दामोदर जी नें घर मे घुसते ही कहा“जल्दी से खाना लगा दो,त्यौहार का दिन है इसलिए आज दुकान मे भीड़ है।कैसे करके खाना खाने के लिए आया हूँ,मै ज्यादा देर नहीं रुक सकता।”खाना अभी नहीं बना है,अर्चना जी ने कहा।तीन बज गया और अभी तक दोपहर का खाना नहीं बना! यह घर मे हो क्या रहा है?तीन चार दिन से देख रहा हूँ कि दोपहर का खाना तीन साढ़े तीन बजे मिल रहा है।अब जब व्यक्ति इतना लेट खाना खाएगा तो शाम की चाय कब पियेगा?रात के खाने के वक़्त तक भूख ही नहीं लग रही है। इसबजह से रात के खाने मे भी दिक्कत हो रही है। दामोदर जी नें अपनी पत्नी से कहा। मुझसे क्या कह रहे है जाकर अपनी बहू से पूछिए। शादी करते वक़्त मुझसे पूछा था। उस समय तो बहू का खूब गुणगान गाया जा रहा था। सोमनाथ के भाई की लड़की ऐसी है कि दीया लेकर भी ढूढोगी तो ऐसी बहू नहीं मिलेगी।पढ़ी लिखी तो है ही साथ मे घर के सारे कामों मे भी निपुण है। उनकी पत्नी नें अपनी पसंद की बहू नहीं आने की खीझ उतार दी।मै क्या गलत कह रहाथा? बहू सारे काम कितने अच्छे से करती है। जब वह सोमनाथ जी के यहाँ उनके बेटे की शादी मे आई थी तब अपनी चाची के साथ सारे कामों मे कितनी तत्परता से मदद कर रही थी, यह मैंने देखा है।यहाँ भी जब से विवाह करके आई है घर को ऐसे संभाल ली है जैसे उसके विवाह हुए चार माह ना होकर चार वर्ष हूआ हो।दामोदर जी के मुँह से बहू की बड़ाई सुनकर उनकी पत्नी अर्चना जी एकदम से जलभून गईं और कहा आपकी बहू समय पर खाना नहीं बना कर नहीं दे रही है तो मुझे क्यों सुना रहे हो।सुना नहीं रहा हूँ, पूछ रहा हूँ कि क्या हुआ है? बहू की तबियत ठीक है ना? क्यों आजकल खाना बनने मे देर हो रहा है?दामोदरजी नें अपनी पत्नी की बातो को सुनकर गुस्साते हुए कहा।बहू को क्या होना है बस शादी के चार माह हो गए अब अपना रंग दिखाने लगी।नया नया मे सभी बहूए अच्छी होती है, अब आपको उसकी असलियत समझ आएगी। बड़े आए बहू के तरफदार भूनभूनाते हुए अर्चना जी नें कहा।कौन कैसा है मुझे समझ आता है तुम्हे बताने की जरूरत नहीं है। जाओ जाकर बहू को बुला लाओ मै उससे ही पूछ लूंगा, सोमनाथ जी नें अपनी पत्नी को डपटते हुए कहा।अर्चना जी नें बहू को आवाज लगाई।जी मम्मी जी आ रही हूँ, कहते हुए बहू आई और बोली मम्मी जी कहिए किसलिए बुलाया है आपने? खाना बन ही गया है अब उसे परोसने ही जा रही हूँ।थोड़ी देर हो गईं है पर पनीर की सब्जी बनाने मे थोड़ा ज्यादा समय लग ही जाता है। मैनें नहीं तुम्हारे पापा नें बुलाया है। जी कहिए पापा। पनीर बनाने मे समय लगता है तो इसे दोपहर मे बनाने की जरूरत क्या है। क्यों अब देर लगने के कारण आदमी पनीर की सब्जी खाना छोड़ दे। अर्चना जी नें दामोदर जी की बात पर आपत्ति दर्ज की। मै बनाने को मना कर रहा हूँ? दोपहर मे क्या जरूरत है? यह कह रहा हूँ। दोपहर मे तो दाल, चावल, रोटी, सूखी सब्जी बनती ही है इतना बनाने मे ही कितना समय लग जाता है फिर नाश्ते की भी सब्जी बची ही रहती है।पनीर की सब्जी आगे से नाश्ता या रात के खाने मे ही बनेगा, क्योंकि तब एक ही सब्जी से काम चल जाता है।दोपहर मे बनाने मे कोई दिक्कत की बात नहीं है पापा,दीदी को पनीर चावल के साथ पसंद है इसलिए दोपहर मे बनती है। यह सब कोई जायज बहाना नहीं है। नाश्ता मे बनाकर भी दोपहर के लिए रखा जा सकता है। वैसे बात आज की नहीं है मै तीन चार दिन से देख रहा हूँ कि खाना देर से बन रहा है।सही सही कारण बताओ कहकर सोमनाथ जी नें बहू को भी डाँट पिला दी। अभी दीपावली के कारण थोड़ी ज्यादा साफ सफाई करनी होती है इसलिए देर हो जाती है।फिर शनिवार, रविवार की और दीपावली की छुट्टी लगातार हो गईं है तो सभी घर पर ही दोपहर मे रह रहे है इसलिए रोज़ कुछ विशेष व्यंजन बन रही है इसके कारण भी देर हो जा रही है।साफ सफाई से तुम्हे क्या उसके लिए तो सफाई कर्मी आता है। सफाईकर्मी अपने मन से काम नहीं कर सकता है उसके साथ तो किसी को रहना पड़ता है और क्या क्या काम है बताना पड़ता है। जब वह 2 से 3 बजे तक खाना खाने जाता है तब मै झटपट खाना बनाती हूँ।उसके कारण आजकल खाना बनने मे देर हो जा रहा है। अच्छा मूल कारण मै समझ गया।तुम जाओ जाकर खाना लगाओ। मै उपाय करता हूँ। दामोदर जी के कहने पर बहू खाना परोसने चली गईं।बहू के जाने के बाद उन्होंने बेटा और बेटी को बुलाया और कहा दीपावली सिर्फ बहू के घर मे ही है? उसका घर क्या अलग है? अर्चना जी नें भी सवाल किया। नहीं,यह घर तो उसी का है पर मुझे लग रहा है तुम तीनो का यह घर नहीं है। ऐसा क्यों पापा? क्योंकि मै देख रहा हूँ कि जब से बहू आई है तब से इस घर के सारे काम उसकी ही जिम्मेदारी बन गईं है। तुम तीनो तो बस होटल के जैसे रहते हो।बस रात मे मेनू बता दिया कि कल टिफिन मे यह ले जाना है और सुबह उठकर नहाया धोया और डिमांड किया हुआ नाश्ता खाकर, टिफिन लेकर चलते बने।शाम को आना है और खा पीकर सो जाना है।घर मे क्या हो रहा है, इससे तुम्हे कोई सरोकार नहीं है।फिर यह तुमलोगो का भी घर है कैसे माना जाए?ऐसा नहीं है पापा ऑफिस के काम से इतने थक जाते है कि कुछ भी करने की हिम्मत ही नहीं बचती है बेटी नें बचाव किया। क्यों घर के काम मे मेहनत नहीं लगती है? बहू भी तो थक जाती होंगी।हाँ,वह तो है पापा पर हम भी क्या कर सकते है। क्यों नहीं कर सकते हो? बहू के आते ही तुम दोनों के ऑफिस मे काम बढ़ गया? तुम सब भूल रहे हो कि बहू के आने के पहले भी हम खाते पहनते थे।आज से चार महीने पहले तुम्हारी माँ खाना नाश्ता बनाती थी और तुम ऑफिस जाने के पहले उनकी मदद भी करती थी पर बहू के आते ही तुम दोनों अपना काम उसे सौंप कर निश्चिंत हो गईं।दामोदर जी नें बेटी को अपनी बातो से चुप कराया।फिर बेटे की तरफ देखते हुए कहा और तुमने भी सोचा की जब मेरी माँ बहन मेरी पत्नी के आने का फायदा उठा रही है तो मै भी क्यों ना थोड़ा आराम कर लूँ। सब्जी, दुध,राशन की जो जिम्मेदारी तुम्हारी थी उसे बहू पर डाल दिया। बहू आदमी है रोबोट नहीं जो उसके आते ही सभी अपनी अपनी जिम्मेदारी उसे देकर निश्चिंत हो जाए। बहू सारे काम अच्छे से कर रही है इसलिए मै भी कुछ नहीं बोल रहा था पर आज तो तुमलोगो नें अति ही कर दिया सफाईकर्मी के साथ भी बहू ही मिलकर सारे काम करवा रही है।तो क्या आप चाहते है कि मै उनके साथ करवाऊ। अब इस बुढ़ापे मे मजदूरों के साथ इधर से उधर सामान करवाना क्या मेरे बस का है?अर्चना जी नें दामोदर जी से पूछा।मैंने तुमसे तो नहीं कहा। वैसे चार माह मे ही तुम इतनी बूढ़ी हो गईं कि तुम्हे पलंग पर ही बैठे बैठे सब कुछ चाहिए ? सफाईकर्मी के साथ काम नहीं कर सकती हो पर जब बहू उनसे काम करवा रही होती है तब तक तुम दाल-चावल तो बना ही सकती हो।मुझे समझ नहीं आ रहा है कि जो घर कुछ दिन पहले तक सबके मिलजुलकर जिम्मेदारी निभानें से चल रहा था उस घर मे एकाएक बहू के आते ही सारी जिम्मेदारी बहू की बन गईं है। वो पापा अभी बेटा कुछ कहने ही जा रहा था तभी दामोदर जी नें रोकते हुए कहा “मै कुछ किन्तु परन्तु नहीं सुनना चाहता। कल से सभी अपना व्यक्तिगत काम स्वयं करेंगे। बाजार से कुछ भी लाने का काम तुम करोगे। बहू फुरसत मे हो तो उसे साथ ले जा सकते हो पर तुम्हे तो जाना ही होगा। और बेटी से कहा और जब सुबह भाभी नाश्ता बनाएगी तब तुम अपना और भाई का टिफिन पैक करोगी। रविवार को रसोई मे भाभी की मदद करोगी। यह सब सुनकर अर्चना जी मन ही मन कुनमूना रही थी,सारे काम जब खुद ही करना है तो बहू, भाभी के आने का क्या फायदा? सुनो मेरी मैडम जी मन मे मुझे गाली देना बंद करो।तुम भी कल से पलंग पर बैठे बैठे ही सही पर सब्जी फल काटने मे बहू की मदद कर दिया करो। बहू छत से कपड़े ला देती है तो उसे तह कर दिया करो। देखो बच्चो आज तुम्हे मेरी बात बुरी लग रही होंगी पर आज तुम्हारी माँ नें एक बात कही तब मुझे लगा कि यह सही है बहू अभी नई है तो किसी को कुछ नही कह रही है और सारे काम ख़ुशी ख़ुशी कर दे रही है। लेकिन जब बच्चा होगा उसकी जिम्मेदारिया बढ़ेगी तो कही वह इससे परेशान होकर जबाब देना ना शुरू कर दे।इसलिए समझदारी इसी मे है कि सभी थोड़ा बहुत उसके काम मे हाथ बटा दिया करो। ठीक है सभी संतुष्ट है? मै उम्मीद करू कि कल जब मै दोपहर मे दुकान से खाना खाने आऊ तब मुझे समय से खाना मिल जाएगा। जी, हम सभी मिलकर दीपावली की तैयारी करेंगे और आगे भी आपकी बहू पर अतिरिक्त बोझ नहीं देंगे। सभी नें सम्मलित आवाज मे कहा।
वाक्य —- क्या? सारी जिम्मेदारी बहुओं की ही है.
लतिका पल्लवी