असमर्थ का संघर्ष - पुष्पा पोरवाल
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असमर्थ का संघर्ष - पुष्पा पोरवाल

वक्त से पहले कंधों पर पड़े बोझ को सोना ने बखूबी संभाल लिया है छोटे-छोटे हाथ अब हर काम कुशलता और सरलता से निपटने लगे हैं प्रारंभ में तो खाना पकाते वह अक्सर जल जाया करती थी गले पर जलने का निशान उसकी नादानी की कहानी कहता रहता है।

खिलंदड़ी खिलाकर हंसने वाली सोना जाने कहां खो गई है।

....

मां ने मरने से पहले उसे कितनी आवाज़ दी थी लेकिन वह खेलती रही थी, ऐसा तो रोज ही होता था असक्त बीमार मां उसे रोज खेलने से मना करती थी छोटे भाई बहनों को खिलाने घर के काम में हाथ बताने के लिए उसे अक्सर डांटऔर मारा खानी पड़ती थी पर सोना ना सुनती खेलने की उम्र में वह कैसे समझती कि उसे मां को सहारा देना चाहिए।

सोना ने मां को खून की उल्टियां करते देखा वह घबरा गई तब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ वह अधीरता से बोली, "मम्मी अब मैं कभी खेलने नहीं जाऊंगी। "मां ने आशा भरी निगाहों से सोना को देखा उसकी हालत फिर बिगड़ने लगी अब तो उल्टियों में खून के साथ मांस के कतरे बाहर आने लगे थे जैसे वह अपना जर्जर हुआ दिल सबको दिखाकर बता रही हो मैंने कितने भी कष्ट उठाए हो पीड़ा झेली हो पर मेरा दिल तो यही रहेगा।

मां ने भयभीत सोना को अपने पास खींच लिया। भाई बहन के हाथों को उसके हाथ में देकर वह सदैव के लिए चुप हो गई।

चाची ताइयों के करुण विलाप से उसे एहसास हुआ कि अब उसकी मां इस संसार में नहीं है। वह भी रोने लगी उसका रोता देख बहन शामली और भाई सोहन भी रोने लगे।

सोना अपना रोना भूल गई उसने दोनों बाहों से सोहन और शामली को समेट कर सीने से लगा लिया ऐसा लगा जैसे मन सोना में समा गई हो सोना का पुन:जन्म हो गया हो।

सोना की चाची ताई सोना की मां से सदैव दूर-दूर रहती थी उसे क्षय रोग था। राख पड़ी उल्टी का ढेर मुंह ढांके दूर खड़ी चाची-ताई नेसोना को आदेश दिया- "इस उल्टी को बाल्टी में भरकर गांव के बाहर डाल आ।"

सोना उन्हीं लोगों के आश्रित थी आदेश का उलंघन कैसे कर सकती थी।

.....

सोना को वह सब कुछ करना पड़ता है जो उसकी उम्र, कद और समझ से भी परे है।

और और अब 11 बरस की सोना एक समझदार गृहस्थन हो गई है वह चाहती है कि उसके भाई बहन साफ सुथरे रहे और स्कूल पढ़ाने जाएं। हालांकि उसने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा उसे कभी पढ़ने का अवसर ही नहीं मिला। बीमार चिड़चिड़े स्वभावकी मां ने उसे पढ़ने के लिए कभी नहीं कहा, बल्कि छोटे भाई बहनों को खिलौने और काम में हाथ बताने के लिए डांट और मार खाई थी। पापा की ओछी कमाई आधी शराब में आधी पेट भरने के लिए रोटियां ही दे पाती थी ,पढ़ाई दवाई ख्वाब की वस्तुएं थी सोना को लगता है कि अब उसके पापा शराब पीना छोड़ दें तो तो घर गृहस्ती सुचारू रूप से चलने लगे। वैसे सोना और शामली बात-बात पर झगड़ते रहते हैं पर पापा को सुधारने के मुद्दे पर दोनों की सलाह देखते बनती है। दोनों आपस में बातें करती हैं "यदि पापा शराब नहीं पीते तो मम्मी नहीं मरती शराब पीने के बाद ही मम्मी पापा से झगड़ा करती थी तभी पापा मम्मी को गालियां देते और पीते थे।"

शराबबंदी के लिए मोर्चाबंदी शुरू हो गई। सोना और शामली दोनों ही अपने स्तर से सजग हैं। आठ बरस की शामली सोना को सुझाव देती है -"यदि पापा के पास पैसे ना रहे तो पापा शराब नहीं पी पाएंगे।"

"पापा रुपए गिन रहे हैं दो चार दस नहीं पूरे 50, 100 विश्वास न मानो तो चल कर देख लो!" शामली ने सोना से कहा।

हाथ का काम छोड़कर सोना शामली के साथ चल दी। बात सच थी।

सोना भाग कर तेल का डब्बा ले आई और बोली" पापा! तेल खत्म हो गया है चाय चीनी भी नहीं है जीरा लाल मिर्च और भी बहुत सारे सामान की लंबी फेहरिस्त बन गई ।शामली ठुनकती बोली" पापा मेरी फ्रॉक फट गई है सोहन का नेकर भी फट गया है।"

जब से इन बच्चों की मां नहीं रही सोने के पापा की क्रोध अग्नि में ठंडा पानी पड़ गया है। वह कुछ देर सोचता रहा फिर तेल का डिब्बा और बच्चों को साथ लेकर बाजार की ओर बढ़ गया बच्चों का मन उत्साह से भर गया ,अब फीकी चाय नहीं पीना पड़ेगी.. सब्जियों में भी स्वाद आएगा.. कल उम्दा खुशबूदार साबुन से मलमल कर नहाएंगे। पर जेब ठंडी हो गई। उसे दिन सब ने तृप्त होकर खाना खाया और चैन की नींद सोए। सोना का पापा शराब से वंचित रह गया।

.....

सोना ने पापा से कहा",पापा! सोहन और शामली का नाम प्राइमरी स्कूल में लिखवा दो, दोपहर में जाने कहां-कहां घूमते रहते हैं"। बात ठीक भी है ।

वह तो यही सोचता है दिहाड़ी मजदूर के बच्चे भी भला पढ़ते हैं सोना के जिद के आगे उसकी एक न चली और अब सवेरा होते ही कौवा गुहार मच जाता है घर में सबकी आजादी में खलल जो पड़ गया है। सोना सवेरा होते ही शामली और सोहन को जगा देती और नहलाने तैयार करने के लिए खींच तान करती जिससे वह रोने लगते।

आंगन के चारों ओर चार परिवार रहते हैं यह सभी सोने के चाचा ताऊ के परिवार हैं सभी भरे पूरे 4, 6 बच्चों वाले। उनकी आर्थिक स्थिति ठीक है और सभी के बच्चे स्कूल जाते हैं आंगन के बीच में एक हैंडपंप है सभी को जल्दी रहती है।

आधी अधूरी सोना को ही सबके कोप का भाजन बनना पड़ता है।

"चुप कर इन्हें! कुछ तू पढ़ गयी... कुछ ये पढ़ेंगे...?"

कोई उसकी चोटी पड़कर झकझोर देता और कोई उसके छोटे भाई बहन को पड़े धकेल देता।

प्रतिकार की आवाज उसके गले में घुट कर रह जाती क्योंकि उसके पास ना अभी धन बल है ना जनबल है और आत्मबल

भी नहीं।

गुस्से में वह शामली और सोहन को पीट देती और खुद भी रोने लगती। उसके आंसू पहुंचने वाला कोई नहीं है लेकिन वह अपने दोनों भाई बहन को सीने से लगाकर जरूर चुप कर लेती। सोना को अपनी मम्मी के मरने का दुख तो बहुत है पर मम्मी का चिड़चिड़ा स्वभाव दवाई का अभाव रोज की कलह पापा का मम्मी पर बात बात पर क्रोध करना जब याद आता है तो वह यही सोचती है जो वह ठीक हुआ।

...…

सोने के लिए एक मोर्चा तो है नहीं नित नए मोर्चे अनेकों आकार प्रकार से साकार होते हैं उसके समक्ष।

कल ही देखो सोना पड़ोस में चली गई थी शामली कोठरी में अकेली थी वह कोठरी की सांकल खुली छोड़कर खेलने चली गई ।लुटे साम्राज्य की तरह कोठरी अस्त-व्यस्त पड़ी थी। खाना नदारत था ।बंदर के आतंक का चुनौती भरा निमंत्रण था। भूख से बेहाल वह फूट-फूट कर रो पड़ी।

.…

आज सोना ने सवेरे से ही स्वेटरों को धोकर सूखने के लिए छत पर डाल दिए हैं बुआ के यहां शादी है नए ना सही गंदे ही साफ कर लें। वह नीचे आ गई सोहन और शामली उलझ रहे थे। बातों में मस्त ताई से बार-बार कह कर आई है," देखना ताई"।

"ये लो... स्वेटर बंदर ले गया ताई चिल्लाई!"

सोना रोटियां लेकर भागी... भागती ..रही छत से छत कूदती..रही मेड और दीवार पर लटकती चोट खाती वह जाड़े में पसीना -पसीना हो रही है।

"अब क्या फायदा!"

स्वेटर स्वेटर ही नहीं रहा... यह तो शहीद के शव जैसा क्षत विक्षतऔर वह रो पड़ी।

उसने संकल्प लिया स्वेटर बनाना सीखूंगी।

शामली भी सोना के लिए जब तब परेशानियां खड़ी कर देती है आक्रामक तेवर की शामली किसी से नहीं डरती, किसी से भी लड़ जाना आम बात है किसी से भी मांग कर खाने में उसे संकोच नहीं होता । बागों में आम ,अमिया, बेर ,आंवला खिन्नी, शहतूत आदि तोड़कर खाना और निश्चित घूमना ,उसकी उदर पूर्ति के साथ-साथ शरीर का पोषण हो जाता है। कदाचित इसीलिए उसका स्वास्थ्य अच्छा है थोड़े दिन हुए हैं स्कूल जाते किताब फटाफट पढ़ लेती है ईष्र्या से भर उठते हैं परिवार के लोग वह अक्सर गायब हो जाती है कई कई घंटे के लिए सोना यायावर की तरह भटकती रहती है उसकी खोज में। एक दिन बेरियों के बाग में अकेली बैठी थी।

सोना ने पूछा,"यहां क्या कर रही है।"

बोली,"मम्मी यहीं पर है यहीं पर पापा ने मम्मी को जलाया था मम्मी के जनाजे के पीछे वह भी पहुंच गई थी और दूर से उसने सारे क्रियाकलापों को देखा था इसीलिए कभी-कभी वह अपने पापा से भी खफा हो जाती है कि पापा ने मेरी मम्मी को जला दिया।

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होली का त्योहार आया है सोना ने पकवान बनाने के लिए सारा सामान मंगवाया है ताई के सहयोग से उसने गुजिया पापड़ी सेव बनाए हैं खुशी और तृप्तता से कोठरी खिल खिला रही है यह क्या पापा फिर शराब पीआये है!

सोना चिंता ग्रस्त हो गई आकार लेते मन के मंसूबे गुब्बारे की तरह फुस्स हो गए।

कैसे छुड़ाएं शराब सोना के रात दिन संकल्प विकल्प में बीतते।

चैत की नवदुर्गा आ रही हैं देवी मां ही सबकी कामना पूरी करती है मैं भी उनकी शरण में जाऊंगी।

आज चैत्र नवदुर्गा की पड़वा है सोना अल सुबह उठ गई पापा को उठाया और बोली,"पापा जल्दी से नहा कर तैयार हो जाओ!"

भेद भरी निगाहों से वह सोना को देखता रहा फिर नीम बेहोशी सी हालत में नहा धोकर आ गया।

सोना पापा को साथ लेकर मंदिर गई। उसने देवी मां पर जल चढ़ाया दंडवत की और आंख बंद करके कुछ बोलती रही फिर पापा के हाथ को देवी के सिर पर रखकर बोली," पापा कसम खाओ आप शराब नहीं पियोगे!"

अवाकॖ स्तंभित वह सोना को देखने लगा पशोपेश में वह कुछ समझ नहीं पा रहा है फिर भी इनकार में सिर हिला दिया ।सोना बोली," ऐसे नहीं कसम खाकर बोलो !"हार गया वह अपनी बित्ता भर की बेटी से। अभाव से सिसकती कोठारी शांत हो गई है। फटे लत्ते लपेटे बच्चे सजे में सज गए हैं हर और जीत से परे सोना का संघर्ष जारी है।

पुष्पा पोरवाल

मैं विश्वास दिलाती हुं

असमर्थ का संघर्ष कहानी मेरे

द्वारा लिखी गयी है।


बेटियाँ टीम

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