सुधा जी बहुत सुन्दर , सुशील , सुशिक्षित , सुसंस्कृत थीं और एक सम्पन्न परिवार से आई थीं । अपने साथ परिवार भर के लिए ढ़ेरों उपहार लेकर आई थीं उसके बाद जब हनीमून पर गई तो वहां से भी घर के हर एक सदस्य के लिए उपहार लेकर आई थीं । मिलनसार स्वभाव की वजह से जल्दी ही सभी के साथ घुल-मिल गई और बहुत खुशी से रहने लगीं । धीरे-धीरे उन्होंने घर की अधिकांश जिम्मेदारी उठा ली । घर के सभी सदस्यों के कपड़े धोना , इस्त्री करना , जूते पॉलिश , बच्चों का होमवर्क करवाना , तीज़ त्यौहारों में बढ़ चढ़कर पकवान बनाना , करीने से घर सजाना , रंगोली बनाना , बंदनवार बांधना उसके बाद जेठ जी और ससुर जी को भी ज़रूरत पड़ने पर सलाह-मशवरा देना । बड़ी ननद के ससुराल की समस्या सुलझाना और छोटी ननद के लिए रिश्ता देखना । पहले तो स्वैच्छिक रूप से यह सब भार लिया था । बाद में घर वालों ने समझ लिया कि यह सब बहू की ही जिम्मेदारी है । धीरे-धीरे सभी लोग बहू पर पूर्णतः आश्रित हो गए और अपनी-अपनी जिम्मेदारी के प्रति लापरवाह हो गए । लेकिन घर का माहौल खुशनुमा बना रहा सुधा जी को दिक्कत होने लगी मगर वो सब झेलती रही ।
सावनी पूजा में जब सुधा जी के पति घर आएं तब उन्होंने कहा कि अब वो सुधा जी को अपने साथ शहर ले जाना चाहते हैं , तब घर में पहले मातम फैला उसके बाद कोहराम मच गया । सबने अपनी-अपनी बात रखी की सुधा जी को जाने से कितनी मुश्किलें आएंगी । कोई दुःख भरें गीत बजाने लगा , कोई खाना पीना छोड़ दिया और सबसे बड़ा कांड तो सासू मॉम ने किया । वो गश खाकर गिर पड़ी और बेहोश हो गई । पानी का छिंटा मार कर उन्हें होश में लाया जाता तो एक ही बात कहती मोहिनी के जाने के बाद मैं कैसे रहूंगी ? मेरे घर की खुशी , मेरे आंगन की रौनक , हमारी जिंदगी चली जाएगी हम कैसे रहेंगे .... और फिर बेहोश हो जाती । ऐसे में सुधा जी का पति के साथ जाना स्थगित हो गया । तब सासू मॉम का होश ठिकाने आ गया , शोक गीत बंद कर दिए गए और खीर पूरी बनाया गया । रात के भोजन पर सभी लोग एकत्र होकर खीर पूरी का आनंद लिया । भोजन के बाद जब बच्चें सब सोने चले गए तब बड़े लोगों के सामने सासू मॉम ने एक प्रस्ताव रखा कि जब टिकट ले ली गई है उसे बेकार क्यों किया जाए इसके अच्छा है कि उस टिकट पर सारिका को भेज दिया जाए । बहुत दिनों से सारिका के परिवार में क्लेश चल रहा है उसकी सास अपने बेटे की दूसरी शादी की बात शुरू कर दी हैं । सासू मॉम की बात सुनकर सबसे पहले सुधा जी ने कहा कि "हां हां सारिका जी को जल्दी से जल्दी ननदोई जी के पास भेज देना चाहिए ताकि वो लोग शांत हो जाएं और इनका वैवाहिक जीवन खुशहाल हो जाए । " सभी ने सहमति जताई और सुधा जी की टिकट पर सारिका जी चल पड़ी अपने साजन के पास और सुधा जी रह गई अपने घर परिवार की जिम्मेदारी का बोझ उठाने के लिए । हां अब बोझ ही लगने लगा था उन्हें क्योंकि यह तो एक तरह से अन्याय हो रहा था नई नवेली दुल्हन को पति के साथ वैवाहिक जीवन का सुख उठाने के बजाय लम्बे चौड़े संयुक्त परिवार का बोझ डाल दिया गया था । सुबह से लेकर रात तक वो सबकी जी हजूरी में लगी रहती थीं । सबके सोने के बाद अपने कमरे में जाकर अपने पति को ख़त लिखती थीं । खतों में ही उड़ेलना चाहती थी अपने अंतर्मन की भावनाएं , थोड़ा इश्क़ , थोड़ी मोहब्बत , थोड़ा शिकवा थोड़ी शिकायत .... मगर उनका ख़त पढ़ लिया जाता और पोस्ट करने के बजाएं कचरे में फेंक दिया जाता ।
हर रोज़ सुधा जी डाकिया का इंतजार करती अपने ख़त का जवाब पढ़ने के लिए व्याकुल होती । कई बार मालूम होता कि डाकिया आया है कुछ चिट्ठियां भी दिया है मगर सुधा जी को वो चिट्ठियां नहीं दी जाती । इस तरह घर वालों ने अपने बेटे और बहू के बीच में दूरी पैदा करने की पूर जोर कोशिश की । सुधा जी को अब समझ में आने लगा था कि उनका स्नेहिल स्वभाव , उनका सद्गुण और उनकी अच्छाई ही उनके खुशहाल जीवन में बाधक बन गई है । उन्हें लगने लगा कि अब उन्हें इस घर की जिम्मेदारियों का बोझ ही उठाना है क्योंकि वो बहू हैं सास , ससुर जेठ ,जेठानी, ननद ,ननदोई और आधे दर्जन बच्चों की देखभाल करनी होगी उनका अपना वो सपनो का संसार बस सपनों में ही साकार होगा । वो आदर्श बहू , आदर्श भाभी , आदर्श देवरानी, आदर्श चाची और मामी ही बनी रहेंगी। कभी पत्नी नहीं बन पाएंगी और ना ही अपने स्त्रित्व को पूर्णता दे पाएंगी ।
अपने मन को समझाना चाहती थीं मगर समझा नहीं पाती थीं ।
एक दिन उनके ससुर जी के मित्र की पत्नी आई थीं उनके स्वागत में चाय पानी और फिर दोपहर का खाना भी परोस कर ले गई और बैठकर पंखे से हवा करने लगीं । कुछ औपचारिक बातचीत के बाद व्यक्तिगत बातें भी पूछीं ....। उसके बाद उन्होंने कुछ कठोर शब्दों में कहा कि अगर बहू अच्छी है , सहनशील है तो क्या उस पर घर की सारी जिम्मेदारियां सौंपी जाएगी ? उसे कोई खुशी , कोई सुख और कोई आनंद नहीं मिलना चाहिए ? आप लोगों ने बेटा ब्याह कर बहू लाएं हैं या कोई नौकरानी ??? हक तो कुछ नौकरानियों का भी होता है । उन्हें भी छुट्टी दी जाती है लेकिन आप लोगों ने तो इसे कैदी बनाकर रखा है न मायके भेजते हैं न पति के पास । घर का माहौल कुछ गमगीन हो गया । सुधा जी को थोड़ा बल मिला । दो चार दिन की गहमागहमी के बाद फिर दैनिक दिनचर्या वैसे ही सुचारू रूप से चलने लगी । ससुर जी ने ऐलान किया कि वर्षगांठ के अवसर पर जब बाबू साहब घर आएंगे तब बहुरानी को भेज दिया जाएगा । घर के बाकी सदस्यों ने भारी मन से ही लेकिन सहमति जताई ।
सोनम ने जब यह ख़बर सुधा जी को सुनाई तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा । ऐसा लगा हजारों दीपक जल उठें , फुलझडियां छूटने लगीं और उनके भीतर शादी वाला लड्डू फ़ूटने लगा ..। मगर आंखों से सावन भादो बरसने लगा ... आखिर आ ही गई अब पिया मिलन की रुत लेकिन इसके लिए तो मिसेज रावत को धन्यवाद कहना होगा क्योंकि उन्होंने ही घर वालों को समझाया कि बहू भी एक इंसान है उसके भीतर भी मन है , आत्मा है , दिल है , इच्छा और आकांक्षाएं हैं उसकी अपनी निजी जिंदगी भी है इसलिए उस पर घर की सारी जिम्मेदारी नहीं थोपनी चाहिए बल्कि परिवार के सभी सदस्यों को परिवार के लिए कुछ काम करना चाहिए ।
स्वरचित , मौलिक एवं अप्रकाशित
लिटरेरी जनरल सरिता कुमार