मालती और उसके पति मोहित ने अपना एक छोटा सा प्यार भरा आशियाना बनाया हुआ था ।घर छोटा था पर खुशी और प्यार से परिपूर्ण।मालती के पति मोहित एक छोटे से कारखाने में बहुत ही साधारण सी नौकरी करते थे।मालती भी एक लिफाफे बनाने के छोटे से कारखाने में काम करती थी। वह यह कार्य इसलिए करती थी कि ताकि वह अपने पति को गृहस्थी चलाने में सहयोग कर सके।उसके पति मोहित ने उसे कई बार कहा की तुम घर का काम भी करती हो ,बेटे को भी संभालती हो तो तुम बाहर का काम छोड़ दो। वो बड़े प्यार से अपने पति को समझाती की बेटा तो अब स्कूल जाने लगा है।मैं घर के काम ख़त्म करके में ख़ाली होती हूँ ।बाहर जाती हूँ तो मन भी बदल जाता हैं,थोड़े पैसे भी मिल जाते है ।बेटे के स्कूल से आने तक आ जाती हूँ।अगर दोनों मिलकर कमाएंगे तो बच्चे को अच्छे स्कूल में पढ़ा सकते हैं ।उसका भविष्य अच्छा हो सकता है । यहाँ पर यह कहावत चरितार्थ होती है कि अगर औरत कुछ करने की सोच ले तो उसे रोकना मुश्किल है।
मालती के इस नेक काम में भगवान भी उसका साथ दे रहे थे ।उसका बेटा विजय पढ़ने में बहुत ही होशियार था ।मालती जब कारखाने से लौटती तो रास्ते में गहनों की एक बड़ी सी दुकान थी,रोज आते जाते उसकी निगाहे गहनों पर पड़ती और उसने भी कंगन उसको अपनी ओर ज्याद आकर्षित करते थे।वो उन्हें अपने हाथों में पहनने का सपना सा देखने लग जाती।जैसा की सर्वविदित ह की हर स्त्री के मन में गहनों के लिए एक अलग ही झुकाव होता हैं,शायद यही कारण है कि गहनों का दूसरा नाम स्त्री धन भी है । मालती गहनों को देखती अवश्य थी पर उसे हालात पता थे इसलिए मन मसोस कर कर रह जाती ।समय अपनी गति से चल रहा था,उसके पति की भी नौकरी में तरक्की हुई ,उस कारण थोड़ी तनख़्वाह भी बढ़ी।बेटे भी हर साल कक्षा प्रथम आता इसलिए स्कूल वालो ने उसकी फीस माफ कर दी ।कुल मिलाकर मालती के घर हालात बेहतर हो गए थे ।लेकिन उसने अपना काम करना नहीं छोड़ा।वह नहीं चाहती की बेटे की पढ़ाई में आगे चलकर कुछ भी परेशानी आए।आगे चलकर बेटे का दाखिला एक अच्छे कॉलेज में हो गया मल्टी और उसके पति ने उसे अच्छे से मेहनत करके पढ़ाया।पढ़ाई पूरी होने के बाद बेटे की अच्छी नौकरी भी लग गई।पर सबके कहने के बाद भी मल्टी ने काम करना नहीं छोड़ा।
गहनों की दुकान का आकर्षण उसके मन में बढ़ रहा था ।कहते है ना कि हर माँ बाप की इच्छा होती है कि हम जो नहीं पा सके वो हमारे बच्चों को अवश्य मिले। अब मालती ने अपनी आमदनी से हर महीने बचाकर रखने आरंभ कर दिए ताकि जो सोने का कंगन वो नहीं ले सकी वो उसकी बहू पहने।वो चाहती थी कि बेटे के विवाह में वो बहू को मूहदिखाई की रस्म में वो शगुन के तौर पर कंगन दे।उसने बिना किसी को बताए मन बना लिया था कि वो बहू को सोने के कंगन जरूर देगी।पर वो अपनी इच्छा पति को बताकर उन पर अनावश्यक दबाव नहीं देना चाहती थी क्योंकि उसके पति मोहित सिर्फ इतना ही कमा पेट थे कि उनका घर ठीक से चल जाए। आभूषण अभी भी उन लोगो के लिए एक सपना थी था।समय बीतता गया बेटे का अच्छे कॉलेज में दाखिला हो गया।मालती और उसके पति ने मेहनत करके बेटे की पढ़ाई जारी रखी।पढ़ाई पूरी होने के बाद विजय की अच्छी नौकरी भी लग गई ।मालती की मेहनत,लगन और तजुर्बा देखकर कारखाने की मालकिन ने उसे निरीक्षक का दायित्व दे दिया।
थोड़े पैसे भी बढ़ा दिए।मालती थोड़े थोड़े दिन बाद अपने जमा पैसे गिनती रहती पर कंगन के लिए अभी भी बहुत कम थे।पर उम्मीद पर दुनिया क़ायम है । मालती ने प्रयास और मेहनत जारी रखा।अपने इस सपने को वो ख़ुद अपनी मेहनत से पूरा करना चाहती थी।थोड़े समय बाद उसके बेटे विजय ने उसे काम छोड़ने की ज़िद की परंतु उसने यह कर कर टाल दिया कि काम करना उसके लिए शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत ज़रूरी है,अगर वह काम नहीं करेगी तो बीमार हो जाएगी ।उसकी बात कुछ मायने तक सही भी थी।बेटा हमेशा पूछता रहता की माँ आपको कुछ चाहिए तो वो हमेशा टाल जाती।फिर भी बेटा हमेशा उसे हर तरह से खुश रखना चाहता था ।कुछ समय बाद बेटे विवाह की बात प्रारंभ हो गई और विवाह की तारीख पक्की हो गई ।मालती अपनी सब जमा की हुई पूंजी लेकर उसी गहनों की दुकान पर गई।दुकानदार को कंगन दिखाने को बोला उसे एक कंगन पसंद आ गए परंतु उसके पैसे पर्याप्त नहीं थे। वो दुकानदार को फिर आने को कह कर बोझिल मन से दुकान से घर वापस आ गई।कुछ समय तो उसका मन परेशान रहा परंतु फिर उसने स्वयं को समझाया कि अभी नहीं तो कोई बात नहीं वो फिर कभी किसी मोके पर वो कंगन ख़रीद कर बहू को अवश्य देगी। उसने अपनी इच्छा किसी को भी ज़ाहिर नहीं होने दी और ख़ुशी ख़ुशी विवाह की तैयारियों में लग गई ।नियत समय पर विवाह बहुत अच्छे से संपन्न हो गया ।बहुत ही अच्छी पुत्रवधू आई जिसे देख कर मालती निहाल हो रही थी। अब फिर सबने मालती को काम छोड़ने को कहा पर उसने सबको माना लिया।उसका काम और पति को आर्थिक सहयोग जारी रहा हालाकि अब उसके पति मोहित अब उससे पैसे लेने को माना करते थे कहते की तुम अपने ऊपर खर्च करो पर वो जबरदस्ती दे देती हालांकि वो अब कम पैसे लेते थे।अब मालती के पास थोड़े और पैसे जुड़ गए। कुछ समय बाद मालती के पोती हुई तो मालती ने बहू को शगुन के रूप में कंगन देने की सोची ।मालती फिर उसी दुकान पर गई जहाँ वो इतने वर्षों से बाहर से हर दिन गहने देखती थी।अब उसके पास पर्याप्त पैसे थे उसने मनपसंद कंगन लिए और घर गई तो पति और बेटा इंतज़ार कर रहे थे की बिना बताए कहाँ चली गई ।सबने पूछा कहाँ गई थी तो मालती ने कंगन बहू को देते हुई कहा की ये कंगन में तुम्हारे लिए लाए हूँ ।सबने आश्चर्य से मालती को देखा और उसके पति ने कहा ये तो बहुत महंगे लग रहे है । इस पर मालती ने हसते हुए कहा की आप चिंता मत करो ये में बिल्कुल नगद लाई हूँ। सोने के कंगन लेने का मेरा सपना था जो सच हुआ।इसी के लिया इतने सालों से मैंने तिल तिल जोड़कर पैसे एकत्र किए है ।इस दिन के लिए मैंने बरसो इंतजार किया की कब मैं अपनी बहू को ये कंगन पहने देखू ।ये सुनकर सबकी आंखों में आंसू आ गए ।बेटे ने कहा कि माँ अगर आपको कंगन लेने थे तो मुझे बता देती ,आपके आशीर्वाद और मेहनत से मैं इस लायक हो गया हूँ की आपकी इच्छा पूरी कर सकू ।आपने ये कंगन इतनी मेहनत से बनवाये है तो आपको ही इन्हें पहनने का हक है ।मालती बोली,बेटा माँ बाप जो अरमान ख़ुद के लिए पूरे नहीं कर पाते वो बच्चों के लिए पूरा करना चाहते हैं ।मैं तभी ख़ुश होऊँगी जब मेरी बेटी समान बहू इन्हें पहने ।इस पर बहू ने भीगी आँखों से मालती की तरफ़ देखते हुए कहा कि अगर माँ के हाथ सूने हो तो बेटी को सोने के कंगन पहनने का कोई अधिकार नहीं है ।उसने अपने पति से कहा कि मैं ये कंगन तभी पहनूँगी जब आप ऐसे ही कंगन माँ के लिए भी लाओगे ।मालती को कहा आपको मेरी ये जिद माननी ही होगी ।आप अपनी हर चाह दबाकर बच्चों के लिए लिए जी है हमेशा,अब बच्चों को भी कुछ करने का मौका दे । हम माँ बेटी मिलकर कंगन पहनेगी।जब तक आपके कंगन नहीं आयेंगे,तब तक ये आपकी धरोहर समझ कर अपने पास रखूँगी। वैसे भी ये कंगन मुझे हमेशा आपके निस्वार्थ और असीम प्यार को दर्शाते रहेंगे और मेरे दिल से जुड़े रहेंगे ।सास बहू का ये प्यार भरा मनुहार चल ही रह था कि मालती का बेटा एक सुंदर सा पैकेट लेकर बाहर से आया ।मालती को बोला,माँ अपना हाथ आगे बढ़ाओ,जैसे ही मालती ने हाथ आगे किए ,बेटे ने हाथों में सुंदर से कंगन पहना दिए।ये सब देखकर मालती की आँखों से ख़ुशी के अश्रु बह निकले।आज उसका वाशो का सपना बेटे ने पूरा कर दिया।
कहने को तो ये गहने थे पर इनके कारण पूरा परिवार प्यार के एक अटूट बंधन में हमेशा के लिए बंध गया।अगर हम गहनों को लालच और धोखे से ना जोड़े ये बड़ो प्यार और आशीर्वाद है।उनकी अमूल्य धरोहर है।
ममता भारद्वाज
गाजियाबाद
