आत्मसम्मान की बलि - रोनिता कुंडू
0

आत्मसम्मान की बलि - रोनिता कुंडू


मम्मी! आप दादी की इतनी बातें सुनती हो, पर फिर भी उनको कुछ बोलने में असमर्थ क्यों हो? जबकि आपकी कोई गलती भी नहीं होती है? कभी बुआ कभी चाचू और अब तो चाची भी आपको कुछ भी बोल जाती है, जबकि चाची को आए हुए अभी कुछ ही दिन हुए हैं, 13 साल की स्वरा ने अपनी मां आंचल से कहा...

आंचल: बेटा! तुम अभी बहुत छोटी हो! तुम क्यों इन सारी बातों पर ध्यान देती हो? यह बड़ों का मामला है और दादी तो घर में सबसे बड़ी है, तो अगर मुझसे कोई गलती हुई हैं तो, उनको डांटने का पूरा हक है, जैसे मैं तुम्हें डांटती हूं।

स्वरा: पर मम्मी! चाची, चाचू, बुआ यह तो आपसे छोटे हैं ना? यह भी तो आपको कुछ भी बोलते हैं और आप बस चुपचाप सुनती हो, जैसे कल चाची ने आपको खाना बनाने को लेकर कितना कहा, कि आप कामचोरी करती हो, मम्मी मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता जब आपको कोई ऐसे डांटता है, मन तो करता है कि मैं, आप और पापा इस घर को छोड़कर कहीं और रहने चले जाएं। वहां आपका काम भी कम होगा और हम दोनों ज्यादा समय साथ बिताएंगे, यहां तो पूरे दिन आप काम ही करती रहती हो, पर फिर भी सिर्फ डांट ही खाती रहती हो।

आंचल: बेटा ऐसी बातें नहीं करते, हम सब एक ही परिवार के सदस्य हैं, परिवार में तो यह सब चलता ही रहता है, हमें थोड़ा एडजस्ट करके चलना चाहिए। तुम यह सब अभी नहीं समझोगी। जाओ! अभी अपना होमवर्क खत्म कर लो, तब तक मैं रोटियां बना लेती हूं।

उसी रात को, खाना वाना निपटने के बाद स्वरा और नवीन कमरे में बैठे थे। स्वरा कुछ पढ़ रही थी और आंचल रसोई समेट रही थी, नवीन स्वरा से पूछता है, बेटा टेस्ट कैसा रहा?

स्वरा: ठीक था पापा! पापा आपसे कुछ पूछना था?

नवीन: हां पूछो बेटा!

स्वरा: आप हमेशा से मुझसे कहते हैं, कभी भी अन्याय के सामने चुप मत रहना और हर किसी को खुद को इस्तेमाल करने का मौका मत देना। पर मम्मी तो हर दिन यही करती है, गलती उनकी हो या ना हो, वह चुप्पी सादे हर किसी की बातें सुनती रहती है। कल चाचाी ने उन्हें कितना सुनाया, आज दादी ने, जबकि उनकी कोई गलती ही नहीं थी।

नवीन: बेटा, यहां तो सारे अपने ही है! इनसे क्या बैर करना? अब परिवार के सदस्य से कोई झगड़ा तो करेगा नहीं और तुम इन सब मामलों में मत पड़ो, अभी तुम छोटी हो, जाकर सो जाओ कल, सुबह फिर स्कूल भी तो जाना है, स्वरा अब और कुछ नहीं कहती और जाकर सो जाती है।

थोड़ी देर में, रसोई का काम समेटकर आंचल अपने कमरे में आती है, तो नवीन उससे कहता है, यह स्वरा आज मुझसे कह रही थी कि सब तुम्हें खड़ी खोटी सुनाते हैं और तुम चुपचाप सब सहती हो, यह सब क्या डाल रही हो उसके मन में? अपने ही परिवार के बारे में क्या-क्या बोल रही है वह?

आंचल: मैम क्या ही डालूंगी किसी के मन में? जो यह देखती हैं वही बोलती है, मुझसे भी न जाने कितने ही सवाल कर रही थी, पर यह सब परिवार में होता है यही सब कह कर उसे मैं समझा देती हूं, पर अब वह इतनी भी छोटी नहीं कि मैं कुछ भी कह दूं और वह मान जाए।

नवीन: हां अब अपनी बात उससे बुलवाना चाहती हो? अरे जब वह घर में होती है तो ऐसी नौबत आने ही क्यों देती हो? आज तक तो उसने ऐसे सवाल कभी नहीं पूछे और मां की तो आदत वह भी अच्छे से ही जानती है!

आंचल: बात अगर मम्मी जी की होती तो शायद इसको समझाना भी आसान होता, पर कल रुचि ने भी...?

नवीन: क्या? रुचि? उससे भी उलझ गई तुम?

आंचल मुस्कुराते हुए: हां बस इसी बात का ही तो दुख है, मुझसे हर कोई उलझ जाता है, और मैं अगर चुप भी रहूं तब भी गलती मेरी ही होती है, क्योंकि मेरे पति की कमाई इस घर के छोटे बेटे से कम जो है और वह जितने पैसे कम देते हैं इस घर में, वह मुझे पूरे दिन घिस कर चुकाने पड़ते हैं, पर यह बात स्वरा अभी नहीं समझेगी और ना ही मैं चाहती हूं कि वह समझे, पर इस मासूम को जवाब भी क्या दूंगी? जब यह पूछती है चाची को आप पर चिल्लाने का क्या हक है? क्यों चाचू और बुआ ऐसे बात करते हैं आपसे? आपके पास अगर इसका कोई जवाब हो तो इसे दे देना, क्योंकि मेरे लाख ना चाहने के बावजूद, घर वाले इसके सामने ही अपनी भड़ास निकालते हैं, पैसों से दुनिया चलती है और आज के ज़माने में परिवार में इज्जत और सम्मान पाना भी, आप कितना कमाते हो इस पर ही निर्भर है, यह बात स्वरा आज नहीं समझ पाएगी और मैं उसे बताना भी नहीं चाहती।

नवीन अब खामोश आंचल की बातें सुन रहा था और पत्थर बनी आंचल से, दिल ही दिल माफी भी मांग रहा था। पर वह भी मजबूर क्या ही करता है? इस महंगाई के ज़माने में अलग किराए का मकान लेकर रहना और घर परिवार गृहस्ती का खर्च उठाना, यह सब उसके लिए थोड़ा भारी था। शायद उसी की किमत आंचल चुका रही थी, पर वह इस बात को भूलता भी नहीं है और अब बात स्वरा ने भी पूछ ली थी, यह सब हुए दो दिन बीते ही थे कि, एक दिन स्वरा रोते-रोते स्कूल से घर लौटी, आंचल उसे ऐसे हाल में देखकर डर गई, काफी पूछने पर भी उसने कुछ नहीं कहा, घर में बाकियों ने इस पर ज़रा सा भी ध्यान नहीं दिया। आंचल जब पूछ पूछ कर थक गई, उसने नवीन को फोन कर घर बुला लिया। नवीन घर आकर स्वरा को पहले सहलाता है और फिर उससे प्यार से पूछता है, आखिर क्या हुआ बेटा? आंचल के तो हाथ पांव ठंडो हो रहे थे, फिर स्वरा कहती है, पापा! मेरे क्लास में एक लड़की है नम्रता, उसकी शुरुआत से मुझसे बहुत चिढ़ है, क्योंकि मैं क्लास में हमेशा फर्स्ट आती हूं, वह कभी भी मुझे नीचा दिखाने का मौका नहीं छोड़ती, आज उसने मुझे पूरे क्लास के सामने चोर और झूठा बना दिया। अपनी एक महंगी पेन मेरे बैग में खुद ही डालकर और मुझे चोर साबित कर दिया, मैं चुपचाप अपनी बेज्जती सहती रही।

नवीन: तुमने अपना पक्ष क्यों नहीं रखा?

स्वरा: पापा! उसके पापा के पास बहुत पैसे हैं, मैं अगर कुछ कहती भी, तब भी सबको उस पर ही भरोसा होता।

नवीन: यह क्या बात हो गई कि उसके पापा के पास बहुत पैसा है इसलिए तुमने अपना पक्ष नहीं रखा? यह तो गलत बात है ना बेटा? पैसों से आत्मसम्मान का क्या ही मुकाबला? उसके पापा के पास पैसा है तो तुम अपना पक्ष रखोगी ही नहीं? इससे तो उनका झूठा इल्जाम वह सच समझ लेंगे और तुमसे यह किसने कहा कि पैसों के बल पर हम किसी के साथ भी कैसा भी व्यवहार कर सकते हैं? मैंने तुम्हें सिखाया है ना कि अन्याय के खिलाफ हमेशा डटकर खड़े रहना चाहिए?

स्वरा: पर पापा! यह तो आपकी पुरानी बात है! कल रात को आप और मम्मी यही तो बात कर रहे थे कि ना? के पैसा कम कमाते हैं आप, इसलिए मम्मी चुपचाप अन्याय सहती है और मेरी तरह यूं अकेले में रोती है!

स्वरा की बातें सुनकर दोनों पति-पत्नी स्तब्ध हो जाते हैं, आज उनकी बेटी ने उनके जीवन में चल रहे हालात की ही मानो एक घटना सामने रखी। नवीन ने बात को संभालते हुए फिर कहा, बेटा! आज तुमने हमें भी कुछ सिखाया है, पर एक बात आज तुम अच्छे से गांठ बांध लो, सबसे ऊपर अपने आत्म सम्मान को रखना, क्योंकि एक यही है जो हमें जानवरों से अलग बनाती है और अब से तुम्हारी मम्मी भी अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएगी, क्योंकि हमें अपनी बिटिया को दब कर नहीं डटकर रहना सीखाना है और यही समय की मांग भी है। हम समाज को बदलने में तो असमर्थ है, पर खुद को बदलना हमारे हाथ में है।

उसके कुछ दिनों बाद नवीन घर में सबसे कहता है, अब से हम अलग रहने जा रहे हैं, अगर कभी हमारी ज़रूरत पड़े तो बता दीजिएगा, हम आ जाएंगे। पर अब हम इस महंगे होटल में नहीं रह सकते, जहां की कीमत हमारा आत्मसम्मान है। सभी नवीन के इस फैसले से हैरान थे, पर आंचल और स्वरा बहुत खुश थे, क्योंकि अब उन्हें आत्म सम्मान के साथ जीने का रास्ता मिल गया था।

नए घर में जाने के बाद, नवीन स्वरा से कहता है, बेटा! कल मैं तुम्हारे स्कूल चलूंगा, ऐसे कैसे कोई भी चोरी का इल्जाम लगा सकता है किसी पर? इस बात को हल्के में नहीं ले सकते। पहले मैं भी थोड़ा परेशान था तो इस बात को भूल गया था, पर बाद में मुझे याद आया कि मुझे चलकर बात करनी चाहिए स्कूल में।

स्वरा: पापा! ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था उस दिन! वह तो मैंनें एक नाटक किया था, क्योंकि मैं समझ चुकी थी मम्मी ने स्थिति से समझौता कर लिया है और खुद को पत्थर बना लिया है और आप कदम उठाने से पहले ही डर रहे थे, तो मुझे लगा कि अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा, तो यह आईडिया लगाया।

नवीन स्वरा की इस बात से एकदम से गुस्सा हो गया और फिर एकदम से हंसते हुए कहता है, होशियार पापा की होशियार बेटी! पर इस बार पापा को ही पीछे छोड़ दिया तुमने, आंचल! आज मेरी बेटी ने मुझे वह साहस जगाया, जो कभी मैं खुद से तो ना कर पाता, यह कब इतनी बड़ी हो गई पता ही नहीं चला?

आंचल: ऐसे ही पूरे क्लास में प्रथम नहीं आती है मेरी बेटी? बड़ी होशियार है मेरी लाडो! यह कहकर दोनों पति-पत्नी स्वरा को गले लगा लेते हैं।

दोस्तों, बाहर हो या अपना घर, परिवार! जहां आत्मसम्मान नहीं, वहां से निकल जाने में ही भलाई है, सूखी रोटी ही खा लेना, पर आत्म सम्मान की बलि देकर खुद को जिंदा लाश कभी मत बनाना।।

धन्यवाद

रोनिता कुंडू

#असमर्थ


R

Ronita Kundu

0 फॉलोअर्स

9 मिनट

पढ़ने का समय

0

लोगों ने पढ़ा

You May Also Like