बँटवारा - बीना शर्मा
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बँटवारा - बीना शर्मा

कौशल्या देवी एक कोने में बैठी हुई यही सोच रही थी कि अभी 13 दिन ही तो हुए थे उसके पति रमेश को इस संसार से विदा हुए परंतु, उनके जाने के बाद इतनी जल्दी उनके बच्चों मैं कितना बदलाव आ गया था जो भाई एक दूसरे से बेपनाह मोहब्बत करते थे आज वो एक दूसरे से अलग होने के लिए घर की एक-एक चीजों का बंटवारा कर रहे थे जो।घर उसके पति ने इतने प्रेम और मेहनत से बनवया था आज वे दोनों उसी घर का बटवारा कर रहे थे कौशल्या देवी ने कभी सोचा भी न था कि उनके बच्चे उनके पति के जाते ही इतना बदल जाएंगे कि घर का ही बटवारा कर देंगे।

दोनों भाई कुर्सियों पर बैठकर कॉपी पेन लेकर एक-एक चीज का नाम उसमें लिख रहे थे और दोनों बहुएं भी खुशी खुशी घर की एक एक चीज का बंटवारा कर रही थी।

यह देखकर कौशल्या देवी की आंखों में आंसू आ गए थे। उनके पति ने कितने प्रेम से इस घर का निर्माण किया था। घर का नाम भी उन्होंने 'कौशल्या भवन' रखा था और जब उनके आंगन में दो फूल खिले तो उनका नाम भी उन्होंने राम-लक्ष्मण रखा था। ताकि दोनों भाइयों में प्रेम बना रहे और वैसे भी दोनों भाई एक दूसरे से बेहद प्रेम करते थे।

उन्होंने उनका विवाह भी दो सगी बहन सीता और उर्मिला से किया था। दोनों बहन रूप और गुण में भी बिल्कुल सीता और उर्मिला जैसी थी। सास-ससुर की सेवा करने वाली और मर्यादा में रहने वाली।

दोनों बेटों की शादी के बाद रमेश जी ने अपने घर की जिम्मेदारी दोनों बेटों को सौंप दी थी और वे अपने बुढ़ापे के दिन खुशी खुशी कौशल्या और बच्चों के साथ बिता रहे थे।

1 दिन वे कौशल्या के साथ सुबह की सैर कर रहे थे कि अचानक दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई। अपनी आंखों के सामने पति को मरता हुआ देखकर कौशल्या को ऐसा सदमा लगा कि उनकी जुबान से आवाज निकलनी बंद हो गई और वह बोलने में बिल्कुल असमर्थ हो गई थी जब वह अपने दिल की बात किसी से कह नहीं पाती तो लाचारी में उनकी आंखों से बस आंसू बहते रहते थे।

उनके दोनों बेटों और बहुओं ने मिलकर अंतिम संस्कार की सारी रस्में पूरी की थी परंतु, 13 दिन बाद ही उन्होंने अलग अलग रहने का निर्णय कर लिया था।

कौशल्या देवी यही सोच रही थी कि कैसा घर है जहां कोई अपना ना था दोनों बेटों ने फैसला लेने से पहले एक बार भी नहीं सोचा कि उनको ऐसा करने से उनकी मां को कितना दुख होगा जब दोनों बेटों ने सारा सामान आधा-आधा कर लिया तो बस घर में रखा एक मंदिर ही रह गया था। जिसे उनके पिता ने खुद अपने हाथों से बनाया था और घर के सभी लोग एक साथ मंदिर में पूजा करते थे। जिससे घर में प्रेम और एकता बनी रहे।

जैसे ही उनकी बड़ी बहू सीता मंदिर का बंटवारा करने के लिए उसे उठा कर लाई तो कौशल्या के अंदर ना जाने कहां से ताकत आ गई वह एकदम से चिल्लाई 'खबरदार जो इस मंदिर का बंटवारा किया। यह मेरे पति की आखिरी निशानी है और यह मंदिर मेरे पास ही रहेगा। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इसे हाथ लगाने की?" मैं कितने प्यार से तुम्हें इस घर की बहू बना कर लाई थी कि तुम कभी इस घर का बटवारा ना होने दोगी परंतु, तुमने मेरे पति के मरते ही घर का बंटवारा कर दिया।'

मां की आवाज सुनते ही कौशल्या के दोनों बेटों ने घर के सामान की कॉपी फेंक दी और खुशी से उनकी आंखों में आंसू बहने लगे थे उनकी मां जो पिता के जाने के बाद बोलने में असमर्थ हो गई थी आज उनकी निशानी के कारण उनकी आवाज वापस भी आ गई थी यह ईश्वर का चमत्कार ही था कि अब वो बोलने में समर्थ हो गई थी ऐसा चमत्कार देख कर दोनों बेटे भावुक हो गए थे वे दोनों हाथ जोड़कर अपनी मम्मी कौशल्या से बोले 'मम्मी! हमें माफ कर दो। हम घर का बटवारा नहीं कर रहे थे। हम तो सिर्फ अलग अलग होने का नाटक कर रहे थे कि ताकि आपकी आवाज वापस आ जाए। जब हमने आपकी आवाज के बारे में डॉक्टर से बात की तो उन्होंने हमें सुझाव दिया कि कुछ ऐसा करो जो इनकी आवाज वापस आ जाए। यही सोचकर हमने अलग होने का नाटक किया था। मां हमें माफ कर दो हम तो सिर्फ आपको ठीक करने के लिए ऐसा कर रहे थे हम अपने पापा के घर का बटवारा कभी भी नहीं करेंगे और हमेशा आपके साथ मिलकर रहेंगे।'

सीता और उर्मिला भी उनकी आवाज सुनकर खुशी के आंसू बहा रही थी और कौशल्या को जब बेटे बहुओं की हकीकत पता चली तो वे उन्हें आशीर्वाद और दुआएं दे रही थी क्योंकि उनके बेटे बहुओं ने सिर्फ उन्हें ठीक करने के लिए और उनकी आवाज लाने के लिए ही अलग-अलग वस्तुओं का बंटवारा करने का निश्चय किया था।

असमर्थ

लेखिका : बीना शर्मा


Beena Sharma

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