़ने की कला आती हैं।

स्वरचित कहानी

आपकी सखी

खुशी


K

Khushi

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