दाँव - करुणा मलिक
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दाँव - करुणा मलिक

क्यों माँ , आखिर आप यह बोलने में #असमर्थ क्यों हैं ………क्यों डरती हैं आप इतना ? आप दादा-दादी से पूछे कि अगर वे आपसे शादी नहीं करना चाहते थे तो उन पर दबाव क्यों बनाया?

नहीं राघव ……… माँजी- पिताजी ने कोई दबाव नहीं डाला था। सब कुछ तुम्हारे पापा की मर्जी से हुआ था………

मम्मी…… प्लीज़…… वो मेरे पापा नहीं है, सिर्फ मेरे चाचा हैं। मैं अपनी क्लास टेंथ की मार्कशीट से भी उनका नाम चेंज करवा रहा हूँ।

बेटा……… यह नामुमकिन है। तुम्हारे बर्थ सर्टिफिकेट में इन्हीं का नाम है, अपने लिए मुश्किले पैदा मत करो। बहुत पचड़े होंगे,तुम अभी छोटे हो । अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो बेटा ।

इतना कहकर अंजलि वहाँ से चली गई क्योंकि वह जानती थी कि राघव आज कोई बात सुनने के लिए तैयार नहीं है । वह सीधे अपने कमरे में गई और दरवाजा बंद करते ही फफक-फफक कर रो उठी………आखिर उसके जीवन में इतने तूफान क्यों हैं ?

कितनी खुश थी वह उस दिन, जिस दिन जयदीप के साथ उसके रिश्ते की बात पक्की हुई थी। पापा खुशी से चहकते हुए बोले थे--

अंजलि……… बड़ा सुलझा हुआ परिवार लगता है, बस आगे तुम्हारे हाथ में है क्योंकि तुम परिवार की बड़ी बहू बनोगी ।

जयदीप के परिवार को बहू के रूप में बेटी लाने की इतनी जल्दी थी कि पहले ही शुभ मुहूर्त में शादी की तारीख पक्की कर दी गई थी। जयदीप नोएडा की एक अच्छी कंपनी में काम करता था और मुरादनगर से रोज बाइक से आना-जाना करता था। अभी शादी को छह महीने ही गुजरे थे कि एक दिन काम पर जाते समय घने कोहरे में एक ट्रक ने उसे ऐसा कुचला कि लाश पहचाननी मुश्किल हो गई थी।

अभी तो नई-नवेली बहू के हाथों की ठीक से मेंहदी भी नहीं छूटी थी कि भाग्य ने उसकी माँग का सिंदूर पोंछ दिया। अंजलि तो बुत सी बनी तेरहवीं के बाद अपने माता-पिता के साथ अपने घर लौट आई । शायद कभी न लौटने के लिए………पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था। घर आने के करीब पंद्रह दिन बाद ही जब अंजलि की पीरियड डेट मिस हुई तो उसे कुछ शक हुआ क्योंकि पिछले माह भी उसकी डेट मिस हुई थी , हालांकि उस समय उसने यह बात किसी को नहीं बताई थी और डेट मिस होने का कारण शारीरिक कमजोरी को समझ लिया था। जब अंजलि ने इस बात का जिक्र अपनी मम्मी से किया तो वे बोलीं थी ---

अंजलि! इस बात को मन में ही दबा दे , क्या फायदा है अब ? जयदीप के माता-पिता का भी मानना है कि कोई भला लड़का मिलने पर तुझे अपना नया जीवन शुरू करना चाहिए। हमने तो दबे स्वर में रणदीप के साथ चादर ओढ़ाने की बात कही भी थी पर उनकी तरफ़ से तो ना हाँ ना……ना । अब तू कोई बाहर थोड़े ही पड़ी है, माँ- बाप जिंदा है तेरे । मैं कल तेरी मौसी से बात करुँगी ……… उसकी जानकार हैं एक डॉक्टर, अपनी मजबूरी बताएँगे तो समझेगी ।

पर मम्मी……… मैं एक बार माँजी से बात करके उन्हें बताना चाहती हूँ ।

उससे क्या होगा? उनके पास भी क्या रास्ता है बेटा……… केवल दुःख के सिवाय। जो ज़ख़्म वक्त के साथ भरने शुरू हो चुके हैं उन्हें कुरेदने से क्या होगा?

मम्मी! क्या आप जानती हैं कि माँ जी और पिताजी ने रणदीप के साथ चादर ओढ़ाने की बात का जवाब क्यों नहीं दिया था ?

तू बड़ी सीधी है अंजलि, शायद उनके भी दिल के किसी कोने में यह बात आ गई होगी कि तेरी किस्मत ही ख़राब है और अब दूसरे बेटे के साथ रिश्ता बनाने में मन का वही डर आड़े आ गया हो ।

नहीं……दरअसल रणदीप अपने ऑफिस में काम करने वाली एक तलाकशुदा तथा एक बच्चे की माँ से शादी करने पर अड़ा हुआ है। सब जानते हैं कि वह औरत केवल पैसे की खातिर उसे जकड़े हुए है।

पर जब वो उस दिन नहीं माना तो अब क्या जबरदस्ती उस पर दबाव बनाया जाएगा? तू क्यों इस चक्कर में पड़ती है अंजलि……… जो हुआ वो क्या कम है जो जानबूझकर अपना जीवन दाँव पर लगा रही है ? अब तो तू अकेली है,कल को बच्चे के साथ तेरी मुश्किलें कहीं बढ़ ना जाएँ ………… ऐसी औरतें बहुत शातिर होती हैं। मेरा तो यही कहना है कि इस बच्चे का मोह छोड़ दें, हालातों से समझौता करने में भी भलाई है। अगर रणदीप ने उसके साथ रिश्ता खत्म नहीं किया तो तेरे साथ-साथ इस जीव को भी कष्ट उठाना पड़ेगा।

बिस्तर पर पड़ी अंजलि को आज माँ की कही बातें याद आ रही थी और सच साबित होती नजर आ रही थी। आखिर जब रो- धोकर मन थोड़ा हल्का हुआ तो वह कमरे से बाहर निकली और चाय बनाकर सास के पास जाकर बोली --

माँ जी , क्या आपको राघव के आने की खबर देना मेरी ग़लती थी ?

अंजलि का प्रश्न सुनकर मोहिनी जी समझ गई कि आज फिर राघव ने अंजलि के साथ किसी बात पर बहस की है । उन्होंने कई बार दोनों माँ-बेटे के बीच हुई खींचतान को महसूस किया था पर ना तो अंजलि ने और ना ही पोते राघव ने इस बारे में उनसे कोई बात की थी । बहू का प्रश्न सुनकर मोहिनी जी बोली--

नहीं मेरी बच्ची! मैं तो आज भी उस क्षण को महसूस करके जीवंत हो उठती हूँ जब तूने वो खबर देकर इस घर को पुनर्जीवन दिया था । जयदीप के बाद हमारी तो केवल साँसें बची थी। जब तुम्हारे पापा के चादर ओढ़ाने के प्रस्ताव को रणदीप ने ठुकरा दिया था और तुम्हारे ससुर ने यह कह दिया था कि उनके जीते जी वह औरत इस घर में नहीं आ सकती तो केवल दो जिंदा लाश बनकर रह गए थे हम दोनों। हमने रणदीप को अलग घर लेकर रहने को भी कह दिया था पर उसकी आँखों का पानी मरा नहीं था इसलिए वो हमें छोड़कर नहीं गया । जिस रात हमने तेरे माँ बनने की खबर उसे दी थी तथा अनकहे शब्दों द्वारा जयदीप की निशानी को सहेजकर रखने की विनती की थी तो उस समय वह कुछ नहीं बोला था पर अगले ही दिन सुबह वह हमारे कमरे में खुद आया था और उसने मुझे कहा था --

माँ ! अंजलि को फोन कर दें……… मैं अपने भाई की निशानी को खोने नहीं दूँगा ……… अंजलि को लाने की तैयारी करें और बेटा……… आगे तो तुम्हें पता ही है कि हफ्ता बाद ही मंदिर में शादी करवाने के बाद हम तुम्हें ले आए थे । क्या हुआ अंजलि, अब ………

सास की बात सुनकर अंजलि की आँखों में पानी भर आया लेकिन उसने खुद को संभालते हुए कहा---

माँजी ! तकरीबन एक महीने पहले राघव को किसी ने यह बता दिया है कि रणदीप उसके पिता नहीं हैं और मेरे साथ उनकी शादी दबाव देकर करवाई गई थी। अब राघव मुझे कह रहा है कि मैं रणदीप से उसकी गर्लफ्रेंड के बारे में पूछूँ , उससे मिलूँ और अगर वो रणदीप को छोड़ना नहीं चाहती तो तलाक ले लूँ ।

आज मैं राघव से खुद बात करुँगी , बड़ी कच्ची उम्र है अभी उसकी………और अब छिपाने का मतलब भी नहीं, तू चिंता मत कर ।

शाम को राघव के आते ही दादी उसे अपने कमरे में लेकर गई और अपनी अलमारी से कुछ फोटो निकाल कर उसके सामने रखते हुए बोली --

आ राघव ! आज मैं तुझे तेरे पिता से मिलवाती हूँ । मैंने सोचा था कि तेरे बड़े और समझदार होने पर सब कुछ बताना ठीक रहेगा पर अब तेरे सामने किसी ने बता ही दिया तो आज पूरी कहानी सुन ले बेटा ! इतना कहकर मोहिनी जी ने एक-एक घटना राघव को बता दी । कहानी सुनाने के बाद राघव के चेहरे पर नजर पड़ते ही मोहिनी जी को महसूस हुआ मानो ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ने वाला राघव पल भर में घर का मर्द बन गया हो ।

अब बता , हमने शादी के लिए दबाव बनाया था या रणदीप की मर्जी से हुआ था सब कुछ?

जो भी है दादी………… लेकिन अब अगर चाचा का उस औरत से कोई रिश्ता है तो मम्मी समझौता नहीं करेगी। और आप अभी इन सब बातों का ज़िक्र चाचा से नहीं करेंगी, आपको मेरी कसम ।

इतना कहकर राघव अपने कमरे में चला गया। बाहर बरामदे में रणदीप खाना खा रहा था पर राघव चुपचाप वहाँ से चला गया । रणदीप को थोड़ा अटपटा सा लगा पर उसने सिर्फ अंजलि से इतना कहा---

काफी दिनों से राघव अजीब सा व्यवहार कर रहा है, सब ठीक तो है। किशोरावस्था में कई तरह के बदलाव आते हैं बच्चों में……… जरा ध्यान रखना इसका ।

दो दिन बाद राघव को क़रीब एक बजे घर आया देख मोहिनी जी अचंभित होते हुए बोली ---

राघव……… आज स्कूल से इतनी जल्दी कैसे, तबीयत ठीक है ना ?

मम्मी कहाँ है?

मैं यहां हूँ ……… आज जल्दी क्यों आ गया?

बाद में बताऊँगा, पहले मेरे साथ जल्दी चलो।

राघव ने कैब बुलाई और शहर के बाहर बने एक नए रेस्टोरेंट में अंजलि के साथ जा पहुँचा तभी कुछ देर बाद रणदीप भी अपनी बाइक से वहाँ आ पहुँचा……… अंजलि रणदीप को देखकर हैरान हो उठी और राघव को देखने लगी। पर राघव रणदीप के साथ अंदर जा रहा था । वहाँ जाकर राघव एक टेबल पर बैठी एक औरत की तरफ इशारा करते हुए बोला ---

मम्मी! ये वो औरत है जिसने मुझे पापा के बारे में बताया……… जो अक्सर चाचा के साथ अपने फोटो दिखाकर कहती थी कि तुम्हारी मम्मी जबरदस्ती इनके गले पड़ी है…… और भी जाने क्या -क्या ।

अंजलि तो सोच ही रही थी कि क्या बोले , तभी रणदीप चिल्लाते हुए बोला ---

मीनाक्षी तुम ……… तुम्हें एक छोटे बच्चे को ये सब बोलते शर्म नहीं आई? और मैं तुम्हें आज तक ये सोचकर तुम्हारे बेटे की पढ़ाई का खर्चा भेजता रहा कि भले ही ईश्वर को हमारा रिश्ता मंजूर नहीं था पर तुम्हारे बेटे के भविष्य पर इसका असर नहीं पड़ना चाहिए। छि: ………मेरे माता-पिता का निर्णय एकदम सही था कि तुम मुझसे नहीं, मेरे पैसों से प्यार करती हो वरना मेरी शादी के अठारह साल बाद भी बच्चे के मन में ज़हर भरने की ना सोचती । चलो राघव…… अपनी माँ को घर ले चलो ।

दरअसल राघव ने अपने दो एक मित्रों की सहायता से मीनाक्षी पर नज़र रखनी और उसका पीछा करना शुरू कर दिया था । उसे रणदीप पर शक था कि वह छुपकर उससे मिलता है और जब एक दिन उसका एक दोस्त उस नए रेस्टोरेंट में आया तो मीनाक्षी को वहाँ देखकर उसने स्कूल के नंबर पर फ़ोन करके इसकी सूचना दी । राघव ने फ़ोन करके रणदीप को भी बुलाया ताकि आज ही चाचा का पर्दाफ़ाश हो जाए और उसकी माँ जिस बात को कहने में असमर्थ थी , वो बिना बोले ही पूरी हो जाए लेकिन जब रणदीप ने मीनाक्षी को दूसरे आदमी के साथ देखा और उसने खुद को उसका पति बताया तो बाज़ी ही पलट गई थी ।

घर पहुँचकर रणदीप ने अपने माता-पिता के सामने हाथ जोड़कर कहा --

मैं हमेशा अपने को मीनाक्षी का दोषी समझता रहा था पर ………

बेटा ! ना तो हमें उसके तलाकशुदा पर कोई आपत्ति थी और ना ही उसके बच्चे से । जयदीप ने बहुत खोजबीन करके ही यह फैसला लिया था कि वह तुमसे शादी करने लायक नहीं है, उसने तुम्हारे जैसे कई लडकों को फँसा रखा था।

सॉरी अंजलि! मैं तुम्हारा भी कसूरवार हूँ , तुम्हें बिना बताए उसके बेटे की पढ़ाई का खर्चा भेजता रहा पर मेरा विश्वास करना कि तुमसे शादी के बाद मैं कभी उसके घर नहीं गया था ।

चाचा………

राघव ! यह बात सच है कि मैं तुम्हारा पिता नहीं पर पापा कहलवाने का अधिकार मुझसे मत छीनो बेटा !

चाचा……… प्लीज़, मेरे पास मेरे पिता का नाम रहने दीजिए। चाचा ना सही , मैं आपको छोटे पापा कहकर बुलाऊँगा ।

आखिरकार राघव की ज़िद के आगे सबको झुकना पड़ा और रणदीप ने काफी भागदौड़ करके सबूत पेश करके राघव के पिता का नाम बदलवाया । इस घटना के दो साल बाद अंजलि ने एक बेटी को जन्म देकर रणदीप को पिता बनने का सुख दिया। अपनी मम्मी के रोकने के बावजूद अंजलि ने जो दांव लगाया था , वो उसमें जीत गई थी ।

लेखिका : करुणा मलिक

K

Karuna Malik

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