सीनियर लगते नहीं
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सीनियर लगते नहीं

" ये क्या आप मुझे हर वक्त सीनियर-सीनियर कहते रहते हैं..मेरा नाम लेते हुए क्या आपका गला दुखता है।" नीरू अपने पति महेश जी पर चिल्लाई।जवाब में वो मुस्कुराते हुए बोले," अब बच्चे तुम्हारे सयाने हो गये हैं और तुम्हारे बालों पर भी चाँदी चमकने लगी है तो हो गई ना तुम सीनियर..इसमें चिढ़ने वाली तो कोई बात है नहीं..।"

" चिढ़ने वाली!" नीरू भुनभुनाते हुए रसोई में चली गई।

महेश जी एल आई सी में काम करते थे।किसी न किसी बात पर नीरू की अक्सर ही उनके साथ नोंक-झोंक हो जाया करती थी लेकिन वो खुश थी।अपने दोनों बेटों अजय-आलोक की परवरिश करने और उन्हें अच्छी शिक्षा-दीक्षा देने में ही वो व्यस्त रहती थी।उसके बेटे स्कूल पास करके काॅलेज़ जाने लगे तो उसके बालों में भी हल्की सफ़ेदी आने लगी।वैसे तो वो सरल जीवन और स्वाभाविकता में विश्वास रखती थी लेकिन जब कभी पति के साथ किसी फ़ंक्शन में जाती तो महेश जी के मित्र कह देते," भाभी जी, महेश की तो जैसे उम्र ही ठहर गई हो..दो बेटों का बाप तो लगता ही नहीं।" तब महेश जी का सीना चौड़ा हो जाता और उसे अपने पति के सामने बड़ी उम्र के होने का एहसास होता।तब उसने अपना बालों को रंगना शुरु कर दिया।

पढ़ाई पूरी हुई तो अजय को मलेशिया के कोआलालंपुर शहर की एक कंपनी में नौकरी मिल गई।तब नीरू ने सोचा, कुछ समय बाद तो आलोक भी ज़ाॅब करने लगेगा और ये भी रिटायर हो जायेंगे।अब बाल नहीं रंगूगी..दो बच्चों की माँ हूँ तो लगना भी चाहिए।

लेकिन महेश जी रिटायरमेंट के बाद अपने बालों पर विशेष ध्यान लगे।शीशे में देखते रखते कि कोई बाल सफ़ेद तो नहीं रह गया।

अब एक दिन एक परिचित ने महेश जी को कह दिया," आप तो कहीं से भी सीनियर नहीं लगते...भाभी जी ज़रा...।" सुनकर नीरू कुढ़ गई थी।बस तभी से महेश जी उसे गाहे-बेगाहे सीनियर कहकर छेड़ने लगे।

एक दिन अजय ने फ़ोन करके नीरू से कहा," मम्मी.. मैं टिकट करा देता हूँ, आप लोग कुछ दिनों के लिये मेरे पास आ जाइये।" वो बहुत खुश हुई और जाने की तैयारी करने लगी।पहली बार विदेश देखने के लिए वो बहुत उत्साहित थी।

दो-तीन दिनों में अजय ने महेश जी और नीरू को कोआलालंपुर शहर के सभी मुख्य पर्यटन-स्थलों को दिखा दिया था।फिर एक दिन वो उन्हें 'द माइंस' नाम के एक माॅल के अंदर ले गया।माॅल की खूबसूरती देखकर तो उन दोनों की आँखें चौड़ी हुई जा रही थी।माॅल के दूसरे छोर पर बोटिंग-स्थल था।नीरू ने बोटिंग करने की इच्छा ज़ाहिर की तो अजय ने टिकट ले लिया और तीनों नौका-विहार का आनंद लेने लगे।उसी बीच अजय बोला," मम्मी..आज एक अच्छी बात हुई।टिकट देने वाले ने आपको देखकर पूछा, सीनियर? मैंने कहा, हाँ तो उसने आपकी टिकट की रेट आधी कर दी।"

नीरू उत्साहित होकर बोली," सच!" लेकिन महेश जी को अच्छा नहीं लगा।बेटे से बोले," तुम्हारी मम्मी तो अभी साठ की नहीं हुई है, फिर भी.., मैं तो रिटायर हो चुका हूँ ..मेरा भी तो हाफ़..।" उनकी बात पूरी होने से पहले ही अजय बोल पड़ा," लेकिन पापा..आप सीनियर लगते नहीं हैं ना..।"

अब तो महेश जी का चेहरा उतर गया।उन्हें खुद पर झुंझलाहट होने लगी और नीरू उनके चेहरे के बदलते रंग को देखकर मंद-मंद मुस्कुराने लगी जैसे कि आज उसकी सबसे बड़ी जीत हुई हो।

विभा गुप्ता

स्वरचित, बैंगलुरु


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Vibha Gupta

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